अभी तक आपने पढ़ा ,शब्बो बलविंदर को बचाने के लिए ,पानी में कूद जाती है, क्योंकि वो बलविंदर से मन ही मन प्रेम करने लगती है , किन्तु पानी के बहाव के संग ,वो ही बह जाती है। गांववाले बलविंदर को, बचा लेते हैं ,बलविंदर को लेने उसका पिता' मनसुख 'आता है और बलविंदर को लेकर अपने गाँव चला जाता है। बलविंदर वहाँ अपने पहले प्रेम' निहारिका 'से मिलता है और अपना दुःख भूल जाता है किन्तु बातों ही बातों में ,उसे शब्बो की बातें स्मरण हो आती हैं।' निहारिका 'को उसका व्यवहार बदला सा लगता है ,तब वो कहती है - कहीं तुम्हें कोई और तो नहीं मिल गयी। दूसरी तरफ शब्बो पानी में बहते हुए ,किसी अनजान स्थान पर पहुंच जाती है उसके सर में चोट भी लगी थी ,वहां पहले से ही, बस दुर्घटना में यात्री क्षतिग्रस्त हालत में थे। शब्बो को भी ,वो उसी बस की यात्री समझ ,उसकी मरहम -पट्टी करते हैं किन्तु एक महिला को जब पता चलता है- कि ये प्यारी सी बच्ची ,किसी अनजान इलाके से, पानी के बहाव के कारण बहकर आई है और इसके संग कोई भी नहीं है तब वो उसे अपने प्रेम से बहलाने का प्रयत्न करती है। वहीं पर एक यात्री और भी है जो उसकी हरकतों पर नजर रखे हुए है। अब आगे -
शब्बो उस महिला के पीछे -पीछे ही घूम रही थी ,क्योंकि उसने उसे आश्वासन दिया था- कि वो शब्बो को सही -सलामत उसके घर पहुंचा देगी। वो महिला खाना लेने जाती है ,और शब्बो को उसकी प्रतीक्षा के लिए कहकर जाती है। जब वो चली जाती है ,तब एक व्यक्ति उसके करीब आता है और उससे पूछता है -बेटा तुम्हें कहाँ जाना है ?तब वो बताती है -मैं तो गुरदासपुर की हूँ। उस व्यक्ति ने बताया -बेटा, तुम तो उससे बहुत आगे आ गयीं हो। हाँ जानती हूँ ,शब्बो बोली -तभी तो वे मेरी सहायता कर रहीं है [उसने अंगुली से उस महिला की ओर इशारा किया। वो अजनबी बोला -बेटा यूँ ही किसी पर विश्वास नहीं कर लेते ,क्या तुम उन्हें जानती हो ?शब्बो रुआंसी होते हुए बोली -यहां तो मैं किसी को भी नहीं जानती ,बस विश्वास कर सकती हूँ। कुछ सोचते हुए बोले -तुम वहां पुलिस भी तो है ,तुम उनसे अपनी बात कहोगी तो, वे लोग तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे ,वो बोली -सबसे पहले मैंने ,उनसे ही सहायता माँगी थी किन्तु मेरी बातों पर ध्यान ही नहीं दिया। मैं तुम्हारी मदद अवश्य करता किन्तु मेरे पैर में चोट लगी है ,तुम एक बार जाकर दुबारा उनसे सहायता मांगों ,अबकि बार अवश्य करेंगे। तुम तो बहादुर लड़की हो ,जो इतनी परेशानी में भी शांत हो ,वे अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे। नहीं सुनेंगे तो मेरे समीप ले आना।
ये बात उन आंटी को मत बताना ,वरना तुम्हें ऐसा नहीं करने देंगी। क्यों ?वे तो मेरी सहायता करना चाहती हैं ,आपको क्यों बुरा लग रहा है ?शब्बो ने पूछा। बेटे अभी तुम छोटी हो ,बस ये समझ लो ,वे तो आगे जा रही थी ,तो तुम्हें वापस पीछे कैसे ले जाएँगी ?न ही तुम्हारे क्षेत्र की है ,बच्चे बहादुरी के साथ -साथ समझदारी से भी काम लो। तभी वो महिला आती दिखाई देती है ,वो दोनों अपने स्थान से अलग हो जाते हैं।
ले बच्ची ,रोटी खा ले ,देख तेरे लिए पेशल वाली सब्ज़ी लाई हूँ वो महिला बोली। शब्बो ने एक झलक उस व्यक्ति की तरफ देखा ,उसने न में गर्दन हिला दी। शब्बो को भूख तो बहुत जोरों की लगी थी किन्तु उसने इंकार कर दिया ,बोली -जब वहाँ शिविर में खाना मिल रहा था ,तब खाया अभी भूख नहीं हैं। उस महिला ने थोड़ा दबाब दिया किन्तु ज्यादा कुछ नहीं कहा ,बनता कार्य बिगड़ सकता था। वो बार -बार उस स्थान से बाहर की और जाती सड़क की तरफ़ देख रही थी। शब्बो बोली -आंटीजी ,मैं अभी आती हूँ। उस महिला ने आते समय ,उन दोनों को बात करते देख लिया था ,उसे तभी से शक था ,इसके पश्चात शब्बो ने खाने के लिए भी इंकार कर दिया किन्तु उसने कुछ नहीं कहा किन्तु अब शब्बो के ''अभी आई ''कहने पर उसने उसका हाथ पकड़कर अपने पास खींच लिया और बोली -नहीं मेरी बच्ची ,अब कहीं मत जाओ ! हमें लेने वाले आते ही होंगे।
उसका इस तरह व्यवहार शब्बो को अच्छा नहीं लगा ,वो बोली -मुझे कहीं नहीं जाना ,आप जाइये ! वो औरत चेहरे पर बनावटी मुस्कान लाते हुए बोली -अच्छा चल ,मैं तेरे संग चलती हूँ ,फिर इस भीड़ में कहाँ ढूंढती फिरूंगी ? थोड़ा आगे चलकर उसने ,एकदम से शब्बो का हाथ खींचा और बोली -बता ,उस आदमी से क्या बातें कर रही थी ? शब्बो अनजान बनते हुए बोली -कौन आदमी ?अब तो उस महिला को क्रोध आया और उसका मुँह अपने हाथों में दबाते हुए बोली -तू अभी बच्ची है ,मुझे मत चला ,मैंने तुझे उससे बातें करते हुए देखा है। तभी उधर से ,एक व्यक्ति गुजरा ,तभी बातें बदलते हुए ,बोली -मेरी बच्ची ,परेशान न हो ,अभी तेरे बाबा आने वाले होंगे ,तब चलते हैं। उसकी बातों से ,शब्बो इतना तो समझ ही गयी, कि ये औरत सही नहीं है। और वो ये भी जानती थी -अभी इसके सामने ये छोटी और कमज़ोर भी है। तभी उसने शब्बो को एक झटका दिया और नजदीक के ही ,एक पेड़ के पीछे ले गयी और उसके मुँह पर पट्टी बाँधी।
अभी तक ,वो व्यक्ति ,शब्बो पर नजर रखे था ,पता नहीं'' पलक झपकते ही कहाँ चली गयी ?वो उठकर चल भी तो नहीं सकता था। उसने एक व्यक्ति को आवाज लगाकर पूछा -भाई ,क्या तुमने एक बच्ची और एक लाल सलवार -कुर्ते में किसी महिला को देखा। वो न में गर्दन हिलाकर चला गया। वो अब पहले से अधिक चौकन्ना हो गया और चारों तरफ नज़र दौड़ा रहा था। कुछ देर पश्चात एक वेन सड़क से नीचे कच्चे में उतरी। उसमें से तीन चार हट्टे -कट्टे व्यक्ति उतरे। उतरकर अपना आलस्य उतारा, अंगड़ाई ली ,शायद वो वहां का जायज़ा ले रहे थे। किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया क्योंकि अपने दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को उनके परिवारवाले लेने आ रहे थे। किसी ने भी नहीं सोचा होगा -ऐसी परिस्थिति में भी ,कोई अपहरण की साज़िश कर सकता है।