शब्बो समीर से बातें करती है और समीर से कहती है -जब तुम लोगों का अपहरण हुआ, उस समय मैं ,तुम लोगों के संग नहीं थी। बुआ और बलविंदर पर हमने शक किया क्योंकि उस समय उनकी हरकतें ही ऐसी थीं, किन्तु दो बंदरों की लड़ाई में ,किसी तीसरे ने लाभ उठाया और वो कौन हो सकता है ?यही हमें पता लगाना है।
समीर बोला -ऐसा कौन हो सकता है ? कुछ समझ नहीं आ रहा।
कॉलिज में तो ...... हमारी जो भी योजना थी ,वो हम दोस्तों के बीच ही थी या मेरे जाने के पश्चात ,और भी किसी को इस विषय में बताया था शब्बो ने पूछा।
नहीं..... हम ही चारों थे।
चारों कौन ?
मैं, तुम ,मेरा दोस्त और शिल्पा !
फिर किसमें इतना साहस हो सकता है ? जो तुम्हारा अपहरण करे और मेरा विवाह हो जाने पर ही तुम लोगों को छोड़ा। इस सबमें किसको ,क्या लाभ हो सकता है ?शब्बो सोचते हुए बोली -अच्छा ,ये बताओ !तुम तो मुझसे प्रेम करते थे। तब इन दिनों में ,बीच में क्या हुआ ? जो तुम दोनों ने इतनी जल्दी शादी का फैसला लिया और शादी भी कर ली।
अपराधबोध से ,समीर बोला -बस एक गलती हो गयी ,उसी को सुधारा था।
कैसी गलती ???
तुम तो चली गयीं ,मानसिक रूप से मैं ,बड़ा परेशान था। तुम्हारे बिन अकेला पड़ गया था। मैं अकेला,एकांत में , खोया -खोया बैठा रहता। तब शिल्पा आ जाती मेरा ,दिल बहलाने का प्रयत्न करती। मुझसे बातें करने का प्रयत्न करती।
वो तो मैं ,उससे कहकर गयी थी, कि तुम्हारा ख़्याल रखे। मैं तो यही सोचकर गयी थी -कि उन लोगों की पोल खोलकर ,मैं दुबारा आऊँगी, किन्तु मुझे इसका मौका नहीं मिल सका ,मुझे बलविंदर के साथ अलग दूसरे शहर में भेज दिया गया ।
यही तो तुमने गलत किया ,मैं अपना ख़्याल रख सकता था। किंतु तुमने तो उसे मेरे पीछे लगाकर ग़लत किया।वो तो जैसे मुझसे चिपक सी गयी ,कभी अकेला नहीं छोड़ा ,समझ नहीं आता था। क्यों ,मेरी इतनी परवाह करती है ?अच्छा नहीं लगता था ,एक दिन अपनी परेशानी बतलाकर ,मुझे अपने घर ले गयी। उसकी मम्मी ने मुझसे मेरे घर -परिवार के विषय में पूछा। उन्होंने बहुत ही अच्छा व्यवहार किया। मुझे अच्छा लगा। एकाएक मैंने देखा ,उस पर फोन है ,वो इतनी सीधी सी दिखने वाली ,एकाएक स्मार्ट तेज हो गयी थी।
एक दिन उसने मुझे फोन करके ,कुछ नोट्स मांगे और अपने आने में असमर्थता जाहिर की। उसने बताया -उसकी तबियत ठीक नहीं है। मैं उसके घर गया ,तब वो मुझे मिली नहीं ,उसकी मम्मी ने रोक लिया। मैं देर तक उसकी प्रतीक्षा करता रहा। जब वो आई ,तब अँधेरा सा हो रहा था। मैं उससे नाराज हुआ ,मुझे बुलाकर कहाँ चली गयी ?तब उसने बताया -कि वो किसी वैद्य के यहाँ गयी थी ,वहीं समय लग गया।मैं नोट्स देकर वापस हुआ ,तब उसे चक्कर आया और उसकी मम्मी रोने लगीं - न जाने मेरी बच्ची को क्या हो गया है ?न जाने किसकी नजर लग गयी। उसे दवाई देने ,उसकी देखभाल के लिए ,मैं वहीँ बैठा रहा। उसकी मम्मी रो -रोकर कह रही थीं -इसके पापा जी अकेले हैं ,इसका भाई भी बाहर गया है। वे अकेले क्या -क्या करेंगे ?मैं उनकी हालत देखकर ,वहीं रुक गया। उन्होंने खाना दिया और मैं शिल्पा की देख -रेख के लिए रातभर के लिए वहीं रुक गया। बैठे -बैठे पता नहीं ,कब आँख लगी ?जब मैं उठा ,तब शिल्पा मेरे समीप ही बैठी ,रो रही थी और मैं उसी के बिस्तर पर था। मैं शीघ्रता से उठा और उससे पूछा -तुम क्यों रो रही हो ?तब उसने बताया ,मैंने उसे कहीं का नहीं छोड़ा। उसकी मम्मी तो स्यापे डालने लगी। समझ नहीं आ रहा था कि मैं कुर्सी पर बैठा था ,उसके बिस्तर पर कैसे पहुंचा ?ये बात ,मैं आज तक नहीं समझ पाया।
उसके पश्चात क्या हुआ ?तुम मुझे विस्तार से बताओ !
उसके पापा जी तो मुझे मारने दौड़े ,बोले -हमारी बेटी से दोस्ती करके ,तूने उसका गलत लाभ उठाया। हमने तुझे अपने बेटे जैसा समझा था और तूने हमारी बेटी के मुख पर कालिख़ पोत दी।
मैं बेबस ,लाचार सा उनकी नजरों के सामने अपराध बोध लिए खड़ा था। मैं वहाँ से भागना नहीं चाहता था किन्तु मैं कुछ भी समझ पाने में असमर्थ था। मैंने कोई नशा भी नहीं किया ,फिर मैं इतना बेसुध कैसे हो सकता था ?किन्तु शिल्पा का रोना भी तो झूठ नहीं था। कोई ऐसे क्यों रो देगा ?और अपने ऊपर इतना बड़ा इल्ज़ाम कैसे लगा सकता है ?
तब उसके पापा ने क्या किया ?शब्बो ने पूछा।
वो तो शिल्पा को भी मारने दौड़े, किन्तु शिल्पा की मम्मी ने उसे बचा लिया और उन्हें समझाने लगीं -जवान बच्चे हैं गलती हो जाती है , इसको सुधारा भी जा सकता है।
तब तो वो फौरन मान गए होंगे।
हाँ !बिल्कुल सही। उन्होंने कहा -जो हो गया सो हो गया ,इस बात को यहीं रोक देते हैं ,कुछ दिनों पश्चात ,हम तुम्हारे घर रिश्ता लेकर आएंगे और तुम स्वीकार कर लेना।
किन्तु अंकल ! मुझे नहीं लगता ,मैंने ऐसा कुछ गलत किया है ,यदि मैं गलत करता, मेरे मन में कुछ भी चोर होता ,तब मैं भाग भी सकता था किन्तु मैं भागा नहीं। रूककर तूने क्या हम पर एहसान किया है ? वो एकाएक चिल्ला कर बोले - तू क्या समझता है ?मैं अपनी बेटी की जिंदगी बर्बाद करने वाले को ऐसे ही जाने दूँगा। अब तो तुझे इससे विवाह करना ही होगा। उनकी धमकी भरी बातें सुनकर ,मैं अपने घर आ गया। सारा दिन ,यही सोचता रहा -मुझसे कहाँ पर गलती हो गयी ? ऐसा कैसे हो सकता है ?कि मुझे कुछ भी होश नहीं रहा.... न ही ,कुछ पता चल पाया।
तुमने वहाँ क्या -क्या खाया था ?शिल्पा उस समय किसी जासूस की तरह सोच रही थी ,बोली -तुम अपने आप में नहीं थे ,शिल्पा तो थी ,उसे तो होश था ,फिर उसने इस बात का विरोध क्यों नहीं किया ?तभी रोकर या चिल्लाकर अपने परिवार को क्यों नहीं जगाया ?
कुछ भी विशेष नहीं ,बस उसकी मम्मी के हाथ का बनाया खाना और पानी पीया । उस समय मेरे सामने ऐसा वातावरण था ,उसे देख....... मैं, कुछ सोच ही नहीं पाया। मैं तो ,समझ ही नहीं पा रहा था ,मुझसे गलती कहाँ हुई ?इतना सब मैंने नहीं सोचा।
सोचते कैसे ?उनके चक्रव्यूह में जो फंस चुके थे ,मुझे तो ये सब ,तुम्हें अपना दामाद बनाने की सोची -समझी साज़िश लग रही है। ख़ैर अब तो विवाह हो गया। शायद , तुम मेरी क़िस्मत में ही नहीं थे। तभी तो साज़िशों पर साज़िशें होती रहीं और हम जानते हुए भी ,कुछ नहीं कर सके।