अभी तक आपने पढ़ा -शब्बो ,अपनी ससुराल से 'पग फेरे ''की रस्म के लिए आती है किन्तु उसको लेने शाम तक भी ,उसका पति बलविंदर नहीं आता है ,तब पम्मी को उसकी चिंता होने लगती है। तब वो ,अपनी पड़ोसन ''चेतना ''जो कि बलविंदर की बुआ है उससे पूछने जाती है -कि बलविंदर शब्बो को लेने क्यों नहीं आया ?तब चेतना उसे बताती है -''अभी बलविंदर को आने में दो -चार दिन लग जायेंगे। तब शब्बो अपनी माँ से कॉलिज जाने की इजाज़त मांगती है। पम्मी उसे जाने तो देती है, किन्तु चेतना से छुपकर जाने के लिए कहती है। कॉलिज पहुंचकर ,शब्बो समीर से लिपट जाती है ,तब दोनों बातें करते हैं ,तो पता चलता है -ये सारी कारस्तानी चेतना की ओर शक़ की सुईं घुमा देती है। अब आगे -
शब्बो भावुक होकर समीर से कहती है -जब हमारी ही किसी को परवाह नहीं ,तब हम ही क्यों किसी की चिंता में घुलें। क्यों न ,हम दोनों भाग जाएँ ?
ये तुम क्या कह रही हो ? यदि तुम्हें ऐसा ही कुछ क़दम उठना था तो पहले बतातीं।
क्या ख़ाक बताती ?मैं तो तुम्हारे भरोसे ही तो बैठी थी ,तुम समय पर आ जाते ,तो वहीं उस बलविंदर का जूतियों से मुँह लाल कर ,भगा देती किन्तु तुम तो उस कमरे में बंद पड़े थे। ये बुआ भी न ,कैसी गहरी चाल खेल गयी ?हम दोनों को ,अलग करके ही मानी। यदि अब हम दोनों भाग जाते हैं ,तब उसके किये कराये पर ''पानी फिर जाना है। ''उसके मुँह पर तमाचा सा लगेगा।
उसके मुँह पर तमाचा मारने के लिए ,जो तुम गलत करोगी उससे तुम्हारे मम्मी -पापा के मुँह पर जो तमाचा पड़ेगा। उनके पास उसे सहलाने के लिए भी ,कोई नहीं होगा। क्या तुम चाहती हो ? तुम्हारे मम्मी -पापा को ''अपमान का घूँट'' पीना पड़े।
तुम तो ,पहले ही घबरा रहे हो ,क्या तुममें इतना साहस भी नहीं ?कि मेरे लिए दुनिया से बग़ावत कर सको। या फिर अब तुम्हारा प्रेम कम हो गया।
तुम ये नहीं ,समझ रही हो ,जो लोग तुम्हें हमें अलग करने के लिए ,इतना बड़ा षड्यंत्र रच सकते हैं वो कुछ भी कर सकते हैं। कभी तुमने सोचा -उन लोगों को कैसे मालूम हुआ ?कि तुम और मैं..... इसका पता तो हमने शिल्पा को भी नहीं चलने दिया। उन लोगों ने हमें फंसाकर ,दो दिनों तक कमरे में बंद रखा और एक सबूत भी नहीं छोड़ा। वो लोग ,कितने दिनों से, ये योजना बना रहे होंगे ? बुआ जी पर भी तो हमें शक़ ही तो है किन्तु सच्चाई हमसे कोसों दूर है। ज़रा सोचो !जब हम लोग भाग गए ,तब वो लोग क्या -क्या नहीं कर गुजरेंगे ? हमें ये भी तो नहीं मालूम ,जो लोग ये सब कर रहे हैं ,उनका उद्देश्य क्या है ?वो लोग क्या चाहते हैं ?
ये सब तो मैंने ,सोचा ही नहीं।
सोचोगी तो जब ,जब '' भेजा[दिमाग़ ] होगा ''हमारे भागने से मेरे मम्मी -पापा अकेले पड़ जायेंगे, पता नहीं, वो लोग उनके साथ क्या -क्या करें ?तुम्हारे मम्मी -पापा को,अपने समाज में , कितना अपमान सहन करना पड़ सकता है ?क्या उनकी बेइज्जती और अपमान कराके, हम अपने सफल जीवन की नींव रख सकते हैं ?इतने अपमान को लोग सहन न कर सके तो........
इस बीच शब्बो ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया और बोली -तुम मुझे इतना क्यों डरा रहे हो ?जो प्यार करते हैं ,इतना नहीं सोचते। प्यार सोच -समझकर नहीं होता।
तभी तो कहता हूँ -''भेजे में थोड़ा भेजा ''भी होना चाहिए ,पहले तो शब्बो समझी नहीं थी किन्तु इस बार समझ गयी और बोली -क्या ?मेरे पास भेजा नहीं है ,वो तो तुम खा गए ,तुम्हारा प्यार..... कहकर उसके पीछे भागी।
आज तो ,शब्बो बुआ के घर अपने आप ही चली गयी और पूछने लगी -आप कैसी हैं ?उसे आने में इतना समय क्यों लग रहा है ?
बुआ को पहले तो ,उसके इस व्यवहार से आश्चर्य हुआ फिर बताने लगी -वो तेरे लिए बड़े शहर में घर तलाश कर रहा है। अब तू उस छोटे शहर में ,कहाँ रहेगी ?इसीलिए मैंने उससे कहा -तू अपनी बीवी को लेकर अलग चला जा ,मौज कर.......
शब्बो अपलक बुआ का ,चेहरा देख रही थी ,इस चेहरे में कैसे एक शैतान का चेहरा छिपा है ?उसका जी चाहा - कि वो बुआ का ये नकली बनावटी चेहरा नोंचकर उतार फेंके , किन्तु ये ''झूठे मुखौटे ''उतारना भी इतना आसान नहीं ,आदमी स्वयं चाहकर भी ,अपना झूठा मुखौटा उतार नहीं पाता ,ये इस तरह से चेहरों पर चिपक जाते हैं ,आदमी स्वयं ही ,अपनी असली पहचान को भूल जाता है। शब्बो भी एक मुस्कुराहट का झूठा मुखौटा लगाकर बोली -बुआ जी, आप कितना ख़्याल रखती हैं ?वैसे यहाँ पर उसके मम्मी -पापा जी क्या अकेले रहेंगे ?उनका ध्यान कौन रखेगा ?इस उम्र में उनको अकेला छोड़ना भी ठीक नहीं ,यहाँ मेरे मम्मी -पापा भी तो अकेले ही रहेंगे ,क्यों न हम यहीं रहने लगें ?
न ,न पुत्तर तू यहाँ की चिंता न कर ,यहाँ तो हम लोग हैं न, टोनी भी ख़्याल रखेगा और वहां भी ,कभी -कभी मैं भी चली जाया करूंगी और तुम लोग भी तीज -त्यौहार में तो आया ही करोगे। अभी से इतनी समझदार हो गयी। सभी के लिए ,सोच रही है ,तू इन सबकी चिंता न कर ,अभी तेरा नया -नया ब्याह हुआ है। तू तो बस ,अपनी ज़िंदगी के बारे में सोच। अभी हम इतने बूढ़े भी नहीं हुए ,जो अपनी देख -रेख न कर सकें।
वैसे वो बलविंदर ,शहर में जाकर क्या काम करेगा ?
वो तो मुझे नहीं पता ,पर तुझे कोई परेशानी नहीं होने देगा। तू जा और निश्चिन्त होकर वहीं रह.....
जी बुआ जी ,कहकर शब्बो निराशा से उठने का उपक्रम करने लगी। कुछ तो जानकारी या उनसे बातें करके ,कुछ तो ऐसा मिले ,जिसे वो उनके विरुद्ध इस्तेमाल कर सके किन्तु कुछ भी नहीं मिला। वो अपने घर आ गयी।
पम्मी को भी लगा -शायद हमारी मेरी बेटी ने भी ,इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया है।
शब्बो के जाने के पश्चात ,चेतना टोनी से बोली -देखा ,कैसे मीठी बोलते हुए आई। सोच रही होगी -बुआ से ,कुछ न कुछ तो उगलवा ही लेगी। ये नहीं जानती ,मैं बलविंदर की बुआ ही नहीं ,अब तो तेरी भी बुआ हो गयी हूँ। बचपन से इसे पलते -बढ़ते देखती आई हूँ ,क्या ,मैं इसे नहीं समझूंगी ?
तू जरा बलविंदर को फोन लगा और उससे कह ,मकान अच्छा से देखियो ,ताकि इसे कोई भी बहाना न मिल सके। शब्बो जब तक यहाँ रही समीर से भी ,मिलती रही और चेतना से भी किन्तु उसे कुछ भी हासिल न हो सका। चलते समय उसने ,शिल्पा से समीर का ध्यान रखने के लिए कहा और न चाहते हुए भी अपनी ससुराल आ गयी।