समीर' इंस्पेक्टर करतार सिंह ' से मिलकर ,उस व्यक्ति का पता लगवाता है , जिसका नंबर शिल्पा के फोन से उसे प्राप्त हुआ। फोन नंबर प्राप्त करने में ,समीर और उसके पापा दोनों ही योजना बनाते हैं क्योंकि शिल्पा पूर्णतः सतर्क थी। वो तो अपना फोन समीर को भी देखने नहीं देती ,और तो और उसने अपने फोन में लॉक भी लगाया हुआ है। तब उसके पापा को दिल का दौरा पड़ जाता है जिसके कारण उसे मजबूरी में अपना फोन दिखाना ही पड़ता है। उसी योजना के तहत उसे ये नंबर प्राप्त हुआ और वो समझ नहीं पाया कि ये 'अहमद अंसारी ' कौन है ?और शिल्पा उसे कैसे जानती है ? करतार मदनलाल से कहता है ,कि तुम अपने ख़बरियों द्वारा पता लगाओ !कि ये अहमद अंसारी कौन है ? समीर सीधे -सीधे शिल्पा से पूछ नहीं सकता था कि वो अहमद अंसारी को कैसे जानती है ?या उसके फोन में ये नंबर किसका है और क्यों ?
इसी उलझन में वो अपने कार्य स्थल पर पहुंचता है , वहां उसके पापा पहले से ही उपस्थित थे ,उसे देखकर पूछा -क्या हुआ ,कुछ पता चला ?
नहीं ,कोई ''अहमद अंसारी ''है ,वो क्या करता है और उसका नंबर शिल्पा के फोन में क्यों है ? नहीं मालूम।
समीर के पापा अनुभवी व्यक्ति थे ,बोले -जब नंबर का पता लगा लिया ,तो उसका भी पता चल जायेगा। तब वो समीर का फोन तो नहीं लेते किंतु उसी के साथ कार्य करने वाले का फोन लेकर ''अहमद अंसारी ''को फोन लगाते हैं। हैलो !
जी कहिये ,
क्या ये ''अहमद अंसारी जी'' का नंबर है ?
जी कहिये ,मैं ही 'अहमद अंसारी' बोल रहा हूँ।
जी मुझे, अपने यह बिजली की फिटिंग करवानी है ,आप स्वयं करेंगे या किसी को भेजेंगे।
जी..... आपको कोई गलतफ़हमी हुई है ,मैं बिजली की फिटिंग नहीं करता ,मेरा तो 'स्पेयर पार्ट्स' का कार्य है।
जी अवश्य ही कोई गलफ़हमी हो गयी होगी ,वो ज़नाब कोई और होंगे ,वैसे अब आपसे बातचीत हो ही गयी है ,तब आप भी अपनी दुकान का नाम बता दीजिये ,कोई कार्य होगा तो अवश्य ही आपको तकलीफ़ देंगे।
जी... जी ,हमारी दुकान तीन सौ बारह नंबर में है ,ढ़िल्लों की दुकान है ,उसमें मैं कार्य करता हूँ।
जी अवश्य ,शुक्रिया ,जब भी कोई कार्य होगा अवश्य ही आपसे सम्पर्क किया जायेगा , कहकर समीर के पापा ने फोन काट दिया और बेटे के हाथ पर हाथ मारते हुए ,बोले -बाप हूँ तुम्हारा ,मैंने दुनिया देखी है। बताओ !कुछ और पता लगाना है।
नहीं पापा जी !आपने तो इतना बड़ा कार्य कर दिया ,इतनी शीघ्रता से तो वो इंस्पेक्टर साहब भी पता नही लगा पाए होंगे। तभी उसे कुछ स्मरण हुआ और बोला -उसने उस वर्क शॉप का क्या नाम बताया ?
कुछ ढिल्ल्न -ढिल्ल्न करके है , तीन सौ बारह नंबर।
ढिल्लो तो शिल्पा के पापा भी हैं ,कहीं ये उन्ही की वर्क शॉप तो नहीं ,यही सोचकर वो करतार सिंह को फोन करता है और उन्हें सब बताता है। करतार बहुत ही प्रसन्न होता है कि इसने तो बैठे -बिठाये ही समस्या हल कर दी।
अगले दिन ही ,पुलिस ढिल्ल्न की वर्क शॉप पर पहुँच जाती है ,और अहमद अंसारी को उठा लाती है ,उसे कुछ समझ नहीं आता ,उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों हो रहा है ? थाने में लाकर ,बिना लाग -लपेट के ही ,उससे सीधे -सीधे पूछा जाता है उसने उन दो लड़कों को, किसके कहने पर उठाया ?
उसने कोई जबाब नहीं दिया। पहले तो, मुकर ही गया और बोला -कौन से दो लड़के ?
किन्तु दो -चार चमात लगते ही ,बोलने लगा -हमारी दीदी ने कहा था।
कौन दीदी ! वो फिर से चुप हो गया ,उससे फिर से सख्ताई की गयी तब बोला -शिल्पा दीदी ने !
वो क्यों कहेगी ?ये तो हमें नहीं मालूम !बस उन्होंने इतना ही कहा था कि उस गाँव में दो लड़के गए हैं ,उन्हें दो दिन के लिए ,कहीं बंद करके रखना है , उन्हें किसी भी तरह की हानि न पहुंचे।
इसके बदले तुम्हें कितना पैसा मिला ?
कुछ भी नहीं , हम तो पहले से ही ,उनके यहाँ कार्य करते थे ,उनका सम्मान करते थे। किसी को मारना पीटना तो था ही नहीं ,बस छुपाकर रखना था ,इतना कार्य तो हम कर ही सकते थे।
बेवकूफ़ ! यदि वो तुम्हें उन्हें मारने को कहती ,या किसी को कुछ भी हो जाता उसने कहा और तुमने बच्चे की ज़िद पूर्ण करने के लिए ,वो कार्य कर दिया। तुमने अपहरण किया था ,ये कोई बच्चों का खेल नहीं।
करतार ने समीर को फोन करके थाने बुलाया।
थाने पहुंचकर समीर ने इंस्पेक्टर साहब से पूछा -उसे किसलिए बुलाया गया है ?
क्या आप किसी'' शिल्पा ''को जानते हैं ?
शिल्पा का नाम सुनकर समीर चौंक गया और बोला -क्या हुआ ?वो मेरी ही पत्नी है।
इंस्पेक्टर ने समीर को हैरत से देखा और बोला -ये तो आपके ही घर का मामला है ,आपकी पत्नी ने ही आपका अपहरण करवाया था।
क्या?????