बदली का चाँद में ,अभी तक आपने पढ़ा -शब्बो और शिल्पा दोनों समीर का पीछा करते हुए ,एक हॉस्पिटल में पहुँच जाती हैं ,वहां उन्हें पता चलता है ,कि समीर के पिता वहाँ भर्ती हैं। ये बात समीर को भी पता चल जाती है और वो उन दोनों से नाराज होता है किन्तु शिल्पा बात संभाल लेती है। समीर अपने पिता के घर आने पर ,अपनी माँ से कहता है -पिता को उनकी आवश्यकता है ,उन्हें समय दीजिये। उसकी माँ और कोई नहीं ,उसी के कॉलिज की अध्यापिका ''श्रीमती साधना ''हैं किन्तु ये बात कॉलिज के कुछ गिने -चुने लोगों को ही पता है। ''साधना ''उसकी सौतेली माँ है ,जिसका मजबूरी में,समीर के पिता से विवाह होता है किन्तु वो लोग लालची भी हैं जो बेटी के पैसे के साथ -साथ उसकी सम्पत्ति को भी हड़पना चाहते हैं किन्तु ये बात साधना को समझ नहीं आ रही , वो अपने मायके के लिए ही सोचती है और अपने परिवार का ध्यान नहीं रखती ,इसी कारण अक्सर उनकी अपने पति से झड़प होती रहती है। इसी झड़प के कारण ,उसके पिता को'' दिल का दौरा ''पड़ा। अब आगे -
समीर के जाते ही ,साधना ने अपनी माँ को फोन कर दिया ,उधर से आवाज आई -हैलो !
अब तुम्ही बताओ माँ !आज तो समीर भी मुझसे कह रहा था -कुछ दिनों की छुट्टी ले लो ,इन्हें मेरी जरूरत है। मेरी जरूरत होती तो मुझे एहसास नहीं होता ,मेरा कहा नहीं मानते। अब मैं घर में रहकर, इनकी सेवा करूं। क्या मैं इसी दिन के लिए पढ़ी थी ?
ना -ना मेरी बिट्टो ,अब तो बस हम उसी दिन को कोसते हैं ,जिस दिन मजबूरी में तेरे पिता ने ,तेरा हाथ एक बच्चे के बाप के हाथ में दिया। तू अपने काम पर जा....... तू कोई नर्स रख दे ,उनकी देखरेख के लिए। कुछ देर ठहरकर बोलीं -उसका वो लाड़ला ही करे ,अपने बाप की सेवा। नर्स रखेगी तो उसका भी बिल बन जायेगा। वो ही क्या करता है ?
अरे हाँ ! याद आया ,इस माह तेरे भाई को वेतन भी नहीं मिला देरी से मिलेगा। वैसे तो बेटी से मांगते अच्छा नहीं लगता किन्तु हम तेरे भी माँ -बाप हैं ,अपनी परेशानी तुझसे नहीं कहेंगे तो फिर किससे कहेंगे ?
नहीं माँ ,आप चिंता न करो ,मैंने कुछ ट्यूशन और बढ़ाये हैं ,आप भाई को भेज देना ,मैं उसे पैसे दे दूंगी और कमा ही किसलिए रही हूँ ?अपनों के काम न सकी तो क्या लाभ ?
ये बातें ,पीछे खड़े ,समीर ने सुन लीं ,बोला -आपके पास नर्स लगाने के लिए पैसे नहीं हैं ,पापा की तबियत ठीक नहीं है ,पापा के पास बैठने का समय नहीं है और अपनी माँ से बातें करने का समय है। काम भी सही नहीं चल रहा ,कभी भी पैसों की आवश्यकता पड़ सकती है। इससे पहले कि वो आगे कुछ कहता ........
वो बोली -तुम उनका काम संभालो ,तुम्हें पढ़-लिखकर करना भी क्या है ? अपने बाप का काम सम्भालो। साधना के इस तरह के तेवरों से समीर ,के मन में उसकी कोई इज्जत नहीं थी फिर भी अपने पिता की ख़ातिर ,सब बर्दाश्त का लेता।
साधना को इस तरह बोलते देखकर ,बोला -आप किसलिए पढ़ी और क्यों कमा रही हैं ?मेरे पिता ने पढ़ाया और जब कमाई आने लगी तो, वे अपने हो गए। आप क्या इसीलिए पढ़ी थीं ? कि अपने घरवालों को पालूं। इस शिक्षा का क्या लाभ ?जो अपने -पराये की पहचान न करा सके। यहां आ गयीं तो फ़ोन देख लिया वहाँ रहतीं, तो खाने को भी समय पर न मिलता। हमारे परिवार के विषय में ,न जाने क्या -क्या बताती रहती हो ?
समीर की इतनी जली -कटी बातें सुनकर ,साधना को क्रोध आ गया और वो उस पर हाथ उठाने के लिए आगे बढ़ी ,तभी समीर ने उसका हाथ पकड लिया और बोला -अब नहीं ,जिस औरत के मन में ,मेरे पिता के लिए कोई भाव नहीं ,उससे मेरा कोई रिश्ता नहीं ,कहकर उसने उसका हाथ झिड़क दिया।
उन दोनों माँ -बेटों की झड़प ,उसके पिता सुनकर परेशान हो रहे थे। वे भी समीर को कब तक रोकते ?अब लड़का स्याना हो गया और सब समझने लगा है। वो चाहते थे ,फिर भी साधना का सम्मान बना रहे तो आगे आने वाले समय में माँ -बेटों दूरी न बढ़े किन्तु जब से साधना अपने घर फोन करने लगी है। इसकी माँ ने न जाने क्या पट्टी पढ़ाई ?हम लोगों से दूर होती चली गयी। शुरू में तो ,इसने बहुत ही मधुर व्यवहार किया ,इसके साथ ही रहती और समीर का ख्याल रखती भी पढ़ती भी और अब तो ये इसे' फूटी आँखों ''नहीं सुहाता।
समीर तो शायद बाहर चला गया और तिलमिलाई साधना अपने पति के समीप आकर बोली -देखा आपने ,आज तो इस नालायक ने मेरा हाथ पकड़ लिया। क्या इसी दिन को देखने के लिए ,इसे पाल -पोसकर बड़ा किया था ?
आज उसे आने दो ,मैं उसे डांटूंगा ,भला अपनी माँ के साथ कोई ऐसा व्यवहार करता है ,उनके इस तरह कहने से वो थोड़ा शांत हुई।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई ,साधना बाहर दरवाजा खोलने के लिए आई ,देखा - एक लड़की हाथ में थैला लिए खड़ी है। साधना ने सोचा -शायद कोई लड़की अपना सामान बेचने के लिए आई है। बड़े रूखे से स्वर में बोलीं -जी कहिये !
उस लड़की ने कहा -जी यहाँ पर समीर रहता है।
समीर का नाम सुनते ही उनका स्वाद कड़वा हो गया और बोलीं -हाँ ,रहता तो है ,उससे क्या काम है ?
जी........ उससे नहीं ,उसके पापा मुझे जानते हैं ,मैं उन्हीं से मिलने आई हूँ ,वो तो अंदर हैं न। कहते हुए उसने थैला साधना के हाथों में थमा दिया। और बोली -इनमें जो भी फ़ल ,उन्हें पसंद हैं धोकर और काटकर ले आइये।
साधना ने सोचा -समीर ने शायद ,कोई इसकी देखभाल के लिए लड़की बुलाई हो ,वो लड़की तो सीधे अंदर चली आई और इशारे से ,पूछा कि कौन सा कमरा ?
साधना ने भी इशारे में ही समझा दिया और रसोई में फ़ल लेकर चली गयी।
साधना फ़ल धोते हुए सोच रही थी -यदि ये लड़की इनकी सेवा के लिए आई है तो ये फ़ल क्यों लाई है ?और फिर मुझसे काम करने के लिए क्यों कहकर गयी ?इन्हीं प्रश्नों में उलझते हुए वो अपने पति के कमर े में दाख़िल हुई तो दोनों हँस रहे थे। आज साधना ने अपने पति को ,इस तरह प्रसन्न देखा था।
उसने साधना को आते हुए देखा तो उसके हाथ से प्लेट लेने के लिए ,जैसे आगे बढ़ी तो कुछ सोचने लगी। साधना भी अब उसे बिना चश्में पहचानने का प्रयत्न कर रही थी। जब वो आई थी ,तो उसने धूप का चश्मा लगा रखा था।
तभी वो लड़की बोली -मेेम ,आप यहाँ !कैसे ?
साधना ने अपनी सोच पर जोर दिया फिर भी चेहरा पहचाना सा तो लग रहा था किन्तु स्मरण नहीं हो रहा था।
उसी लड़की ने स्मरण कराया -मैं वही लड़की ,जिसका गाना आपने सुना और प्रशंसा भी की.......
कुछ स्मरण होते हुए बोलीं -ओह...... ! तुम यहां कैसे ?
पहले मेेम आप ये बताइये ,आप यहां कैसे ?
मैं यहां कैसे ?जैसे उस लड़की ने कोई बेतुका प्रश्न पूछ लिया हो ,बोलीं -ये मेरा ही घर है और मैं यहीं रहती हूँ।
मैं तो सर से मिलने आई हूँ ,वो समीर के पापा की तरफ इशारा करते हुए बोली।
तुम इन्हें कैसे जानती हो ?साधना ने प्रश्न किया।
सर से मेरी मुलकात ,हॉस्पिटल में हुई थी और तभी दोस्ती भी हुई कहकर उनकी तरफ देखा। वो प्रसन्न थे उन्होंने भी मुस्कुराते हुए हां में गर्दन हिलाई। कुछ देर उसने उनसे बाते की और बोली -अब मैं चलती हूँ ,चलते समय रुकी और बोली -क्या मेेम ,आप समीर की मम्मी हैं ?
साधना ने हाँ में गर्दन हिलाई ही थी वो घर से बाहर ,निकल गयी।
देखा आपने !अब आपका लाडला लड़कियों से दोस्ती करने लगा है। कौन है ,वो लड़की ?
उसने नहीं में गर्दन हिलाई और बोला -मैं नहीं जानता।