अभी तक आपने पढ़ा -शब्बो बस में अपने पति के संग ,अपने मायके ही आ रही है किन्तु मायके से जुडी कई स्मृतियाँ उसे स्मरण हो आती हैं और वो उन स्मृतियों में खोयी ,अपने दुःख ही स्मरण कर रही है। सुख तो आसानी से निकल जाते हैं किन्तु दुःख कभी -कभी दिल पर ऐसे घाव कर जाते हैं ,वो ज़िंदगी भर के लिए रह जाते हैं। उस समय ,जब चाची ने ,उसके चरित्र पर ही ,प्रश्न चिन्ह लगा दिया ,तब वो उदासियों के गहन अंधकार में डूबती चली गयी। उसकी स्थिति कुछ इस तरह हो गयी थी - ''साथी न कोई मंजिल। ''एक दिन उसकी दोस्त शिल्पा आती है और उसे पढ़ने के लिए कहती है -तब उसे स्मरण होता है ,बलविंदर भी तो पढ़ने के लिए ही कहता था। अब उसने शिक्षा को ही अपना ध्येय बनाया और आगे जीवन में बढ़ने का मन बना लिया। यूँ कब तक ,इस तरह घुटती रहेगी ,यही सोचकर उसने उजाले की ओर एक कदम बढ़ाया। अब आगे -
शिल्पा आई और पम्मीजी से बोली -ताईजी !शब्बो किधर है ?पम्मीजी चेहरा लटकाये बैठी थीं ,उसे देखकर बोलीं -ऊपर ,अपने कमरे में ही होगी। शिल्पा क्या आई -वो तो उसके मन में एक उम्मीद जगा गयी उसे आगे बढ़ने का रास्ता दिखा गयी। शब्बो ने अब उजालों की और आगे बढ़ने का सोच लिया।शब्बो ने उदासियों के गहन बादल ,अपने मन से हटाने का प्रयत्न करते हुए , शब्बो ने पहले तो अपने को आईने में देखा ,और मन ही मन बुदबुदाई -कैसी शक़्ल हो गयी है ,मेरी ?फिर शिल्पा से बोली -एक बात बता ,क्या तुझे लगता है -कि तेरी ये सहेली कुछ उल्टा -सीधा काम करेगी।
शिल्पा बोली -किसी का तो ,मुझे नहीं पता ,कि कौन क्या सोचता है ? किन्तु मैं इतना तो अवश्य जानती हूँ ,तुझे कोई कुछ कहेगा तो तू बैठने वाली नहीं। तू कुछ करती ,तो क्या मेरे घरवाले यहां भेजते ? तू अपने पर विश्वास रख ,जब तू कल को कुछ बन गयी ,पढ़ गयी ,ये लोग ही तेरे आगे -पीछे दौड़ेंगे। वैसे मैंने तो किसी को कुछ भी कहते नहीं सुना , फिर तू क्यों इस कोप भवन में बैठी है ?
चल बाहर ,तेरी मम्मीजी भी उदास ही बैठी हैं ,उनके अरमानों पर क्यों पानी फेर रही है ? बेचारी कितनी ,बोलतीं थीं ,लड़ती झगती थीं और आज तेरे कारण शांत हैं ,अभी तक मौहल्ले में ,उन्होंने एक भी झगड़ा नहीं किया कहकर शिल्पी हंसने लगी।
अच्छा जी...... मेरी मम्मीजी झगड़ालू हैं ,वो मोेहल्ले में लड़ती फिरती हैं ,कहकर शब्बो उसे मारने दौड़ी।
हाँ...... तेरे कारण ,मोेहल्ले की रौनक चली गयी कहते हुए, वो नीचे की तरफ भागी। उसके पीछे ,शब्बो थी। दोनों को इस तरह भागता -दौड़ता देखकर उसकी मम्मी को आश्चर्य हुआ और प्रसन्न होते हुए बोलीं -ओय !कि हुआ ? जो दोनों की दोनों इस तरह दौड़ रही हो ,क्या किसी दौड़ में भाग लिया है ?
हाँ जी ,ताईजी ''आपकी बेटी को कहि तो भले की थी उसे तो बुरी लग गयी '' कहकर वो अभी तक शब्बो से अपना बचाव कर ही रही थी।
तभी पम्मी बोली -ओय ....... तू किसको ताईजी बोली ?माना कि मेरा रिश्ता बड़ा है किन्तु अभी तो मैं तेरी मम्मीजी से ,चार -पांच साल छोटी ही होऊँगी।
तभी शिल्पा बोली -नहीं ,सिर्फ दो साल आपने ,दो साल होर कम कर दिए।
तुझे पता है ,फिर भी ताईजी बोलेगी , कितनी बार कहा -मुझे चाचीजी कहा कर।
शिल्पा दौड़ते -दौड़ते ,अब तक थक गयी थी ,कुर्सी पर बैठते हुए मुस्कुराकर बोली - दीदी न कह दिया करूँ।
हाय ! तूने तो मेरे मन की बात छीन ली कहकर उन्होंने शब्बो की तरफ देखा और एकाएक रोने लगीं और रोते हुए बोलीं -तूने तो मेरे घर में ख़ुशियाँ ला दीं ,तू कुछ भी कह ले ,तुझे सब माफ़। तभी शब्बो के पापा ने घर में प्रवेश किया और पम्मी को रोते देखकर घबरा गए और बोले - क्या हुआ ?
शिल्पा तो मस्ती में आ रही थी ,बोली -ताया जी !मैंने तो चाचीजी से चाय माँगी थी और रोने लगीं ,चाय नहीं पिलानी है तो न पिलायें किन्तु रोये तो न। मुँह पर दुपट्टा रखकर ,हँसने लगी।
ओय ,तुझे चाय पिणी है ,तो कह दे ,अपने ताया से चुगली तो न कर , कहते हुए रसोईघर में जाने लगी।
तभी शिल्पा बोली -देखा ,खुद को तो चाचीजी और दीदी कहलवाना चाहती हैं और ताया जी को तो स्वयं ही ताया कह रही हैं ,अब इन्हें भी चाचाजी या भाईसाहब न कहूँ ,कहकर दोनों हंसने लगीं। बहुत दिनों बाद आज शब्बो को हँसते देखकर ,उसके पापाजी रसोईघर में घुस गए और पम्मी से पूछा -आज ये चमत्कार कैसे ?
पम्मी प्रसन्न होते हुए बोली -इसी शिल्पा के कारण।
फिर तो खाली चाय से काम न बनेगा ,मिठाई और पकौड़े भी हो जाएँ कहकर वो भी मंडली में आकर बैठ गए।
शब्बो ने बड़ी मेहनत की और अव्वल नंबरों से पास भी हो गयी। अब तो उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और वो अपनी उन्नति की सीढियाँ चढ़ने लगी।
अब तो वो बड़े कॉलिज में 'स्नातक 'की शिक्षा ग्रहण करने लगी। इतने दिनों की मेहनत और इतने वर्षों का अलगाव ,अब उसे इतना परेशान नहीं करता। अब तो बलविंदर का आना ,उससे प्रेम हो जाना ,जैसे सपना लगने लगा। अब तो उसकी शक्ल भी इतनी स्मरण नहीं रही ,किन्तु शब्बो अब पहले से और निखर आई। रूप -लावण्य तो जैसे ईश्वर ने उसमें कूट -कूटकर भर दिया। उसके तीखे नयन -नक्श और भी निखर आये। जिन्हें अक्सर समीर निहारता। समीर उससे एक वर्ष आगे था। सभी सीनियर लड़के ,जब कॉलिज में नए बच्चों की रैंगिग कर रहे थे ,तभी समीर ने शब्बो को देखा और शब्बो ने समीर को।
क्या शब्बो की रैंगिंग होगी ?या उसे छोड़ दिया जायेगा ये समीर कौन है ?जानने के लिए पढ़िए -''बदली का चाँद ''