अभी तक आपने पढ़ा -समीर ,को शिल्पा से पता चलता है -शब्बो को लड़के वाले देखने आ रहे हैं ,सुनकर उसका मन उदास हो जाता है किन्तु उसे अपने पापा से बात करके अच्छा लगता है और एक उम्मीद से उसका चेहरा खिल उठता है ,वहीं दूसरी ओर शब्बो भी तैयार हो रही है। बलविंदर का परिवार भी चुका है ,अब आगे -
जैसे ही शब्बो ,उन लोगों के बीच प्रवेश करती है ,तभी बलविंदर की मम्मीजी उसे बुलाती हैं ,आ... बैठ पुत्तर ,मेरे णाल आ जा।
शब्बो उनके समीप जाकर बैठ जाती है ,उनके सामने ही बलविंदर भी बैठा था ,शब्बो ने देखा -अब तो वो गबरू जवान हो गया है । देखने में तो वो सोहणा लग रहा है किन्तु वो अपने बचपन का बलविंदर ,उसमें तलाश रही थी ,जो उसे कहीं नहीं दिखा। हाँ........ जब शब्बो की नज़र उससे टकराई तो किसी वहशी की तरह ,वो उसे देख रहा था और अपनी मूछों पर ताव दे रहा था।
भाभीजी....... कुड़ी तो आपकी बड़ी सोहणी है ,शायद उन्हें कुछ मस्ती सूझी , जब ये हुई थी ,तब क्या खाया था ?
पम्मी तो शायद बैठी ही इसीलिए थी किन्तु उस समय का माहौल ऐसा नहीं था ,और उसने कुछ शब्दों में ही अपनी बात पूर्ण की ,बोली -जी वो ही खाया ,जो सब खाते हैं.... कहकर बड़ी अदा में बैठी, मानो..... उसे अपनी बेटी की किस्मत कहो या उसकी सुंदरता पर ,गुमान हो।
खाना बनाना जानती हो ,बलविंदर की मम्मी ने बात की शुरुआत की।
जी......
मैंने सुना है ,तुम कॉलिज भी जाती हो ,तुम अकेली ही कॉलिज जाती हो ,कैसे ?
शब्बो को उनके प्रश्न ,कुछ बेतुके से लगे ,फिर उसे भी लगा ,पूछें भी तो क्या ?अपने मन को समझाकर बोली -जी..... मेरे संग मेरी सहेली शिल्पा भी जाती है और हम दोनों मेरी स्कूटी से जाते हैं।
लो.... कुड़ी सोहणी होने के साथ -साथ, स्मार्ट भी है ,स्कूटी भी चलाना जानती है और तेरे कई सवालों का जबाब इक वार में ही दे दिया बलविंदर के पापाजी बोले।
बलविंदर की मम्मी जी को इतनी बेइज्जती शब्बो के कहने से नहीं लगी ,जितनी अपने पति के कहने से लगी वो एकदम चुप होकर बैठ गयी ,तब पम्मी ने बातों की नज़ाकत को समझते हुए ,बात बदली।
पम्मी बोली -जी..... हमारी तो यही बेटी है और बेटा भी इसीलिए इसकी पाल -पोष में कोई कमी न छोड़ी जी...... जो इसने कहा ,इसे सिखाया ,कल को किसी पर किसी बात के लिए ,मोहताज़ न होना पड़े। क्यों बहनजी !ठीक कह रही हूँ न.......
बलविंदर की मम्मी खिसयानी सी हँसते हुए बोली -ठीक कह रहे हो जी आप ,आजकल तो लड़कियाँ लड़कों से भी आगे बढ़ रही हैं। अब देखो न..... त्वाडी कुड़ी ने तो ,हमारे बलविंदर की भी जान बचाई.......हमारे बलविंदर को तो तैरना ही नहीं आता।
इस बात के छिड़ते ही ,उसकी ननद बीच में ही आ गयी और बोली - भाभीजी तुस्सी भी न ,क्या बात लेके बैठ गए ,अब नाश्ता -पानी हो गया हो तो........ अब लड़के -लड़की को भी ,कुछ बातें कर लेने दो। ब्याह तो इनका होना है ,हम तो वैसे ही ,बेगानी शादी में अब्दुल्ला बन रहे हैं..... कहकर अपने आप ही ,हंसने लगी।
शब्बो की मम्मी बोलीं -शब्बो जाओ !बलविंदर को अपना कमरा दिखा आओ !
शब्बो भी वहां की ,''बेसिर -बेपेर की बातें ''सुनकर बोरियत महसूस कर रही थी ,वो तुरंत ही उठी और अपने कमरे की तरफ चल दी। बलविंदर की बुआ ने भी उसे ,उसके पीछे जाने का इशारा किया।
अपने कमरे में पहुंचकर ,शब्बो ने अपना दुपट्टा एक तरफ़ रखा और आराम से कुर्सी पर बैठ गयी , बोली -पानी पियोगे .......
नहीं.....
दोनों ही ख़ामोश बैठे रहे ,जैसे कहने -सुनने को जैसे कुछ था ही नहीं।बलविंदर से जब पहली बार मिली थी तो उससे बातें करने का मन करता था। आज इतने दिनों बाद मिलकर भी ,जैसे कुछ है ही नहीं .......
तुम्हारा तो पढ़ने में मन ही नहीं था ,और अब तो तुम स्नातक कर रही हो ,क्या बात है ?बलविंदर की आवाज ने उसका ध्यान भंग किया।
तुम्हीं तो कहते थे पढ़ा करो ,पढ़ा करो !अब पढ़ रही हूँ ,वैसे तुम अब क्या कर रहे हो ?
क्या करना है ?पापा का व्यापार ,संभाल रहा हूँ।
क्यों ?तुम तो आगे पढ़कर ,नौकरी करना चाहते थे।
कुछ सोचते हुए बोला -आदमी के सभी सपने पूरे नहीं होते।
तुम भी अब पढ़कर क्या करोगी ?जब अपनी गृहस्थी ही संभालनी है।
नहीं..... मैं तो अपनी पढ़ाई पूरी करके नौकरी करूंगी। शब्बो पूरे आत्मविश्वास से बोली। उसके मन में ,एक बात और भी थी ,जो धाँस की तरह उसके मन में चुभ रही थी। एकाएक बोली -जब तुम नदी में डूब रहे थे ,तब मैं तुम्हारे लिए नदी में कूद गयी ,तुमने एक बार भी मेरा धन्यवाद नहीं किया। मैं इतने दिनों लापता रही ,तुमने यह जानने का प्रयत्न भी नहीं किया कि मैं जिन्दा हूँ या मर गयी। इस बीच न ही मिलने का प्रयत्न किया और अब अचानक रिश्ते की बात कहाँ से आ गयी ?
बलविंदर लापरवाही से बोला -यदि तुम नदी में कूदीं तो अपनी मर्जी से ,मैंने तो नहीं कहा था फिर भी तुम मेरी जान न बचा सकीं ,जान मेरी फिर भी गांववालों ने ही बचाई। मैं नदी पर भी गया तो तुम्हारे ही कारण ,वरना मैं जाता ही नहीं।
शब्बो ने एक पल के लिए ,बलविंदर का चेहरा देखा ,जिसमें शब्बो के लिए न ही प्यार ,न ही अपनापन और न ही हमदर्दी झलक रही थी। कुछ पल ठहरकर बोला -सुना था ,तुमने उन गुंडों को पकड़वाया कहकर फिर उसी वहशीपन से उसकी और देखते हुए पूछा -तुम्हें उन्होंने छोड़ कैसे दिया ?
उसके इस सवाल से शब्बो चिढ गयी और बोली -क्या तुम्हारी बुआ ने नहीं बताया ?
पहले तो ,बड़ी सीधी सी थी ,अब तो बड़े तेवर दिखाने लगी हो बलविंदर ने कहा।
तुम भी तो पहले ,बड़े प्यारे से अच्छे इंसान लगते थे ,अब तो........ कहकर वो चुप हो गयी।उसने महसूस किया ,जो बात उसने बचपन में। उसके लिए महसूस की थी ,वो बात अब महसूस नहीं कर पा रही है ,उसने प्यार से ही तो ,उसका नाम ''बल्लू '' रखा था ,अब तो वो नाम बोलने की भी इच्छा नहीं हुई। न ही ,बलविंदर के अंदर या व्यवहार ,सोच किसी भी तरह से ,अपने प्रति कोई भावना नजर नहीं आई। तब वो बोली -ये हमारी ज़िंदगी का फैसला है ,एक बात पूछूं !सच -सच बताना ,क्या इतने वर्षों में ,तुम्हे किसी लड़की से....... मेरा मतलब है....... कोई लड़की नहीं मिली।
बलविंदर ने जब उसकी बात सुनी ,तब ''निहारिका ''का चेहरा उसकी आँखों के आगे घूम गया ,इससे पहले कि वो कुछ कहता तभी उसकी बुआ की आवाज़ ,उसके कानों में गूंजने लगी -बलविंदर..... ओय बलविंदर..... अब आजा। क्या सारी बातें आज ही करके छोड़ेगा ?आगे के लिए भी कुछ रख ले।