अभी तक आपने पढ़ा -शब्बो को उसका पति करतार सिंह ,उसके मायके घूमाने ले जाने के लिए ,अपनी बेबे से इज़ाजत लेता है। बेबे ने थोड़ी ना नुकुर के पश्चात ,उन्हें जाने की इजाज़त दे दी। चलते समय अचानक बेबे का व्यवहार बदल गया। आज शब्बो को बेबे में अपनी माँ नजर आई। जब से उसका विवाह हुआ है ,तब से आज ही के दिन वो बाहर निकली है। उसे अच्छा तो लग रहा है कि वो अपने मायके जा रही है किन्तु वहां उसके पापा जी के सिवा ,उसका अपना है ही कौन ?वो दोनों पति -पत्नि शीघ्र अति शीघ्र बस पकड़ते हैं। आज करतार मन ही मन प्रसन्न है ,उसके घूमने जाने का उद्देश्य भी यही है कि वो ज्यादा से ज़्यादा अपनी पत्नी शब्बो को खुश रख सके। बस में बैठकर ,उसे स्मरण होता है -जब उसने पहली बार ,शब्बो को देखा था और वो उस पर पहली नजर में ही मर मिटा था जब शब्बो तारा के चंगुल में फंसी थी ,उससे पीछा छुड़ाने के लिए कुछ सोच रही थी, किन्तु वो क्या है ?ये वो भी नहीं जानती थी। करतार सिंह इंस्पेक्टर गुरिंदर चड्ढा और तेजेन्द्र के साथ दूसरे रास्ते से शीघ्र पहुँचने के लिए उनका पीछा करते हैं। उधर शब्बो ढाबे में ,इधर उधर देख रही थी ,तारा देवी के पलक झपकते ही शब्बो गायब हो जाती है। अब आगे -
तारा ,तेजी से लगभग दौड़ते हुए , बिल्ला और शेरू के समीप आती है ,और बोली -वो लड़की किधर गयी ?शेरू बोला -कौन ? अरे !वो ही ,जो मेरे साथ थी ,शब्बो... उसका हमें क्या पता होगा ?वो तो तुम्हारे संग थी बिल्ला बोला। तारा परेशान होते हुए बोली -थी तो ,मेरे ही साथ ,पता नहीं अचानक कहाँ चली गयी ?अब बैठे - बैठे क्या कर रहे हो ?जाओ !जल्दी से उसे ढूंढों ,यदि वो भाग गयी तो सारी मेहनत पर पानी फिर जायेगा। तीनो तेजी से उठते हैं ,इधर -उधर देखते हैं। ढूँढे भी तो कहाँ ?खुला ढाबा है। बिल्ला उनके भंडार घर में घुस गया। खाना बनाते खानसामों के बीच जा पहुंचा। सभी उन्हें देखने लगे- कि ये लोग इस तरह की हरकतें क्यों कर रहे हैं ?एक ने पूछा भी -क्या हुआ साहब ?उन्होंने अभी बताना बेहतर नहीं समझा और वो वहाँ से निकलकर तारा के पास आये। हताश हो बोले -कहीं भी नहीं मिली।
तारा गुस्से से बोली -बित्ते भर की छोरी ,फिर से ढूंढों ,कहाँ जायेगी ?तुम उस गलियारे में भी खोजो। वे तीनों एक साथ उसी गलियारे में चले गए। जहाँ एक कमरे में कुछ पुराने बोरी -कट्टे पड़े थे। दूसरा कमरा खाली था,तीसरे में कुछ आदमी बैठे ताश खेल रहे थे। उन लोगो को देखकर बोले -क्या बात है ?भाई !
नहीं ,कुछ नहीं ,कहकर शेरू बाहर आ गया किन्तु दूसरा बोला - हमारे साथ एक छोटी बच्ची थी ,वो शायद खेलते -खेलते इधर आ गयी ,हम उसे ही ढूँढ रहे हैं ,वो मिल नहीं रही। ताश खेलने वालों में से एक लापरवाही से बोला -यहां कोई नहीं आया ,शायद बाहर खेल रही हो। वे लोग शब्बो को इधर -उधर खोजते रहे किन्तु वो कहीं भी नहीं दिख रही थी। उनकी परेशानी देखकर ढाबे के मालिक ने कहा-ऐसे बच्ची कहाँ जा सकती है ?थोड़ी प्रतीक्षा कर लो ,शायद खेलते -खेलते आ जाये। फिर बोला -जो गाड़ियाँ आ जा रही हैं ,उन पर भी नज़र रखो। तारा को उसकी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी ,बोली -हमें आगे भी जाना है ,तुम्हारा कैसा ढाबा है ?एक बच्ची यहां से ग़ायब हो गयी। मैं पुलिस में तुम्हारी रिपोर्ट करुँगी ,वो बस ढाबेवाले के मन में पुलिस का ड़र बैठाना चाहती थी।
ढाबेवाला भी अड़ गया ,हाँ जी ,बुलाओ पुलिस को ''न कर ,न ड़र '' हमने तो पहले ही इस बोर्ड पर लिखा हुआ है ,''अपने सामान की स्वयं सुरक्षा करें ''बिल्ला ने तारा का हाथ पकड़ा और इशारे से शांत रहने का इशारा किया। तभी दूर से पुलिस की गाड़ी की आवाज सुनाई दी ,तारा बोली -चलो ! जल्दी गाड़ी में बैठो। वे तीनों गाड़ी में बैठने के लिए आगे बढ़े ,तभी दो आदमी ,उनके आगे आकर खड़े हो गए और बोले -अपनी बच्ची को साथ लेकर नहीं जाओगे। तारा बोली -शायद...... वो पीछे ,छूट गयी ,हम उसे वहीं देखने जा रहे हैं। हमें गलतफ़हमी हो गयी होगी। जैसे -जैसे गाड़ी के सायरन की आवाज नज़दीक आती जा रही थी ,तारा की घबराहट बढ़ती जा रही थी। तब उनमें से एक आदमी कड़क आवाज में बोला -अपनी जगह से कोई नहीं हिलेगा ,जब तक इनकी बच्ची नहीं मिल जाती। तारा की हालत देखने लायक थी। तब वो तेज स्वर में बोली -हमारी बच्ची है ,हम स्वयं ढूंढ़ लेंगे ,आप क्यों इतनी दिलचस्पी ले रहे हैं ?
ढाबेवाले को भी अजीब लगा ,बोला -हाँ साहब !कभी इनकी बच्ची पहले किसी स्थान पर रह गयी हो ?तभी दूसरा बोला -नहीं, मैंने एक लड़की को इनके साथ ही देखा था। वो यहीं कहीं होनी चाहिए। उन दोनों व्यक्तियों की दखलंदाजी ,अब शेरू के क्रोध को बढ़ा रही थी। उनकी परेशानी का कारण ,नजदीक आती पुलिस की गाड़ी थी। वे किसी भी तरह पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ना चाहते थे। किन्तु ये लोग उनका रास्ता रोके खड़े थे। शेरू लगभग चिल्लाते हुए बोला -आप लोगों को एक बात भेजे में नहीं भरती ,हमारी बच्ची है ,हम देख लेंगे। मामला बढ़ते देख भीड़ भी बढ़ने लगी ,तभी शेरू ने अपनी पिस्तौल निकाली और बोला -तुम हमें नहीं जानते ,किससे पंगा ले रहे हो ?अब तक गाड़ी भी दिखने लगी।
तारा बोली -चलो बैठो.... ! तभी एक आदमी ने आगे बढ़कर उस गाड़ी का ''चालन चक्का ''पकड़ लिया। और बात हाथपाई पर आ गयी। तभी इंस्पेक्टर चढ्ढा ,अपने दो सिपाहियों के साथ जीप से उतरे और अनजान बनते हुए बोले -यहां, ये सब क्या हो रहा है ?तारा आगे बढ़कर बोली -साहब ,ये लोग हमें परेशान कर रहे हैं। तभी इंस्पेक्टर चढ्ढा उस व्यक्ति से बोले -क्यों भई ?शरीफ़ लोगों को इस तरह क्यों परेशान कर रहे हो। इन्हें जाने दीजिये। तारा प्रसन्न होते हुए बोली -धन्यवाद साहब !जैसे ही वो गाड़ी में बैठने वाली थी ,तभी इंस्पेक्टर साहब बोले -वैसे झगड़ा किस बात का था ?अब छोड़िये साहब ,हमारी परेशानी है ,हम स्वयं ही सुलट लेंगे। नहीं ,बात हाथापाई तक बढ़ गयी तो अवश्य ही कुछ बात होगी। तुम जैसे शरीफ लोगों को न्याय तो मिलना ही चाहिए। नहीं ,छोड़िये साहब अब हम चलते हैं।
तभी पीछे से आवाज आई -क्या तारा ,अपनी बच्ची को यहीं छोड़कर जाओगी ?