शब्बो का तो ,सम्पूर्ण अस्तित्व ही हिल गया। ज़िंदगी उसे न जाने कहाँ से कहाँ ले आई ?समझौते भी कहाँ तक करें, इतनी पीड़ा इतना दर्द कोई कब तक सहन करेगा ?कभी तो चीख निकलेगी ही ,उसने अपने अनचाहे गर्भ को मिटाने का प्रयत्न किया। उसके जीवन का सर्वनाश करने वाले दो लोग थे। वो चेतना बुआ और उसका भतीजा ,शामिल तो सभी थे किन्तु इस खन्ना ने तो ,उसके जीवन की कीमत ही लगा ली। उसके पास इतना पैसा है,अपने लाभ के लिए तो किसी की खुशियाँ ही खरीद ले किन्तु कोई बेचेगा तभी तो खरीदेगा, किन्तु इस बलविंदर ने धोखे के साथ ,उसकी ज़िंदगी का भी सौदा कर दिया। बड़ा सौदागर बनता है ,तो अपने बाप का क़ारोबार चलाकर दिखाता। यहाँ भी एक औरत के जिस्म की कमाई खाकर ,अपने को बड़ा व्यापारी समझ रहा है। थू....... है ,ऐसी मर्दानगी पर ,सोचते -सोचते उसने जमीन पर थूक दिया।
दया रात का खाना बनाने आई थी ,किन्तु घर का वातावरण एकदम शांत देखकर ,वो अचम्भित सी हुई ,घर में पर्याप्त रौशनी भी नहीं थी ,आकर उसने रसोईघर और आँगन में रौशनी की। शब्बो को ढूँढ़ते हुए ,उसके कमरे आई ,शब्बो सोफे पर शांत बैठी थी किन्तु उसके मन में ,तूफान उमड़ रहा था। दया अंदर आई ,उसने बिस्तर पर सामान फैला देखा ,उसे वहां का वातावरण कुछ अजीब लगा। वो शब्बो को देखते हुए ,बिस्तर ठीक करने लगी और थोड़े धीमे स्वर में बोली -मैडम ! खाने में क्या बनाऊँ ?
शब्बो तो जैसे सोते से जगी हो बोली -मुझे नहीं पता ,जो इच्छा हो बना ले।अपने दिल का दर्द दबाते हुए बोली।
मैडम बुरा न मानें तो एक बात पूछूं !!!
शब्बो ने सिर्फ उसकी तरफ देखा किन्तु कहा कुछ नहीं।
क्या कुछ बात हुई है ?कल तो आप बहुत ख़ुश लग रहीं थी ,ऐसे अचानक से आज क्या हो गया ?क्या साहब बच्चे से ख़ुश नहीं हैं।
शब्बो ने ,अविश्वास से उसकी तरफ देखा ,और सोचने लगी इसे कैसे पता ?किन्तु बच्चे का स्मरण होते ही उसकी आँखों से टप -टप आँसू बहने लगे,बोली -तुम्हें कैसे पता चला ?
मैं भी एक औरत हूँ ,चाल देखकर ,बता देती हूँ कि ये औरत पेट से है या नहीं। किन्तु आपके चेहरे की ख़ुशी ही सब बयान कर रही थी। ये मर्द जात होती ही ऐसी है कोई भी जिम्मेदारी लेने के लिए ,तैयार नहीं होते ,किन्तु जब बच्चे का मुँह देखेंगे ,तब अपने आप ही बच्चे से लगाव हो जायेगा।
शब्बो सोच रही थी -इससे क्या बताऊँ, कि मेरी ज़िंदगी किस मोड़ पर आकर खड़ी है ?उसके पश्चात बोली -इस बच्चे को इस दुनिया में आना ही नहीं चाहिए ,आकर भी क्या करेगा ?उसे सिर्फ़ रुसवाई और उल्हानों के सिवा क्या मिलेगा ?
ऐसा क्यों कहतीं हैं ?अभी आप परेशान हो।
नहीं , इसका पेट में ही समाप्त हो जाना ठीक रहेगा कहकर वो अपने पेट पर अपने हाथों से वार करने लगी। दया ने उसका हाथ ,पकड़ लिया ये आप क्या कर रहीं है ?आप कैसी माँ हैं ?जो अपने ही बच्चे को मा रने पर तुली हैं।
इसका ही नहीं ,मेरा भी मर जाना सही होगा कहकर वो रोने लगी।
दया कुछ तो समझ रही थी किन्तु फिर भी शब्बो को समझाने का प्रयत्न करते हुए बोली -पति -पत्नि में थोड़ी बहुत ,नोंक -झोंक तो होती ही रहती है। आप जरा धैर्य रखिये।
ये पति -पत्नि की नोंक -झोंक नहीं ,आज शब्बो उसे सब बता देना चाहती थी ,माँ तो उसके पास नहीं थी ,इसीलिए ,दया से ही अपना गम बाँट लेना चाहती थी। बोली -कैसे पति -पत्नि ??तभी उसे बाहर आहट सुनाई दी।
तभी बलविंदर अंदर आया और दया से बोला -तुम्हें यहाँ काम के लिए रखा गया है या बातें बनाने के लिए ,चलो अपने काम पर ,ध्यान दो। दया के जाने के बाद ,शब्बो से बोला -इस कामवाली से कहने से क्या होगा ?हकीकत नहीं बदलेगी। कल डॉक्टर के चलना और ये बच्चा गिरा देना ,अब खन्ना को तुम में ,ज्यादा रूचि नहीं रही। आगे भी तो सोचना होगा।
भाड़ में जाओ ,तुम और वो तुम्हारा खन्ना !अब मैं अपने घर जाउंगी और तुम्हारा सारा काला चिटठा और तुम्हारी बुआ की सारी करतूतें सब अपने घरवालों को बताकर रहूंगी। मुझे मेरा फोन दो।
खाना खाओ !और सो जाओ !ज्यादा चिंता करोगी तो आँखों के नीचे काले गड्ढे पड़ जायेंगे ,आगे ग्राहक भी नहीं मिलेंगे। तुम ही मेरी पूँजी हो ,अपने बाप की दौलत से ज्यादा कमाकर दोगी। किसी को क्या पता चलेगा ?कि कैसे मज़े ले रही हो ?सभी तो यही समझेंगे ,अपने पति के साथ नौकरी पर है ,जब सभी बातें यूँ ही ठीक -ठाक चल रही हैं ,तब तुम्हें क्या आवश्यकता पड़ी है ?कि इन छोटी -छोटी बातों को तूल देने की। खुद भी मज़े करो और हमें भी चैन से रहने दो।
तुम्हें अपना शरीर बेचकर ,ज़िंदगी भर पालूं। अरे !तुम्हें दल्ला बनना ही था तो अपनी बहन का दल्ला बन जाता किन्तु अफ़सोस तेरे तो कोई बहन ही नहीं ,अच्छा हुआ ,बेचारी वो तो इसी शर्म में ही मर जाती। अपनी बीवी को बुला ले ,शब्बो के इतना कहते ही ,वो उसे मारने झपटा। तभी दया खाने के लिए कहने आ गयी।
अगले दिन ,बलविंदर शब्बो के संग ही गया अब उसे ,शब्बो पर कतई भी भरोसा नहीं था। शब्बो चाहती थी कि किसी तरह अपने घर बात करे किन्तु उसके पास तो फोन ही नहीं था। वो चुपचाप अपना गर्भपात कराकर आ गयी। थोड़ी कमजोरी थी। आराम किया दवाई खाई ,वो सोच रही थी -मेरे को सबसे पहले ,इसे देखकर ही ,प्यार का आभास हुआ किन्तु ये नहीं पता था -आगे भविष्य में ये ही ज़िंदगी का नासूर बन जायेगा। अब तो मुझे इसके पास नहीं रहना है ,अपनी ज़िंदगी और बर्बाद नहीं करनी है और उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वो कैसे भी हो ,अपने घर जाकर रहेगी।जब वो थोड़ा स्वस्थ हुई ,तब घर से बाहर जाने के लिए ,मुख्य दरवाज़े तक ही पहुंची किन्तु तभी एक व्यक्ति ने उसे आकर रोक दिया। बोला -मैडम ,आप कहाँ जा रहीं है ?साहब ने आपको कहीं भी अकेले जाने के लिए मना किया है।
तुम कौन हो ?उसे न पहचानते हुए शब्बो बोली।
जी मैं ,इस घर का चौकीदार !
तुम कब से आये ?अभी दो -तीन दिनों से ही।