अभी तक आपने पढ़ा -शब्बो जो अपने पड़ोस में आये लड़के ,बल्लू 'नहीं ,नहीं ''बलविंदर ''पर मर मिटती है ,वो अपने बाहरवीं के पेपर देने आया है ,जो उनकी पड़ोसन के भाई का लड़का है। अभी तक ,शब्बो ही उस पर मर मिटी है किन्तु उसे नहीं पता ,बलविंदर भी उसे पसंद करता है अथवा नहीं किन्तु शब्बो तो बलविंदर के प्रेम में पगलाए जा रही है ,अब ये घुटन उसे और बर्दाश्त नहीं होती और वो अपनी डायरी में ही ,बल्लू को अपना पहला प्रेम -पत्र लिखती है ,जिसे वो कभी बल्लू को नहीं दिखाएगी या भेजेगी।अब आगे -
शब्बो अपने एकतरफ़ा प्रेम से दुविधा में है किन्तु किसी से कहे भी तो क्या ?कुदरत ने उसे इतना सुंदर बनाया ,उसमें एक प्यारा सा मुहब्बत करने वाला' दिल' भी है और वो' दिल 'किसी के लिए धड़कना सीख़ गया तो इसमें उसका क्या कुसूर ?अपनी डायरी बंद कर ,वो लेट गयी। मन का कुछ बोझ तो हल्का हुआ ,ये डायरी भी क्या चीज़ है ?सब कुछ अपने अंदर समा लेती है ,अच्छा -बुरा सब कुछ। किसी के पता होने का भी भय नहीं ,और मन का बोझ भी हल्का हो जाता है। किन्तु ये कुछ सलाह या सुझाव नहीं दे सकती। ले तो लेती है -लिखने वाले के जज़्बात ,उसकी ख़ुशी ,उसके ग़म ,उसके मन की बातें , किन्तु देने के नाम से तो जैसे इसकी नानी मरती है ,न ही कोई सुझाव ,न ही सांत्वना ,ठीक बल्लू की तरह। जिस तरह उसने मेरा दिल ले लिया और देने के नाम पर.... पता नहीं ,क्या चाहता है ,वो ? एकाएक उसका स्मरण होते ही वो फिर से उदास हो गयी।
पम्मी को बहुत देर हो गयी ,उसे अपनी बेटी को देखे बिना ,मन ही मन बुदबुदाई -पता नहीं ,ये कुड़ी भी न कहाँ घूमती रहती है और क्या सोचती है ? पता नहीं ,अब कहाँ है ?शायद अपने कमरे में होगी ,सोचकर उसने आंगन के बीच खड़े होकर ,जोर से आवाज़ लगाई -शब्बो... शब्बो। ये आवाज उसके कानों में पड़ी तो दौड़ी और बोली -जी मम्मीजी !
मम्मीजी की बच्ची तू कहाँ घूम रही है ?कहाँ रहती है ?जा ''टोनी ''की मम्मीजी को ,ये 'गोभी का अचार 'दे आ। उसे बड़ा पसंद है। जी... कहकर शब्बो अपनी जूतियां पहनने लगी। उसके लिए तो ''बिल्ली के भागों ,जैसे छीका टूटा। ''
उधर पम्मी भी, उसके भतीजे के जुगाड़ में थी ,सोचती है -वो खुश हो जाये तो ,मेरी शब्बो के ब्याह के लिए, बलविंदर ''सोहणा मुंड़ा ''है ,घर परिवार भी अच्छा है। बस ये ''टोनी ''की माँ ''शीशे में उतर जाये। अपनी समझदारी पर , वो मन ही मन प्रसन्न हो रही थी। उसे तो ये भी नहीं पता ,कि उसकी सोच का, शब्बो को भी पता है ,और शब्बो तो पहले से ही अपना दिल हार चुकी है।
शब्बो ,अचार लेकर जाती है और पड़ोसन के घर जाकर आवाज़ लगाती है -''टोनी.... ओय टोनी.... ,टोनी तो नहीं आता उसकी मम्मी अवश्य आ जाती है। ओय ,कुड़ी !क्या है ,क्यों ,टोनी के नाम के' कशीदे पढ़ 'रही है ? उन्हें देखकर शब्बो बोली -चाचीजी ! मैं उससे नहीं ,आपसे ही मिलने आई हूँ। बता ,क्या काम है ?अब मैं तेरे सामने खड़ी हूँ ,चेतना बोली। वो मम्मी ने ,आपके वास्ते ''गोभी का अचार ''भेजा है ,आपको बहुत पसंद है ,ना।
अच्छा ,आजकल तेरी मम्मी को मेरी बड़ी परवाह हो रही है।चेतना ने पूछा।
अब ये तो मम्मी ही जाने ,कहकर शब्बो ने अचार की तश्तरी ,उसके आगे सरका दी। अचार की खुशबू से चेतना के नथुने फ़ड़फ़ड़ाने लगे और उन्होंने उस महक़ को उसके ''मानस पटल ''में भेजा ,जिस कारण चेतना का मन प्रसन्न हुआ और बोली -आ बैठ ,कुछ खायेगी !
नहीं चाची जी ,मैं तो अभी खाकर आई हूँ ,होर बता, तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है ?मन ने तो कहा -पढ़ाई में तो मन ही नहीं लग रहा, तुम्हारे भतीजे के कारण किन्तु प्रत्यक्ष बोली -ठीक चल रही है।
तभी बलविंदर कमरे से बाहर आते हुए बोला -क्या पढ़ाई चल रही है ?सारा दिन तो इधर -उधर घूमती रहती है। हाँ !तू तो जैसे सारा दिन मेरे पीछे घूमता रहता है ,तुझे बड़ा पता है शब्बो चिढ़कर बोली।
मैंने तो जब भी तुझे देखा ,बाहर घूमते हुए ही देखा ,तू पढ़ती भी है ,मुझे तो नहीं लगता बलविंदर ने मुँह बिचकाकर कहा। तभी पीछे से पम्मी आते हुए ,बोली -बेटा ,तू ठीक कह रहा है ,मैं तो चाहती हूँ ,एक दिन तू इसका इम्तिहान ले ले। अब देख न ,मैंने इसे अचार देने के वास्ते भेजा और ये यहाँ बैठकर बातें बना रही है।[ मन ही मन वो तो चाह रही थी कि दोनों क़रीब आएं ]
चेतना भी समझ रही थी -''जब से मेरा भतीजा आया है ,पम्मी का किसी न किसी बहाने मेरे घर कुछ ज्यादा ही आना -जाना हो गया है। अपनी बेटी के रूप का जाल फैलाना चाहती है।''ओ कोई ना ,इस बहाने कभी अचार ,कभी' शाही पनीर' तो आ ही जाता है ,सोचकर उसने अपने मन को समझाया। शब्बो की तरफ देखते हुए ,सोचने लगी -वैसे कुड़ी है तो ,सोहणी ,मेरे भाई के घर आ जाये तो रौनक आ जानी है।
चेतना बोली -चलो ,शब्बो का टैस्ट भी हो जायेगा ,पर इसके पेपर तो हो जाने दो। तब ले लेगा 'टैस्ट 'वो मुस्कुराती हुई बोली।