अभी तक आपने पढ़ा -समीर ,शब्बो से अपनी परेशानी बताता है किन्तु शब्बो उसकी व्यथा तो सुन लेती है किन्तु अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं देती ,तब समीर को लगता है ,उसे अपने दिल की बात बताकर कहीं ,मैंने गलती तो नहीं कर दी। समीर का जब जन्मदिन आता है ,उसके जीवन में नई खुशियां लेकर आता है। जो उसकी इच्छा थी ,वो पूर्ण हो चुकी थी। इस सबका कारण उसके पिता ने शब्बो को ही बताया। समीर मन में आत्मग्लानि महसूस करता है ,मैंने शब्बो को गलत समझा। उधर समीर की माँ यानि साधना जी को भी लगता है कि इस लड़की के कारण ही ,मेरे घर की खुशियां लौट आयीं। समीर अपने पिता से पूछता है कि माँ को ये विचार कैसे आया ?कि जन्मदिन पर मेरे लिए क्या लेना है ?न ही उन्होंने मेरी इच्छा पूछी। तब उसके पिता बताते हैं ,ये तो अपनी माँ से ही पूछो !अब आगे -
शब्बो के कारण ,समीर के घर में खुशियां आ गयीं थीं किन्तु कई दिन हो गए ,शब्बो कॉलिज नहीं आई न ही उसे कहीं दिखी। पहले तो वो बार -बार उससे मिलने के बहाने ढूंढती थी ,और जब वो उससे मिलना चाहता है तब न जाने कहाँ छिप गयी ?उसने शिल्पा से भी पूछा किन्तु शिल्पा उसे कोई जबाब न दे सकी।
शब्बो के घर एक दिन टोनी की मम्मीजी आती हैं और कहती हैं - मुँह मीठा कराओ जी !
शब्बो की मम्मीजी ,बोलीं -किस ख़ुशी में ,ऐसा क्या हो गया ?
टोनी की मम्मीजी कहती हैं -तुम्हारे वर्षों पुराने अरमान पूरे होने जा रहे हैं ,मैं अपने भांजे बलविंदर का रिश्ता शब्बो के लिए लेकर आई हूँ।
उस समय ,शब्बो घर में ही थी और उनकी बात सुनकर तो ,जैसे उसे चक्कर ही आ गया। जिन बातों को ,जिन यादों को वो लगभग भुला ही चुकी थी ,वे सब उसके सामने एक -एक कर आने लगीं। ऐसा कैसे हो सकता है ?जिस बलविंदर ने फिर कभी उसे पलटकर नहीं देखा ,आज उसका रिश्ता आया है। वो समझ नहीं पाई कि वो इस बात से खुश हो या दुःखी। अजीब ही हालात थे ,अभी तो उसने अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ना ही आरम्भ किया है और अब ये क्या..... ?
पता नहीं ,भगवान उसकी ज़िंदगी के साथ ही ,न जाने कैसे -कैसे खेल ,खेल रहा है ?जिसको उसने चाहा ,उसने परवाह ही नहीं की। बलविंदर के कारण ,उसे लांछन और सहन करने पड़े। ये ही चाची ..... जो आज रिश्ता लेकर आई हैं ,इन्होंने ही न जाने ,लोगों का नाम ले -लेकर ,न जाने क्या -क्या नहीं कहा ?और आज मुँह मीठा कराने की बात कह रही हैं।
तभी उसे समीर का स्मरण हो आया ,उसका परिवार कितना अपना से लगने लगा ?उसका जन्मदिन भी मना लिया होगा। पता नहीं ,मेरे विषय में क्या सोचता होगा ? उसने भी तो कभी ,मुझसे नहीं कहा कि वो मुझे पसंद करता है। आज मैं ,कैसे दोराहे पर आ खड़ी हूँ ?जिसे प्यार किया ,उसने तो कभी जबाब नहीं दिया ,न ही मिला ,अब दूसरी ओर कुछ ही कदम बढ़ाये ,आगे बढ़ने का प्रयत्न ही किया और अब ये.... क्या मेरा कोई प्यार मुक़म्मल भी होगा कि नहीं ,या इसी तरह प्यार के दौराहे पर खड़ी रहूंगी।
बलविंदर तो मेरा'' पहला प्यार ''है उसके लिए ही तो सब सहा ,उसी के कारण तो पढ़ने कॉलिज गयी ,वही कहता था -पढ़ाई पर ध्यान दे ,उसी के कारण तो कॉलिज का मुँह देखा किन्तु अब उसका इस तरह ज़िंदगी में आना कुछ अच्छा नहीं लग रहा।
बाहर से ,उसकी मम्मीजी की आवाज आ रही थी -ये तो बहन जी !आपने बड़ी ही सोहणी ख़बर सुनाई ,क्या बलविंदर इस ब्याह के लिए तैयार है ?
आहो जी आहो ,मेरा भांजा है ,बुआ का कहा थोड़े ही टालेगा ,मैंने उससे बताया --अपनी शब्बो तो कालेज जाती है और सुंदरता में तो उसकी, होर भी ''चार चाँद लग गए। ''मना नहीं कर सका। अपनी शब्बो को तो उसने पहले भी देखा हुआ है। बस मेरे कहते ही झट से मान गया।
उनके इस तरह कहने पर पम्मीजी बोलीं -अब आपको कोई परेशानी तो नहीं।
ओय जी कैसी परेशानी ?
यही कि शब्बो ,इतने दिनों उन गुंडों के संग रही ,लोगों ने चर्चा भी की ,कहीं आपका भाँजा मेरी बेटी पर कोई लांछन न लगा दे ,''अभी तो बेटी बाप के ही है ''आपने उसे सब बता दिया न.....
अजी ,इसमें बताने वाली बात कुछ है ही नहीं ,हमारी शब्बो तो पहले से ही दिलेर है ,कोई कुछ कह के तो देखे ,मुँह न तोड़ दिया तो... क्या मैं जानती या समझती नहीं ?हमारी शब्बो भी तो दिल ही दिल में उस पर मरती थी वरना कौन किसी के लिए नदी में कूदता है ?बुरा न मानना बहन जी ,ये बात तो आपको भी पता थी।
उसकी बात सुनकर पम्मी चुप रही उन्हें चाय हाथ में थमाते हुए बोली -उस समय बलविंदर छोटा था ,पढ़ता था ,अब क्या कर रहा है ?
करना क्या है ?अपने पापा जी का बिज़नेस ही संभालता है। मेरे भाई ने तो कह दिया अब ये सब मुझसे नहीं होगा ,अब मेरा काम संभालो। व्यापार कोई बुरी बात है जी ,दूसरे का नौकर बनने से तो अच्छा है खुद का कुछ काम करें।
वैसे तो सब ठीक ही है ,जी ! त्वाडा भांजा है ,सब ठीक ही होगा ,शब्बो तो आपकी भी बेटी है ,आप तो इसे बचपन से ही जानते हो ,इसका बुरा थोड़े ही चाहोगी। फिर भी इसके पापाजी आ जाएँ ,और इक वारी बलविंदर को भी देख लें।
सुरेंद्र की मम्मी को जैसे जल्दी हो ,बोली -आहो जी आहो !मैं बलविंदर को इत्थे ही बुलवा लेती हूँ ,तुम भी देख लेना और शब्बो भी निहार लेगी अपने बल्लू को !
उनकी बात सुनकर शब्बो ,आश्चर्यचकित रह गयी कि इन्हें कैसे पता चला ?कि मैंने बलविंदर का नाम बल्लू रखा था। अवश्य ही ,उसने बताया होगा ,और यह सोचकर भी मुस्कुरा दी ,इतने वर्षों पुराना नाम उसे आज भी स्मरण है।
पम्मी को लग रहा था ,जिसकी जुबान खुले तो जहर ही उगले ,आज कैसे इतनी मीठी हो गई ?बहनजी !होर कोई बात तो नहीं। इक वारी बलविंदर से भी पूछ लिया कि नहीं ,या आप ही ये सब कर रही हो।
लो कर लो बात ,पहले तो उन्ही लोगों से बात की है ,उनकी हां के बाद ही ,तो यहां मुँह मीठा करने आई हूँ ,अब ऐसा सोहणा मुंडा ,भला कहाँ मिलेगा ?सबका देखा -भाला है , सबसे बड़ी बात घर बैठे ही रिश्ता आ गया। देखा नहीं ,लड़की के लिए मुंडा ढूंढने में ,बाप की जुतियाँ घिस जाती हैं और तब भी कभी लड़का ठीक नहीं ,कभी घर -बार ठीक नहीं ,यहां तो मेरा मेेका है ,मेरे मैके में क्या कोई कमी है ?
वो तो सब ठीक है ,किन्तु लोग जो चर्चा कर रहे थे ,क्या....
उन सब बातों पर जी मिटटी डालो ,जी बस अब तो मुँह मीठा करने और करवाने की सोचो।
पता नहीं ,शब्बो की ज़िंदगी में क्या -क्या लिखा है ?बलविंदर को भूल अब आगे बढ़ी तो ज़िंदगी फिर से उसके पुराने जख्मों को कुरेदने लगी।एक तरफ उसका बचपन का पहला प्यार ,दूसरी तरफ उसका अभावों और परेशानियों में झूलता ,प्यार की तलाश में समीर ,जिसने उसकी ज़िंदगी में चंद महिनों पहले ही कदम रखा है। अभी तो उनका प्रेम परवान भी नहीं चढ़ पाया ,अचानक ये बलविंदर कैसे आ गया ?क्या कोई साज़िश है ? या फिर बलविंदर का प्रेम उमड़ आया ,वो तो किसी और से प्यार करता है। शब्बो की ज़िंदगी अब क्या नया मोड़ लेगी ?जानने के लिए पढ़ते रहिये -''बदली का चाँद ''
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