शब्बो अपने पति बलविंदर के संग होटल में ,खाना खाने जाती है ,वहीं उनकी मुलाकात एक बड़ी कम्पनी के मालिक से होती है। दोनों को ही ,खाने में या पीने में ,नशे की चीज़ मिलाकर दी जाती है।रात्रि में ,दोनों का मिलन होता है ,किन्तु ये उनके लिए, सुखद पल भी महसूस नहीं हो रहे। दोनों ही ,मिलकर भी ,किसी अजनबी की तरह व्यवहार कर रहे हैं।एक होकर भी ,भावनात्मक रूप से भी जुड़ नहीं पा रहे ,शब्बो तो समझ ही नहीं पा रही कि वो अपनी इस हालत पर खुश हो या...... समझ नहीं आता। बलविंदर भी कुछ परेशान था -उस आदमी का इस तरह मिलना और आज सुबह -सुबह उसे वो पोशाक पहुंचाने में ,उसका क्या उद्देश्य हो सकता है ?
कहीं ये भी बुआ की योजना का ही, एक हिस्सा तो नहीं। उसे हमारे घर के विषय में ही कैसे पता चला ?मैंने तो उसे अपना कोई पता दिया ही नहीं था। बड़ा ही रहस्यमयी व्यक्ति था और आज इस तरह की पोशाक भेजने का ,उसका क्या उद्देश्य हो सकता है ?
यह पहेली तो ,सुलझानी ही होगी ,यही सोचकर ,उसने बुआ को फोन किया। बुआ से पूछा -क्या कोई व्यक्ति ऐसा है ,जो आपने हमारे लिए इधर भेजा हो ?
बुआ भी, इस बात से अनभिज्ञ थी ,उसने इंकार किया।
तब ये अजनबी कौन हो सकता है ?आज तो इससे मिलना ही होगा।
शब्बो दिनभर इसी ग़म में बैठी रही ,उसका मन उसे समझाता भी, किन्तु फिर भी वो इस रिश्ते को इस तरह से स्वीकार नहीं कर पा रही थी। शब्बो इस तरह तो आज ,उस होटल में नहीं जा पायेगी ,तब बलविंदर ने उसे भड़काया -ये उसी अजनबी आदमी की कारस्तानी है ,उसी ने ,न जाने हमें क्या पिलाया ?और हम अपने आप में न रहे। आज उससे मिलकर ,उससे बात करनी ही होगी, किन्तु शब्बो ने ,जाने से इंकार कर दिया। बलविंदर समझ नहीं पा रहा था कि इसे कैसे होटल में ले जाया जाये ?
बलविंदर बोला -इस तरह बैठे रहने से क्या होगा ?यदि तुम अपने घर अपने मायके चली भी जाती हो ,तब तुम उन लोगों से क्या कहोगी ?माना कि तुम्हें ,मुझसे प्रेम नहीं ,किन्तु मैं पति हूँ तुम्हारा ,कुछ तो हक़ बनता है। जब इस रिश्ते में जुड़ ही गए हैं ,तो क्यों न प्रेम से ही ,सब स्वीकार कर लें ,प्रेम नहीं है ,तो हो जायेगा।उसने बहुत समझाया और फिर उसे अपने साथ चलने के लिए तैयार कर लिया। आज शब्बो के चेहरे पर कुछ उदासी तो अवश्य थी किन्तु उस पोशाक को पहनते ही वो तो किसी ,स्वर्ग की अप्सरा सी लगने लगी।
बलविंदर ने बताया - ये मैंने विशेष रूप से ,तुम्हारे लिए मंगवाई है ,शब्बो अब थोड़ा शांत थी। पता नहीं उसके मन में क्या चल रहा था ?शायद उसने अपने को परिस्थिति के अनुसार ढ़ालने का मन बना लिया था। आज तो उसने तहलका ही मचा दिया। लड़के -लड़की वहां तेज़ आवाज़ में गानों पर नाच रहे थे ,मस्ती कर रहे थे। बलविंदर ने उसे भी नाचने के लिए कहा किन्तु शब्बो ने इंकार कर दिया। वो कभी ऐसे वातावरण में गयी ही नहीं थी। तभी उसके लिए ,जूस आ गया। उसने जूस पीने से इंकार कर दिया ,तब दूसरी हो कोई चीज़ उसके लिए लाई गयी। कुछ नया स्वाद था किन्तु अच्छा था।
वो अजनबी आज फिर ,उनके इर्द -गिर्द नजर आया। आज तो स्वयं ही बलविंदर उसके समीप गया। और बड़बड़ाता हुआ ,वापस आ गया।
शब्बो ने पूछा -क्या हुआ ?
कुछ नहीं ,मैंने आज उसे बड़ी खरी -खोटी सुनाई उसे खूब लताड़ा।
कुछ समय पश्चात ,वो ही पुनः उनकी टेबल पर आ गया और बोला -माफ़ कीजिये ,जो भी मुझसे गलती हुई ,आप लोग इस शहर में नए थे ,इसीलिए साथ देने आ गया था। शब्बो पर फिर से ,उस नई चीज का नशा छाने लगा। अब वो ,कल के ग़म को भूल ,संगीत पर थिरकने लगी। अब वो अपने बलविंदर की बाँहों में थी किन्तु आज वो दूरी नहीं लग रही थी। दूसरी रात्रि को शायद वो बलविंदर के और करीब आ गयी। नशे में उसे ,एहसास तो होता ,अपनी रगो में दौड़ते लहू का ,एक मदहोश कर देने वाले सुकून का ,उन लम्हों का वो भरपूर आनंद लेती , नशे और रोमांस से उसकी पलकें स्वतः ही ,मूँद जातीं। दिन में उसे अपने होने का एहसास होता किन्तु अब वो इस तरह दुःख में डूबे रहना नहीं चाहती थी या फिर अपने आपको नशे में डुबो देना चाहती थी ताकि उसे अपने होने का एहसास ही न हो। ये बलविंदर ने भी न क्या लत लगा दी ?बिना नशे के तो ,उसे दुनिया ठीक से नज़र आती ही नहीं। जबकि बलविंदर अब उससे कुछ दूरी बनाकर रखता। अब वो उसके क़रीब आना चाहती ,उसकी साँसों में अपनी गर्म साँसें घोल देना चाहती ,अपने समीर के ग़म को तो कब का , नशे के एक -एक घूंट में पी गयी ?जब कभी होश आता भी तो ,पुनः बेहोश हो जाना चाहती।
अब तो मकान भी ,बड़ा और आलीशान ले लिया ,रहन -सहन का स्तर बढ़ गया। बलविंदर का कारोबार जो अच्छा चल रहा था। शब्बो उसके लिए भाग्यशाली थी किन्तु आज तक उसे उसके काम का पता नहीं चल पाया। वो अज़नबी अब तो ,अक्सर आता ही रहता। तीन माह में ,इतनी उन्नति ,ये तो माता -पिता के लिए गर्व की बात है। पत्नी भी उसके लिए ,भाग्यवान सिद्ध हुई। आज शब्बो ने ,पी नहीं वरन आज वो मंदिर गयी। पूजा की ,गला तो उसका सूख रहा था किन्तु आज चिकित्सक के पास गयी। आते ही खुश होकर उसने ,सबसे पहले बलविंदर को खुशख़बरी सुनाई जिसे सुनकर ,बलविंदर प्रसन्न होने की बजाय ,सोच में पड़ गया। उसने अपने घर में किसी को भी ये खुशख़बरी देने से इंकार कर दिया।
क्या तुम ,अपने बाप बनने की सूचना से प्रसन्न नहीं हो ?
किसी पुस्तक में ,बलविंदर ने देखते हुए ,जबाब दिया -हूँ....
शब्बो तो सोच रही थी -जब वो ये खबर सुनेगा तो ,उसे गोद में उठा लेगा ,सभी घरवालों को सूचना देगा और बड़ी सी पार्टी करेगा। किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ,उसका दिल चाहा कि वो शराब के नशे में ,अपने को डुबो दे किन्तु डॉक्टर ने नशे से दूर रहने के लिए कहा था। अपने इस बच्चे के लिए ,वो अपने पर जब्र कर रही थी किन्तु बलविंदर का व्यवहार उसे मज़बूर कर रहा था। ऐसी भला क्या बात हो सकती है ?