शब्बो अपने घर ,अपने मम्मी -पापा जी के घर आ गयी किन्तु उसने इतने दिनों से ,जो इतना दर्द सहा ,पापा के प्यार के एहसास से ,आँसुओं में बहने लगा। वो अपने पापा के गले लगकर ,देर तक रोती रही किन्तु पम्मी कुछ न समझ पाने की स्थिति में ,असमंजस में खड़ी ,दोनों बाप -बेटी को देख रही थी। उसके मन में अनेक प्रश्न उठ रहे थे। उसे इस बात की प्रसन्नता तो थी -कि बहुत दिनों पश्चात ,बेटी का मुख देखने को मिला किन्तु इस बात की भी परेशानी थी ,उसके संग उसका पति बलविंदर क्यों नहीं आया ?आखिर ऐसी क्या बात हुई ?जो इतनी सुबह ही मेरी बेटी को अकेले आना पड़ गया। उसकी ख़ुशी उसके प्रश्नों के पीछे दबकर रह गयी।
पम्मी बोली -अब क्या अपने पापाजी से गले मिलकर ही रोती रहेगी या नाश्ता भी करेगी ,मुँह देख जरा अपना ,कैसे पीला पड़ गया है ?खाना नहीं खाती ,अपने खाने -पीने का ख़्याल नहीं रखती ,कहते हुए उसने शब्बो की पसंद का नाश्ता मेज पर लगा दिया और उसे पकड़कर मेज पर बैठाते हुए बोली - वो तेरा पति बलविंदर क्यों नहीं आया ?उससे पूछती मैं........ क्या इस तरह मेरी बेटी का ख़्याल रखता है ,न ही वो तेरे संग आया और तुझे अकेले ही भेज दिया।
खाने की इच्छा तो नहीं हो रही थी, किन्तु अपने घर आकर ,भूख भी लगी और उसने खाया भी ,पम्मी अपने पति की तरफ देख रही थी। तब वो बोली -एक बार उस बलविंदर को तो फोन लगाओ ,ऐसे वो किस काम में व्यस्त है ? जो अपनी पत्नी के संग न आ सका।
खाना खाने के पश्चात , शब्बो में थोड़ी हिम्मत सी आई ,भूखे के अंदर जैसे जान पड़ गयी ,तब बोली -आएगा किस मुँह से......... ?
उसके शब्द सुनकर ,पम्मी के जैसे कान खड़े हो गए ,बोली -क्या मतलब !
मम्मी जी! अभी मैं थकी हूँ ,जरा आराम करना चाहूंगी ,तब सारी बातें बताऊंगी कहकर वो अपने कमरे की तरफ चल दी। दोनों पति -पत्नि असमंजस में खड़े उसे देख रहे थे। तभी शब्बो रुकी और उन्हें चेतावनी देते हुए बोली -उस चेतना बुआ से कुछ मत बताना -कि मैं आई हूँ ,पूछे, तब भी नहीं ,कहकर अपने कमरे में गयी।
उधर दया जब सब्जी -तरकारी लेकर आती है ,जानती तो वो पहले से ही थी किन्तु उसे थोड़ा अभिनय करना था इसीलिए अंदर गयी और बाहर आकर शोर मचा दिया ,घर के अंदर मैडम नहीं हैं ,कहाँ गयीं ?उस गार्ड से बोली -तुम अपने काम पर ठीक से ध्यान नहीं देते या सो गए थे। जल्दी से साहब को फोन करके बता दो। उसने गार्ड को समझाया।
गार्ड ने भी अपना पीछा छुड़ाने के लिए दया से कहा - न ही तुम मेरा नाम लेना न ही मैं तुम्हारा नाम लूंगा ,यदि तुमने मुझे फँसाया तो मैं भी तुम्हें नहीं छोडूँगा और कह दूंगा ,तुमने मुझे बातों में लगाकर मैडम जी ,को निकलने में मदद की। कह तो सही रहा था ,उसकी बात सुनकर दोनों ने ही सुलह कर ली और बलविंदर को फोन कर दिया।
बलविंदर जैसे ही घर आया दोनों पर ही चिल्लाया और अपनी गाड़ी लेकर शब्बो को ढूंढने निकला उसने सम्पूर्ण गलियाँ ,सड़क छान मारी किन्तु शब्बो नहीं मिली। तब वो बस अड्डे की तरफ गया ,शायद वो वहां हो किन्तु वो वहाँ भी नहीं मिली। परेशान होकर चिल्लाया -पता नहीं ,कहाँ चली गयी ? सा...... ली....... !
जब शब्बो बस में थी ,और बलविंदर उधर आया था तभी उसकी बस निकली थी किन्तु दोनों में से ही किसी ने भी एक दूसरे को नहीं देखा ,वो हैरान परेशान घर आया। दया ने उसे पानी दिया ,उसे देखकर बोला -तुम कहाँ थीं ?
साहब !मैं तो, सब्ज़ी लेने गयी थी ,साथ ही गार्ड का भी बचाव किया ,जब मैं आई तब भी वो वहीं बैठा था ,पता नहीं कब और कैसे निकल गयीं ?अपनी सफाई देकर वो चलती बनी ,तभी वापस से मुड़कर बोली -साहब सोचिये !वो कहाँ जा सकती हैं ?
उसकी बात सुनकर बलविंदर के कान खड़े हो गए ,तब उसे ख़्याल आया ,हो न हो अपने घर जाने का प्रयास करेगी। तब उसे अपनी बुआ का स्मरण आया और उसने बुआ को फोन किया ,बुआ जैसे फोन पर ही थी ,फौरन फोन उठा लिया।
उधर से आवाज आई -हैलो !
हैलो बुआ जी !मैं बलविंदर बोल रहा हूँ।
हाँ पुत्तर बोल ! सब ठीक तो है ,
बलविंदर की इच्छा हुई ,बुआ को सब बता दे किन्तु उसे डर भी था ,वो डाँटेंगी भी ,तू कैसा बंदा है ?जो एक औरत भी तुझसे नहीं सम्भली ,यही सब सोचकर ,बोला -सब ठीक है ,आपके पड़ोसी ! अब वो कैसे हैं ?
उन्हें क्या होना है ?वो कहीं जाने वाले नहीं ,यहीं हैं ,तू बता ! शब्बो कैसी है ?अब तेरे साथ तो उसकी ठीक से छन रही है।
हाँ जी ,हाँ जी ,उसने मन ही मन अंदाजा लगाया ,इसका मतलब ,अभी वो वहाँ नहीं पहुँची वरना बुआ को पता होता या मुझे फोन करतीं ,सोचकर उसने हाँ जी सब ठीक है कहकर उसने फोन रख दिया। अब इससे पहले कि वो घर पहुंचे ,उसे यहीं पकड़ लेना ही ठीक होगा और उसकी तलाश में फिर से निकल पड़ा।
शब्बो ने कुछ देर आराम किया ,किन्तु उसे नींद नहीं आई ,माता -पिता भी परेशान थे कि उसने ऐसा क्यों कहा ?कि बुआ से कुछ न कहें ,पूछें भी तो, न बताएं। अभी वो इसी असमंजस में थे ,बेटी पता नहीं क्या बताये ? तभी चेतना आ जाती है ,अपने कमरे से ,शब्बो भी बाहर आ रही थी ,चेतना की आवाज़ सुनकर ,शब्बो वापस अपने कमरे में चली गयी।
होर कैसे हो जी ?पम्मी !तेरे दामाद का अभी -अभी फोन आया था। मैंने सोचा ,पम्मी को बता आऊँ ........
क्या कहा ! उसने ,पम्मी ने पूछा ?
यही कि सब ठीक है ,और तुम्हारी शब्बो भी।
उसकी बात सुनकर ,पम्मी ने शब्बो के कमरे की तरफ देखा और मन ही मन सोचा -बात अवश्य ही कुछ और है ,किसी को भी, शब्बो के आने का पता नहीं। जी में तो आया ,चेतना को ,शब्बो से मिलवाकर पूछे -अभी ब्याह चार -पांच माह भी नहीं हुए और लड़की की क्या गत बना दी ?किन्तु शब्बो की हिदायत उसे स्मरण थी ,इसीलिए कुछ नहीं बोली। चाय पीकर जब चेतना चली गयी ,तब शब्बो अपने कमरे से बाहर आई। उसका चेहरा अब भी बुझा हुआ सा ही लग रहा था किन्तु अब उसने अपना मन बना लिया था कि अपने घरवालों को सब कुछ सही -सही बता कर रहेगी। नीचे आकर ,वो पम्मी के गले लगी और उसने अपनी सम्पूर्ण व्यथा अपनी माँ को बताई ,किन्तु ये नहीं बताया -कि वो बच्चा खन्ना का था ,तभी उसके पिता को क्रोध आ गया और कहा -हमारे साथ इतना बड़ा धोखा...... लड़का शादी -शुदा था ,उसके पश्चात भी हमारी बेटी से ब्याह करवा दिया और फिर उसका जबरदस्ती गर्भपात भी ,पम्मी की तो हालत ही ,ख़राब होने लगी। वो सोच रही थी -मेरी बेटी इतने दिनों से ,कष्ट झेल रही थी और हम सोच रहे थे - कि वो वहाँ खुश है। क्या इसीलिए हमने बलविंदर के हाथों में उसका हाथ सौंपा था ?सबसे बड़ी गुनहगार तो ये बुआ की बच्ची है।
शब्बो की बात सुनकर ,उसका पिता बाहर निकल गया और उसने गांव के ज़िम्मेदार लोगों से सलाह कर ,बलविंदर के नाम धोखधड़ी का केस थाने में दर्ज़ करवा दिया। पुलिस आई और बुआ को पकड़कर ले गयी। उससे पूछताछ आरम्भ की