शब्बो समीर के दोस्त और उसका अपहरण करने वाले के विषय में बहुत सोचती है, किन्तु किसी भी निर्णय पर न पहुंच पाने के कारण ,वो सोचती है -क्यों न समीर से मिलकर ही ,कुछ बातें की जाएँ ,ताकि उस अपहरणकर्ता का कुछ तो अंदाजा लगे। समीर के घर पहुंचकर वो ,समीर के पापा से मिलती है और उनसे बातें करती है, घर में उनकी बहु ने यानि शिल्पा ने उसके विषय में कुछ नहीं बताया। समीर का घर जो आज उसकी सहेली शिल्पा की ससुराल बन चुकी है , किन्तु वहां का वातावरण उसे कुछ अजीब लगता है। शिल्पा भी उसे वहाँ देखकर कुछ ज्यादा प्रसन्न नहीं होती , फिर भी शब्बो को तो जानकारी लेनी थी ,तब वो बताती है -आज मेरे घर पुलिस आई थी ,उस अपहरण की जानकारी लेने ,जिसे सुनकर शिल्पा घबरा जाती है और कहती है - तू तो जानती है ,मुझे पुलिस वालों से पहले से ही डर लगता है।
शब्बो उसे सांत्वना देते हुए कहती है -पुलिस वाले भी कोई भूत -प्रेत नहीं वो भी इंसान ही हैं। वो चोर -उच्चकों और अपराधियों के लिए ही तो ,ख़तरनाक होते हैं। तू मुझे अब ये बता ,समीर और उसके दोस्त का अपहरण करने में ,किसका हाथ हो सकता है ?
बुआ का ही होगा ,मैं क्या जासूस हूँ ?जो मुझे पता होगा शिल्पा बोली।
तू समझ नहीं रही ,बुआ और बलविंदर ने तो ,इस अपहरण के लिए ,पूरी तरह से इंकार कर दिया ,वो तो कह रह हैं ,हमें तो इस बात की जानकारी ही नहीं। अभी तक तो हम भी यही सोचे बैठे थे -कि उनका ही हाथ होगा।
मैं क्या कहूँ ? तू क्यों ''गड़े मुर्दे उखाड़ रही है ''जो हो गया सो हो गया। अब इस बात को छोड़, क्या फ़र्क पड़ता है ?किसने अपहरण किया किसने नहीं ?अब तो दोनों अपने घर में सही -सलामत हैं। शिल्पा ये बात कहकर बाहर चली गयी और चाय लेकर लौटी।
उसे देखकर शब्बो फिर से बोली -अब तक तो....... ये बात ,तेरे- मेरे और समीर के बीच में ही तो थी। तभी कुछ सोचकर ,बोली -कहीं उसका दोस्त तो नहीं...... स्वयं ही जबाब देते हुए बोली -उसे क्या लाभ होगा वो तो स्वयं ही ,उसके साथ बंद था।समीर कहाँ है ?उससे भी बात हो जाती।
वो अपने काम पर है ,अब तू उसे इन बातों में मत डाल ,कहकर शिल्पा बिस्कुट के साथ चाय पीने लगी। शब्बो महसूस कर रही थी ,शिल्पा को उसकी ज़िंदगी में कोई रूचि नहीं है।न ही उसकी किसी भी परेशानी से। चाय पीकर ,शब्बो बोली -अच्छा अब मैं चलती हूँ।
ठीक है ,कहकर शिल्पा अपने बिस्तर पर आराम से बैठ गयी। उसे छोड़ने के लिए बाहर तक भी नहीं आई।
नीचे पहुंचकर ,शब्बो अंकल जी से मिली और समीर से मिलने का कारण बताया। उन्होंने उसके मिलने का स्थान तो बता दिया किन्तु साथ ही बोले -कभी -कभी ऐसा होता है , हम जिस व्यक्ति को जैसा समझ रहे होते हैं वो वैसा नहीं होता ,यहीं हम धोखा खा जाते हैं।
वो उनकी बात का आशय नहीं समझ पाई और बोली -फिर आऊँगी ,कहकर चली गयी। आज भी उस घर में जो अपनेपन का एहसास होता है ,वो चाहकर भी नहीं भूला सकती। उस अपनेपन ने इन लोगों के प्रेम ने, उसकी आँखें नम कर दीं। जब वो पता ढूंढते हुए ,समीर के काम के स्थान पर पहुंची। उसे देखकर ,समीर हतप्रभ सा रह गया। उसने तो जैसे शब्बो से मिलने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। शब्बो को देखकर ,वो उठ खड़ा हुआ। आज भी वो उतनी ही सुंदर और प्यारी लग रही है ,किन्तु चेहरे पर उदासी और थकान नजर आ रही थी। वो उसे लेकर अन्य स्थान पर आ गया और उसे देखने लगा। समीर के पास तो..... जैसे शब्द ही नहीं बचे थे ,वो अपनी प्रसन्नता कैसे ज़ाहिर करे ?वो तो मौन हो गया।
शब्बो ने ही पूछा -कैसे हो ?
ठीक ही हूँ ,तुम देख तो रही हो ! तुम कैसी हो ?
कैसी लग रही हूँ ?उसने ही समीर से उलटकर प्रश्न किया ,तुमने तो एक बार भी जानने का प्रयत्न भी नहीं किया - कि मैं कैसी हूँ ,कहाँ हूँ ?
मैं तो शिल्पा से पूछता रहता था ,कि तुम कहाँ हो ?तुम्हारा फोन भी नहीं लग रहा था। ऐसे ही एक बार परेशानी में ,मैं उसके घर पहुंच गया। उसके बाद.....
उसके बाद क्या हुआ ?तुम चुप क्यों हो गए ?बताओं न क्या हुआ ?अवश्य ही कुछ हुआ है ,मुझे बताओ !
ख़ैर !छोडो इन बातों को ,पहले तुम ये बताओ !तुम कैसी हो ?अब बलविंदर तुम्हे परेशान तो नहीं कर रहा।
वो क्या परेशान करेगा ?जितना करना था कर लिया ,अब तो हवालात की हवा खायेगा ,कहकर उसने अपनी सम्पूर्ण दास्ताँ सुना डाली।
शब्बो की कहानी सुनकर समीर हैरत में पड़ गया ,तुम इतना कष्ट झेलती रहीं और तुम्हारी मम्मीजी भी नहीं रही , यहाँ मैं सोच रहा था -मैं ही परेशान हूँ। मुझे तुम्हारे आने का भी नहीं पता चला।
क्यों तुम्हें शिल्पा ने नहीं बताया ?वो तो मुझसे मिलने आई थी।
अच्छा ! समीर हैरत से बोला।
मैंने उसे तुम्हारा ध्यान रखने की जिम्मेदारी दी थी ,न कि विवाह करने की। तुम्हें उससे विवाह करने की क्या सूझी ?समीर जो बात ,शब्बो को बताना नहीं चाहता था ,वो ही बात शब्बो ने फिर से उठा दी। अब तो वो कुछ बदली -बदली सी भी लग रही है।
वो कुछ नहीं ,बहुत बदल गयी है ,वो जैसी दिखती थी ,ऐसी नहीं थी ,न है। तभी शब्बो को समीर के पापा के वो शब्द भी स्मरण हो आये ,जब उन्होंने उससे चलते समय कहा था। यही बात तो तुम्हारे पापा भी बोल रहे थे ,उस समय तो समझ नहीं आये ,किन्तु अब समझ आ रहे हैं। वैसे मैं तुम्हारे अपहरण की बात ,तुमसे करने आई थी।
क्या हुआ ?वो तो बुआ....
ने नहीं करवाया था ,उसकी बात बीच में ही काटकर शब्बो बोली।
ये सब तुम्हें कैसे मालूम ?
मुझे इंस्पेक्टर ने ही बताया था ,उसी सिलसिले में बात करने आई थी। जब तुम दोनों का अपहरण हुआ ,मैं तो वहाँ नहीं थी ,तब तुम ही इस केस पर रौशनी डाल सकते हो।