अभी तक अपने पढ़ा -शब्बो ,समीर के संग भाग जाना चाहती है, किन्तु समीर उसे समझाता है -इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा। शब्बो बुआ से भी मिलने जाती है ,ताकि कुछ पता चल सके, किन्तु उसे भी कुछ हासिल नहीं होता। अब उसके जाने का समय भी आ गया ,तब वो अपनी सहेली शिल्पा से ,समीर का ख़्याल रखने को कहकर विदा लेती है। वो आ तो जाती है किन्तु उसका मन तो वहीं रह जाता है। आगे की मंज़िल और रास्तों से अनजान वो ,उस राह को देख तो चुकी थी किन्तु उस राह पर जाना न चाहते हुए भी ,अपने परिवार के लिए जा रही थी।
पहले बलविंदर अपने माता -पिता के पास ही गया ,वहाँ से उसे कुछ सामान जो लेना था। वहां शब्बो ने एक अन्य शादीशुदा महिला को भी देखा ,उसने उसका परिचय जानना चाहा।
ये तो हमारी मौसी के लड़के की बहु है ,इसका पति विदेश में गया है ,और मौसी तीर्थ यात्रा ,इसीलिए ,इसे कुछ दिनों के लिए यहीं छोड़ गए ,उन्होंने बताया।
शब्बो को लगता ,ये लोग मुझसे ,सतर्क से रहते हैं ,चुप -चुप से रहते हैं ,घर में जैसे नई बहु आई है ,ऐसा उल्लास कहीं नहीं दिखता। जैसे किसी के कहेनुसार ,सभी यंत्रवत कार्य कर रहे हैं ,जैसे सभी में ,किसी ने चाबी भरी हो और एक निश्चित समय पर ,वो चाबी अपने आप बंद हो जाती है। ऐसे वातावरण में उसका दम घुटने लगा।
अविश्वास करने का ,तो मतलब ही नहीं बनता क्योंकि उसके किसी भी व्यवहार से नहीं लग रहा था कि वो बलविंदर की पहली पत्नी हो सकती है ,मेरे साथ वो बलविंदर को देखकर भी ,वो शांत थी। ऐसा कैसे हो सकता है ?कोई भी पत्नी जिसने 'प्रेम विवाह' किया हो ,इस तरह अपने पति को किसी दूसरी के साथ देखे और उसे कोई फ़र्क ही न पड़े। फिर भी शब्बो ने उससे टोहकर पूछा -क्या तुम्हें ,डर नहीं लगता ?मेरा पति बाहर विदेश में और मैं यहाँ....... कहीं उसने बाहर किसी और से विवाह कर लिया तो..... कभी असुरक्षा की भावना नहीं आती।
आती तो है ,कभी मन भी उचट जाता है किन्तु विश्वास तो करना ही होगा। धोखा देने वाले तो ,साथ रहकर भी धोखा दे जाते हैं। उनकी भी कुछ मज़बूरी होगी ,कितना भी इधर -उधर भाग लें ?किन्तु आएंगे तो...... मेरे ही पास कहकर वो बाहर चली गयी।
उसकी किसी भी बात या व्यवहार से नहीं लगा कि वो परेशान है। जब वो लोग ,शहर जाने के लिए ,बाहर निकले ,तब एक बार ,बलविंदर अंदर गया और कुछ समय पश्चात बाहर आया। सफाई देते हुए बोला -मेरा रुमाल नहीं मिल रहा था। वो ही ,सब सामान संभालती है ,न.... इसीलिए लेने गया था।
शब्बो आते समय तो बलविंदर से एक भी शब्द नहीं बोली किन्तु अब अचानक बोली -ठीक है ,सफ़ाई क्यों दे रहे हो ?तुम्हारी भाभी है ,अब तक ,तुम्हें वो ही संभाल रही होगी। तुम्हारा रुमाल भी.....
शब्बो की बात सुनकर बलविंदर समझ नहीं पाया ,ये उसका कटाक्ष था या कुछ और...... वो चुप रहा।
ये तुम्हारी भाभी कितने दिनों से यहाँ रह रही है ?
यही कोई ,दस -पंद्रह दिनों से।
तुम्हारी भाभी तो...... ,एक माह बता रही थी।
बलविंदर उसकी बात सुनकर थोड़ा घबरा सा गया किन्तु अपने को संभाल कर बोला -हो सकता है ,मुझे क्या.... मैं क्या उसके दिन गिनने बैठा हूँ ?
भाभी के लिए ,कैसे शब्द इस्तेमाल कर रहे हो ? उसके बोल रहे हो ,उनके बोलते हैं।
तुम क्या ,मुझे यहाँ शिष्टाचार का पाठ पढ़ाने आई हो ?वो एकदम से भड़क गया तभी अपने को संभालकर बोला -हमारा अभी विवाह हुआ ,देखो !अभी हमें इस बहस बाजी में नहीं पड़ना चाहिए। प्रेमभरी बातें करनी चाहिए।
प्रेम हुआ ही कब ?जब प्रेम होगा ,तभी तो प्रेमभरी बातें करेंगे। अभी तो हमारा ,बुआजी की इच्छा से विवाह हुआ है।
मैं तो तुमसे प्रेम करता हूँ ,
कब से ?जब से तुम्हारी बुआ ने कहा ,स्वयं ही उत्तर देते हुए बोली। इससे पहले तो तुमने कभी मुझसे बात नहीं की ,मैं परेशान थी, एक बारी भी आकर या फोन करके नहीं पूछा -मैं जिन्दा हूँ या मर गयी ,अब अचानक से ये प्रेम कहाँ से उमड़ पड़ा ?वो भी ''प्रेम विवाह ''कर लेने के पश्चात......
शब्बो की बातें सुनकर ,वो एकदम से हतप्रभ रह गया ,ये तो सब जानती है। फिर भी ,बातें बनाते हुए बोला -ये सब तुमसे किसने कहा ? किसने ,मेरे विरुद्ध तुम्हारे कान भरे ?तब मैं छोटा था ,घरवालों से शर्म के कारण कुछ कह भी नहीं पाता था, वो तो बुआ जी ,जब तुम्हारा रिश्ता मेरे लिए ,लाई ,मैं तो बहुत प्रसन्न हो गया।
तभी ड्राइवर ने बताया -हम आ गए।
बलविंदर ने तो जैसे ,शब्बो के प्रश्नों से बचकर ,गहरी और ठंडी साँस ली और वो दोनों गाड़ी से उतरकर ,किसी फ्लैट में चले गए। शब्बो बड़े घर में रहने वाली ,खुले वातावरण में पली -बढ़ी ,लिफ़्ट से गयी तो किन्तु उसका तो जैसे दम घुटने लगा। और कोई लड़की होती तो प्रसन्न होती कि उसका पति उसे बड़े शहर की रौनक दिखाने लाया है किन्तु शब्बो को तो जैसे इन सबसे कोई सरोकार नहीं था। वो तो समीर की स्मृतियों में खोयी ,दूर शून्य में तक रही थी। जैसे वो ,अभी आएगा और अपनी बाँहों के घेरे में ले लेगा।
माँ ने कहा था -ये विवाह ,पवित्र बंधन होता है , अब तक जो भी हुआ जैसे भी हुआ ,उन सभी बातों को भूलाकर ,अपनी नए सिरे से ज़िंदगी आरम्भ करो। सात फेरे ,सात वचन ,ये सभी हमारे सुंदर जीवन की नींव हैं। रिश्ते जोड़ते तो हम हैं किन्तु ऊपरवाला तो पहले से ही ,सब निश्चित करके भेजता है। तभी तो इसे सात जन्मों का रिश्ता कहते हैं। सात जन्म..... कहकर शब्बो फीकी सी हंसी में हँसी। जैसे उसके लिए तो ,इन सबका कोई महत्व ही नहीं रह गया है।