अभी तक आपने पढ़ा -समीर और उसके दोस्त करन का ,कुछ लोग अपहरण कर लेते हैं। उन्हें दो दिनों तक ,एक जगह पर बंद रखा ,जिसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। किसी ने धोखे से ,समीर को बुलाया और वहीं दोनों का अपहरण कर लिया। होनी को कौन टाल सका है ?इधर शब्बो का विवाह बलविंदर से हो जाता है। अपने टूटे हुए सपनों के साथ ,नशे में धुत ,समीर अपने दोस्त के साथ किसी स्थान पर पुलिस को पड़ा हुआ मिलता है ?समीर जो भी बताता है ,पुलिस उस पर विश्वास नहीं कर पाती क्योंकि समीर उन्हें बता ही नहीं पाता, कि उसका अपहरण किस कारण से हुआ ?किन लोगों पर उसे शक़ है ?
शब्बो बलविंदर के घर पहुंच जाती है ,सभी नई बहु का स्वागत करते हैं ,किन्तु शब्बो की नजरें तो ,बलविंदर की पहली बीवी को ख़ोज रहीं थी। किन्तु उस घर में कोई भी महिला उसे ऐसी नहीं मिली जिस पर शक किया जा सके। शब्बो को एक कमरे में आराम के लिए ,भेजा जाता है।अब उस सूने कमरे में शब्बो अपने समीर को स्मरण कर ,उसकी आँखें भर आई,एक पल को उसे लगा ,कहीं उसने मुझे धोखा तो नहीं दे दिया। मैं उसका इंतजार करती रही और वो ग़ायब ही हो गया। नहीं..... मेरा समीर ऐसा नहीं कर सकता , वो अवश्य ही किसी मुसीबत में फंस गया होगा। अब कोई सबूत भी मिला तो कोई लाभ नहीं ,जो होना था ,हो गया। तभी उसके मन में एक इच्छा ,जाग्रत हुई ,यदि वो अब भी ,कुछ भी सबूत लेकर आता है। तब मैं इस बंधन को नहीं मानूंगी और चार लोगों के सामने ,बलविंदर का दिया सामान इसके मुँह पर मारकर,अपने समीर के संग चली जाऊंगी। इन विचारों के आते ही ,उसके निराश मन में ,उत्साह का संचार हुआ। अब भी ,उसे एक उम्मीद बाक़ी थी।
यहाँ भी ,बुआ जी ही बढ़ -चढ़कर सभी कार्य निपटा रही थीं। कँगने की रस्म में ,मौहल्ले की भाभियाँ भी आती हैं और चुहलबाज़ी करती हैं।उनमें भी शब्बो ,किसी ऐसी औरत को ढूंढ रही थी ,जो उसे लगे कि बलविंदर की पत्नी हो सकती है। किन्तु तुरंत ही ,उसे अपनी सोच पर ,अफ़सोस होता है ,जो व्यक्ति मुझसे ब्याह के लिए ,इतने कांड कर सकता है ,वो कुछ भी कर सकता है। शीघ्र ही उसे निराशा ने घेर लिया। रात को जब सभी का खाना -पीना हो गया। शब्बो अपने कमरे में ही थी ,अभी तक उसने ,अपने कपड़े नहीं बदले थे। बुआजी का उसके विवाह में इतना ज़िम्मेदारी से कार्य करने के कारण उसके मन में आया ,इक बारी बुआजी से पूछ लूँ - मैंने सुना है ,बलविंदर का पहले भी विवाह हुआ है ,तभी मन में आया ,-वो उसकी बुआ है ,मेरी नहीं...... भला वो..... उसका दोष हुआ भी ,तो क्यों मानने लगी ?
यही सोचकर ,अब वो अपने कपड़े बदलने जा ही रही थी ,तभी उसे अपनी खिड़की में से कुछ दिखा। शायद बुआ ही थीं ,चाल -ढाल से तो वही लग रही थीं किन्तु वो इतने चोरी -छिपे..... अभी वो अंदाजा ही लगा रही थी ,तभी पीछे से दो- तीन और लोग भी जाते दिखे। कुछ तो झोल है ,सोचकर शब्बो ने अपना दुपटटा दुबारा ओढ़ा और बाहर की तरफ दौड़ी, तभी रुक कर उसने अपने पैर से पायल उतारी वो इतनी रात्रि गए ,इतनी बज रही थीं ,कि कोई भी उसे पहचान सकता था।
शब्बो अब अपनी खिड़की के पीछे ही पहुंच गयी और उससे होते हुए ,खम्बों की ओट लेते हुए ,उसी स्थान पर जा पहुंची। वहाँ उनके बेटे सुरेंद्र ,भतीजे बलविंदर के अलावा दो लोग और भी थे। बुआ कह रही थी -उन्हें छोड़ दिया।
जी..... एक ने जबाब दिया।
किसी को शक़ तो नहीं हुआ।
कतई नहीं....
हो भी नहीं सकता ,उन्हें तो कुछ भी नहीं मालूम। पुलिस ने भी ,पियक्क्ड़ समझकर ,उन्हें डांट दिया।
शब्बो खड़ी हुई अभी उनकी बातों को समझने का ,प्रयत्न कर रही थी।
तभी बुआ की आवाज़ फिर से ,उसे सुनाई दी -अब चलो !सभी अपने -अपने काम पर लग जाओ !और किसी से भी कुछ भी नहीं कहना और बताना। इससे पहले कि वो लोग ,इधर -उधर होते ,शब्बो को उससे पहले ही अपने कमरे में ,पहुंच जाना था। वो तेजी से लगभग दौड़ते हुए ,भागी।
अपने कमरे तक पहुंचने में उसकी सांसे फूल गयीं। उसने वहां रखा ,पानी पीया और सोचने लगी -ये बुआजी किसके विषय में बातें कर रही थीं ?किसे छोड़ दिया ?पुलिस ने किसे पियक्क्ड़ समझा ?बहुत सोचने पर भी गुत्थी नहीं सुलझी। उसने अपने कपड़े बदले ,तभी उसे एहसास हुआ -ये कमरा तो बलविंदर का भी है ,वो भी तो इधर आएगा ,यही सोचकर उसने कमरे की कुंडी लगा दी और सो गयी।
सुबह उठी ,तब किसी ने भी उससे कुछ नहीं कहा ,उसे ये देखकर आश्चर्य हुआ कि बलविंदर भी अपने नाश्ते में व्यस्त है। उसे देखकर भी ,अनदेखा कर गया। वो रात्रि को अपने कमरे की कुण्डी लगाकर सो गयी किन्तु किसी की कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। तभी वहाँ जो भी काम वाली थी उसने नाश्ता लाकर ,उसके सामने रख दिया। उसने नाश्ता किया और अपने कमरे में ,चली गयी। कुछ समय पश्चात ,बुआजी आती हैं और कहती हैं -आज तेरी ,''पग फेरे ''की रस्म है ,तैयार हो जाना ,मैं भी साथ ही निकलूंगी।