अभी तक आपने पढ़ा -करतार का ''विदाई समारोह ''होता है ,उस विदाई समारोह में शब्बो और उसके पापा भी आमंत्रित है। करतार शब्बो की तरफ देखता है शायद शब्बो उसके सवाल का जबाब देगी किन्तु करतार से निगाहें टकराते ही ,शब्बो नजरें नीची कर लेती है। वो कुछ भी जान या समझ नहीं पाता। तब वो शराब पीता है ,और उस नशे में मंच पर अपने दिल की बात कहने का प्रयत्न करता है। क्या आप लोग जानते हैं ? मैं आज से ही नहीं बरसों से एक लड़की की प्रतीक्षा में था और आज भी हूँ किन्तु मैंने कभी उससे कहा नहीं ,डरता था -कहीं वो इंकार न कर दे ,इसी ड़र के कारण ,मैं आज तक चुप रहा।
भीड़ में से आवाज आई ,किसी ने कहा -अब बोल भी दे ,यार..... मन का गुब्बार निकाल दे।
किसी अन्य ने कहा -क्या वो यहाँ है ?यदि यहां है ,तो बोल डाल। कब तक घुटता रहेगा ?पुलिस वाला होकर ड़र गया।
उधर शब्बो घबरा रही थी ,कि कहीं वो मेरा ,नाम न ले दे ,पता नहीं ,पापा पर इस बात का क्या असर होगा ?सभी पूरी मस्ती में थे। संगीत बज रहा था। तभी एक व्यक्ति मंच पर पहुंच जाता है। उन्हें देखकर संगीत भी रुक जाता है और करतार भी ,सीधा खड़ा हो जाता है ,तब वो व्यक्ति करतार के हाथ में से माइक ले लेता है। सभी लोग आपस में , इशारे से पूछते हैं। कौन है ? ये किन्तु कोई भी नहीं जानता था।
उस व्यक्ति ने बोलना आरम्भ किया -आप लोग मुझे नहीं जानते ,मैं इसी गांव का हूँ ,जानने वाले तो मुझे जानते हैं ही किन्तु अब तो, कुछ लोग मुझे ''शब्बो यानि शबनम ''के पापा के नाम से जानते हैं।मेरा छोटा सा परिवार जिसमें मेरी पत्नी और मेरी बच्ची शब्बो थी। किन्तु किन्हीं परिस्थितियों के कारण ,उसकी माँ नहीं रही। अब हम दोनों बाप -बेटी हैं। इंस्पेक्टर साहब ने हमें अपने ''विदाई समारोह ''में बुलाया ,उसका दिल से आभार। उनके साथ कुछ अच्छे अनुभव हैं। उन्होंने अपना फ़र्ज बहुत ही खूबसूरती से निभाया ,मैं अकेला अपनी बच्ची के साथ कहाँ -कहाँ धक्के खाता ? किन्तु इंस्पेक्टर साहब के कारण मैं निश्चिन्त रहा ,भगवान ऐसा बेटा सभी को दे। आज के बाद ये अन्य स्थान पर चले जायेंगे ,वहां भी अपना नाम इसी तरह रोशन करें किन्तु आज मैं फिर आप सभी के सामने ,इनके ऊपर एक ज़िम्मेदारी और सौंपना चाहता हूँ ,कहते हुए ,उनकी आँखें नम हो गयीं।
तभी मंच के नीचे से ,किसी की आवाज आई ,भाई कौन है ?ये और क्या चाहते हैं ?
जी आपको परेशान होने की आवश्यकता नहीं ,मैं अपनी बात पर आ रहा हूँ। मैं चाहता हूँ ,मेरे कलेज़े का टुकड़ा मेरी शब्बो की ज़िम्मेदारी ,मैं उन्हें देना चाहता हूँ। क्या ,वो मेरी बेटी की ज़िम्मेदारी उठाना चाहेंगे ? क्या वो उससे शादी करेंगे ?कहकर उन्होंने करतार की तरफ देखा।
करतार के तो जैसे- ख़ुशी के कारण बोल ही नहीं निकल रहे थे ,तब तक उन्होंने शब्बो को भी मंच पर बुला लिया था।
ये क्या बात हुई ?ये कैसे इनकी बेटी से विवाह कर सकता है ?वो तो किसी और से प्रेम करता है ,जिसका वो नाम बताने ही जा रहा था ,तभी इन अंकल ने आकर रोक दिया और जोर से बोला -अरे अंकल !वो किसी और से प्यार करता है। आप लेट हो गए कहकर हंसने लगा। वैसे तो तुम्हारी बेटी भी खूबसूरत है।
इससे पहले कि वो कुछ और कहता ,करतार ने माइक संभाला ,कोई भी किसी भी तरह की गलतफ़हमी न पाले ,मेरा प्यार और कोई नहीं ,इन्हीं की बेटी शब्बो ही है। कहकर उसने उनके पाँव छुए। उसके इतना कहते ही तालियाँ बजने लगीं। मैं नहीं जानता ,इन्होने मेरे मन की बात को कैसे पढ़ लिया ?और सही पढ़ा ,तभी तो कहते हैं -माता -पिता अपने बच्चों को नहीं समझेंगे तो किसे समझेंगे ? मैं आज से ही नहीं बरसों से अपने इश्क़ में सुलग रहा था ,कभी कहने का साहस ही नहीं हुआ। मेरे मन की बात आज इनके पापा ने समझ ली। शब्बो पापा के इस तरह कहने पर स्वयं भी हतप्रभ रह गयी वो तो स्वयं ही नहीं समझ पा रही
थी कि पापा को किसने बताया ? उसने अपने पापा की तरफ देखा ,उन्होंने बेटी की तरफ मुस्कुराकर हाँ में गर्दन हिलाई। शब्बो पापा के अचानक इस फैसले से समझ नहीं पा रही थी कि खुश हो या दुःखी। उसके पापा के फैसले से करतार बहुत खुश था ,उसके तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गयी। उसे और क्या चाहिए ?तभी उसने फिर से माइक संभाला और बोला -पापा जी ,आज आपने मुझे मेरे जीवन का सबसे अनमोल तोहफ़ा दिया है। वो भी मेरे'' विदाई समारोह ''में। मैं चाहता हूँ ,कि साथ -ही साथ अँगूठी की रस्म भी पूर्ण कर दी जाये। क्यों भई ,दोस्तों ! क्या ख़्याल है ?'' एक पंथ दो काज हो जाएँ ''बस पापा जी इजाज़त दे दें। उन्होंने मुस्कुराकर इजाजत दे दी। अब तो करतार जैसे हवा में उड़ रहा था उसने तो पहले ही तिवारी को अंगूठी लेने भेज दिया था। कुछ देर प्रतीक्षा करनी पड़ी और आनन -फानन में अँगूठियाँ आ गयीं।
शब्बो अब उससे बात करना चाहती थी किन्तु अपनी ख़ुशी में वो इतना ख़ुश था कि शायद वो उसकी बातों पर ध्यान न दे या फिर उसका मन दुःखी हो जाये। ऐसा भी वो नहीं चाहती थी। इतनी जल्दी हो रहा था वो अभी इन सबके लिए ,तैयार नहीं थी। तभी उसके क़रीब करतार आया और बोला -तुमने ठीक ही कहा था ,जैसा पापा चाहें ,सच में तुम्हारे पापा ने तो आज कमाल ही कर दिया। मैं कल, सोचकर तो ये ही गया था कि उनसे बात करूंगा किन्तु कुछ भी कह न सका। आज उन्होंने मुझे इतना बड़ा तोहफा दे दिया। अब तुम तो खुश हो न......