करतार शब्बो से उसकी सहेली शिल्पा और समीर के विषय में जानकारी चाहता है। जब उसे पता चलता है शिल्पा अभी भी समीर से अलग रह रही है ,तब करतार कहता है - अब तो समीर को शिल्पा को माफ कर देना चाहिए जो कुछ भी उसने किया अपने प्यार के लिए ही किया। तब शब्बो करतार से पूछती है -यदि तुम समीर के स्थान पर होते ,तो क्या तुम शिल्पा को माफ कर देते ?
शब्बो के इस तरह प्रश्न पूछने पर ,करतार चुप हो गया। तब शब्बो बोली -किसी को कुछ भी कह देना आसान होता है किन्तु जब हम स्वयं उस परिस्थिति में होते हैं ,तब निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है।
नहीं ,ऐसा कुछ भी नहीं है ,कुछ लोग अपनी परेशानियों को लिए बैठे रहते हैं उनसे निकलना नहीं चाहते। जीवन में आगे बढ़ना ही बेहतर है ,इससे अपने साथ -साथ आप दूसरों की परेशनियां भी कम कर देते हैं।
शायद तुम ठीक कह रहे हो ,तुम्हारी ऐसी सोच सुनकर अच्छा लगा। मुझे भी तुमसे कुछ बात कहनी है।
क्या कहना चाहती हो ?कहो !
अरे तुम दोनों आ गए ,चलो मैंने तुम लोगों के लिए अभी चाय बनाकर रखी है। चलो साथ में ही चाय पीते हैं। दोनों कहाँ घूम आये ?
मैं तो अपने थाने गया था ,मिलकर सभी बहुत खुश हुए। सबसे बड़ी बात....... जिस कारण से मेरा तबादला करवा दिया गया था। मेरे बदले दूसरा जो भी इंस्पेक्टर आया ,वो मुझसे भी सख़्त उसने उसे भी सजा दिलवाई जिसके कारण मेरे साथ ,उस दिन दुर्घटना हुई। इस थाने के नए इंस्पेक्टर साहब बड़े अच्छे हैं । तब शब्बो बोली -पापा ! मैं समीर के पास गयी थी ,जब मैं यहाँ से बाहर निकली तभी मैंने रास्ते में शिल्पा को देखा ,वो मुझे बहुत उदास लगी ,तब मुझे पता चला कि वो अभी भी यहीं है। तब मैं समीर के घर गयी ,ताकि उसे अपने घर वापस ले आये।
तब उसने क्या कहा ?
अभी उसने कोई संतोषजनक जबाब नहीं दिया किन्तु मेरा फ़र्ज था उसे समझाना ,वो मैंने समझा दिया बाक़ी अब उन्हें अपने जीवन में आगे बढ़ना है या नहीं, ये वो जाने।
तुम्हें वहां जाने की क्या आवश्यकता थी ? तुम यहीं शिल्पा को भी तो समझा सकती थीं।
उसे समझाने से कोई लाभ नहीं ,क्योंकि नाराज़गी समीर को उससे है ,न कि शिल्पा को।
अच्छा अब छोडो !तुमने पापा जी को बता दिया कि हम लोग घूमने के उद्देश्य से यहाँ आये थे ,अब हमें आगे भी जाना है।
चाय के साथ बिस्कुट और नमकीन रखते हुए ,शब्बो के पापा बोले -कहाँ जाना है ?
वो पापा जी ,जब से शब्बो मेरे घर गयी ,हम लोग कहीं बाहर नहीं गए ,इसीलिए सोचा कुछ दिनों की छुट्टी ले कर घूम आते हैं।
अच्छा किया ,यही उम्र तो घूमने -फिरने की है ,एक -दूसरे को समझने की है। अब नहीं घूमोगे तो क्या हमारी उम्र में घूमोगे , कहाँ जा रहे हो ?
अभी कुछ सोचा नहीं ,बस निकल पड़े हैं ,कहीं न कहीं तो पहुंच ही जायेंगे।
ये भी अच्छा है ,उद्देश्य तो घूमना ही है। कब जा रहे हो ?
कल ही निकलते हैं , कहकर उसने शब्बो की तरफ देखा।
शब्बो उन दोनों की बातें चुपचाप सुन रही थी। उसने मन में निश्चय किया हुआ था। वो करतार को सबकुछ बताकर ही उसके साथ ज़िंदगी में आगे बढ़ेगी किन्तु धीरे -धीरे उसका मन घबराने लगा ,आत्मविश्वास भी डगमगाने लगा। कहीं करतार को सच्चाई बताकर ,मैं अपने पैर में स्वयं ही कुल्हाड़ी न मार लूँ। अब मैं इसे खोना नहीं चाहती।
अगले दिन दोनों घूमने के लिए ,बाहर निकले ,मन ही मन करतार प्रसन्न था। शब्बो को वो सभी खुशियां देना चाहता था ,जो उसे मिलनी चाहिए थी।
शब्बो मन ही मन घबरा रही थी ,वो कैसे करतार की निगाहों का सामना करेगी ? जब वो एक शहर में पहुंचे ,तब शब्बो को पता चला ,जिन कड़वी यादों को लेकर वो इस शहर से गयी थी। वे लोग उसी शहर में ठहरे हैं। ऐसा कैसे हो सकता है ?क्या करतार मुझे यहाँ जानबूझकर लाया है ,या किस्मत मेरी परीक्षा ले रही है। उसने करतार से पूछा -हम इस शहर में क्यों आये हैं ?
क्यों ,क्या ये शहर अच्छा नहीं ?
नहीं ऐसा कुछ नहीं है ,इसी शहर से ही तो मेरी ,कुछ कड़वी यादें जुडी हैं ,बलविंदर मुझे यहीं तो लेकर आया था।
हाँ ,यही शहर तो था ,जब मैंने बलविंदर से उसके बयान लिए थे ,ये मैं कैसे भूल गया ? अनजाने ही मैंने शब्बो को दुःख दे दिया। मेरा उद्देश्य तो उसे उसकी खुशियां लौटाना था।प्रत्यक्ष बोला -इस शहर ने तुम्हें कड़वाहट दी ,यहीं से हम अपनी खुशियों की शुरुआत करेंगे।
शाम को होटल में किसी ने नए विवाहित जोड़ों के लिए ,दावत रखी थी।
आज शिल्पा अपनी पुरानी यादों को भूलाकर ,फिर से करतार के लिए तैयार हुई है। लाल गाउन ने उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा दिए , फिर भी न जाने क्यों उसका दिल घबरा रहा था। फिर भी वो करतार के लिए चेहरे पर मुस्कान लिए थी।
हॉल में सभी का स्वागत तालियों की गडगडाहट के साथ हो रहा था। तभी उसने ऐसा कुछ देखा जिसके कारण उसकी आंखें फटी की फटी रह गयीं ,उसका सिर चकराने लगा। किन्तु तभी उसे करतार ने अपनी बांहों में संभाल लिया।