बदली का चाँद ,भी तो धीरे -धीरे निकलता है ,फिर से कोई बदली उसे घेर लेती है और वो छिप जाता है। वो चमकना चाहता है ,निखरकर सम्पूर्ण आकाश में चमकना चाहता है किन्तु बदली उसे फिर से छुपा लेती है ,इसी तरह शब्बो की ज़िंदगी ,बन गयी है। वो अपने को जितना भी परेशानियों से दूर ,अपने को अपनी ज़िंदगी में खुश करना चाहती है ,उतना ही ,परेशानियों के दलदल में फंसती जाती है। आज उसने घर से बाहर निकलकर अपने घर जाने का सोचा था किन्तु बलविंदर ने तो जैसे ,उसके अरमानों पर पानी फेरने की ठानी है। जैसे ही वो बाहर निकलती है ,उसे दरवाजे पर खड़ा चौकीदार रोक देता है।
आप इस तरह ,इस समय कहाँ जा रही हैं ?
तुम कौन हो ?
मैं इस घर का नया चौकीदार !
कब से ?
अभी दो -तीन दिन ही हुए।
तुम मुझे नहीं जानते ,मैं इस घर की........
जानता हूँ ,इसीलिए तो कह रहा हूँ ,साहब ने ,आपको कहीं भी अकेले जाने के लिए मना किया है ,उनसे पूछकर ही ,या उनके साथ ही आपको जाना होगा।
ये तुम क्या कह रहे हो ?मैं अपनी मर्जी की मालिक हूँ ,अपने साहब से कहना -मैं पास ही किसी बाजार में गयी हूँ , कहकर जैसे ही वो आगे बढ़ने लगी किन्तु उसने आगे बढ़कर रोक दिया। शब्बो अब समझ चुकी थी ,उसने मेरे ऊपर पहरे लगा दिए हैं ,जिससे मैं कहीं भी न जा सकूँ। उसने गार्ड से जिरह करना उचित नहीं समझा और अंदर चली गयी।
शाम को दया से बोली -क्या तुम मेरी सहायता करोगी ?
क्या ? मैडम जी !
मुझे इस घर से बाहर निकलना है ,कोई तरक़ीब लड़ाओ ! ताकि मैं बाहर जा सकूँ।
दया समझ चुकी थी ,इन लोगों में अवश्य ही कुछ गड़बड़ है। मेरा कहीं नाम आ गया तो ,साहब नहीं छोड़ेंगे उसने घबराते हुए कहा।
तुम कुछ ऐसी ,तरक़ीब लड़ाओ ! मैं धीरे से यहाँ से निकल पाऊँ और तुम्हारा नाम भी न आये।
आश्वस्त होकर ,दया बोली -मैं कुछ सोचती हूँ ,कहकर वो अपने काम में लग गयी।
शब्बो ने अपने पर्स में देखा ,तो उसके पास तो पैसे भी नहीं थे ,कैसे ,वो बिना पैसों के जाएगी। शाम को जब बलविंदर आया तो शब्बो शांत रही ,न ही उसने उससे कुछ कहा। जब वो सो गया ,तब उसकी जेबें टटोली। उनमें ज्यादा तो नहीं ,थोड़े ही पैसे थे। जो भी थे ,वे उसने लिए और बलविंदर की ही नजरों के सामने ही ऐसे स्थान पर रख दिए ताकि वो पूछे या ढूंढे भी तो ,उसे मिल जाएँ।
सुबह बलविंदर उठा , और वो नाश्ता करके शीघ्र ही निकल गया ,शायद उसे कुछ काम था। सुबह सभी अलसाये से रहते हैं। दया भी आ गयी थी ,नाश्ता बनाकर , दोपहर के खाने के लिए सब्जी लाने के लिए तैयार हो रही थी ,तभी शब्बो बोली -जरा तू ,उसका ध्यान भटकाना और मैं निकल जाऊँगी।
ठीक है ! कहकर दया बड़ी सतर्कता से आगे बढ़ी और उस गार्ड से बातें करने लगी जब उसने धीरे से हाथ का इशारा किया ,तभी शब्बो दूसरे रास्ते से निकल गयी। दया भी चली गयी और शब्बो भी गार्ड अपनी ड्यूटी करने लगा।
कुछ देर पश्चात, दया सब्ज़ी लेकर आई तो ,अंदर से बाहर आकर चिल्लाने लगी। मैडमजी ,घर में नहीं हैं ,तू क्या कर रहा था ?सो गया था क्या ? तेरी लापरवाही से ,आज हमारी नौकरी चली जाएगी। गार्ड ने भी ,शब्बो को ढूंढा किन्तु वो कहीं नहीं मिली। दया को उस पर इल्ज़ाम लगाते समय दुःख तो हुआ किन्तु क्या कर सकती थी ?किसी न किसी को तो फंसना ही पड़ता।
शब्बो पूछते -पाछते ,बस में बैठकर ,अपने घर आ गयी। उसे देखकर ,उसके मम्मी -पापा की हालत ख़राब हो गयी। बिटिया कमज़ोर लग रही थी ,रंग भी फ़ीका पड़ गया था। सबसे बड़ी बात ,इस तरह बिना सूचना दिए , चली आना , दामाद भी नहीं। अवश्य ही कुछ गलत हुआ है ,सोचकर ही पम्मी की तो हालत ही बिगड़ गयी किन्तु बेटी के लिए उसने अपने को संभाला।
पम्मी बोली -शब्बो !तू इस तरह कैसे ?और बलविंदर किथ्थे है ?
अरे वो अभी आई है ,पहले उसे पानी ,खाना तो पूछ !!शायद सुबह ही चल पड़ी थी ,खाना या नाश्ता किया भी है कि नहीं। अपने पापा के ऐसे प्यार के शब्द सुनकर शब्बो अपने पापा के गले लगकर रोने लगी। उन्होंने उसके सर पर हाथ फेरा और बोले -सब ठीक तो है ,पुत्तर !
पम्मी भी ,उसी तरह अपनी बेटी को देखती रही। उसे इंतजार था ,शायद ये कुछ कहे !उसके मन में शब्बो को लेकर ,अनेक सवाल उठ रहे थे।