अभी तक आपने पढ़ा - शब्बो उस ढाबे में कहीं खो जाती है ,तारा और उसके गुंडे शब्बो को हर जगह ढूंढते हैं ,किन्तु वो नहीं मिलती। तभी इंस्पेक्टर गुरिंदर चड्ढा ,अपने दो सिपाहियों के साथ ,उस ढाबे पर आ जाते हैं ,उन्हें देखकर ,तारा देवी ,शब्बो का ख़्याल त्यागकर ,पुलिस से बचकर भागने का प्रयत्न करती है। तभी साधारण वेश में दो पुलिस वाले ,तारा से पूछते हैं -क्या अपनी बेटी को यहीं छोड़कर जाओगी ? तारा को जब पता चलता है - ,कि ये सभी पुलिस वाले हैं , तब तारा अपने गुंडों के संग भागती है ,पुलिस उसका पीछा करती है और थोड़ी मुठभेड़ के पश्चात ,तीनों बदमाश पकड़े जाते हैं। पुलिस अपनी इस जीत पर प्रसन्न होती है किन्तु जब उन्हें शब्बो बताती है -कि ये लोग ,तीन नहीं ,चार थे। तब पुनः ढाबे पर जाते हैं ,तब तक वो चौथा व्यक्ति ,भीड़ का लाभ उठाकर ,निकल जाता है। तब भी इंस्पेक्टर साहब शब्बो को उसकी बहादुरी के लिए ,प्रशंसा करते हैं। अब आगे -
इंस्पेक्टर साहब ,बताते हैं -इस बच्ची ने बड़ी बहादुरी से काम लिया ,और कोईं बच्ची होती तो......... किन्तु इस बच्ची ने बड़ी बहादुरी से ,अपने अपहरण होने की सूचना ,बड़ी समझदारी से ,हम लोगो तक पहुंचाई और इन लोगों को कुछ पता भी नहीं चलने दिया। करतार ने यहीं तो ,शब्बो को नजरभर देखा था और जब इंस्पेक्टर साहब उसकी प्रशंसा कर रहे थे, तो उसे देखे जा रहा था। एक व्यक्ति ने पूछ ही लिया कि इस बच्ची ने किस तरह आप तक ख़बर पहुंचाई ? तब इंस्पेक्टर साहब ने बताया- इसने टिशू पेपर पर ,अपने श्रृंगार की पेन्सिल से संदेश छोड़ा और एक नहीं कई -कई। जिसने भी पढ़ा ,हमें फोन किया हम लोग भी ,एक बार तो परेशान हो गए। बेटी शब्बो ,अभी आप कुछ कहना चाहोगी ,तुम्हें कैसे पता चला ? कि तारा क्या सोच रही है ?और इससे कैसे बचना है ?सबसे पहले ये बताओ- कि तुम कहाँ से हो ?
शब्बो बोली - मैं गुरदासपुर की रहने वाली हूँ ,वैसे तैरना मुझे आता है किन्तु अपने दोस्त को बचाने के लिए नदी में कूदी थी। किन्तु तेज बहाव के कारण ,आगे निकल गयी और किसी पत्थर के कारण बेहोश हो गयी। जब मुझे चेतना आई , तब मैं , पुल पर जो दुर्घटना हुई थी ,वहीं थी ,वहीं मुझे ये तारा मिली। वहीं मुझे एक सज्जन मिले वो इसकी कारस्तानी समझ गए थे। तब उन्होंने मुझे समझाया- कि ये औरत विश्वसनीय नहीं है। पहले तो मैंने उन पर विश्वास नहीं किया किन्तु जब मैंने इन लोगों की योजना सुनी ,तभी मैंने सोच लिया -कि मुझे अपने घर जाना है और इन लोगों का पर्दाफ़ाश करना है।
मैंने अपने सामान से कुछ चिटें बनाई ,और उन्हें जगह -जगह फेंक दिया और मैं कभी खाने के बहाने -कभी किसी अन्य बहाने ,उन्हें रोकती रही ताकि कोई तो आप लोगों को फोन करे और आप लोगों को हमारे समीप आने का मौका मिले। मेरी सम्पूर्ण योजना विफल हो जाती ,यदि आप लोग समय पर नहीं आते। उसकी बातें सुनकर सभी ने ताली बजाई और इंस्पेक्टर साहब ने ,शब्बो से वायदा किया- कि वो उसके घर उसे ''गुरदासपुर'' सही -सलामत छुड़वा देंगे। अगले दिन समाचार -पत्र में ,यही खबर सबसे ऊपर थी-' कि ''गुरदासपुर ''की बेटी शबनम ने ,एक बच्चों को पकड़ने और उन्हें बेचने वाले गिरोह का किया ''पर्दाफ़ाश ।''यह ''समाचार -पत्र ,'' गुरदासपुर भी पहुंचा और वहां के लोगो ने भी ये ख़बर पढ़ी। लगभग एक सप्ताह पश्चात ,शब्बो की कुछ खबर तो मिली। कुछ नहीं ,बहुत बड़ी ख़बर थी ,उसके मम्मी -पापाजी के लिए ,वो भी इस तरह।
उनके लिए तो'' ख़ुशी का ठिकाना ''ही नहीं था। गांव के लोग भी प्रसन्न थे , उनके गांव की बेटी ने नाम रौशन किया। कुछ घंटे पश्चात ही ,पुलिस स्टेशन में फोन आ गया जो'' गुरदासपुर'' के थाने से आया था।
फोन गुरेंद्र सिंह चड्ढा ने उठाया - हैलो !
जी ,मैं गुरदास पुर के थाने से ,मनजीत सिंह बोल रहा हूँ। ,मैंने आज ही 'समाचार -पत्र ' में ये खबर पढ़ी। ये बच्ची यहीं से लापता है ,यहां इसकी रिपोर्ट भी दर्ज है। क्या ये खबर सही है ?कि ये वो ही बच्ची है।
जी खबर सही होगी ,तभी तो ये खबर छपी है ,हमें स्वयं उसी बच्ची ने बताया। गुरिंदर चड्ढा ने जबाब दिया।
जी ,जनाब ,मैं आपको यही सूचित करने के लिए फ़ोन कर रहा हूँ , उस बच्ची के माता -पिता यहां से उसे ले जाने के लिए निकल चुके हैं।
जी ,आपका बहुत बहुत शुक्रिया ,कहकर गुरिंदर चड्ढा ने फोन रख दिया और यही सूचना शब्बो को भी दे दी।
शब्बो के मम्मी -पापा तो उसे लाने के लिए बस में बैठ भी चुके थे। कुछ घंटों के सफ़र के पश्चात् ,वो वहां पहुंच गए। शब्बो को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए ,उसकी हालत देखकर उसकी मम्मी उसके गले लगकर बहुत देर तक रोती रही। इंस्पेक्टर साहब ने उसकी बहुत प्रशंसा की और अपनी तरफ से उसे इनाम देना चाहा किन्तु उसके मम्मी -पापा ने यह कहकर उनसे इंकार कर दिया। हमें हमारी बच्ची सही -सलामत मिल गयी , हमारे लिए तो यही पुरस्कार है। अपनी बेटी को अपने साथ लेकर चले गए। तभी करतार का सपना जैसे टूटा ,टिकट...... टिकट की आवाज से वो वर्तमान में आ गया। उसने अपनी और शब्बो की टिकट दिखाई फिर बगलवाली जगह देखा। जहां शब्बो बैठी नींद के झटके ले रही थी ,करतार ने दो टिकट ली थीं।उसके पश्चात ,वो रेलगाड़ी में बैठे ,तभी शब्बो बोली -करतार हम कहाँ जा रहे हैं ? ये तो गुरदासपुर का रास्ता नहीं ,तुम तो मुझे मेरे पिता से मिलाने के लिए लेकर आये थे।
क्या आप लोग भी जानना नहीं चाहेंगे -जब शब्बो अपने मम्मीजी और पापा जी के साथ गुरदासपुर पहुँची तो क्या हुआ ?वो तो वहां से आ गयी ,तब उसका करतार से कैसे विवाह हुआ ?वे दोनों कैसे मिले ?अब करतार शब्बो को उसके पापा जी से मिलवाने के वास्ते लाया है तब फिर वो शब्बो को रेलगाड़ी से कहाँ ले जा रहा है ?अभी शब्बो की ज़िंदगी में ,क्या -क्या घटना बाकि है ?क्या करतार और शब्बो की दोस्ती सिर्फ दोस्ती ही रह जाएगी या फिर उससे आगे बढ़ेगी।