शब्बो का विवाह ,करतार से हो जाता है ,किन्तु ''करतारे ''की माँ 'शब्बो' को कतई पसन्द नही करती। करतारे के जाने के बाद ,वो उससे सभी वे कार्य कराती है ,जो शब्बो ने किये ही नहीं। शब्बो को आज अपनी मम्मीजी की बहुत याद आ रही है ,और उसकी ज़िंदगी में ,अब यादों के सिवा बचा ही क्या है ?जो माँ उसकी परवाह करती थी ,जो बिन कहे अपनी बच्ची की बातों को समझ जाती थी ,वो तो अब इस दुनिया में रही ही नहीं। अब उसकी ज़िंदगी में ले देकर करतार ही तो है ,जो उसे चाहने का दम भरता है, किन्तु क्या शब्बो भी उसे चाहती है ?वो तो सबकी नजरों में पति -पत्नी बने हैं ,किन्तु अकेले में एक दोस्त से ज्यादा कुछ नहीं। करतार भी ,उसे समझने का प्रयास कर रहा है ,और उसके साथ जो भी घटा ,उसे भूलने के लिए शब्बो को समय देना चाहता है। अब आगे -
करतार घर में घुसता है ,बड़ा ही प्रसन्न दिखाई दे रहा है। माँ की तेज नजरों से बचा नहीं ,उसे देखते ही बोली -ओये करतारे !आज तो तू बड़ा खुश दिख रहा है ,क्या कोई लॉटरी लगी है ?या फिर तेरी तरक्क़ी हो गयी। वो बोला -नहीं बेबे ,मैंने कई दिनों से छुट्टी की अर्जी लगा रखी थी ,आज वो पूरी हो गयी। माँ ने आँखें तरेरते हुए कहा -क्यों ! तुझे क्यों ,छुट्टी की जरूरत आन पड़ी ? बेबे..... जब से मेरा ब्याह हुआ है ,हम तो कहीं घूमने ही नहीं गए ,सोचा -शब्बो जी ,को थोड़ी बाहर की सैर करा लाऊँ ,उसका मन बहल जायेगा ,बेचारी को अपने घर की याद सताती होगी।
क्यों ,उसे कौन सी आफ़त आन पड़ी ?,अभी आये हुए ,तो उसे दो माह ही हुए हैं ,ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ा ?कि महारानी का मन नहीं लग रहा ,अपनी ससुराल में तो, सभी का मन लग जाता है। ये कौन से पहाड़ तोड़ रही है ?जो तू इसके पीछे पागल हुए जा रहा है ,हम भी तो अपनी ससुराल में आये ,मज़ाल है , सास को एक भी काम करने दिया हो ,सारे घर का काम तेरी माँ अपने इन्हीं हाथों से करती थी। गांव की सभी औरतें देखकर ''हैफ़ ''मानती थीं ,भई ,बहु हो तो ऐसी ,मज़ाल है ,सास को एक फली भी फोड़ने दी हो। तब से आज तक इसी घर में हैं , हमने ना किये ये चोंचले। रात को रो -धोकर पति के सामने ड्रामे करो। पति देव [बेटे की तरफ हाथ चलाती हुयी बोली ]हैं ही ऐसे ,बस बहु का 'त्रिया चिल्हत्तर 'देखा नहीं ,बस छुट्टी लेकर आ गए। मुँह बनाते हुए बोली -ये भी न सोचा -इस बुढ़ापे में ,अकेले माँ -बाप ,बाहर -भित्तर का काम कैसे संभालेंगे ?माँ -बाप की चिंता न है ,कल की आई ,इस काले सिर की चिंता है ,कहकर आँखों में पानी भर लाई। माँ की इतनी बातें सुनकर करतार के मन में ,जो ख़ुशी की लहर दौड़ रही थी ,वो तो समाप्त हो गयी।
बोला -बेबे !तू तो नाहक ही परेशान होती है ,अब ये हमारे घर में नई आई है ,जिसमें कि, इसकी माँ भी नहीं रही ,तो सोचा -इसका अकेला बाप है उससे मिलवा लाता हूँ। बेचारा.... इस बुढ़ापे में ,अकेला जीवन काट रहा है। अब तू ही बता ,तेरे लिए तो, पापा जी ,मैं और शब्बो भी है किन्तु [पहले तो ससुर को उसके करके बोला ,जब देखा ,माँ पर बातों का असर हो रहा है तो उनके कहने लगा ]उनके पास तो कोई नहीं ,ले देके ,एक यही तो है ,पता नहीं ,कब आँख मूँद ले ?सोचा -इसे मिलवा आता हूँ। क्या पता ?उन्हें कुछ कहना हो ,माँ उसके शब्दों का भाव समझ रही थी। जैसी तुम्हारी मर्जी ,कहकर सब्जी काटने लगी।
ये सभी बातें ,शब्बो भी सुन रही थी ,बोली -मैं कहीं नहीं जाऊँगी ,मुझे पापाजी से भी नहीं मिलना ,मिलकर भी क्या करना है ?मेरे कारण उनका ,पहले से ही कितना दिल दुखा है ?अब और नहीं। करतार अभी तो माँ को समझाकर आया ,अब बीवी को समझाने लगा। ये पुरुष जाति भी न ,पिसकर रह जाता है ,इंसान । किसकी सुने किसकी नहीं ?दोनों ही अपनी -अपनी जगह सही हैं ,फिर भी ग्रह क्यों नहीं मिलते ?तभी करतार के मस्तिष्क में विचार आया और सोचने लगा -ये जो विवाह से पहले लोग ''जन्मपत्री ''मिलवाते हैं ,वो लड़के -लड़की की नहीं वरन सास और बहु की मिलवानी चाहिए और अपनी ही सोच पर मुस्कुरा दिया। माँ तो लगभग मान ही चुकी थी ,अब तो ,शब्बो को मनाना था।
करतार बोला -अब तुम अच्छे -ख़ासे कार्यक्रम की धज्जियाँ मत उड़ाओ ,कितनी मुश्किलों से तो छुट्टी मिली है ?और अब तुम सत्यनाश मत करो ,इतनी देर से तो बेबे को समझा रहा था ,अब वो चुप हो गयीं तो तुम शुरू हो गयीं। यार..... अब तुम कोई परेशानी मत खड़ी करो ,करतारे ने शब्बो को बताया नहीं ,कि वो उसे उसके मायके नहीं ,किसी और जगह घुमाने ले जा रहा है। वो उसे चौंका देना चाहता था इसीलिए उसे बताया नहीं। जब वो उसके हाथ जोड़ने लगा। तब अपनी नहीं तो उसकी ख़ुशी के लिए ही ,तैयार हो गयी। अब वो ही तो उसका ख्याल रखने वाला है ,जहाँ सबने उसका दिल दुखाया ,वहां उसी ने तो उसके दुखते दिल को समेटने की कोशिश की है ।अब कहने को तो ,वो ही उसका अपना है।