अभी तक आपने पढ़ा - शब्बो के विद्यालय में बैसाखी पर रंगारंग कार्यक्रम होते हैं ,जिसमें शब्बो भी भाग लेती है और करतार विशेष अतिथि के रूप में वहाँ आता है। करतार सिंह तो शब्बो के रूप पर ,बहुत पहले ही मर मिटा था किन्तु शब्बो की परेशानियां देखते हुए और अपनी बेबे की सोच को देखते हुए ,उसने अपने कदम रोक रखे थे। किन्तु आज उसके जज्बात फिर से उस पर हावी हो रहे थे। उधर शब्बो भी ,करतार की अच्छाइयों के विषय में सोच रही थी। कार्यक्रम समाप्त हो जाने पर दोनों ,अपने -अपने घर चले जाते हैं किन्तु कहीं न कहीं दोनों ही एक दूसरे के विचारों में समाये थे। शब्बो पर जब उसके विचार हावी हुए तो उसने अपनी ज़िंदगी के ,अब तक के सफर को सोच ,अपने विचारों को विराम देना ही उचित समझा।
मदनलाल जी कहते हैं -वैसे बेचारी कुड़ी बहुत ही अच्छी है ,पता नहीं ,इसकी ज़िंदगी में ऐसे लोग क्यों आये ?जिन्होंने उसे ग़म -दुःख के सिवा कुछ नहीं दिया। बेचारी से , पता नहीं किस जन्म का बदला लिया ? पता नहीं बेचारी ,ये पहाड़ सा जीवन अकेली कैसे बितायेगी ? अब तो उसका समय कट भी जाता है ,उसके पापा उसके साथ हैं किन्तु जब वे नहीं होंगे तब उस बेचारी पर क्या बीतेगी ?
करतार बहुत देर से उसकी बातें सुन रहा था और बोला -मदनलाल जी ,ये आपने बेचारी -बेचारी क्या लगा रखा है ? उसका एक नाम भी है।
नाम तो मैं जानता हूँ ,सर जी ! किन्तु कुछ समय पश्चात तो, बेचारी ही हो जानी है ,जैसी परिस्थितियां उसके सामने आई हैं और उसने अपने दिन काटे हैं ,उन हालातों को देखते हुए तो..... बेचारी बच्ची !बेचारी ही है। अब कौन उससे ब्याह करेगा ?एक बार ,जीवन पर कलंक लग जाये तो जीवन भर उसका एहसास करता ही रहता है। ये समाज और समाज के बने नियम ऐसे ही हैं। भले ही गलती उसकी न हो किन्तु भुगतना तो फिर भी औरत को ही पड़ता है। अकेली महिला को देखकर ,भूखे भेड़िये तो आस -पास मंडराते दिखेंगे किन्तु संभालने वाला ,मन में और घर में जगह देने वाले कम ही मिलते हैं।
ह्म्मम्म्म्म ! कह तो...... तुम सही रहे हो , किन्तु मैं ,ये भी तो नहीं जानता कि उसके मन में ,मेरे लिए कैसी भावनाएं हैं ?उसके मन में अब आगे बढ़ने की ख़्वाहिश भी है या नहीं। करतार सिंह के मन में ,आया एक बार बेबे से भी बात करके देख ले किन्तु बेबे के गुस्से की सोचकर ,वो शांत रहा। तभी मन में आया ,यदि बेबे को कुछ बताया ही न जाये।अभी वो ये सब सोच ही रहा था और मदनलाल की तरफ देखा तो वो वहां नहीं था। करतार मन ही मन मुस्कुराया और बोला -मेरी एक भी बात नहीं सुनी ,और अपनी बातें कहकर चलता बना। तभी उसे मदनलाल आता दिखाई दिया और उसके हाथ में एक लिफाफा भी था।ये कैसा लिफाफा है ?
पता नहीं ,सर जी ! एक आदमी देकर गया है ,कह रहा था - कि आपको दे दूँ।
इसमें क्या हो सकता है ?या किसी केस का कोई हल हो ,उसके सामने जितने भी केस ,उसके थाने से संबंधित थे ,सभी एक -एककर घूम गए। उसने लिफाफा खोला और मुस्कुरा दिया और बोला -मदनलाल जी ,इसमें तो बैसाखी के कार्यक्रमों की फोटो हैं। शबनम जी ने भिजवाई होंगी ,कहकर करतार ने अपने देखे हुए फोटो मदनलाल की तरफ खिसका दिए ,तब तक तिवारी भी वहाँ आ गया था। दोनों उन तस्वीरों को देखते हुए ,अपनी -अपनी टीका -टिप्पणी कर रहे थे।
करतार को स्मरण हुआ ,कल तो छुट्टी भी है और उसे घर भी जाना है ,वैसे तो वो चाहता नहीं था किन्तु उसने कुछ फोटो अपने पास रख लीं।
अगले दिन ,जब वो अपने घर पहुँचा ,तब अपने भाषण की और अन्य कार्यक्रमों की तस्वीरें दिखलाई।
बेबे ने सभी तस्वीरें देखकर पूछा -ये कुड़ी कौन है ?कुड़ी तो बड़ी ही सोहणी है।
बेबे इसी के पिता का ही ,ये स्कूल है ,उन्होंने ही मुझे ,अपने यहाँ बुलाया था। ये इन्हीं की बेटी है ,इन्ही के साथ रहती है ,इस बेचारी की माँ नहीं है।
मैंने तो इतना सब पूछा ही नहीं ,तू ये सब मुझे क्यों बता रहा है ? माँ ने अपनी तेज नजरों को करतार के चेहरे पर गड़ाते हुए पूछा।
कुछ नहीं , मैंने तो इसलिए पहले ही बता दिया ,ताकि आपको फिर से पूछना न पड़े। अभी मुझे काम है ,जरा बाहर जाकर आता हूँ ,करतार माँ की नजरों से बचने के लिए बाहर आ गया। अब उसे लग रहा था ,कहीं उसने कोई गलती तो नहीं कर दी। या कोई जल्दबाज़ी !अभी तो उसने शब्बो के मन को भी नहीं टटोला। वो क्या चाहती है ?क्या मुझे पसंद करती भी है ? या नहीं। क्या मालूम वो समीर आज भी उसके दिल में आसन जमाये बैठा हो ?जब से उसकी पत्नी शिल्पा के कांड का पता चला है ,तबसे उन दोनों से ही कोई संबंध नहीं रखा किन्तु शिल्पा भी तो अब समीर के साथ नहीं रहती। क्या मालूम ?आज भी दोनों में ,कुछ निशानियाँ बाक़ी हों और मैं वैसे ही ,शब्बो के ख़्वाब सजा रहा हूँ। ये सभी विचार आते ही ,करतार को निराशा ने घेर लिया।
उधर शब्बो के थाने में ,दो फोन आ चुके थे ,पहली बार तो किसी ने नहीं उठाया दूसरी बार उसे पता चला कि करतार तो दो दिनों की छुट्टी पर गया है। अभी तो उसने उसके विषय में सोचना ही आरम्भ किया था और उससे दूरी हो गयी ,शायद मेरे नसीब में ही किसी का प्यार नहीं लिखा। मैं भी न ,उन इंस्पेक्टर साहब की कितनी आदी हो गयी हूँ ? जब चाहे उन्हें फोन खड़का देती हूँ ,उनके बिना जैसे मेरे कार्य पूर्ण नहीं होंगे। पता नहीं ,वो भी न मेरे विषय में क्या सोचते होंगे ? मैंने तो इसकी थोड़ी सी मदद क्या कर दी ? ये तो पल्ले ही पड़ गयी।