अभी तक आपने पढ़ा - शब्बो समीर के घर उसके पापा से मिलने जाती है ,उनसे बातें करती है और तो और उनके लिए फ़ल भी लेकर जाती है ये बात उसकी माँ साधना को पता चल जाती है और उन्हें लगता है -समीर किसी लड़की के चक्कर में पड़ा है। जब समीर से इस विषय में पूछा जाता है ,तो वो अनभिग्यता जाहिर करता है। उसे तो किसी भी लड़की के विषय में कोई जानकारी नहीं ,जब वो अपने पिता से उस लड़की का नाम जानना चाहता है ,तब वो भी कह देते हैं -मुझे उसका नाम नहीं मालूम। जब साधना जी उसके विषय में एक -दो वाक्ये उसे बताती हैं ,तब उसे विश्वास हो जाता है ,हो न हो ,ये शब्बो ही हो सकती है। वो उसे समझाना चाहता है ,कि उसकी ज़िंदगी में दखलंदाजी न करे किन्तु पापा के समझाने पर ,वो उससे दोस्ती के लिए ,तैयार हो जाता है। जब उससे मिलता है तो उसे जाहिर नहीं होने देना चाहता, कि जो लड़की उसके पीछे ,उसके घर उसके पिता से मिलने आती है ,उसे वो जान गया है।
इसके लिए वो शिल्पा से बात करता है और अनजान बना रहता है। इस विषय में ,शब्बो ने भी शिल्पा को कुछ नहीं बताया। जब समीर ये कहकर जाने लगता है -शायद ये कार्य श्रुति का हो। तब शब्बो उसे सलाह देती है कि यदि उसे उस लड़की की जानकारी चाहिए तब अपने ही घर में रहे और उससे मिल ले। अब आगे -
शब्बो इस बात से संतुष्ट तो हो जाती है कि अब वो श्रुति से नहीं पूछेगा किन्तु स्वयं में भी सतर्क हो जाती है कि अब उसके घर ,जब भी जाना होगा तो देखभाल कर ही जाऊंगी। अब समीर अक़्सर घर में रहता ताकि पता चल सके ,वो लड़की कौन है ?
एक सप्ताह हो गया, कोई लड़की उनके घर नहीं आई। अब तो समीर को क्रोध भी आया और झुंझलाहट भी हुई ,ये 'शब्बो की बच्ची 'अपनेआप को क्या समझती है ?अब उसे पता है कि मैं उस पर घात लगाए बैठा हूँ तो आ नहीं रही। इसी झुंझलाहट में पिता से बोला -आजकल आपकी वो दोस्त नहीं आ रही।
पिता मुस्कुराते हुए बोले -आ जाएगी ,जब भी उसे समय मिलेगा। वैसे भी अब मैं पहले से स्वस्थ हो गया हूँ ,हो सकता है ,न भी आये।
इसी झुंझलाहट और गुस्से में ,वह बाहर निकल जाता है तभी दरवाजे पर ,वो किसी से टकराता है और सॉरी कह आगे बढ़ जाता है। शब्बो अंदर आती है और नमस्कार के साथ ही ,उनका हालचाल पूछती है। आज वो अंकल बिस्तर में नहीं ,कुर्सी पर बैठकर बात कर रहे थे। बोले -शबनम बेटा ! तुम कहाँ रहती हो ?
शब्बो उनके मुख से अपना ,नाम सुनकर चौंक गयी ,बोली -आपको मेरा नाम कैसे पता चला ?मैंने तो बताया भी नहीं।
समीर ने बताया उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा और उसके चेहरे को पढ़ने का प्रयत्न करने लगे।
क्या...... क्या वो जानता है ?कि मैं यहां आती हूँ।
हाँ........ उन्होंने गर्दन हिलाते हुए सहमति जताई।
अब शबनम मन ही मन सोचने लगी ,-और वो खड़ूस मेरे और शिल्पा के सामने ,कैसा अनजान बन रहा था ?श्रुति से पूछता हूँ ,नौटंकी कहीं का। तभी उसे स्मरण हुआ ,वो जो दरवाज़े पर टकराया था कहीं वो भी उसकी कोई नौटंकी न हो ,यही सोचकर ,वो बोली -अच्छा अंकल ,अब मैं चलती हूँ।
शब्बो तेजी से बाहर की तरफ लपकी ,उधर चलते समय अचानक समीर को स्मरण हुआ ,मैं अपनी ही मस्ती में चला जा रहा था ,मैंने ध्यान भी नहीं दिया, कि मुझसे टकराकर कौन मेरे घर के अंदर गया ?तभी उसे लगा -कहीं शब्बो ही तो नहीं। उधर से वो वापस आ रहा था ,इधर से शब्बो तेजी से बाहर निकलने का प्रयत्न कर रही थी ,तभी दोनों फिर से तेजी से टकराये। शब्बो ने अपने चेहरे को मास्क से ढका हुआ था। उससे टकराते हुए ,उसने एक बार अपना मास्क फिर से ठीक किया और बाहर की तरफ जा रही थी तभी समीर ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला -शिल्पा पापा से मिलकर ही जा रही हो ,हमसे नहीं मिलोगी।
अब भी उसने शब्बो का नाम नहीं लिया ,वो चाहता था कि शब्बो स्वयं उसके सामने आये किन्तु वो भी चाहती थी ,पहचान ही गया तो फिर अनजान बनने का अभिनय क्यों कर रहा है ?उसने नजरभर समीर की तरफ देखा और बोली -अब जा रही हूँ ,बहुत देर हो गयी।
क्यों आती हो ?मेरे घर ,मेरे पापा से ही इतनी हमदर्दी क्यों ?
अब तो ठीक हो गए ,अब नहीं आऊँगी कहकर वो आगे बढ़ी तभी समीर ने उसका रास्ता रोका और बोला -अपना मास्क तो हटाओ ,तनिक मैं भी उस शख़्स से रूबरू होना चाहता हूँ जिसने मेरे पिता को ख़ुशी दी।
नहीं...... अब मैं चलती हूँ ,इस तरह बातें करते ,वो अपने घर से काफी दूर आ गए। अचानक समीर ने उसके चेहरे का मास्क खींच लिया और बोला -अपना असली परिचय दिए ,बिना ही चली जाओगी शब्बो....
शब्बो ने उसकी तरफ देखा और बोली -जब तुम जानते थे ,तो इस तरह अनजान क्यों बने रहे ?
क्या करता ?मेरे घर के हालात तुम नहीं जानती ,तुमसे मिलता ,बातें करके भी क्या हो जाता ?मैं तो अभी इन सबसे दूर रहना चाहता हूँ।
क्यों ?मुझे तो कुछ भी गलत नहीं लगा।
तुम नहीं जानतीं ,कि घर के क्या हालात हैं ?जो दीखता है ,वो होता नहीं है।
वो ही तो मैं जानना चाहती हूँ ,एक बार जब तुम कॉलिज आये थे ,तब तुम मुझे परेशान दिखे ,तभी पता नहीं क्यों ? मुझे लगा, कि तुम्हारी परेशानी मुझे जाननी चाहिए और जब तुमने उस दिन डांट दिया तब मैं तुमसे नाराज़ तो हुई किन्तु तुम्हारी परेशानियों को जानने का ,लोभ नहीं त्याग सकी और तुम्हारा पीछा करते हॉस्पिटल पहुंच गयी ,कहते हुए -उसने अपने कानों पर हाथ लगाया।
मैं नहीं जानती ,मैं तुम्हारे चेहरे की परेशानी देखकर क्यों विचलित हो गयी ?और तुम्हारे घर में भी दिलचस्पी लेने लगी ,अब तो तुम्हारे पिता ठीक हैं किन्तु मैं अब भी देख रही हूँ ,तुम्हारे चेहरे पर अब भी, चिंता की लकीरें हैं। तुम क्यों परेशान हो ?क्या मुझसे अपनी परेशानी बाँटना नहीं चाहोगे ?हो सकता है ,मैं तुम्हारी समस्या को दूर कर सकूं।
समीर शब्बो का चेहरा देखे जा रहा था, उसके चेहरे पर सच्चाई थी किन्तु किसी भी लड़की को बिना जाने कैसे अपनी समस्या बता दे ?हो सकता है ,इस सबका उल्टा ही असर हो ,किन्तु आज शब्बो में उसने एक प्यारा सा दिल देखा ,जो उसकी परेशानियों से विचलित होता है।
तभी समीर बोला -अब तुम जाओ !बहुत देर हो गयी ,तुम्हारे मम्मी -पापा परेशान होंगे। तभी समीर के दिमाग में आया कि ये अकेली लड़की जायेगी ,चलो में ही छोड़ आता हूँ। तब बोला -तुम कहाँ रहती हो ?
मैं तो ''गुरदास नंगल ''की हूँ ,वहीं रहती हूँ।
क्या......... तुम इतनी दूर से आई हो ?
ज्यादा दूर नहीं है, छह किलोमीटर ही तो है ,वहीं से तो कॉलिज आती हूँ।
समीर तो सोच रहा था -ये यहीं कहीं आस -पास रहती होगी।उसके पास तो कोई दुपहिया भी नहीं जो इसे छोड़ दे ,बोला - तुम आती -जाती कैसे हो ?
तब उसने दूर स्टैंड पर खड़ी अपनी स्कूटी उसे दिखाई ,उससे।