अभी तक आपने पढ़ा -शब्बो को करतार सिह ,अपने दोस्त के कहने पर ,किसी अन्य स्थान पर ले जाने के लिए अपनी बेबे इजाज़त लेता है ,बेबे का व्यवहार ,वैसे तो शब्बो के साथ सख़्त है किन्तु जब करतार शब्बो को लेकर जाता है तो बेबे का रवैया कुछ बदला लगता है। आज वो पहली बार बेबे को अपनी माँ के रूप में देखती है और ख़ुशी -ख़ुशी घर से दोनों निकल जाते हैं। शब्बो जब से अपनी ससुराल आई थी ,तब से आज वो पहली बार घर से बाहर आई है ,वैसे आज वो प्रसन्न है। गाड़ी में बैठे हुए ,करतार को उस समय का स्मरण होता है ,जब करतार ने शब्बो को पहली बार देखा था और वो शब्बो को पहली नजर में ही दिल दे चुका था ,उसकी सुंदरता के साथ -साथ ,उसके साहस ने भी उसका दिल जीत लिया। जब बस में कंडक्टर उससे टिकट मांगता है ,तब उसका ध्यान भंग होता है। बस से उतरकर ,वो रेलगाड़ी में जाने के लिए ,रास्ता बदलता है ,तब शब्बो उस रास्ते को देखकर कहती है -ये रास्ता तो गुरदासपुर नहीं जाता ,हम लोग कहाँ जा रहे हैं ?करतार तो भूल ही गया था -उसकी वोट्टी तो पढ़ी -लिखी है ,कोई गंवार नहीं। अब आगे -
शब्बो बोली -करतार ! हम लोग कहाँ जा रहे हैं ?
गुरदासपुर ही तो जा रहे हैं ,उसने कुछ हिचकिचाते हुए कहा।
किन्तु ये रास्ता तो ,गुरदासपुर नहीं जाता और जहाँ तक मैं समझती हूँ ,ये रास्ता ' रेलवे स्टेशन 'के लिए जाता है।
अरे यार...... ये तो पहले से ही होशियार है ,मैं ये कैसे भूल गया ?इसे जब तक बताऊंगा नहीं ,ये आगे नहीं बढ़ेगी ,करतार मन ही मन बुदबुदाया।
क्या सोच रहे हो ?उसकी तरफ देखते हुए, शब्बो बोली।
कुछ नहीं ,मैं सोच रहा था -पापा जी से ,बाद में मिल लेते हैं ,अब जब हमें घूमने का मौका मिला ही है तो कहीं और भी घूम आते हैं।
कहीं और भी से क्या मतलब है तुम्हारा ?शब्बो ने उसे अपनी आँखों को बड़ा कर घूरते हुए बोली।
जैसे कोई पहाड़ी स्थल ,मेरे दोस्त ने बताया ,उसका दोस्त भी वहां रहता है ,उसी ने ये सुझाव भी दिया ,पकड़े जाने पर करतार ईमानदारी से सब बक गया।
शब्बो पहले तो शांत बैठी रही जैसे ,अपने ही मन को टटोल रही हो। करतार उसके जबाब के लिए खड़ा उसे देखता रहा। तब वो कुछ निर्णय लेकर उठी और बोली -पहले हम पापा जी से मिल लेते हैं ,उसके पश्चात तुम जहाँ कहोगे ,वहीं चलेंगे।
इससे करतार को कोई आपत्ति नहीं थी ,जैसा तुम चाहो कहकर ,सामान उठाकर , दूसरी बस में बैठ गया।
बस में बैठने के पश्चात , शब्बो का मन अपने गांव की गलियों में घूमने लगा ,मेरी तो सभी सहेलियों का विवाह हो गया ,अब किसी से भी, इतना मिलना नहीं होता । पहले कैसे हम सारी सहेलियाँ भुट्टे के खेतों में ,रखवाली के लिए जाती थीं और उस रखवाली का हमें पैसा मिलने के साथ -साथ भुट्टे भी मिलते थे। अभी भी गांव की गलियां ऐसी ही होंगी। कभी आई भी थी तो इस ओर ध्यान ही नहीं गया। अपनी परेशानियों में जो उलझी रहती थी। अब तो मम्मी जी भी नहीं ,अबकि बार तो कांता ताई से ,टोनी की मम्मी से ,उनका स्मरण होते ही उसके विचार ,परिवर्तित होने लगे।
तभी उसे ,उस समय का स्मरण होने लगा -जब वो अपने मम्मी जी और पापाजी के संग तारा को पकड़वाकर अपने गांव लौटी थी। ढोल बजाकर ,कैसे सभी लोगों ने हमारा स्वागत किया था ?सभी प्रशंसा कर रहे थे।पापा जी ने तो दोगुनी ख़ुशी में ,पूरे गांव में लड्डू बटवाये थे।
लगभग गांव के सभी लोग ,मुझे देखने आ रहे थे ,अनेक तरह से प्रश्न पूछ रहे थे। कैसे मैं नदी के बहाव के साथ बह गयी ?सिर में क्या लगा था ?जो बेहोश हो गयी। जब मुझे तैरना आता था तो मैंने अपने को बचाने का प्रयत्न क्यों नहीं किया ?बस में बैठे -बैठे ही ,वो कई वर्ष पीछे चली गयी थी।
एक साथ कई कड़ियाँ जुड़ती जा रही थीं ,तैरने का स्मरण होते ही ,उसे बलविंदर की याद सताने लगी। इतने लोगों की भीड़ में ,उसकी आँखे उसे खोज रही थीं किंतु शर्म लज्जा के कारण ,किसी से कुछ कह भी नहीं पा रही थी।
इस हँसी -ख़ुशी के वातावरण में भी ,उसका मन उदास होने लगा। उसे ये सब व्यर्थ लगने लगा ,जिस उत्साह से वो पहले जबाब दे रही थी ,एकाएक उसका उत्साह समाप्त सा हो गया। उसे तो अभी तक ये भी नहीं पता ,बलविंदर को किसी ने बचाया भी कि नहीं। और यदि किसी ने बचा भी लिया तो वो कहाँ है ?उसकी बेचैनी बढ़ने लगी ,तभी अपनी दोस्त को अपने समीप बुलाया और बोली -जिसके कारण ये सब हुआ ,वो अब कहाँ है ?
वो कुछ समझ नहीं पाई और बोली -किसके कारण और कौन ?
शब्बो बनावटी क्रोध दिखाते हुए ,बोली -जैसे तुझे कुछ पता ही नहीं ,अरे ,वो ही !बलविंदर टोनी का भाई।
ओह ! तू अभी तक उसे भूली नहीं ,उसके कारण इतने कष्ट सहे ,किन्तु उसे नहीं भूली ,तभी उसने मुँह लटका लिया जिसे देखकर ,शब्बो को कुछ अनिष्ट की आशंका हुई और घबराकर बोली -क्या हुआ ?बता न कुछ !
तू तो मिल गयी किन्तु..... किन्तु क्या ?शब्बो घबराकर बोली।
उसकी घबराहट देखकर ,वो हंसकर बोली -उसे तो तभी गांववालों ने बचा लिया था।
शब्बो ने ,अपनी दोस्त की बात सुनकर , जैसे राहत की साँस ली और सीने पर हाथ रखकर बोली -गुरूजी ,आपका लख -लख शुकराना।
तभी अपनी मम्मीजी को आवाज लगाकर बोली -मम्मीजी ,अब मैं बहुत थक चुकी हूँ ,मुझे अपने घर जाना है ,घर जाने का तो सिर्फ बहाना था ,वो तो अपने बल्लू से मिलना चाहती थी ,उसे मन ही मन गुस्सा भी था कि पूरा गांव उसे देखने ,उससे मिलने आया किन्तु जिसे सबसे पहले आना चाहिए था ,जिसके कारण मैं इतनी मुसीबतों से बचकर आई हूँ ,वो ही नहीं आया।