अब तो लगता है - जैसे ,शब्बो का कोई भी कार्य करतार सिंह के बिना नहीं हो पाता है। करतार दो दिन के लिए अपने घर क्या गया ?शब्बो के फोन ,थाने में आ रहे थे ,जब उसे पता चला ,कि इंस्पेक्टर साहब तो अपने थाने में हैं ही नहीं ,तब उसे भी अपनी गलती का एहसास हुआ।वो सोच रही थी -वो कुछ ज्यादा ही ,करतार सिंह से उम्मीदें लगाने लगी। उधर करतार भी ,न चाहते हुए भी ,शब्बो की याद आ ही जाती। माँ के प्रश्नों से बचने के लिए ,करतार बाहर आ गया ,निकला तो...... बेमक़सद ही था और अब अपने दोस्त के पास जा रहा था।
और भई करतारे !क्या चल रहा है ?जोगेंद्र ने पूछा।
कुछ नहीं , बस दो दिन की छुट्टी आया था ,सोचा तुझसे भी मिलता चलूँ।
अच्छा किया ,अपने दोस्त की याद तो आई। जिंदगी में कोई लड़की -वड़की आई कि नहीं या चाचीजी ही देख रही हैं।
लड़की का नाम आते ही ,करतारे का रंग सुर्ख़ हो गया और उसे शब्बो का स्मरण हो आया। वैसे उसने न में गर्दन हिला दी।
तू कह तो कुछ और रहा है किन्तु तेरी हरकतें कुछ और कह रहीं हैं। कोई लड़की तो है ,जो हमारे करतारे का दिल चुरा रही है या चुरा लिया।
नहीं ,अभी करतारे कुछ कहता ,तभी जोगेंद्र की पत्नी उसके डेढ़ बरस के बच्चे को उसके पास छोड़ गयी।
'तू बाप भी बन गया 'करतारे ने चौंकते हुए ,जोगेंद्र से पूछा।
होर कि ,तुझे तो ब्याह नहीं करणा , तेरे ब्याह वास्ते रुक तो नहीं सकता न कहकर स्वयं ही हंसने लगा। जब भी तू ब्याह करेगा ,तेरे नाल ,मेरा काका ही घोड़ी पर बैठेगा। चलो ! ये हंसी - मज़ाक बहुत हुआ ,अब तू गंभीर हो जा ! क्या तुझे कोई लड़की भी नहीं मिली ?या मेरे काके के साथ ही घोड़ी पर बैठेगा ,लोग कहेंगे ! भतीजे के ब्याह के समय पर चाचा ब्याह करने चला है। यार...... तू ये बता ,सच्ची -सच्ची बताइयो ,तू किसी की प्रतीक्षा तो नहीं कर रहा। जो तेरे मन में हो और तुझे मिली न हो ,कहते हुए ,उसने जबाब की प्रतीक्षा में ,करतारे के चेहरे पर आँखें गडा दीं।
उसकी बात सुनकर करतार ,का रंग सुर्ख हो गया जैसे ,किसी ने उसके मन की बात पकड़ ली हो। फिर भी अपने मन को झुठलाते हुए बोला -नहीं ,ऐसी तो कोई बात नहीं है।
नहीं है तो ,लाल क्यों हुए जा रहे हो ?अपने दोस्त से तो बता ही सकते हो। मैं किसी से नहीं कहूंगा कहते हुए जोगेंद्र ने उसकी तरफ चाय खिसकाते हुए ,समोसे की प्लेट उसके हाथ में पकड़ा दी।
करतार का दिल तो चाह रहा था ,कि किसी से अपने दिल का हाल कहे ,जोगेंद्र के इस तरह इसरार करने पर करतारे ने अपने मन की बात ,जोगेंद्र से कही।
जोगेंद्र सम्पूर्ण बातों को सुनकर ,बोला -क्या वो भी जानती है ? तुझे चाहती है।
मुझे नहीं मालूम ,न ही ,मैंने कभी इस बात का जिक्र किसी से किया ,मुझे नहीं मालूम कि वो ये बात जानती भी है या नहीं। जानेगी भी कैसे ? मैंने उससे कभी अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं की।
जोगेंद्र बोला -तू तो इश्क को समझा ही नहीं ,भावनाएं महसूस की जाती हैं ,बताने से ही नहीं ,हाव -भाव से ही महसूस हो जाती हैं ,ये बात तुम नहीं समझोगे और ये महिलायें ! इनकी छटी इंद्री बहुत तेज होती है किसी की भी सही- गलत ,नजर को भी पहचान जाती हैं। यदि तेरा प्यार सच्चा है ,तो कहीं न कहीं उसने महसूस तो किया ही होगा। वो भी तेरे प्यार में तड़प रही होगी किन्तु अभी वो समझ नहीं पाई है किन्तु शुरुआत तो तुझे ही करनी होगी।
अगले दिन ,करतार सिंह अपने थाने में हाज़िरी बजाता है तभी उसे पता चलता है ,कि शब्बो ने कई बार फोन किया था। बात सुनकर ,वो मन ही मन प्रसन्न हुआ ,उसे लगा दोनों तरफ ही बराबर आग लगी है ,वो भी मुझे याद करती है। अपने कुछ जरूरी कार्य निपटाकर ,शब्बो के घर चलने का सोचता है किन्तु उसके पास जाने का कोई तो बहाना होना चाहिए ,सोचकर अपनी मेज की दराज़ खोलता है और उसमें से शब्बो के भिजवाए फोटो का लिफ़ाफा उठाता है और चल देता है। वो मन ही मन सोच रहा था ,कि उसे शब्बो से क्या कहना है ?
शब्बो के घर के सामने पहुंचकर जब, करतार ने अपनी दुपहिया रोकी ,तब उसकी आवाज सुनते ही ,शब्बो के दिल की धड़कने तेज हो गयीं और वो भागकर अंदर चली गयी। वो स्वयं ही नहीं समझ पाई -कि उसने ऐसा क्यों किया ?तब उसने अपने कमरे में बैठकर सोचा -कैसे उसे इंस्पेक्टर साहब का सामना करना है ?उसने अपनी धड़कने स्थिर की और वो धीरे से बाहर आई। करतार उसके पापा से बातचीत कर रहा था ,उनके सामने कुछ नहीं बोला। अब उनके सामने क्या कहता ?बोला -ये कुछ फोटो हैं ,बैसाखी के कार्यक्रम के ,उन्हें ही वापस करने आया था।
जो शब्बो उससे बिंदास बातें करती थी ,आज नजरें चुराकर बोली -जी..... उसने करतार के हाथ से लिफाफा लिया और अंदर आ गयी ,कुछ समय पश्चात ,चाय लेकर आ गयी। चाय पीते हुए ,वो विद्यालय के विषय में और शब्बो की शिक्षा के विषय में बातें कर रहे थे। कुछ देर के लिए, शब्बो के पापा बाहर गए ,शायद कोई बाहर आया था।
तभी मौका देखकर ,करतार बोला -माँ ने भी फोटो देखीं ,अच्छी बता रही थीं। करतार शब्बो के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए बोला। शब्बो की नजरें झुकी हुई थीं ,इससे पहले कि वो कुछ और कह पाता या शब्बो का कुछ जबाब आता उससे पहले ही ,उसने अपने पापा को आते देख लिया और वो वहां से चाय के कप और ट्रे उठाकर ले गयी।
प्रिय पाठकों !
मेरी कहानी आज इस पड़ाव पर पहुंच चुकी है जो मेने ,सोचा भी नहीं था कि इसके इतने भाग हो जायेंगे ,आप लोग इसी तरह अपना सहयोग बनाये रखियेगा। अपना प्रोत्साहन देते रहिएगा और समीक्षा में अवश्य बताइये कि कहानी आपको कैसी लग रही है ?धन्यवाद !