शब्बो के पापा ने ,उस मौहल्ले वाली की बातें सुन ली थीं जो शब्बो को दुनिया समाज का वास्ता देकर समझा रही थी। वो भी समझते थे ,दुनिया कितनी कठोर है ?इस तरह जवान और सुंदर महिला का अकेले इस समाज में जीना कितना संघर्षमय हो सकता है ? अभी तो मैं इसकी छत बना हुआ हूँ किन्तु मेरे न रहने पर ,बिन सहारे कैसे इतना लम्बा जीवन व्यतीत करेगी ? फिर से किसी गलत हाथों में ,पड़ गयी या फिर किसी गलत व्यक्ति के बहकावे में आ गयी तो...... माता -पिता ही न जब तक, जिन्दा रहते हैं ,उन्हें अपने बच्चे चिंता सताती रहती है। बच्चा चाहे कितना भी समझदार हो जाये ?
माता -पिता को तो सीधा -सच्चा ही लगता है। औलाद को उड़ने देना चाहते हैं किन्तु किसी भी प्रकार की चोट के भय से चिंतित रहते हैं। जबकि वे ये भी समझते हैं -कि जो बच्चे की किस्मत में लिखा है ,उसे हम नहीं बदल सकते ,फिर भी उनकी सुरक्षा के लिए प्रयासरत रहते हैं।
शब्बो के पापा भी तो यही कर रहे थे ,वे चाहते हैं ,उनके जीते जी उनकी लाड़ली बेटी सुरक्षित हाथों में हो ,उसका भविष्य सुरक्षित करना चाहते थे। इंस्पेक्टर साहब तो अब चलने -फिरने भी लगे और यदा कदा अब तो शब्बो के घर भी आने लगे किन्तु शब्बो के पापा को उस महिला के शब्द भी स्मरण थे। एक दिन बातों ही बातों में करतार से बोले -अब ये इस तरह कब तक रहेगी ?इसके लिए कोई लड़का तो ढूँढना ही होगा।
करतार ने पूछा -अब ये अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए तैयार है।
ये तो मना ही करेगी क्योंकि इतने कड़वे अनुभवों के साथ वो कैसे किसी पर इतनी शीघ्रता से विश्वास कर सकती है।
करतार का दिल बार -बार कह रहा था -''यही मौका है ,शब्बो का हाथ माँगने का किन्तु उसे थोड़ी घबराहट भी थी , कहीं शब्बो ने इंकार कर दिया तो क्या करेगा ? पता नहीं वो मुझे चाहती भी है या फिर इंसानियत के नाते ही ,उसने मेरी इतनी परवाह की। करतार उसे आते -जाते कार्य करते देखता किन्तु कुछ कह नहीं पाता।
एक दिन ,शब्बो ने मदनलाल को फोन कर घर बुलाया और कहा -साहब के लिए ,चिकन बनाया है ,ले जाना।
मदनलाल उनके घर गया ,उसे देखकर शब्बो बोली -आप बैठिये !मैं अभी लेकर आती हूँ।
शब्बो के पापा बाहर से आये थे ,बोले मदनलाल जी यहाँ कैसे ?वो शब्बो दीदी ने बुलाया था। साहब के लिए चिकन बनाया था ,वही लेने आया था। साहब का विवाह हो गया होता ,तो आज इस तरह आपके द्वार पर मैं बैठा न होता। बाहर का चिकन ,उन्हें भाता नहीं।
तब तुम्हारे साहब ,विवाह क्यों नहीं कर लेते ?
उनकी माता जी ने तो बहुत लड़कियाँ दिखाईं किन्तु उन्हें कोई पसंद आती ही नहीं ,पता नहीं ,किसके इंतज़ार में आज तक कुँवारे बैठे हैं ?तब मदनलाल ने सोचा ,''जब इतना बोल दिया तो थोड़ा और सही ,सोचकर बोला -कोई शबनम बिटिया जैसी उनका ख़्याल रखने वाली मिल जाये तो उनकी माता जी की भी समस्या दूर हो।
शब्बो के पापा शांत बैठे ,मदनलाल जी की बातें सुन रहे थे। मदनलाल ने उन्हें इस तरह शांत देखा तब साहस करके बोला -यदि आप बुरा न माने तो एक बात कहूं ,उन्होंने मदनलाल की तरफ देखा ,अपनी शब्बो बिटिया की भी अभी पूरी ज़िंदगी पड़ी है ,इसके विषय में कुछ सोचा है।
सोच तो रहा हूँ ,किन्तु अभी कोई ऐसा समझदार लड़का दिखाई नहीं दिया ,जो इसको समझ सके ,इसके जख्मों को भर सके।
लो कर लो बात ,''बगल में छोरा गांव में ढिंढोरा ''अपने इंस्पेक्टर साहब हैं न !
पहले मेरी पूरी बात तो सुन लीजिये ,ऐसा लड़का जो हमारा व्यापार और शब्बो का खोला विद्यालय भी संभाल सके।
उनकी बात सुनकर ,मदनलाल तो सोच में पड़ गया ,साहब तो अपनी नौकरी करते हैं ,वो इस तरह अपना काम तो नहीं छोड़ेंगे। इस तरह तो आपको एक घर जमाई चाहिए। तब तक शब्बो मदनलाल के लिए भी खाना ले आई और बोली -आप यहीं खा लीजिये ,साहब के लिए ले जाइएगा। मदनलाल थोड़ी ना नुकूर के पश्चात खाने बैठ गया।
थाने पहुंचकर ,करतार से बोला -दीदी ने आपके लिए खाना पहुंचाया है।
करतार ने मदनलाल को घूरते हुए ,पूछा -ये सब लाने के लिए, तुमसे किसने बोला ?
दीदी ने ही फोन करके बुलाया था।
मेरे लिए खाना लाये हो मुझसे भी तो पूछना चाहिए था- कि मुझे मंगवाना है या नहीं।
अब उन्होंने इतने प्यार से भेज ही दिया है ,तो खा लीजिये। बेचारी का दिल टूट जायेगा।
अब ऐसा करिये ,आप लाएं हैं तो आप ही खा लीजिये। यदि उसके लिए दिल की इतनी चिंता है।
नहीं ,ये खाना आपके लिए है ,मैं आपका खाना नहीं खा सकता।
क्यों ?मैं कह रहा हूँ ,न मेरा खाना है ,अब ये खाना मैं किसी को भी दूँ करतार ने कहा।
अब मदनलाल कैसे बताये ?कि वो तो वहीं बैठकर अपनी दावत उड़ाकर आ रहा है। अब उसके पेट में जगह ही नहीं बची हैं। उनको इस तरह जिरह करते देख तिवारी भी तब तक आ गया था ,बोला -साहब क्या हुआ ?
अरे होना क्या है ?ये मेरे लिए खाना लाये हैं और मैं कह रहा हूँ ,इसे आप खा लीजिये तो इंकार कर रहे हैं। तब मदनलाल ने तिवारी की तरफ इशारा किया कि पेट भरा हुआ है।
तिवारी ने मदनलाल की कारस्तानी छिपाइ नही और बोला - जब इनका पेट पहले से ही भरा है ,तो और कहाँ से खाएंगे ?ये जहाँ से खाना लाये हैं ,वहीं से दावत उड़ाकर आये हैं। अपनी पोल खुलती देख...... मदनलाल बाहर की तरफ भागा और बोला -मैं पानी लाता हूँ।
मदनलाल को इस तरह सच्चाई से भागते देख कर ,दोनों मुस्कुराते हैं।
तिवारी बोला ,जिसका पेट पहले से ही भरा हो ,वो कैसे कहता ?कि मैं खा लूंगा किन्तु साहब ये खाना आपके लिए इतने प्यार से भेजा है ,खा लीजिये ,कहकर तिवारी टिफिन खोलकर उसके सामने रख देता है। दीदी भी न........ आपकी कितनी परवाह करती हैं ?