करतार सिंह ,अपनी पत्नी शब्बो को प्रसन्न रखने का प्रयत्न करता है, किन्तु शब्बो की उदासी ही, उसके दुःख का कारण बन जाती है। तब उसका दोस्त हरमिंदर उसे ,शब्बो को बाहर घुमाने की सलाह देता है। इसी योजना के तहत ,वो अपने दफ्तर से छुट्टी ले लेता है और अपने घर में शब्बो को ,उसके मायके घुमा लाने की बात करता है ,किन्तु उसकी बेबे कहीं भी जाने का विरोध करती है ,तब वो किसी भी तरह अपनी बेबे को समझा -बुझाकर मना ही लेता है। माँ -बेटों की बात शब्बो भी सुन लेती है और कहीं भी जाने से इंकार करती है किन्तु करतारे के लिए शीघ्र ही मान भी जाती है ,अब आगे -
शब्बो तू कि कर रही है ,जल्दी से तैयार हो जा ,हमारी बस छुट जानी है ,आई जी...... कहकर अपना बटुआ संभाला और बाहर निकली ,तभी उसे बेबे दिखी ,वो उनके पास गयी और बोली -बेबे ,मैंने दोपहर तक की रोटियां बना दी हैं ,दूध भी हारे में रख दिया है। होर कोई काम हो ,तो तुस्सी बता सकते हो ,कहते हुए- पैर छूने के लिए झुकी। बेबे बोली -तेरे बाउजी की और अपनी रोटियाँ ,मैं बना नी सगदी ,कल कौन बनायेगा ?कहकर हँस दीं। चल ,अब अपना ध्यान रखियो और करतारे का भी , होर जल्दी आ जाइयो। आज पहली बार बेबे ,इस अंदाज में बोली। मम्मी जी तो नहीं ,किन्तु आज उसे उनमें अपनी मम्मी ही नज़र आई और वो झट से बेबे के गले लिपट गयी। आज उसे लग रहा था -जैसे बहुत दिनों बाद जा रही है किन्तु उसका मन नहीं कर रहा। वो करतारे के पीछे -पीछे चल दी। इतने दिनों बाद घर से बाहर निकली ,आज उस गाँव को पहली बार नजरभर कर देख रही थी। आज इतने दिनों बाद उसे उस घर से लगाव महसूस हो रहा था।
जब पहली बार वो आई थी तो, शाम का धुंधलका था। ब्याह में कोई ज़्यादा लोग नहीं , शब्बो के घरवाले और करतारे के घरवाले ,गुरुद्वारे में ब्याह हो गया। बेबे तो अपने बेटे का ब्याह धूमधाम से करना चाहती थी किन्तु शब्बो के घरवालों की मनःस्थिति ठीक नहीं थी ,उनके लिए तो ये ही काफी था कि करतार सिंह उससे ब्याह करने के लिए राजी हो गया।
करतार सिंह ने पहली बार ,शब्बो को तारा के साथ उसकी गाड़ी में देखा था ,वो तो पहली ही नज़र में उस पर मर मिटा था।जब उसने अपनी बहादुरी से तारा को पकड़वाया। जब उनकी गाड़ी पुलिस वालों द्वारा आगे भेज दी गयी। तब भी दो पुलिस वाले उनके पीछे थे ,उन्हें शक़ था -हो न हो ,ये वो ही गाड़ी है किन्तु बिना सबूत के कुछ कह भी तो नहीं सकते थे इसीलिए गुप्त रूप से ,साधारण वेशभूषा में उनके पीछे लग गए। जब ढ़ाबे पर तारा की गाड़ी रुकी ,तब वो तीसरा व्यक्ति भी चढ़ गया। शब्बो हिम्मत करके बोली -मुझे भूख लगी है ,कुछ खिला दो। तारा को तो जाने की जल्दी थी ,बोली -नहीं ,आगे खा लेंगे।
क्या तुम्हें ,भूख नहीं लगती ?शब्बो ने पूछा। नहीं ,तारा ने टका सा जबाब दिया।
मुझे तो लगती है ,मैं तो खाऊँगी ,उसने तारा को पिघलते न देखकर ,उसे हाथ के इशारे से कुछ कहा। उस इशारे को समझ तारा बोली - इसे ये सब यहीं होगा कहकर ,बिल्ला से बोली -गाड़ी रोक दे ,इसे जाना भी है यहीं कुछ खा लेंगे। तारा के कहने पर बिल्ला ने गाड़ी ढ़ाबे की ओर मोड़ दी।वो पाँचों गाड़ी से उतरे ,तारा ने वहीं कहीं ''जनाना शौचालय ''देखकर शब्बो को उसमें घुसाया और स्वयं बाहर ही खड़ी रही। शेरू ने चाय नाश्ते का आर्डर दिया और तीनों एक जगह बैठकर ,नाश्ते और तारा -शब्बो की प्रतीक्षा करने लगे। शब्बो अंदर गयी किन्तु वहां तो बहुत ही बदबू और गंदा था। वो तो यहां किसी तरह इन लोगों को झाँसे में लाकर भागने के लिए आयी थी किन्तु वहां उसे कोई भी ऐसी जगह नहीं मिल रही कि वो भाग सके। बाहर तारा देवी खड़ी है ,क्या करे ?उस बदबू में खड़ा होना भी मुश्किल हो रहा था। कुछ देर बाद वो बाहर आ गयी। तारा देवी बोली -अब मैं जा रही हूँ ,तू यहीं रहना , कहकर वो अंदर गयी।
बाहर आकर शब्बो इधर -उधर देखने लगी। चारों और विस्तृत मैदान फैला था ,एक तरफ कुछ कुर्सियां और मेज लगी थीं। एक तरफ एक गलियारा था उसके किनारे पर कुछ कमरे से बने दिख रहे थे किन्तु वहां क्या था ?वो जानना चाहती थी वो आगे बढ़कर उस गलियारे में आ गयी ,वहां से एक व्यक्ति बाहर आया और बोला -जी कहिये ! शब्बो ने न में गर्दन हिलाई किन्तु वो उधर जाकर बचने का साधन ढूँढ रही थी ,तभी दो व्यक्ति उस ओर बढ़े ,तभी तारा बाहर आ गयी और बोली -ऐ लड़की !वहां क्यों चली गयी ?नहीं ऐसे ही खड़ी थी। शब्बो ने अपनी सफाई पेश की। आ चल !कहकर वो हाथ धोने लगी ,जैसे ही वो पीछे मुड़ी और देखा तो ,वहाँ शब्बो नहीं थी। उसे कुछ घबराहट हुई ,और वो तेजी से ,ये सोचकर , उन तीनों की तरफ बढ़ी ,शायद उनके पास चली गयी हो। शब्बो को वहां न पाकर ,वो बौखला उठी और बोली -वो लड़की कहाँ है ?अभी वो लोग आराम से बैठे ,बातचीत कर रहे थे। तारा को इस तरह ,देखकर हड़बड़ा गए ,बोले -तुम दोनों साथ ही तो गयीं थीं ,हमें क्या पता ?