अभी तक आपने पढ़ा -समीर और करन बलविंदर के गांव जाकर उसके विषय में जानकारी जुटाते हैं ,उनका जाना ,बलविंदर से छिपता नहीं है ,उसे भी पता चल ही जाता है कि कोई उसके विषय में पूछताछ कर रहा था। अब इस बात की जानकारी, चेतना को भी हो जाती है ,टोनी भी ,कुछ समाचार लाकर ,उसे देता है ,जिसके कारण ,वो इस नतीज़े पर पहुँचती है , कि ये काम शब्बो का ही हो सकता है , अब आगे -
चेतना टोनी की बातें सुनकर कहती है -मुझे तो लगता है ,इसी मुंडे से शब्बो का टाँका भिड़ा है।
नहीं मम्मीजी !टोनी बोला -यदि ऐसा कुछ होता तो वो बलविंदर भाई से ,अंगूठी क्यों पहनती ?उस रस्म को करने से मना नहीं कर देती।
कुछ तो झोल है, उससे क्यों मिलती है ?ये भी हो सकता है ,इसने ही बलविंदर के विषय में जानकारी निकालनी चाही हो ,जिससे इसको ,उससे ब्याह न करने का कोई कारण मिल जाये ,और उसके लिए इसने इस मुंडे का सहारा लिया हो। बहुत सोचने के पश्चात ,वो टोनी से कहती है -तू ऐसा कर ,उस मुंडे की एक सोहणी सी तस्वीर निकाल लाइयो।
अब मम्मी जी , उसकी तस्वीर का क्या करना है ?क्या शब्बो को उसे दिखाकर उससे पूछेंगी- कि बता ये कौन है ?ये तेरा प्रेमी है या दोस्त !!!!पूछेंगी भी ,तो वो ऐसे ही मानने वाली भी नहीं।
ओय ,तू ला तो सही, फिर देख अपनी मम्मीजी का कमाल ,सारी हकीक़त सामने आ जानी है।उसके साथ जो कोई भी मुंडा या कुड़ी हो उसकी भी तस्वीर ले आना।
अब ये मम्मीजी ,उस मुंडे की तस्वीरों का क्या करेंगी ? सुरेंद्र झुंझलाकर बोला।
तू ला तो सही !!! तुझे सब पता चल जायेगा।
चेतना आज शब्बो के घर जाती है ,और पूछती है -और जी ,ब्याह की तैयारियाँ कैसी चल रही हैं ?
इससे पहले पम्मी कुछ जबाब देती ,शब्बो बोली -अब चाची जी ,सब काम इतनी जल्दी हो रहे हैं ,तो ब्याह की तैयारियां भी तो ,तेजी से ही चल रही होंगी ,उसके व्यंग्य को समझते हुए ,चेतना वहीं कुर्सी खिसका कर बैठ गयी।
और बोली -मैंने सोचा ,ब्याह वाला घर है ,एक बार जाकर ख़ैरियत पूछ लूँ ,मेरा या टोनी का कोई काम हो तो बताना !!! किसी भी सहायता की आवश्यकता हो तो ,हम आधी रात को भी सेवा के लिए हाज़िर हो जायेंगे। शब्बो अपनी ही बच्ची है,दूर थोड़े ही जा रही है ,मेरे मायके ही तो जा रही है। जैसे मैं ,उधर से इधर आके रहने लग गयी ,उसी तरह शब्बो इधर से उधर जाके रहने लग जाएगी। ज्यादा दूर थोड़े ही है ,वो भी तो अपना ही घर है।
उसकी बातों से ,पम्मी भावुक हो उठी और बोली -कह तो तुस्सी ठीक ही रहे हो किन्तु अपनी बच्ची कुछ देर के लिए भी ,आँखों से ओझल हो जाती है ,तो कलेजा मुँह को आने लगता है और अब तो,ये घर ही छोड़कर, दूसरे घर रहने लग जाएगी ,सोचकर ही दिल हिल जाता है।
अब इसके बग़ैर रहना तो पड़ेगा ही ,साथ कोई नहीं जाता जी ,जब ये ,कुछ दिनों के लिए ,ग़ायब ही हो गयी थी तब भी तो इसके बग़ैर ,रहना पड़ा था न ,इसी तरह अब भी सब्र कर लेना।
उसकी बात सुनकर पम्मी चेतना का मुँह देखने लगी। चेतना को लगा -शायद मैंने कुछ ग़लत कह दिया ,क्या ?अपनी बात को संभालते हुए ,बोली -मेरे कहने का मतलब है ,जब ये खो गयी थी ,तब भी हमने सब्र किया कि नहीं ,किन्तु अब तो बस..... इस घर से उस घर ही तो जा रही है। जब मन में आये ,तब मिल आना और ये भी मिलने आ जाया करेगी।
शब्बो बोली -और वहां जाना ही न पड़े ,तो....
क्या मतलब ?शब्बो के वाक्य ,उसे कुछ रहस्यमयी से लगते ,कभी उसे उसके शब्द ,ज़हर बुझे तीर की तरह लगते ,क्योंकि चेतना के ,स्वयं के मन में भी तो चोर था। चोरी पकड़े जाने के भय से , शब्बो जो भी कहती ,उसका कुछ और ही अर्थ ,चेतना निकाल लेती। वैसे तो वो उसका ब्याह अपने भांजे से करा रही थी किन्तु अंदर ही अंदर जैसे ,उससे दुश्मनी निभा रही थी।
अपनी बात को ,अपने कर्मो को श्रेष्ठ बताते हुए बोली -वैसे तो मैं ,कभी अपने विषय में कुछ कहती नहीं ,किन्तु उस दिन ,चम्पा की माँ कह रही थी -ये भी कम बड़ा काम नहीं ,कि जो लड़की कई दिनों तक बार गुंडों में रही ,उसी लड़की से ,अपने भांजे का विवाह करा रही हो। वो तो उन पर अपना एहसान थोपना चाहती थी।
किंतु उसके इतना कहते ही ,शब्बो के तन -बदन में आग लग गयी और बोली - मैंने कोई गुनाह थोड़े ही कर दिया ,ये तो एक हादसा था ,और उनका हश्र भी देख लो ,आज जेल की चक्कियाँ पीस रहे होंगे। तभी जेल की चक्कियाँ के नाम से ही चेतना को अपनी और बलविंदर की बातें स्मरण हो आती हैं , शब्बो को ,बलविंदर के पहले ब्याह की ,याद आ जाती है और चेतना के नजदीक जाकर बोली -जो भी झूठ ,फ़रेब और चालाकी दिखायेगा ,उसे ये शब्बो ,जेल की चक्कियाँ पिसवायेगी। चेतना को लगा -जैसे ये, मुझे ही , अपना निशाना बना रही हो। पहले तो ,वो थोड़ा घबराई ,फिर संभलकर बोली -और नहीं तो क्या ?हमारी शब्बो है ही इतनी बहादुर ,यही बात मैंने चम्पा की माँ से भी कही।
कुछ देर शांत बैठी रही ,तब एकाएक बोली -शब्बो ! मैं ये क्या सुन रही हूँ ?उस समय उसकी मम्मी और पापा जी भी वहीं थे।
क्या हुआ ?बहनजी ! चेतना ने कुछ इस तरीके से कहा कि दोनों घबरा गए।
ये कॉलिज पढ़ने जाती है ,या मटरगस्ती करने , अब मैं कुछ कहूँगी तो !!!!! बुरा लगेगा। मुझे तो टोनी ने बताया - वो किसी काम से ,उधर गया था ,सोचा -शब्बो से भी मिलता चलूँ , वहां उसने वहां क्या देखा ? चेतना ने अपनी आँखें चौड़ी करके कहा।
क्या देखा ????सबकी निग़ाहें ,उनके चेहरे पर अटक गयीं। अंदर ही अंदर ,शब्बो भी घबरा गयी ,कहीं समीर.... यही सोचते ही ,उसके मुँह से निकला -क्या देखा ?
यही कि ,ये किसी लड़के के साथ ,कहीं अकेले में बैठी थी।
शब्बो के मम्मी -पापा ने तरफ ,प्रश्नात्मक नजरों से उसकी तरफ देखा।शब्बो कुछ कहती ,उससे पहले ही ..
अब भाईसाहब !आप ही बताओ ! जिस लड़की का रिश्ता तय हो गया , अब उसका किसी अनजान लड़के से इस तरह कालिज में मिलना ,वो भी अकेले में , ये भला कहाँ तक सही है ? जब तो हमने कह दिया कि ये बच्ची थी किन्तु अब तो बच्ची नहीं रही। किस -किसका मुँह बंद करेंगे ?अपनी इस लाड़ली को जरा समझाइये। ये भले घर की लड़कियों के तौर -तरीके नहीं ,हमारा बलविंदर तो अब चाहता ही नहीं ,कि ये अब आगे पढ़े ,इस तरह लड़कों से मिलना ,बातें करना ,क्या अच्छा लगता है ?
चेतना तो चली गयी, किन्तु घर का वातावरण तनावपूर्ण कर गयी। उसने अचानक बात इस तरह बात की कि घर का माहौल ही ,बदलकर रख दिया। शब्बो तो ,सोच रही थी -समीर की सहायता से ,वो इन सबकी पोल खोलकर रख देगी इसीलिए कुछ सबूत के लिए , वो रुकी थी। चेतना ने यहाँ आकर उसका पासा ही पलटकर रख दिया। मन ही मन बुदबुदाई -''बड़ी ही ,चालाक औरत है।''क्या मालूम ?वो यहाँ इसीलिए ही आई हो और बातों को जलेबी की तरह ,घुमा -फ़िराकर असली मुद्दे पर आ गयी।तभी उसका माथा ठनका -कहीं टोनी ,अचानक न जाकर ,मेरी जासूसी करने ही तो नहीं गया। इस चाची का दिमाग ,कहीं न कहीं ,कोई न कोई खिचड़ी तो पका रहा है।