अभी तक आपने पढ़ा ,शब्बो और शिल्पा ,समीर का पीछा करती हैं ,ये पता लगाने के लिए -कि इसकी उदासी का क्या कारण है ?और वो उसका पीछा करते -करते ,किसी हॉस्पिटल में पहुंच जाती हैं। वहां जाकर उन्हें पता चलता है कि वास्तव में ही ,उसके पापा बीमार हैं ,उनका दिल का ऑपरेशन हुआ है और वो वहां उनसे मिलने आता है। ये जानकारी वो उस कमरे में जाती नर्स से लेती हैं ,जब वो बताती है और समीर को उसके पापा के नजदीक बैठे देखकर ,उससे बताती है कि दो लड़कियाँ तुम्हारे पापा के विषय में पूछ रही थीं। समीर कुछ समझ नहीं पाता और उनसे मिलने बाहर आता है तब तक वो दोनों बाहर आ जाती हैं किन्तु समीर उन्हें दूर से ही पहचान लेता है और कॉलिज में आकर ,उन दोनो से कहता भी है कि तुम मेरी जासूसी क्यों कर रही थीं ?तब बात को बदलते हुए ,शिल्पा कहती है -हम लोग तो किसी कार्य से गए थे वहां तुम दिख गए तो पूछ लिया। अब आगे -
शिल्पा की बात सुनकर ,समीर को लगता है ,शायद ये सही कह रही है। तब शब्बो उससे पूछती है -उन्हें क्या हुआ था ?
वही 'दिल की बीमारी 'समीर इससे आगे कुछ कहता ,शब्बो बोली -हाय !!!ये दिल भी न ,ये दिल ही तो है जो ताउम्र आदमी को रुलाता रहता है।
तुम चुप रहो...... यहां उनकी जान पर बीती है और तुम...... क्या समझती हो अपने को ?वो लगभग चिल्लाते हुए बोला।
शब्बो एकदम शांत हो गयी और बोली -तुम्हें मेरी बात बुरी लगी हो तो ,मैं क्षमा चाहूंगी। किन्तु मैं तो तम्हारी परेशानी को देखकर ,माहौल को हल्का बनाना चाहती थी ,इतने दिनों से तुम परेशान हो ,अब तो तुम्हारे पापा ठीक हैं ,अब तुम भी थोड़ा 'चिल 'करो।
नहीं मुझे ,तुम्हारी ऐसी किसी बात में कोई दिलचस्पी नहीं ,अपने काम से काम रखो ,मुझे किसी की भी दखलंदाजी पसंद नहीं ,हम जैसे भी हैं ,ठीक हैं ,समीर ने उसे तीख़ा सा जबाब दिया।
उसकी बात सुनकर शब्बो शिल्पा का हाथ पकड़कर चली गयी और बड़बड़ाती रही -अपने को क्या समझता है ?उसे किसी की आवश्यकता नहीं ,तो हमें भी नहीं। हमें क्या आवश्यकता पड़ी है ?कोई जिए या मरे।
वे दोनों ,समीर को कई दिनों तक नहीं दिखीं ,जब उसका क्रोध शांत हुआ ,तब उसे एहसास हुआ ,उसने कुछ ज्यादा ही कह दिया। आज उसके पापा हॉस्पिटल से घर वापस आ रहे हैं ,तब उन्होंने समीर से पूछा -समीर..... वो लड़की कौन है ?
समीर के' कान एकाएक' खड़े हो गए ,और बोला -कौन लड़की ?
क्या तुम किसी लड़की को नहीं जानते ?उन्होंने हैरानी से पूछा।
नहीं ,कौन थी वो ?
अब मुझे क्या मालूम ?वो तो मेरे से बातें भी करती थी ,मेरी पसंद का खाना भी लाती थी ,अरे !भई वो तो मुझे इतने चुटकुले सुनाती और योग की बातें करती ,मेरा मन प्रसन्न हो जाता। मैंने एक दिन उससे नाम भी पूछा -तो बोली -नाम में क्या रखा है ?बाबू मोशाय !हमारा काम देखिए।'' ऐसी बहु मिल जाये तो ,तेरी माँ के कारण जो घर नर्क बना हुआ है ,स्वर्ग बन जाये। वो बोले जा रहे थे और समीर सोचे जा रहा था,ऐसा कौन कर सकती है ?
अब तो उसके पापा घर आ गए,समीर बोला -मम्मा !अब पापा का कुछ ज्यादा ध्यान रखना ,अभी उन्हें कमजोरी है।'
समीर बोला -अब कुछ दिनोँ की छुट्टी ले लीजिये ,उनको आपके सपोर्ट की भी आवश्यकता है।
उनका क्या ध्यान रखना ,अब क्या मैं कॉलिज भी न जाऊँ ? मैं कॉलिज जाती हूँ तभी दो पैसे घर में आते हैं ,उन्हीं पैसों से ही तेरे पापा का इलाज़ हुआ ,तूने तो छुट्टी ली थी न ,साधना जी ने कहा।
हम सभी जानते हैं ,आप कमाती हैं किन्तु इस बात का बार -बार एहसास कराना ,जरूरी है। माना कि, पापा का व्यापार ठप्प हो गया, इसमें वो क्या कर सकते हैं ?जब तक व्यापार चल रहा था ,उन्होंने आपसे कभी पैसे नहीं लिए ,तो अब आप उनके साथ खड़ी नहीं होंगी तो और कौन होगा ?इसीलिए तो पति -पत्नि दोनों कमाते हैं। मौक़ा पड़ने पर ,एक -दूसरे के साथ खड़े रहें।
अब तुम मुझे सिखाओगे ,मुझे क्या करना चाहिए क्या नहीं ? मैं तुम्हारी माँ हूँ ! तुम जैसे छात्रों को ही शिक्षित करती हूँ और तुम मुझे यहाँ ज्ञान दे रहे हो।
ये कोई किताबी ज्ञान नहीं है ,मैं ये वो ज्ञान दे रहा हूँ जो मैं देख और समझ रहा हूँ। आज पापा को आपकी जरूरत है और आप एक बार उन्हें देखने गयीं ,उसके पश्चात किसी अजनबी की तरह व्यवहार कर रही हो।
तुम करो ,अपने पापा की सेवा !तुम तो उनके करीब हो , साधना थोड़े तल्ख़ लहजे में बोलीं।
हाँ मैं तो हूँ ही किन्तु आप उनकी पत्नी हो ,उन्हें आपके सहारे की आवश्यकता है। मेरी पढ़ाई भी बहुत छूट गयी है ,वो भी तो पूरी करनी है। कहकर समीर बाहर आ गया।
साधना जो समीर के ही कॉलिज में हैं किन्तु कॉलिज में कुछ चुनिंदा लोगों को छोड़कर ,किसी को भी उनके रिश्ते के विषय में नहीं पता। समीर जब छोटा था ,तभी माँ एक बीमारी में चल बसी थीं। जब साधना जी का विवाह उनके संग हुआ तब वो पढ़ रही थीं किन्तु माता -पिता के पास आगे की शिक्षा के लिए ,न ही पैसा ,न ही साधन थे। साधना के पिता ने ,साधना को किसी भी प्रकार की परेशानी न होगी और शिक्षा भी आगे जारी रहेगी के वायदे पर ,बिना दहेज के लड़के से विवाह करा दिया। एक पंथ तीन काज हो गए। साधना की शिक्षा भी ,उसका विवाह भी और बच्चे को माँ मिल गयी और क्या चाहिए ?
शुरू में तो ,साधना ने ,समीर से प्रेम पूर्ण व्यवहार किया धीरे -धीरे उससे चिढ़ने लगी और जब उसके पति ने और बच्चे से भी इंकार किया तो पति भी........ अब तो पढ़ -लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो गयीं ,जो आवश्यकता थी वो तो पूर्ण हो गयी। अब ये सौदेबाजी का विवाह ,उसे ''फूटी आँखों ''न सुहाता।
इस कारण कई बार झगड़े भी हुए ,तब समीर के पापा ने भी कह दिया-'' मैं तुम्हारे घर नहीं गया था।मुझे अपने बच्चे के लिए माँ की आवश्यकता थी तो तुम्हे भी आगे बढ़ने के लिए पैसों की आवश्यकता थी और बिन दहेज़ विवाह हो गया और क्या चाहिए ? लड़ना है तो ,अपने माता -पिता पर जोर आज़माइश करो ,उन्हें तो कमाकर पैसे देती हो ,हमने सारा खर्चा किया ,इस लायक़ बना दिया फिर भी हम ही दुश्मन।
उनके इस तरह स्पष्ट कहने से ,सच्चाई साधना के कानों में ''पिघले हुए शीशे ''की तरह लगी। समीर के पापा ने , अपने परिवार को बचाने के लिए भरसक प्रयास किया किन्तु वो कुछ समझना ही नहीं चाहती।
उस दिन भी तो यही बातें हो रही थीं कि मेरी कोई औलाद नहीं ,इस सम्पत्ति में मेरा भी अधिकार है ,कल को यदि तुम्हारे बेटे ने मुझे नहीं रखा तो मैं कहाँ जाऊँगी ?
उन्हें पता था, कि ये सारी कमाई ,अपने मायके वालों को देती है। शुरू में तो मना नहीं किया किन्तु जब व्यापार मंदा पड़ने लगा ,तब हाथ रोककर चलने के लिए कहा। साधना के तो घरवालों को उसका वेतन ही नहीं ,उसकी सम्पत्ति में भी अधिकार चाहिए। उसे उसके भविष्य को लेकर ,डरा देते हैं और सम्पत्ति में से हिस्सा मांगने के लिए कहते हैं। इसी बात को लेकर ही तो ,तकरार हुई थी ,जब उन्हें ''दिल का दौरा ''पड़ गया था ।