शब्बो को ,इंस्पेक्टर के करीब न रहने पर ,मन में बेचैनी रहती है और आज जब वो आया ,तो भाग गयी। इस तरह उससे छुपने का कारण नहीं जान पाई। इससे पहले तो उसने ऐसा ,कभी महसूस नहीं किया था। जब आज करतार ने बताया ,'माँ ने भी तस्वीरें देखीं और उन्हें अच्छी लगीं '''कहने से उसका क्या अर्थ था। उसने मुझे हो क्यों ,इस तरह बताया ?शब्बो ने सारी तस्वीरें उठाईं और अपने कमरे में ले गयी। उन तस्वीरों को अपने पलंग पर फैलाकर देखने लगी कि ऐसा उनमें क्या विशेष था ?जो इस तरह करतार ने बताया था। शब्बो ने देखा -वे सारी तस्वीरें उसी की हैं। कुछ और लोग भी दिखलाई पड़ रहे हैं किन्तु उनमें वो ही सबसे आगे दिख रही थी। तब उसे करतार के कहने का अर्थ तो कुछ समझ आया किन्तु अब वो ये जानना चाहती थी कि माँ ने उसे देखकर ही अच्छी कहा या फिर सभी को देखकर ऐसा कहा।
मैं भी न कितनी बुद्धू हूँ ?वो मुझे ही देखकर कह रहा था। शब्बो इतनी भी नादान मत बन ,वरना वो पापाजी के सामने ही बताता। क्या वो मुझे पसंद करने लगा है ?वो मेरे विषय में तो कुछ जानता ही नहीं ,या फिर जानने के पश्चात भी ,मुझे चाहने लगा है। शब्बो ने अपने विचारों को झटका दिया और अपने कॉलिज का कार्य करने लगी। करतार कुछ देर तक शब्बो के पापा जी के पास बैठकर चला गया। वो बार -बार अंदर देख रहा था किन्तु शब्बो बाहर नहीं आई ,उसने अब समय व्यर्थ न करते हुए , बाहर आ गया। वो जानना चाहता था कि शब्बो इस बात का ,क्या जबाब देगी ? किन्तु वो तो बाहर ही नहीं आई। जोगेंद्र तो कह रहा था -कि महिलाओं की छठी इंद्री बहुत तीव्र होती है ,क्या शब्बो ,मेरे दिए ,इशारे को समझ नहीं पाई ? या समझकर भी अनजान बनी रहना चाहती है या फिर वो ज़िंदगी में आगे बढ़ना ही नहीं चाहती। इन्हीं विचारों में खोया ,करतार चला जा रहा था ,तभी पीछे से ,एक ट्रक उसे टक्कर मारकर चला जाता है। वो तो अपने ही विचारों में खोया था ,जब उसे तेज झटका लगा ,तब वो वर्तमान में अपनी सोच से बाहर आया। तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
करतार को ढूंढती ,शब्बो हस्पताल पहुँची ,साथ में उसके पापा भी थे। काउंटर पर उसने पता लगाया -जी बेड नंबर ३२ ,फ़र्स्ट फ्लोर।
सुनकर शब्बो तेजी से सीढ़ियों की तरफ भागी ,उसके बराबर से तभी ,मदनलाल और एक और व्यक्ति निकला ,मदनलाल को रोककर शब्बो ने पूछा ,अब कैसे हैं ?
जी ,अभी होश आया है मरते -मरते बचे हैं ,ये मात्र एक दुर्घटना नहीं ,वरन हमारे सर को मरवाने की साज़िश थी। मदनलाल ने शब्बो को बताया।
वो कैसे ,और उनका दुश्मन कौन हो सकता है ?
एक अन्य व्यक्ति जो शब्बो को जानता नहीं था ,वो मदनलाल से बोला -अभी हमें शीघ्र ही चलना चाहिए।
उसके कहने के बावजूद भी ,मदनलाल बोला -आप जाइये ,साहब से मिल लीजिये।
जी..... कहकर दोनों बाप -बेटी आगे बढ़े ,वहाँ का वातावरण देखकर शब्बो थोड़ी परेशान सी हुई फिर बेड नंबर देखकर ,उस ओर बढ़ी।
उन्हें देखकर ,करतार मुस्कुराया। ये सब कैसे हुआ ?शब्बो के पापा ने पूछा।
जी कुछ नहीं ,मैं तो आपके घर से आ ही रहा था तभी अचानक से ये हादसा हो गया। अब वो शब्बो के पापा के सामने कैसे कहे ? कि वो शब्बो के ख्यालों में खोया था। मन ही मन सोचा ,अपनी इस लापरवाही का ज़िम्मेदार इसे तो नहीं ठहरा सकता।
नर्स आई और बोली -अभी आप इनसे ज्यादा बातें मत कीजिये ,इन्हें अभी होश आया है ,तभी इन्हें यहाँ शिफ़्ट किया गया है। उन्हें ये सब कहकर नर्स चली गयी। शब्बो तो बहुत कुछ कहना चाह रही थी किन्तु वहां का वातावरण और साथ में पापा ,इनके रहते उसके शब्दों को वाणी नहीं मिल पा रही थी। कुछ देर यूँ ही बैठकर वो लोग चले गए।
आज शब्बो का मन कह रहा था ,अब वो करतार से मिलने कभी नहीं जाएगी ,शायद उसकी ज़िंदगी में खुशियां लिखी ही नहीं ,आज उसका मन स्वीकार कर रहा था कि इंस्पेक्टर साहब की तरफ खिचने लगी है। अभी तो ,उन्हें पता भी नहीं चला , न ही हम इतना मिले हैं ,अब तक ,जब भी मिले ,केस के सिलसिले में ही मिले। अब तो ऐसी कोई बात भी नहीं ,तभी ये दुर्घटना..... तभी जैसे वो सोते से जागी और उसने थाने में फोन लगा दिया। तिवारी जी ने फोन उठाया -हैलो !
कुछ पता लगा ,इंस्पेक्टर साहब पर किसने हमला किया या करवाया ?बिना किसी भूमिका के उसने तिवारी से प्रश्न किया।
जी वो तो ,पता चल गया है ,किन्तु अभी हमारे पास उसके विरुद्ध कोई सबूत नहीं है ,बिना सबूत उस पर हाथ भी तो नहीं डाला जा सकता।
क्यों ? जब उसने गलती की है ,तो उसे पकड़िए !
वो कोई छोटी -मोटी हस्ती नहीं ,वो काम करते नहीं ,करवाते हैं। उन तक पहुँचना 'टेढ़ी खीर है। ''
उनकी इंस्पेक्टर साहब से क्या दुश्मनी है ? शब्बो ने प्रश्न किया।
जी, उनकी दुश्मनी तो किसी से भी नहीं ,किन्तु दुश्मन भी बहुत मिल जायेंगे , उनके गलत कार्यों में कोई सहयोग नहीं मिलेगा। साहब ने ,उनका माल रोक दिया था ,आगे नहीं जाने दिया इसी बात की खुन्नस निकाली है।
ये खुन्नस थी ,या जान से मारने की साज़िश थी। वो तो वाहे गुरु का शुकर है ,वो बच गए वरना उसने तो जान लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी , क्रोधित स्वर में शब्बो बोली।
आप चिंता मत कीजिये ,ये बात ऊपर तक गयी है ,साहब भी ,शीघ्र ही स्वस्थ हो जायेंगे।
तभी पीछे से मदनलाल ने आकर पूछा -किससे बातें कर रहे हो ?
उस आवाज़ को सुनकर ,तिवारी शब्बो से बोला -अभी फोन रखता हूँ ,जैसे भी कुछ होगा आपको बताता हूँ ,कहकर फोन रख दिया और मदनलाल से बोला -हमारे साहब की.....
तभी मदनलाल ने उसके शब्दों को रोक दिया ,अभी कुछ नहीं ,बस मैं समझ गया।
आज शब्बो को दो दिन हो गए ,वो करतार से मिलने नहीं गयी किन्तु मन के अंदर की बेचैनी उसे परेशान किये दे रही थी ,समझ नहीं आ रहा था कि वो करतार से मिलने जाये या नहीं। इस तरह उसका बार -बार करतार से मिलना ,कहीं लोग गलत अर्थ में न ले लें।
उसका अंतर्दवंद कह रहा था -तू कब से ऐसा सोचने लगी ?