अभी तक आपने पढ़ा -बलविंदर शब्बो को लेकर ,बड़े शहर चला जाता है ,शब्बो उससे पूछती है -तुम्हारा क्या काम है और काम पर कब जाओगे ?उसके इन प्रश्नों से बलविंदर घबरा जाता है। तब वो बुआ से इसका उपाय पूछता है। शाम को ,बलविंदर शब्बो से कहता है -तैयार हो जाओ !आज हम किसी होटल में चलते हैं ,शब्बो पहले तो,जाने सी इंकार करती है फिर तैयार हो जाती है। शब्बो अंदर तैयार हो रही थी ,बलविंदर बाहर प्रतीक्षा में था।
शब्बो ने काले ब्लाउज़ पर पीले रंग की साडी पहनी थी ,जो उसके गोरे और ग़ुलाबी रंग पर ,और भी अधिक ताज़गी ले आई ,उसने उसे देखा तो देखता ही रह गया। एक बार को तो वो 'निहारिका' के विषय में सोचने लगा, कि कहीं मैंने उससे विवाह करके कोई जल्दी तो नहीं कर ली ,तभी उसे स्मरण हुआ ,इस समय ,ये भी तो मेरी ही पत्नी है ,किन्तु अभी तक, उसके प्रति अपने मन में पति का अधिकार नहीं जता पाया था ,न ही उसके मन में ही ,ये भाव आया था। वो तो ,उनकी चाल का मोहरा मात्र थी , किन्तु आज उसे इस तरह देख उस पर रीझ गया। आज उसे अपने ऊपर और बुआ पर गर्व हो रहा था किन्तु उसे कहीं न कहीं ,शब्बो के क़रीब जाने से डर लगता था। ये उसकी अपनी ,धोखेबाज़ी के कारण भी हो सकता है। जो धोखा ,वो शब्बो से कर रहा था वही उसके क़रीब जाने से उसे रोक रहा था।
दोनों होटल में प्रवेश करते हैं ,जहाँ ज्यादातर लड़कियां जींस ,गाउन जैसे वस्त्रों को धारण किये थीं वहीं शब्बो का शबाब सबको फीका कर गया। वो अलग ही दिख रही थी ,सबकी निगाहें ,उसके उस पर आ टिकीं। शब्बो को कुछ अजीब लगा ,
वो बोली -मैं घर जाना चाहती हूँ ,सभी मुझे ही देख रहे हैं।
बलविंदर बोला -तुम इतनी सुंदर ,जो लग रही हो।
मन ही मन शब्बो ,अपने में सकुचा गयी। सोच रही थी- ऐसी सुंदरता का क्या लाभ ? जिसके साथ जीवन बिताना चाहा ,वो तो संग है ही नहीं ,जिसके संग हूँ ,उसे तो शायद ही मेरी परवाह हो। उसका कोई और ही रूप है। पता नहीं ,ज़िंदगी मेरे साथ क्या खेल खेल रही है ?तभी एक बहुत ही ''हैंडसम ''सा आदमी जैसे वो कोई शराब के नशे में हो ,आया और उनके पास पड़ी कुर्सी पर ही बैठ गया। बलविंदर को उसके व्यवहार से ही लग रहा था कि ये शब्बों के कारण ही ,इधर आया है। फिर भी उसने सभ्यता का परिचय देते हुए ,कहा -जी हम लोग यहाँ बैठे हैं।
वो बोला - मैं जानता हूँ ,शायद आप लोगों की नई -नई शादी हुई है। बात करते समय ,वो नहीं लगा कि शराब पी है या फिर नशे में है। उसने बलविंदर की तरफ ,दोस्ती का हाथ बढ़ाया और अपने को किसी बड़ी कम्पनी का मालिक। बलविंदर ने भी अपना कोई कार्य उसे बताया और वे दोनों आपस में बातें करने लगे किन्तु शब्बो को इन सबमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसने अपने लिए जूस मंगवाया ,उसके पश्चात तीनों ने खाना भी खाया। सारा खर्चा उसी ने दिया ,अपनी तरफ से ,शादी का तोहफा कहकर। शब्बो जब उठी ,तब उसे सिर में कुछ भारीपन सा लगा ,वो लड़खड़ाई ,उस अनजान मालिक ने उसे अपनी बांहों में थाम लिया। शब्बो ,अभी इतना समझ सकती थी ,उसने अपने आपको उस व्यक्ति की बाँहों से छुड़ाया और बलविंदर का हाथ पकड़ा। उसे क्या पता ? कौन सा हाथ उसे सही सहारा देगा ?जैसा भी है ,अब तो बलविंदर ही उसका पति है ,यही सोच ,उसने अपने लड़खड़ाते कदम उसकी तरफ बढ़ाये।
घर पहुंचने तक ,जैसे -तैसे भी पहुंची ,सीधे पलंग पर जाकर गिरी ,उसके पश्चात उसे कोई होश नहीं रहा। आज शब्बो ,अस्त -व्यस्त अवस्था में ,उसके पलंग पर उसके बहुत करीब थी। वो उसके करीब जाकर लेट गया। उसकी चमकदार ,गुलाबी रंगत लिए ,उसके गुलाबी होंठ ,उसकी वो लटाएं जो उसके चेहरे पर झूल रही थीं। बलविंदर ने उन्हें बड़े प्यार से उन लटाओं को ऊपर किया ,शराब का नशा तो उसे भी था। शायद उसी शख़्स ने ,किसी तरह पिला दी थी। वो शब्बो को देर तक निहारता रहा। शब्बो की साडी का पल्ला अपने स्थान से हट चुका था। जिसे देख ,बलविंदर से रहा नहीं गया और उसने शब्बो को अपने आगोश में ले लिया। और उसने उसे अपने गले लगा बुरी तरह से ,अपनी बाजुओं में दबा लिया।
शब्बो ,उँह..... की आवाज करके कसमसाई ,फिर किसी बेल की तरह उससे लिपट गयी। उसे तो अपने सपनों में समीर नजर आ रहा था। जिसके संग वो आसमान की सैर करने निकली थी। वो आकाश की ऊंचाइयों में कभी खोती ,कभी उड़ती फिर रही थी।
जब उसकी आँख खुली तो वो ,उसी पलंग पर निर्वस्त्र बलविंदर के साथ थी। अपने आपको इस हालत में देख ,शब्बो हतप्रभ सी रह गयी और सपनों में जो वो ,आसमान की सैर करके आई थी। उसे लगा ,जैसे वो जमीन पर आ गिरी हो। उसका सब कुछ लुट गया हो ,वो तो अपने को इस तरह ,बलविंदर के संग सोच ही नहीं पा रही थी। वो तेज़ी से उठी और स्नानागार में घुस गयी ,देर तक रोती रही ,तब नहाकर बाहर निकली। उसकी आँखें झुकी हुई थीं ,उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो क्या करे ?उसने सोते हुए ,बलविंदर को उठाया और बोली -तुम्हें शर्म नहीं आई ,इसीलिए तुम मुझे होटल ले गए थे। बलविंदर को भी कुछ कुछ स्मरण तो था। किन्तु इसमें उसे अपनी कोई गलती नहीं लगी। बोला -पता नहीं ,उस आदमी ने क्या पिलाया ?कुछ होश ही नहीं रहा। शब्बो ने उसकी एक भी नहीं सुनी और बोली -तुम्हारी ही योजना होगी कोई बिना जान -पहचान ऐसे ही थोड़े ही न हमारे समीप आकर बैठ जायेगा। और तुमने मेरे साथ.... मैं अभी अपनी मम्मी के घर जाउंगी ,मुझे वहीं छोड़ आओ !अब यहाँ नहीं रहूंगी।
बलविंदर झल्लाया ,मैंने ऐसा क्या कर दिया ? पति हूँ तुम्हारा ! मैंने ऐसा कौन सा गलत कार्य कर दिया। शब्बो थी, कि रोये जा रही थी।तभी उनके घर की घंटी बजी ,बाहर एक व्यक्ति ,एक पैकेट लिए था। बलविंदर ने उससे वो पैकेट लिया और पूछा -इसमें क्या है ?किसने दिया है ?
पता नहीं ,मालिक ने दिया है कहकर वो चला गया।
तब बलविंदर को स्मरण हुआ -रात्रि में उसने कहा था ,पहली रात्रि के दस लाख ,दूसरी के आठ लाख। ये क्या पहेली है ?वो समझ नहीं पाया।
उसने पैकेट खोला -उसमे बहुत सुंदर पोशाक थी ,देखने से ही ,पता चला रहा था बहुत ही कीमती थी।
उसमें एक फोन नंबर भी था। वो समझ नहीं पा रहा था कि हमारी ज़िंदगी में भला कोई क्यों इतनी दिलचस्पी दिखा रहा है ?