अभी तक आपने पढ़ा -शब्बो ''गुरदास नंगल ''गांव की रहने वाली है ,उसके पास आने -जाने के लिए स्कूटी भी है। समीर जो उसके कॉलिज में ही पढ़ता है ,जो उससे आगे की कक्षा में है -किन्तु शब्बो उसे, मन ही मन पसंद करती है। शब्बो उसे परेशान देखकर ,उसकी परेशानियों को जानने का प्रयत्न करती है और वो उससे बचकर निकल जाना चाहता है किन्तु जैसे ही उनकी दोस्ती होती है ,वो अपने दिल की बात उससे कह देता है, किन्तु शब्बो उसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं देती और चुपचाप वहां से चली जाती है। यह देखकर ,समीर परेशान हो उठता है और सोचता है -कहीं इसे मैंने अपने दिल की बात बताकर कोई गलती तो नहीं कर दी। अब आगे -
समीर ,शब्बो को जाते हुए देख रहा था ,और मन ही मन सोचकर ,परेशान था -कि इसने मेरी बातों का कोई जबाब ,क्यों नहीं दिया ? शब्बो अपनी कक्षा में चली जाती है। वो कुछ सोच रही थी -तभी शिल्पा उससे बोली -तू आजकल कहाँ रहती है ?मुझे कुछ बताती भी नहीं ,कहाँ से आ रही है ?पढ़ाई में ध्यान है कि नहीं। शब्बो शांत रही।
आज दोपहर में ही ,शब्बो न जाने कहाँ चली गयी ?उसका व्यवहार कुछ समझ नहीं आ रहा ,अब तो शिल्पा भी ,उसके व्यवहार से परेशान हो उठी ,क्या सोच रही है ,क्या करती है ?कुछ पता नहीं चलता ,इस लड़की का।
लगभग पंद्रह दिनों पश्चात ,एक दिन अचानक समीर के घर के आगे, एक दुपहिया गाड़ी खड़ी दिखी। समीर उसे देखते ही हतप्रभ रह गया। पहले तो उसने सोचा ,शायद कोई आया होगा किन्तु गाड़ी तो बिल्क़ुल नई है। वो घर के अंदर गया और अपने पापा से मिला ,आज तो माँ भी मुस्कुरा रही थी। उसे लगा -जैसे उसका घर बदल गया हो, किसी अन्य के घर में तो नहीं आ गया।
पापा !ये बाईक किसकी है ?
तुम्हारी......
मतलब ,मैं कुछ समझा नहीं......
इसमें समझने वाली बात ,कुछ है ही नहीं ,आज तुम्हारा जन्मदिन है और हमने तुम्हारे लिए ,ये उपहार लिया है। तुम तो अब ये बताओ !तुम्हें उपहार पसंद आया कि नहीं।
मुझे तो बेहद पसंद आया किन्तु आप लोगों को कैसे ज्ञात हुआ ? कि मुझे एक दुपहिया की आवश्यकता है और इतने पैसे कहाँ से आये ?
तुम पैसों की चिंता मत करो ,तुम तो बस गाड़ी का मज़ा लो !वो तुम हम पर छोड़ दो !मम्मी के मुँह से ये बातें सुनकर ,समीर को तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ। ये चमत्कार कैसे हो सकता है ?तभी उसे स्मरण हुआ ,उसने अपनी कुछ बातें ,शब्बो को बताई थीं किन्तु मम्मी का ऐसे ह्रदय परिवर्तन तो वो नहीं कर सकती। ये कैसे बदलीं ?
बहुत सोचते -सोचते ,उसने आख़िरकार अपने पापा से पूछ ही लिया- क्या शबनम यहां आई थी ?
हां.... एक या दो बार ही आई होगी। क्यों, तुम ये क्यों पूछ रहे हो ?
ऐसे ही ,सोच रहा था - कि ये चमत्कार ,कैसे हुआ ?
ये उसका ही चमत्कार है ,जो उसने तुम्हारी मम्मी की सोच को बदला।
वो कैसे ?समीर ने जिज्ञासावश पूछा।
आओ ! चलो पहले ऊपर छत पर चलते हैं ,टहलते हुए ,बातें करेंगे वरना आकर पूछेगी -आपने दवाई समय पर ली ,और कुछ देर टहले कि नहीं। समीर और उसके पापा छत पर जाते हैं और टहलते हुए बताते हैं -
एक दिन शब्बो आई ,उसका चेहरा उदास था, आकर वो चुपचाप बैठ गयी। मैंने उससे कई बार पूछा -बेटा ,क्या हुआ ,क्यों उदास हो ? कुछ देर तो वो बोली नहीं ,जब तेरी मम्मी भी आ गयी तब उनके पास जा बैठी।
मैंने उनसे ही कहा -जरा पूछो इससे ,क्या हुआ ?
तब उनकी गोद में सिर रखकर बोली -जब अपने ही धोखा दें ,तब कैसा लगता है ?वैसे तो सब अपने होते हैं ,हमें किसी पर शक़ नहीं होता किन्तु समय आने पर पता चलता है कि अपना कौन है ?
उन्होंने उसके सिर पर हाथ फेरा और बोलीं -तुम ऐसा क्यों कह रही हो ?
कैसे न कहूँ ,मामा का मम्मी ने हर कदम पर साथ दिया ,उनके लिए क्या -क्या नहीं किया ?पापा से छुप -छुपकर उन्हें पैसे भी देती रहीं। जब पापा का व्यापार में नुकसान हुआ तब मम्मीजी ने मामे से सहायता मांगी ,तब मामे ने पहले तो कोई बहाना बनाया ,मम्मीजी वही चली गयीं और नानी से भी कहा -मैंने हर कदम पर तुम लोगों का साथ दिया यहां तक कि उनकी मेहनत की कमाई ,भी तुम लोगों पर लुटाई और जब मुझे आवश्यकता है तो तुम लोग ''बगलें झाँकने लगे। ''
तब क्या हुआ ?साधना जी ने उसकी कहानी में दिलचस्पी दिखलाई।
होना क्या था ?नानीजी ने अपनी बेबसी ही दिखलाई ,मैं तो बूढ़ी हो चली हूँ ,यहां अब मेरी कौन सुनता है ?हमने तुझसे मदद मांगी भी नहीं थी ,तू तो अपने आप ही ,इस घर की बेटी होने का हक़ अदा कर रही थी। इसका हमने तुझसे कोई वायदा तो किया नहीं था। तेरे पास था, तू लुटा रही थी। तेरे से जबरदस्ती तो किसी ने नहीं की थी।
किन्तु मैं तो सहायता मांग रही हूँ ,तुम मेरे अपने हो ,मम्मीजी ने रोते हुए कहा।
तब उन्होंने क्या जबाब दिया ?समीर के पिता ने पूछा।
क्या जबाब देना था ?उनके रहन -सहन ,उनके अधिक खर्चों पर उन्हें चार बातें सुनाकर ,बाहर का रास्ता दिखला दिया, कहकर वो रोने लगी।
साधना ने पूछा -अब तुम्हारे पिता की क्या हालत है ?उनका व्यापार केेसा है ?
अब तो सब ठीक हो गया।
फिर तुम रो क्यों रही थी ?वे चौंकते हुए बोलीं।
क्योंकि आज मैंने अपने मामा को फिर से अपने घर में देखा ,अब उन्हें पता चल गया है कि अब हम सब ठीक से रह रहे हैं और मम्मी जी हैं ,कि सुनते ही नहीं। आज वो फिर अपने भाई की सेवा में लगीं है। उन्हें देखकर ,मुझे वो ही दिन स्मरण होने लगे ,इसीलिए मन दुखी था किन्तु मम्मी जी ने तो जैसे ,उन्हें क्षमा कर दिया ,समझाओ तो समझती नहीं। ये सब सुनाकर ,वो तो चली गयी किन्तु हमारे बीच एक शून्य छोड़ गयी और कुछ सोचने पर मजबूर कर गयी।
फिर क्या हुआ ?पापा ! समीर उतावलेपन से बोला।
तुम क्यों इतने उतावले हो रहे हो ?अभी सुनाता हूँ कहकर उन्होंने समीर से कुर्सी मंगाई और बैठ गए।
वो तो फिर आई नहीं ,एक दिन तेरी मम्मी को ही ,मैंने फोन पर बातें करते देखा ,वो कह रही थीं -मम्मी ,मुझे दो माह से वेतन भी नहीं मिला और ट्यूशन के बच्चे भी इतने नहीं आ रहे। अब आप भाई को मत भेजना ,मैं कोई सहायता नहीं कर पाऊँगी ,और आज अचानक तेरे जन्मदिन पर दुपहिया की बात करने लगीं।
मैंने पूछा भी ,कि इतने पैसे कहाँ से आयेंगे ?
तब बोलीं -आप चिंता मत कीजिये ,किश्तों पर ले लेंगे ,एक ही बेटा तो है ,हमारा ,क्या हम ? उसके लिए इतना भी नहीं कर सकते।
क्या..... माँ ने ऐसा कहा ?
उन्होंने मुस्कुराते हुए ,'हाँ 'में गर्दन हिलाई।
समीर मन ही मन सोच रहा था -मैंने बेवजह ही उस पर शक़ किया ,वो तो मेरे लिए ही ,ये सब कर रही थी। जो कुछ भी ,उसने इन लोगों को बताया ,क्या ये सब सही में था ?उनके साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ होगा ?तब बेचारी ने कितनी परेशानी देखी होगी ?सबके लिए सोचती है ,अपना दर्द किसी को नहीं बताती ?मिलेगी तो पूछूंगा। पापा एक बात तो बताइये -मम्मी के मन में ,मेरे जन्मदिन पर ,दुपहिया लेने का विचार ही कैसे आया ?और कुछ भी तो ले सकती थीं।
ये तो मुझे नहीं मालूम ,वो तो उनसे ही पूछना।
आज समीर का दिल हुआ कि अपनी माँ के गले लग जाये ,आज तो उसका जन्मदिन भी है और वो बिना देरी किये नीचे की तरफ भागा और सीधे जाकर अपनी माँ के पाँव छू लिए।
साधना जी भी भाविभोर हो उठीं और उनके नेत्र सजल हो उठे। वो सोच रही थीं -लड़की वैसे तो बहुत गुणी है ,आज उसने मुझे ,मेरे परिवार से मिला दिया। उसके कारण ही मेरे मन में ,इस गाड़ी को लेने का विचार आया। अपनी सहेली से कह रही थी -आजकल तो हर लड़का दुपहिया पर ही घूमता है ,अब तुम ही देखो !मैं तो गांव से आती हूँ ,मेरे पास भी स्कूटी है। मेरे पापा ने मुझे मेरे जन्मदिन पर दी थी। ये तो अच्छा हुआ ,मैंने उनकी बातें सुन लीं और मेरे मन में तभी ये विचार आया।