बदली का चाँद '' में अभी तक आपने पढ़ा ,ये कहानी शब्बो के जीवन पर केंद्रित है ,शब्बो जो बलविंदर से प्रेम करती है किन्तु किसी कारणवश ,वो तारा देवी के हत्थे चढ़ जाती है ,वो तारा जो बच्चों को उठा ,उन्हें बेचने और इधर -उधर भेजने का कार्य करती है। तारा को शब्बो भी एक दुर्घटना के तहत मिल जाती है और वो शब्बो की सुंदरता को देख ,सीमा पार बेचने की योजना बनाती है किन्तु शब्बो अपनी समझदारी से अपने अपहरण होने की सूचना,फैलाती है। इंस्पेक्टर गुरिंदर चड्ढा अपने दो सिपाही तेजेन्द्र और करतार सिंह के संग ,शब्बो की तलाश में निकलते हैं। तारा अपनी होशियारी से ''चैक पोस्ट ''से आगे तो निकल जाती है किन्तु किसी कारण वश उसे ढाबे पर रुकना पड़ता है और तभी शब्बो गायब हो जाती है। बात हाथापाई तक पहुँच जाती है। तारा पुलिस को देखकर बात रफा -दफा करते हुए ,वहां से बचकर निकलना चाहती है। तभी पीछे से आवाज आती है ,क्या तारा अपनी बच्ची को यहीं छोड़कर जाओगी ?अब आगे -
तारा एक बार पीछे मुड़कर देखती है ,किन्तु चुप रहती है ,वो चाहती है -शब्बो स्वयं ही ,उसके पास आये ,उसे डर था कहीं शब्बो ही न बता दे -' कि ये उसकी बच्ची नहीं। ''तारा शब्बो की तरफ घूरकर देखती है ,ताकि उसे डर रहे और कुछ न बोले। तभी इंस्पेक्टर साहब , शब्बो से पूछते हैं -बेटा !शबनम ,क्या ये आपकी मम्मीजी हैं ?शब्बो को इतनी बात सुनते ही ,अपनी मम्मी जी का चेहरा स्मरण हो आया और बोली -ये मेरी मम्मीजी कभी नहीं हो सकती। शब्बो के कुछ कहने से पहले ही ,शेरू ने गाड़ी स्टार्ट कर ली थी। और तारा तेजी से उसमें बैठकर बोली - गडडी ,तेज चलाओ ! पुलिस इस तरह ,उन्हें भागते देखकर सतर्क हो गयी और वो लोग भी तेजी से अपनी जीप में बैठे और उनका पीछा करने लगे। इंस्पेक्टर ने तो अपनी रिवाल्वर से फायर भी किया किन्तु शेरू तो गाड़ी को इधर -उधर लहराकर चला रहा था जिससे निशाना चूक गया।
उधर शब्बो जिस व्यक्ति के साथ खड़ी थी वो और कोई नहीं ,साधारण वेशभूषा में पुलिस के ही आदमी थे जो गाड़ी के कागज़ात की जाँच करते समय ही, उनके पीछे हो लिए थे। जब शब्बो भागने के लिए कोई तरीका सोच रही थी ,तभी एक ने ,उसका हाथ पकड़कर खींचा। पहले तो वो चीखना चाहती थी किन्तु उसके मुँह पर हाथ रखकर पूछा -क्या तुम इनकी बच्ची हो या तुम्हें जबरदस्ती ले जा रहे हैं ,हम पुलिसवाले हैं ,हमें सच बताओगी तो -तभी हम तुम्हारी सहायता कर सकते हैं। तब शब्बो ने उन्हें सब सच बता दिया और उन्होंने उसे ,उस गलियारे के कमरों के पीछे की सीढ़ी से ऊपर चढ़ा दिया ,जहां तारा के आदमियों का ध्यान नहीं गया। वे उसे नीचे के कमरों में ही खोजते रहे।
उधर शेरू ने भी चलती गाड़ी से गोली चला दी। काफी देर तक पीछा करते रहे , तभी करतार ने निशाना साधकर ,उनकी गाड़ी के पहिये पर गोली चला दी ,जिसका परिणाम हुआ ,उनकी गाड़ी ड़गमगाने लगी और वो उसे संभाल नहीं पाये। गाड़ी डगमगाती हुई ,रेत पर होती हुई ,किसी के खेत में घुस गयी और वहाँ की गीली मिटटी में धँस गयी।अब वो लोग गाड़ी छोड़कर पैदल ही भागने लगे। इंस्पेक्टर गुरिंदर चड्ढा अपने दोनों सिपाहियों के साथ ,उनके पीछे -पीछे पहुँच गए। वे लोग पेड़ों की आड़ लेते हुए ,आगे बढ़ रहे थे। उन्हें तो इस बात की उम्मीद ही नहीं थी , कि ऐसा भी हो सकता है। शेरू की गोलियां भी समाप्त हो चुकी थीं। इंस्पेक्टर चड्ढा ने चिल्लाते हुए कहा -अब भागने से कोई लाभ नहीं है ,इन खेतों को पार करते ही ,उधर भी हमारे ही लोग तुम्हारी प्रतीक्षा कर हैं। इतना सुनते ही उनका मनोबल टूट गया। तब इंस्पेक्टर ने एक गोली चलाई ,जो तारा के पैर में जाकर धँस गयी और वो एक चीख के साथ लड़खड़ाकर गिर गयी।
तारा की हालत देखकर ,शेरू पलटा और उसने एक बाक़ी बची गोली भी चला दी जो तेजेन्द्र के कंधे को छूती हुई निकल गयी। किन्तु तब तक वे लोग उनके समीप जा पहुँचे थे। कुछ पुलिस के जवान भी वहां पहुंच गए। तब इंस्पेक्टर ने आदेश दिया-'' गिरफ़्तार कर लो इन तीनों को।''
उन्हें गिरफ़्तार कर ,वे उसी ढाबे पर पहुँचे और शब्बो से पूछा -क्या ये वही तीनों हैं ,जो तुम्हारा अपहरण करके ले जा रहे थे। शब्बो ने हाँ में गर्दन हिलाई , फिर बोली -ये लोग तीन नहीं चार थे ,इनमें एक और भी था जो वहां भी गाड़ी से उतर गया था और यहां चढ़ा ही नहीं वरन भीड़ में ही छिप गया। पुलिसवाले बोले -हम उसे ढूंढते हैं। तब इंस्पेक्टर साहब बोले -अब उसे ढूँढना व्यर्थ है ,अब उसका पता, ये तीनों ही बतायेंगे ,ले चलो ,इन्हें। तारा को शब्बो से इतनी उम्मीद नहीं थी, कि ये छोटी सी लड़की इतनी बड़ी चालबाज़ी खेल जायेगी। जब उसे पता चला, कि इंस्पेक्टर साहब को कैसे पता चला ?कि एक बच्ची का अपहरण हुआ है।