अभी आपने पढ़ा -समीर और शब्बो ,चेतना चाची के षड्यंत्रों का शिकार हो जाते हैं और कुछ भी नहीं कर पाते हैं। वो जान गए हैं ,कि ये सभी षड्यंत्रों में चेतना का ही हाथ है किन्तु ,उसके विरुद्ध कोई सबूत भी नहीं ,ताकि किसी को उसके विषय में ,बता सकें। दोनों ही परेशान हैं किन्तु कुछ नहीं कर पा रहे।अब आगे -
आज बलविंदर को ,शब्बो को लेने आने वाला था ,शब्बो भी घबराई हुई थी ,माता -पिता से कहना, बहुत कुछ चाहती थी ,किन्तु क्या और कैसे कहे ?जैसे -जैसे बलविंदर के आने का समय नजदीक आता जा रहा है ,शब्बो के दिल की धड़कन भी बढ़ती जा रही है।वो तो ये ही सोचकर, यहाँ आई थी -पढ़ाई पूरी करने के बहाने ,अपने घर ही रह जाउंगी, किन्तु ये बुआ है ,न इसने तो जैसे ,मेरे माता -पिता की सोच पर ही नियंत्रण कर लिया है । वो जो कह देती है ,सब सही है। पता नहीं ,इसने कौन सी घुट्टी इन्हें पिलाई है ?एक बारगी ,शब्बो ने अपनी माँ से दबी आवाज में कहा भी- कि अभी वो ,अपनी ससुराल नहीं जाना चाहती।
उसकी बात सुनकर पम्मी बिफर पड़ी और बोली -अब तेरा ब्याह हो गया ,वही घर तेरा है ,जब तक तू वहां रहेगी नहीं ,उन लोगों को समझेगी नहीं ,तब तक उन्हें अपना भी नहीं पायेगी। इस तरह तो तू ,सालभर बाद भी जाएगी ,तब भी यही परेशानी हो जानी है। एक बेटी की माँ होने के नाते ,उसने उसे समझाया तो सही था -किन्तु वो नहीं जानती थी कि परिस्थितियाँ कैसा खेल ,खेल रही हैं ?जिस बिटिया की ख़ुशी के लिए ,उसके अच्छे भविष्य के लिए ,आज वो अपनी ही बेटी की बातों को नज़र अंदाज कर रही है ,उसके प्रति इतनी कठोर हो रही है ,पता नहीं ,भविष्य में उसका भाग्य क्या खेल खेलने वाला है ?
शाम हो गयी ,रात्रि भी गहराने लगी किन्तु बलविंदर नहीं आया। पम्मी की चिंता बढ़ती जा रही थी ,उसे अनेक चिंताओं ने घेर लिया -कहीं वो ,शब्बो के उस दिन के व्यवहार से ,बुरा तो नहीं मान गया। यदि वो लेने नहीं आया -तो ब्याही भरी बेटी ,घर में बैठी रह जाएगी। चेतना तो कह रही थी -कि उसका भतीजा आयेगा ,कहीं उसने हमारा ही तो मूर्ख तो नहीं बन दिया। दरवाजे तक जाती फिर लौट आती। खाना भी तैयार है ,उसे नहीं आना था ,तो कम से कम इक फ़ोन तो कर देता। उसकी बेचैनी बढ़ी ,वो कुर्सी पर बैठ गयी,पानी पिया ,जैसे -जैसे समय बढ़ता जा रहा है। उसके आने की उम्मीद कम होती जा रही है।उसने शब्बो को आवाज़ दी -शब्बो.... शब्बो..
हाँजी ,
हाँजी क्या ?अरे उस बलविंदर को फोन करके पूछ -उसके आने में ,अभी कितना समय बाक़ी है ?शाम ढल गयी। कब पहुंचेगा ?
शब्बो बोली -मुझे उसका नंबर नहीं मालूम....
उसकी बात सुनकर ,पम्मी का मन और भी क्लेश में हो गया ,तेरा पति है और तुझे नंबर भी नहीं मालूम।
जिस दिन ,बलविंदर की ''सुहागरात'' थी ,शब्बो तो कमरा बंद कर सो गयी किन्तु ये तो बलविंदर के लिए अच्छा ही हुआ। उसकी पत्नी जो सुबह से ही ,उसके इर्द -गिर्द घूम रही थी ,अपने कमरे में ले गयी। बुआ ने ये सब देखा भी ,उसे डांटा भी किन्तु उसने तो शब्बो को ही गलत ठहरा दिया -उसे बंद दरवाजा दिखाकर।यही बात ,उसकी बुआ को ,अपने तरीके से शब्बो के माता -पिता को बताने का मौका मिल गया।
अब तो पम्मी से रुका नहीं गया और उसने चेतना के घर जाकर ,उसे पुकारा ,बहनजी.... बहनजी....
क्या हुआ ?क्यों परेशान है ?
तुम तो कह रही थीं - कि आज के दिन मेरा भतीजा आएगा ,शब्बो को लिवाने।
पम्मी की परेशानी देख ,चेतना मन ही मन मुस्कुराई ,और होंठ बिचकाते हुए बोली -मुझसे तो यही कहा था कि आएगा। पता नहीं ,क्यों नहीं आया ?जबकि उसने पहले ही ,फोन करके पूछ लिया था और पम्मी को परेशान करने के लिए ,उसे बताया भी नहीं ,कि वो अभी दो -चार दिन नहीं आएगा।
उधर से फोन आया था ,बलविंदर ने बताया था -''कि निहारिका मान नहीं रही है। वो अपने घर नहीं जा रही ,कहती है -मेरे मायके वाले मुझसे नाराज हैं ,अब मैं कहाँ जाऊंगी ? ये सलाह भी उन्हें बुआ ही देकर आई थी कि कुछ दिनों अथवा महिनों के लिए ,इसे इसके मायके भेज दो ,तभी तो बलविंदर और और शब्बो एक -दूसरे के नजदीक आ पायेंगे। कभी ये [निहारिका ]डाह में उससे कुछ कह न बैठे या कोई ऐसी हरकत करे कि उसे इन दोनों पर शक़ न हो जाये। शब्बो के जाने के पश्चात ,उसे समझाया भी बहुत -'कि वो कुछ दिनों के लिए ,अपने घर चली जाये ,किन्तु उसने भी बलविंदर से ''प्रेम विवाह '' किया था। उसे उम्मीद नहीं थी- कि उसके घरवाले उसे रख लेंगे। दूसरे जब तक उसने शब्बो को देखा नहीं था ,तब तक उसे कोई परेशानी नहीं थी किन्तु जबसे उसने ,शब्बो के रूप -यौवन को देखा है ,तबसे उसके अंदर ,असुरक्षा की भावना घर कर गयी है।
तब चेतना ने उन्हें ,समझाया ,ये कहीं नहीं जा रही ,ये लोग तो जा सकते हैं और उसने उन्हें ,कुछ इंतजाम करने के लिए कहा ,जिसमें उन्हें ,दो या तीन दिन तो लग ही जायेंगे।
चेतना ने ,पम्मी के सामने फोन करने का झूठा नाटक किया और बोली -उसे अभी आने में ,तीन -चार दिन लग जायेंगे। तुम्हारी बेटी को अलग बड़े शहर में रखकर ,उसके साथ ज़िंदगी की नई शुरुआत करना चाहता है। इसके लिए उसे थोड़ा समय तो चाहिए ही। माता -पिता को और क्या चाहिए ?कितना ख़्याल रखता है ?उनकी बेटी का ,उसे बड़े शहर ले जाना चाहता है ,ये सब उसी के लिए ही तो कर रहा है। पम्मी के मन से ,जैसे बोझ उतर गया ,उसने गहरी साँस ली ,जब वो जाने लगी ,तब चेतना बोली -अब तो जितना भी खाना तूने बनाया है ,बच जायेगा ,उसे बर्बाद मत करना ,मेरे घर भिजवा देना। कहकर मन ही मन खुश हुई चलो , आज शाम के खाने की छुट्टी......
शब्बो तो जैसे बहुत प्रसन्न हुई ,अगले दिन फिर से अपनी पम्मी से बोली -मम्मीजी !अब तो मैं ,आपसे बहुत दूर चली जाऊँगी ,पता नहीं, फिर कब आना हो ? अब ये दो -चार दिन ,मुझे मेरे कॉलिज जाने दीजिये ,अपने कॉलिज के दोस्तों से भी मिल लूँगी। पम्मी को ये बात जंची ,बेटी की ख़ुशी के लिए ,दो -चार दिन उसे उसके कॉलिज जाने में ,कोई बुराई नजर नहीं आई और उसने उसे जाने के लिए कहने से पहले समझाया -चुपचाप निकल जाना , इस चेतना को पता न चले वरना वो'' तिल का ताड़ ''बना देगी।जानती तो पम्मी भी थी -कि ये बहुत चालाक है ,किन्तु परिस्थितियों ने ही साथ नहीं दिया और वो इनके घर में घुसती चली गयी और अब तो उनकी रिश्तेदारनी भी बन गयी। लड़के की बुआ जो ठहरी ,न चाहते हुए भी ,उसकी बात मानने के लिए ,अपने को विवश पाते हैं। हमारी इकलौती लड़की है ,एक इसका भाई भी होता तो अपनी बहन की सुरक्षा स्वयं कर लेता, सोचकर ही पम्मी की आँखें गीली हो गयीं।
अगले दिन शब्बो ,कॉलिज पहुंची ,संयोग से उसे ,सामने ही समीर दिख गया। उसे देखकर वो इतना भावुक हो गयी ,जैसे -अभी रो देगी ,शब्बो को देखकर ,समीर पीछे वाले बगीचे की तरफ मुड़ गया ,वो जानता था -कि मुझसे अवश्य ही मिलेगी ,पीछे वाले बगीचे में ,भीड़ भी नहीं रहती ,वहां वो लोग मिलकर आराम से बातें कर सकते हैं। शब्बो भी समझ गयी और उसी के पीछे हो ली। एकांत मिलते ही ,आज वो उससे लिपट गयी और रोने लगी। समीर ने उसे शांत किया ,कॉलिज का वास्ता देकर ,अपने से अलग किया। कुछ देर इसी तरह सुबकने के पश्चात ,वो बोली -मैं प्रतीक्षा करती रही।
उसका प्रश्न सुनकर ,समीर ने ग्लानि से अपनी नजरें ,नीची कीं और बोला -मैं किसी अनजान से धोखा खा गया। तब वो अपने साथ हुए हादसे को बताने लगा।
तब शब्बो बोली -ये सब तो मुझे ,शिल्पा ने बताया।क्या उस व्यक्ति की कोई पहचान..... कुछ भी ध्यान नहीं है।
समीर ने नजरें ,नीची कर ,''नहीं'' में गर्दन हिलाई ,और बोला -मैंने मम्मी को यही सब बातें बताईं ,तब उनका शक़ तुम्हारी बुआ पर गया ,तुम्हारा विवाह होना ,मेरा किसी अनजान जगह पर बंद कर देना ,किसी की सोची ,समझी साज़िश है। तब शब्बो ने भी ,बुआ वाली बात उसे बता दी, कि किस तरह वो उन लोगों से बात कर रही थी ? किसी को भी कुछ भीं बताने के लिए मना कर रही थी। अब तो वे लोग इस बात से सहमत हो गए ,कि ये सब बुआ का ही किया धरा है।