शब्बो खाना बनाने वाली के सहयोग से ,बलविंदर के चंगुल से छूटकर भाग जाती है और अपने घर पहुंच जाती है। तब घरवालों को बलविंदर की....... सम्पूर्ण सच्चाई उनके सामने बताती है। जिस कारण,उसके पापा उन बुआ -भतीजे के खिलाफ़ थाने में रिपोर्ट कर देते हैं।बलविंदर और उसकी बुआ पकड़े जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में ,उसकी सहेली शिल्पा भी उससे मिलने आती है और तब शब्बो को मालूम पड़ता है -उसका प्रेमी समीर अब उसकी सहेली का पति है ,ये बात शब्बो सहन नहीं कर पाती और उसकी तबियत बिगड़ जाती है। शब्बो की मम्मी पम्मी सोचती है -शायद इसे अपनी ससुराल के कारण ,दुःख हुआ है ,जब उसकी माँ शब्बो की देखभाल कर रही होती है ,तभी शिल्पा मुस्कुराती है किन्तु उसकी मुस्कुराहट शब्बो देख लेती है। शब्बो का दिमाग़ जैसे सुन्न हो गया। पम्मी ने उसे दवाई दी, जिसे खाकर शब्बो कुछ देर के लिए सो गयी। सोने से उसका मन थोड़ा शांत हुआ।
जब वो उठी ,तब उसे पुनः शिल्पा और समीर के विवाह की बात स्मरण हो आई और वो फिर से परेशान हो उठी, तभी उसे शिल्पा की कुटिल मुस्कान भी स्मरण में आई। तब उसे एहसास हुआ ,इस तरह परेशान होने से कुछ नहीं होगा ,पहले इन बुआ -भतीजे से निपट लूँ ,तब एक बार समीर से भी मिलूंगी। वो अपने मन को मजबूत कर आगे बढ़ने की सोच रही थी। तभी पम्मी भी उसे देखने आई ,शब्बो की खुली आँखें देखकर शब्दों में प्यार भरते हुए बोली -उठ गयी बेटा !!
जी मम्मी जी !
अब कैसा महसूस कर रही है ?शब्बो ने गर्दन हिलाई ,जैसे कह रही हो अब ठीक हूँ। पम्मी बोली -आजकल कुछ भी ठीक नहीं हो रहा ,पता नहीं ,अभी क्या देखना और लिखा है ?एक बात पूछूं -अपनी माँ से सही -सही बतायेगी ,देख !!!!अब कुछ भी मुझसे मन छुपाना। जो भी हुआ ,अब मुझे लगता है ,शायद इसके लिए मैं भी ज़िम्मेदार हूँ ,मैंने तेरा कहा नहीं ,उस चेतना का कहा माना। अब मैं तुझसे कुछ पूछना चाहती हूँ ,सच -सच बताना। क्या समीर वो ही लड़का है ?जिससे मिलने का इल्ज़ाम चेतना ने तेरे ऊपर लगाया था।
पम्मी की बात सुनकर ,शब्बो चुप रही और उसकी आँखों से ,आँसू बहने लगे ,फिर बोली -आप तो ,कपड़े लेने छत पर गए थे फिर आपने क्या सुना ?
सुना कम, महसूस ज्यादा किया ?
क्या मतलब ???
जब वो अपने पति समीर के विषय में ,बता रही थी ,तब मैं तुम्हें देख रही थी और तुम्हारी हालत भी ,एक माँ से अपने दिल की बात तो तुम छिपा सकती हो किन्तु अपने जज़्बात नहीं ,जब मैंने तुम्हारा चेहरा देखा ,तभी समझ गयी, कुछ न कुछ बात अवश्य है। तभी चेतना की वो बात स्मरण हो आई ,जब उसने तुम्हें किसी लड़के से मिलने वाली बात..... मुझे बताई ,उस समय तो मुझ पर ,बलविंदर और उसकी बुआ का ही जादू चढ़कर बोल रहा था। बेटा !मुझे माफ कर दे ,मैंने तेरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी।
नहीं मम्मीजी ,इसमें आपका क्या दोष ?शायद मेरी किस्मत में यही लिखा था।
अब तू मुझसे ,एक बात और सच -सच बताना ! जब तू थाने में बुआ से जो कह रही थी।
क्या कह रही थी ????
यही कि ,इसने मेरी रातों की क़ीमत लगाई है ,मुझे सब ठीक से बता ,पम्मी को लगा ,शायद ये ,कुछ विशेष बात तो मुझसे छिपा ही गयी है ,जो अभी तक नहीं बताई ,तब बोली -तुझे मेरी कसम....... तूने जो भी सहा ,मुझे सब सच -सच बताना ,तूने ऐसा क्यों कहा ?
मम्मी जी आप......... नाहक ही परेशान हो रहे हो ,दो दिन पहले भी आपकी तबियत ठीक नहीं थी। अब जो भी उन लोगों ने किया है ,वो तो भुगतेंगे ही।
हाँ ,किन्तु जो मैं समझ रही हूँ ,तू मुझे स्पष्ट रूप से समझा। देख !!!!तू मुझे सच -सच बता ,मेरे मन में कुछ बेचैनी सी है ,उसे दूर कर.........
हाँ ,मम्मीजी ! जो आप समझ रही हैं ,वो सही है। उसने पैसों के लालच में मेरी ''सुहागरात ''की भी कीमत लगा दी थी। किसी खन्ना के हाथों ,न जाने मुझे क्या खिलाया ? मुझे पता ही नहीं चला ,रात्रि को मेरे संग क्या हुआ ? मैं नहीं जान पाई। सुबह वो ही मेरे पास बिस्तर में होता ,एक रात्रि ही नहीं वरन मैं तो उसकी कमाई का जरिया बन गयी थी। इसी काम की कमाई तो, वो मैं खा रहे थे किन्तु जब मैं गर्भवती हुई ,तब उसी ने बताया और इसी कारण मेरा गर्भपात करवाया क्योंकि वो बच्चा तो उसका था ,ही नहीं। कहते हुए जब उसने अपनी मम्मी की तरफ देखा...... तो वो आँखें मूँदे पड़ी थीं। मम्मी जी ! यही बात मैंने ,आप लोगों से छिपाई कहते हुए माँ का हाथ पकड़ा तो उसका हाथ नीचे लटक गया। शब्बो जोर से चीख़ी -मम्मीजी......!!!!!!!!
वो तेजी से दौड़कर ,रसोईघर में गयी और पानी लेकर आई और अपनी मम्मी के चेहरे पर छिड़का किन्तु उन्हें होश नहीं आया। तब उसने घबराकर अपने पापा को फोन किया। शीघ्र ही उन्हें अस्पताल ले जाया गया। तब पता चला- कि उन्हें तो ''दिल का दौरा ''पड़ा था। मुसीबत पर मुसीबत आती ही जा रही हैं। इधर ब्याही भरी बेटी, घर आकर बैठ गयी। दूसरी तरफ पम्मी ,शब्बो की माँ अस्पताल में पड़ी है। शब्बो के पिता भी ,क्या -क्या करें ?व्यापार संभालें या पत्नी को देखें या बेटी को सांत्वना दें। वो परेशान से ,अस्पताल की बेंच पर बैठे थे। शब्बो को लगता है - अकेले पापा क्या -क्या संभालेंगे ?मैंने भी न,उन्हें कितनी परेशानी में डाल दिया ? कम से कम उन्हें इस बात की ख़ुशी तो थी- कि बेटी वहां खुश है। मैंने इनकी वो ख़ुशी भी छीन ली। पापा ! शब्बो ने अपने पापा को पुकारा। ,उन्होंने शब्बो की तरफ देखा ,वो चाय लिए खड़ी थी ,पापा !आप चाय पी लीजिये ,रातभर से यहाँ हैं ,अब आप घर जाइये और आराम करिये ,अब मैं यहाँ रहूंगी।
उन्होंने शब्बो के हाथों से चाय ले ली और बोले -अब तेरी माँ को साथ लेकर ही चलेंगे कहकर चाय पीने लगे। शब्बो भी ,उनके समीप ही बैठ गयी और बोली -डॉक्टर ने कुछ बताया ,मम्मी को क्या हुआ है ?
हाँ ,''दिल का दौरा ''बताया है।