करतार के ''विदाई समारोह ''में अचानक ही ,शब्बो के पापा मंच पर आ जाते हैं और करतार से अपनी बेटी शब्बो की ज़िम्मेदारी लेने के लिए कहते हैं ,इतना सुनते ही ,करतार तो....... अत्यंत प्रसन्न हो जाता है ,इस बात की जानकारी ,शब्बो को भी नहीं थी। वो ये तो जानती है, कि करतार उसे पसंद करता है किन्तु पापा अचानक इस तरह उसकी ज़िंदगी का फैसला ले लेंगे ,ये नहीं जानती थी। करतार से कुछ भी कहने से पहले ,वो अपनी ज़िन्दगी में आये ,उन स्याह पन्नों की जानकारी करा ,उन्हें अपनी ज़िंदगी की क़िताब से निकाल फेंकना चाहती थी ताकि उसकी आने वाली ज़िंदगी पर, किसी भी तरह की परेशानी न आये। उन पन्नो को वो साफ और उज्ज्वल रखना चाहती थी। किन्तु करतार तो अपनी ही ख़ुशी में, शब्बो के मन की उधेड़ -बुन को नहीं समझ पाया। वही समय उसने अंगूठी की रस्म करने का उपयुक्त समय समझा और उसने ये रस्म भी कर डाली। विवाह का समय अगले दिन के लिए तय किया गया। शब्बो की ज़िंदगी में ये सब अचानक हो रहा था। वो कुछ समझ ही नहीं पा रही थी ,सब कुछ जैसे पहले से ही तय था और वो कठपुतली की तरह ,चले जा रही थी।
अगले दिन ,माँ न होने के कारण ,मौहल्ले की कुछ महिलाओ द्वारा ,उसके कुछ नेग किये गए और उसे गुरुद्वारा ले जाया गया। रस्में तो पहले भी हुई थीं ,तब तो उसकी मम्मी जी भी थी। कितनी खुश थीं ?वो ! उस समय भी शब्बो असमंजस की स्थिति में थी क्योकि तब वो बलविंदर से विवाह नहीं करना चाहती थी। आज भी उसी स्थिति में है किन्तु आज वो करतार को चाहती तो है ,किन्तु उसे इतना अच्छे से नहीं समझती। करतार ने भी ,उससे प्रेम का इज़हार तब किया ,जब वो जा रहा है। न ही उसे समझने का मौका मिला ,न ही ये पता ,कि उसके साथ विवाह करके ,जहाँ जाएगी ,वो लोग उसे अपना भी लेंगे या नहीं। सभी के लिए ,एक बड़ा झटका होगा। पता नहीं ,उन लोगों का क्या व्यवहार हो ?अपने बड़ों से आशीष लेकर ,अनमनी सी गुरुद्वारे से बाहर आई। पिता के गले लगकर रोने लगी।
बेटा ! रोने की आवश्यकता नहीं ,करतार बहुत ही अच्छा लड़का है ,और तुझे पसंद भी करता है ,अब मैं अकेला तो रह जाऊंगा किन्तु मेरी सबसे बड़ी चिंता को तो ,करतार ने दूर कर दिया। फिर मुस्कुरा कर बोले -अब तेरा स्कूल भी मुझे ही संभालना होगा। मुझे तो एक पल का भी समय नहीं मिलेगा ,तू मेरी फ़िक्र न करना , मैं खूब स्वस्थ रहूंगा।
आपका खाना !!!!
ओय ,तू मेरी रोटियों की चिंता न कर ,बबलू का ढाबा है ,न..... तू बेफ़िक्र होकर जा ,कुछ परेशानी होगी तो मैं तेरे पास ही आ जाऊंगा या तुझे अपने पास बुला लूँगा।
शब्बो अपने पिता की फ़िक्र करती ,इस उम्र में उन्हें अकेला छोड़ चली गयी। करतार के गांव पहुंचने में ,उसे शाम हो गयी। बेबे करतार को नवविवाहिता जोडे में ,किसी लड़की के साथ देखकर ,परेशान हो उठी।
ये कौन हैं ?बेबे समझकर भी नहीं समझ पा रही थी ,जो उसका मन कह रहा था ,उसकी सच्चाई अपने बेटे के मुँह से सुनना चाहती थी।
बेबे ,मेरी वोट्टी है ,तेरी बहु !!!!
ये तूने क्या किया ? इसे कहाँ से उठा लाया ?बेबे क्रोध में भरकर बोली।
बेबे पहले ,तू अपनी बहु का स्वागत तो कर ,अंदर आने दे ,तब बात करते हैं , ऐसे बाहर तमाशा नहीं।
करतार के पिता ने ,कहा -जब तो तू लड़की देखती डोल रही थी ,अब बहु आ गयी तो ,उसका स्वागत कर , घर में लक्ष्मी आई है।
बेबे ने अपने पति को घूरा और कालिंदी से ,उनके स्वागत के लिए थाली सजाने को कहती है।
शब्बो समझती थी ,कि घर में किसी को कोई भी जानकारी न हो अचानक लड़का बहु लाकर ,खड़ा हो जाये तो क्रोध आना स्वाभाविक है। नाराजगी तो झेलनी ही होगी।
बेमन से बेबे ने स्वागत किया ,कालिंदी शब्बो को साथ लेकर अंदर चली गयी किन्तु करतार की तो क्लास लग गयी उसी ने ,बेबे के सभी सवालों का जबाब दिया। अगले दिन ,शब्बो की मुँह दिखाई की रस्म हुई सभी ने शब्बो के रूप की खूब प्रशंसा की किन्तु बेबे के चेहरे पर मुस्कुराहट न आई। उसे दुःख था ,यदि इसे ये पसंद ही थी तो मुझे पहले भी तो बता सकता था।
करतार ने ,भी शब्बो को समझाया कुछ दिनों तक तो बेबे की नाराजगी झेलनी ही होगी।
रात्रि में जब ,करतार शब्बो के समीप आया ,तब शब्बो अनमनी सी हो गयी। करतार उसे इस तरह देख बोला -माना कि ,हमारा विवाह बहुत ही जल्दबाज़ी में हुआ। तुम यकीन नहीं करोगी ,मेरी चाहत बहुत पुरानी है। जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था। मैं तो तभी तुम्हारा हो गया था ,तुम्हारी ही तलाश में ,इस गांव आया था किन्तु मुझे इस बात पर दुःख हुआ था कि तुम्हारा विवाह हो गया। तब मैंने इसे ही अपनी किस्मत समझ लिया था किन्तु जब तुम्हें उस हालात में देखा तो दुःख हुआ और एक उम्मीद जागी थी।'' भगवान के घर देर है ,अंधेर नहीं।'' और उस'' वाहे गुरु ''ने हमें फिर से मिला दिया।
शब्बो बोली -तुमने अपने प्यार का इजहार किया और हम मिल भी गए किन्तु क्या अभी हम दोस्त बनकर ही रह सकते हैं ?बेबे ,ने भी अभी मुझे अपनी बहु के रूप में स्वीकार नहीं किया। हम पहले एक -दूसरे को समझ लें क्योंकि सब कुछ इतनी जल्दबाज़ी में हुआ ,अभी तक तो मुझे ही यकीन नहीं हो रहा कि मेरा तुमसे विवाह हो गया।
जैसा तुम ठीक समझो ! कहकर करतार करवट बदलकर सो गया।