अभी तक आपने पढ़ा - शब्बो और करतार विवाह के पश्चात ,पहली बार गुरदासपुर जा रहे हैं ,इस बीच अब उसकी मम्मीजी भी नहीं रहीं। मायके के नाम पर ,उसके घर में ,उसके पापाजी के सिवाय है ही कौन ?करतार तो शब्बो को घुमाने के उद्देश्य से , झूठ बोलकर लाया था कि वो शब्बो को उसके मायके ले जाना चाहता है और शब्बो को ,अपनी योजना से अचम्भित कर देना चाहता था किन्तु शब्बो ने उसकी योजना पर पानी फेर दिया। अब करतार शब्बो को अपनी योजना सीधे -सीधे बता देता है ,और फैसला शब्बो पर छोड़ता है। शब्बो पहले अपने पिता से मिलने के पश्चात ,कहीं और जाने का निर्णय सुनाती है। अब वो बस से गुरदासपुर के लिए बैठ जाते हैं। रास्ते में शब्बो ,अपने गांव की बरसों पहले की गलियों में खो जाती है ,जब वो तारा के पकड़े जाने पर ,अपने गांव वापिस आती है। तब गांव के लोगों ने किस तरह ,उसका और उसके परिवार का स्वागत किया था। इसी चहल -पहल में भी, उसे बलविंदर याद रहता है और उसका स्मरण होते ही ,वो भीड़ से अलग अपने प्रेम से मिलना चाहती है। अब आगे -
मम्मीजी अब घर चलिए ,बहुत दिन हो गए ,मैं थक भी गयी हूँ। अब मैं अपने घर जाकर आराम करना चाहती हूँ।
उसके जाने का उद्देश्य ,एक बार बलविंदर को देखना था और उससे अपनी नाराजगी भी जतानी थी। जब पूरा गांव आया तो ,वो क्यों नहीं आया ?वो ही क्यों ?टोनी और उसकी मम्मी जी भी , कहीं नहीं दिख रहीं। कहीं चाचीजी से ,मम्मीजी का झगड़ा तो नहीं हो गया? अपने विचारों को विराम देते हुए ,बोली -मम्मीजी टोनी और उसकी मम्मीजी कैसे हैं ?
सब ठीक ही होंगे ,मेन्नु कि पता ,मैं तो तेरे नाल थी न , कहते हुए ,वो आगे बढ़ गयीं।उनके घर के बाहर खड़ी होकर ,शब्बो कुछ देर यूँ ही निहारती रही ,जैसे उसे एक उम्मीद थी कि अभी कोईं घर से बाहर निकलकर आएगा और उससे उसका हालचाल पूछेगा ,कुछ देर इसी तरह निहारती रही ,तभी मम्मीजी की कड़क आवाज ने उसका ध्यान भंग किया। शब्बो...... ओय शब्बो ,आ अंदर !
आई मम्मीजी ,उसने भी तेज स्वर में उत्तर दिया ताकि पड़ोसी भी सुन लें कि शब्बो आ गयी।
घर आकर ,अपने बिस्तर का सुकून कुछ और ही होता है ,अपने सब हाथ -पैर फैलाकर शरीर की ढीला छोड़कर ,आँखें मूंदकर लेट गयी। तब भी उसे बल्लू का ही स्मरण हो रहा था और उसकी स्मृतियों को ही नींद की चादर ने अपने में लपेट लिया। तभी एकाएक किसी ने पीछे से आकर उसकी आँखें बंद कर दीं। उन हथेलियों का गर्म एहसास ,उसे महसूस हो रहा था। उसने अपने हाथों के ,स्पर्श से उस हथेली की ऊष्मा को महसूस करना चाहा किन्तु वो स्पर्श बार -बार बदल रहा था -कभी ठंडा कभी गर्म ,एक बार तो उसने उस हाथ को पकड़कर छोड़ा ही नहीं।
आँख खोलकर देखा ,उसकी सहेलियों संग बलविंदर भी खड़ा था और सभी उसकी परीक्षा ले रहे थे कि वो उनमें से किसी को पहचान पाती है कि नहीं, किन्तु वो तो सिर्फ बलविंदर के लिए ही यहाँ आई है और कहती है -मुझे नहीं खेलना ,तुम लोग, मुझे इस तरह सता रही हो ,मेरी दोस्त होकर ,उसके संग हो। वो रूठकर जाने लगी ,किन्तु कोई भी उसके पीछे नहीं आया। तभी वो पीछे मुड़कर देखती है ,वहाँ तो कोई भी नहीं ,वो उन्हें ढूंढने का प्रयत्न कर रही है। वो उन्हें ढूंढते -ढूंढते थक जाती है ,अब तो अँधेरा भी होने लगा ,तब वो अपने घर जाने के लिए दौड़ने लगती है ,दौड़ते -दौड़ते वो थक रही है और एक पहाड़ी स्थल पर बैठ जाती है। तभी पीछे से आकर कोई उसे डराता है और वो जैसे ही पीछे को मुड़ती है उसका पैर फिसल जाता है और वो तेजी से चीख़ती है -मम्मीजी....... उसकी चीख़ इतनी तेज और भयमिश्रित थी ,उसकी मम्मीजी दौड़ी -दौड़ी आईं। उन्होंने देखा -शब्बो ,पसीने से लथपथ और डरी हुई थी।
क्या हुआ ?मेरी बच्ची....... !क्या कोई बुरा सपना देखा ?कहकर वे उसके समीप जाकर बैठ गयीं और उसका सिर अपनी गोद में रख लिया।
तुम भी न ,लापरवाही करती हो ,कई दिनों से बच्ची बाहर है ,न जाने किस -किस की बुरी नज़र लगी होगी ?अवश्य ही कोई बुरा सपना देखा होगा ,इसकी नज़र उतार दो ,बाहर से उसके पापाजी की आवाज आ रही थी।
ये लोग, मेरा कितना ख़्याल रखते हैं ?और मैं हूँ , कि उसकी चिंता में घुली जा रही हूँ ,जिसे मेरी तनिक भी फिक्र नहीं ,ऐसे विचार आते ही ,वो एकदम से उठी और बोली -चलो मम्मीजी ,बाहर चलकर पापाजी के पास बैठते हैं।
बाहर आकर ,सब एक साथ शाम का नाश्ता करते हैं ,मम्मीजी को तो ऐसा लग रहा था ,पता नहीं ,अपनी बेटी को ,न जाने क्या -क्या बनाकर खिला दे ?नाश्ते के पश्चात उसके पापाजी तो बाहर निकल गए। तब वो अपनी मम्मीजी से बोली -मम्मीजी !वो बलविंदर...... अभी कुछ कहती उससे पहले ही टोनी की मम्मी आती दिखीं और उन्होंने बलविंदर का नाम भी सुना।
उसकी मम्मीजी कुछ कहतीं उससे पहले ही 'टोनी 'की मम्मीजी बोलीं -हां पुत्तर ,वो तो ठीक -ठाक है ,तू अपनी फ़िकर कर। उनके शब्दों का लहज़ा उसे कुछ ठीक नहीं लगा।
शब्बो बोली - चाचीजी ,मैं कुछ समझी नहीं ,होर तुसी अब आ रहे हो। जहाँ गांव के लोगों ने ,स्वागत किया ,वहां तो आप कहीं नहीं दिखे।
इसमें तूने 'कौन सा तीर मार लिया '?लोग तो ये भी कह रहे हैं कि इतने दिनों कहाँ रही ?और बदमाशों के साथ होटल में भी रातें बिताई और उन्होंने न ही कुछ कहा और किया भी नहीं।
तभी पम्मी रसोई से बाहर आकर बोली -बहनजी !मैंने तो किसी को भी ,कुछ भी कहते नहीं सुना ,किन्तु तुस्सी जरूर कह रहे हो ,जब भी आई ,जहर ही उगला ,इससे तो न आती ,तो ही ठीक था। कम से कम दुःख होता। अब आकर हमारा सीना छलनी करने आये हो ,बेचारी बच्ची ,पर कैसा इल्ज़ाम लगा रहे हो ?कहने से पहले ,सोच तो लिया होता।
वे कौन लोग हैं ?हमारे सामने लेकर आओ !लोगों से हमारी ख़ुशी देखी नहीं जाती ,जो खुश थे सभी वहाँ जलसे में थे। कहते -कहते क्रोध से पम्मी की आवाज़ तेज हो गयी। मेरी बच्ची कोई कमजोर नहीं ,तुवाड़े भांजे को बचाने वास्ते ही नदी में कूदी थी और बेचारी बच्ची न जाने कहाँ फँस गयी ?
टोनी की मम्मीजी को बुरा तो लगा ,वो' ईंट का जबाब ,पत्थर से देना ''जानती है किन्तु इस समय उनके घर बैठी थी ,बोली -बहनजी !तुसी तो 'ऐ वइ परेशान हो रहे हो ,मैंने तो वही कहा ,जो लोग कह रहे हैं। इतने दिनों बदमाशों के बीच कैसे रही ?
''ऐसे ही रही जैसे ,रावण की लंका में सीता रही ''पम्मी ने जबाब दिया। तुस्सी तो साड्डे पड़ोसी हो ,अपनी बच्ची नू पहचानते हो ,तभी कहने वाले का मुँह क्यों नहीं तोड़ दिया ? गंदगी उनके दिमाग में है ,जो कह रहे हैं ,पहले अपने दिमाग का इलाज़ करायें।
उन दोनों की बातें सुनकर ,शब्बो रोते हुए अपने कमरे में चली गयी ,और सोचने लगी -लोग ऐसा भी कुछ सोच या कह भी सकते हैं।