शब्बो समीर से उसके विवाह और अपहरण के विषय में जानना चाहती है ,तब समीर उसे सम्पूर्ण कहानी सुनाता है -जिससे शब्बो को पता चलता है ,कि समीर से विवाह करने की शिल्पा के परिवार की साजिश थी। वह निराश हो जाती है और समीर से कहती है -मेरे जीवन में तुमसे विवाह लिखा ही नहीं था ,लोग हमारे विरुद्ध साजिश करते रहे किन्तु हम कुछ नहीं कर पाए। शिल्पा जिसे उसने सीधी और सच्ची सहेली समझा ,वो ही उसके दोस्त को ले उड़ी। मैं चाहुँ तो ,उससे बदला ले सकती हूँ और उसकी पोल भी खोल सकती हूँ किन्तु अब मैं उसका घर नहीं तोडना चाहती ,जो उसने मेरे साथ किया जरूरी तो नहीं मैं भी उसके जैसी हो जाऊँ।
अब किया भी क्या जा सकता है ?अब तो..... बस उस अपहरणकर्ता का पता लगाना है जिसने तुम्हारा अपहरण किया। तुम्हारे अपहरण करने से उसे क्या लाभ मिला ?बहुत दिनों बाद दोनों मिलें अपने -अपने दिल की भड़ास निकाली जो महीनों से दिलों में ,दबी पड़ी थी।
अब वो अपने घर के लिए चली तभी उसे स्मरण हुआ ,थाने जाकर जरा इंस्पेक्टर साहब से मिला जाये उन बुआ भतीजे ने कुछ और भी कुबूल किया या नहीं। करतार सिंह अपनी कुर्सी पर बैठा था ,उसे देखते ही उठा और बोला -आइये !
इंस्पेक्टर साहब ! अभी उन लोगों ने और भी कुछ बताया या नहीं।
नहीं ...... ये केस तो सीधा सा है ,बुआ ने तुम्हारे पापा की जायदाद के लिए ,अपने भतीजे का दूसरा विवाह कराया।
क्या उसने कुबूल कर लिया ? कि उसका पहले विवाह हो चुका है।
हाँ, माना तो है किन्तु अभी अपनी पत्नी का नाम नहीं बताया ,उस तक अभी हम नहीं पहुंचे हैं।
शायद उसे कहीं छिपा दिया गया है ताकि हम उसे गवाह के तौर पर अदालत में पेश न कर सकें और अदालत तो कही बातों पर नहीं ,सुबूत पर विश्वास करती है। जब तक वो नहीं मिल जाती या फिर उसके विवाह की कोई तस्वीर ,तब तक हम उसे पहले से ही विवाहित ,के रूप में पेश नहीं कर पाएंगे।
वो ही तो....... ये बुआ की योजनाएं इतनी ,फुल प्रूफ़ थीं कोई भी सबूत तो नहीं मिल पा रहा ,आज मैं उस लड़के से भी मिली जिसका अपहरण हुआ था ,उसे भी कोई जानकारी नहीं।
इंस्पेक्टर ने शब्बो के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए पूछा -आप उस लड़के को कैसे जानती हैं ,और उसका आपसे क्या संबंध है ?
इंस्पेक्टर साहब हम लोग एक ही कॉलिज में पढ़ते थे ,और वो हमारी सहायता कर रहा था ,बलविंदर के विरुद्ध सबूत ढूंढने में ,तभी उसे अपहरण कर लिया गया।
उसे कैसे पता चला ?कि बलविंदर झूठा और धोखेबाज़ है।
उसी ने तो उन दोनों को साथ में देखा था ,जैसे मैं भी आपको बहुत दिनों से देख रही हूँ ,कि कहीं देखा है ,जाने -पहचाने से लग रहे हैं किन्तु स्मरण नहीं हो रहा। उसने भी इसी तरह उन्हें कहीं पिकनिक में देखा था।
ओह !तो ये बात है ,मैं तो सोच रहा था ,तुम्हें सब याद आ गया होगा।
दिमाग में इतनी परेशानियाँ रहीं ,उधर मम्मी जी भी नहीं रहीं ,मन भटक रहा है ,अभी एकाग्रचित्त नहीं हुआ। अब आप ही बता दीजिये ,शायद आपने ही मुझे कहीं देख लिया हो।
कहीं देखा नहीं वरन हम अच्छे से मिले हैं ,तब मैं इंस्पेक्टर नहीं था। तुम छोटी भी थीं ,शरमाते हुए से बोला -मैं भी ज्यादा बड़ा नहीं था ,तब मेरी नौकरी लगी ही थी। कुछ स्मरण आया ,तारा देवी का केस.......
ओह ! अब सब कुछ स्पष्ट हो गया ,मैं भी तो सोचूं ,इन साहब को मैंने कहीं देखा है।
तब तुम कितनी प्यारी और खूबसूरत थीं ,बुद्धिमान होने के साथ -साथ बहादुर भी......
अब आप मेरी प्रशंसा ही करते ही रहेंगे किन्तु आपने भी कम उन्नति नहीं की ,आप तो मुझे पहले से ही जानते हैं। अब तो मेरे केस में कोई परेशानी भी नहीं होगी।
आपके केस में पहले भी कोई परेशानी नहीं होती ,मैं अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी से निभाता हूँ। आपके केस में बलविंदर ने आपको धोखा दिया और बुआ भी इसमें शामिल है बल्कि बुआ ही नहीं ,पूरा परिवार ही इसमें सम्मिलित है ,सभी को सजा मिलेगी।
शब्बो का दिल किया कि एक बार तो कम से कम वो इंस्पेक्टर से ,अपने गर्भवती होने और उसकी रातों की कीमत लगाने की बात भी इंस्पेक्टर को बताये ,किन्तु तभी उसे अपनी मम्मी की बात स्मरण हो आई। ''तेरी पूरी ज़िंदगी पड़ी है ,हमारा उद्देश्य इन लोगों को सजा दिलवाना है ,न कि अपना तमाशा बनवाना। सजा तो इन्हें तब भी मिल ही जाएगी। ''शब्बो मन में ही सोचकर रह गयी। इंस्पेक्टर इसे जानता है ,ये और भी अच्छा हुआ। अब शब्बो ने ,पुरानी पहचान होने के नाते ,करतार को अपने घर खाने पर भी बुला लिया। पहले तो वो न नुकुर करने लगा किन्तु शब्बो के इसरार करने पर मान गया। करतार ने भी सोचा ,शायद केस के सिलसिले में कुछ जानकारी मिल जाये।
शाम को करतार सिंह खाने पर आता है ,शब्बो ने बहुत ही अच्छा खाना बनाया ,उसके पिता ने बहुत ही अच्छा व्यवहार किया। करतार देख पा रहा था ,एक पिता किस तरह परिस्थितियों से जूझ रहा था ? एक तरफ पत्नी की मौत ,दूसरी तरफ ब्याही भरी बेटी का इस तरह घर वापस आ जाना और उसके केस में अपने बेटी को न्याय दिलाना। और अपना व्यापार भी संभाल रहे हैं। किस तरह अपने मन की कोई भी बात बिना बताये ? उन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। एक बाप का दर्द ,एक पति का दर्द का ,अपने अकेलेपन का दर्द झेल रहे हैं। उनसे बातें करते हुए ,एक इंस्पेक्टर की तरह नहीं एक आम आदमी की तरह मैंने उनके दर्द को महसूस किया। तब मैंने पूछा -मान लीजिये ,आप केस जीत जाते हैं और उन लोगों को सजा भी हो जाती है। तब शब्बो का क्या होगा ?
उनका दर्द जैसे उनके चेहरे पर झलक आया और बोले -अभी तो ,मैं अकेला हूँ ,यही मेरा सहारा है ,अब मैंने सब सोचना छोड़ दिया है ,सब समय पर छोड़ दिया।
करतार उनका दर्द ,उनकी परेशानी अपने साथ लेकर, अपने घर आ गया। वो सोच रहा था -कि एक पुरुष को कितना समझदार और मजबूत बनना पड़ता है ?''वो अकेला हो जाता है ,उस अकेलेपन को ,अपने अकेलेपन से ही बांटता है।'' वो तो किसी के काँधे पर सर रखकर रो भी नहीं सकता। घर आकर बिस्तर पर लेटकर सोच ही रहा था। तभी माँ का फोन आ गया।
हैलो !
हैलो ! करतारे तू कैसा है ?तुझे इससे पहले भी फोन किया था ,तूने उठया क्यों नहीं ?
माँ ,मैं खाना खाने गया था ,वहाँ मुझे इस तरह फोन उठाना अच्छा नहीं लगा।
क्यों ? क्या किसी लड़की के साथ था ?
क्या माँ ????तुम भी कुछ भी बोलती रहती हो।
कुछ भी नहीं बोल रही हूँ ,अब तू बत्तीस वर्ष का हो गया। मेरा बुढ़ापा भी आगे बढ़ता जा रहा है। तू कब विवाह करने वाला है ?एक फोटो भेजा है ,देख लेना कहकर माँ ने फोन काट दिया।