बलविंदर और शब्बो शहर में आ जाते हैं ,शब्बो अपनी माँ की बातें स्मरण करती है। माँ ने बताया था -ये रिश्ता ,''सात जन्मों '' का बंधन है, किन्तु शब्बो को तो लगता है ,जैसे ये इस जन्म में भी ,जबरदस्ती का रिश्ता है। घर की चौहदवीं मंजिल से बाहर उसने भागती -दौड़ती गाड़ियों को देखा ,जो किसी खिलोने की तरह नजर आ रही थीं। ईश्वर भी न जाने क्या -क्या खेल खेलता है ?कभी हमारी ज़िंदगियों संग ,कभी हमें ही अजब खेल तमाशे दिखा देता है। कितनी ऊंचाई है ?यहाँ से मुझे हर आदमी छोटा -बोना नजर आ रहा है ,वैसे तो इंसान ,अपने कर्मों द्वारा ,लघु होता जा रहा है। यहाँ गाड़ियां भी किसी खिलोने की तरह ,सड़कों पर रेंगती नजर आ रही हैं। इसी तरह हमसे भी ज्यादा ऊंचाई पर बैठा अपने खिलौनों से इसी तरह खेलता होगा या फिर उनकी किस्मत लिखकर, उन नजारों का किसी फ़िल्म की तरह मजा लेता होगा।
तब तक ,बलविंदर भी खाना लेकर आ जाता है ,दोनों खाना खाते हैं और आराम करने जाते हैं ,तब शब्बो ने देखा ,यहाँ तो एक ही बिस्तर है ,तब वो बाहर बालकनी में आकर ,कुर्सी पर बैठ गयी। बलविंदर भी उसके पीछे आ गया और बोला -इस समय यहाँ.....
और कहाँ जाऊँ ? मुझे नींद नहीं आ रही ,बलविंदर का भी इस तरह, उससे बात करने का ज्यादा साहस नहीं हो रहा था। सोच रहा था -ये ,बुआजी ने भी न कहाँ फंसा दिया ?अच्छा खासा अपनी बीवी के संग रह रहा था किन्तु उनसे तो मेरा सुख देखा ही नहीं गया और ये मेरे पल्ले बांध दी जो अपनी ही अकड़ में रहती है। असल में बलविंदर का भी साहस उससे बात करने का नहीं हो रहा था। कुछ बात आगे बढ़े ,ये तो बाहर आकर बैठ गयी। कुछ देर बलविंदर इसी तरह शब्बो की प्रतीक्षा करता रहा किन्तु उसका उससे कुछ कहने और पूछने का साहस नहीं हो रहा था। पता नहीं ,कब उसे नींद आ गयी ?सुबह की तेज़ रौशनी ने ,उसकी आँखों को खोला। उसने देखा शब्बो तो नहाकर ,चाय पी रही थी ,उसे उठा देखकर ,उसके लिए भी चाय बना दी।
तुम्हारा दफ़्तर कहाँ है ?किस समय जाते हो ?तुमने कुछ नहीं बताया ,एकाएक इस तरह के प्रश्न सुनकर ,वो चौंक सा गया। कौन सा दफ्तर ?कैसी नौकरी ?वो तो कुछ करता ही नहीं था। ले देकर पापा का व्यापार था ,वो भी नुकसान में चल रहा था इसीलिए तो इससे विवाह की साज़िश रची थी ताकि इसके बाप का पैसा और व्यापार ,बलविंदर स्वयं ही संभाले।
किन्तु ये है कि ,मेरी तरफ देखती भी नहीं ,मैं क्या इसे यूँ ही मुफ़्त में सैर कराने लाया हूँ। इसके बाप की दौलत के लिए तो.... अपना विचार बीच में छोड़कर ,वो तैयार हुआ और बोला -मैं अभी आ रहा हूँ। वो बिल्डिंग से नीचे आ गया और बुआ को फ़ोन लगा दिया। उधर से आवाज आई -होर कैसी कटी रात ?
बुआजी कुछ तो शर्म किया करो ,मैं आपका भतीजा हूँ।
इसमें शर्म कैसी ?जिस उद्देश्य से तुम्हारा विवाह करवाया ,वो रिश्ता कहाँ तक पहुंचा ?ये तो पूछना बनता है।
कहीं तक नहीं पहुंचा ,वो झुंझलाकर बोला।
क्या मतलब ??
क्या मतलब क्या ?वो तो बाहर कुर्सी पर बैठी रही ,मैं तो सो गया ,सुबह देखा तो चाय पी रही थी।
उसकी बात सुनकर बुआ ने अपना माथा पीट लिया और बोली -हे भगवान !इससे कुछ नहीं होगा ,एक औरत को भी ,तू काबू में न कर सका।
वो कोई गाय या बैल है जिसे काबू में करना है ,वो एक पढ़ी -लिखी ,समझदार लड़की है ,जबरदस्ती भी तो नहीं कर सकता ,आजकल महिलाओं के हित में कितने कानून बन गए हैं?
हाँ ,ये तो है ,अब तू ऐसा कर अपना सामान बांध और अपने घर आ जा ,तुझसे तो कुछ होने वाला नहीं बुआ ने व्यंग्य किया।
बुआजी !आप सुबह -सुबह ये सब बातें छोडो ,ये तो पूछा नहीं -कि मैंने फ़ोन क्यों किया ?
अच्छा बता !इतनी सुबह -सुबह बुआ का दिमाग ख़राब करने के अलावा ,फोन क्यों किया ?
आज सुबह वो पूछ रही थी ,मेरे दफ्तर जाने का क्या समय है ?मैं कब अपने काम पर जाता हूँ।
हे !भगवान ये कुड़ी भी न..... तुझसे सम्भलने वाली नहीं। कह देता ,अभी मैंने अपने नए विवाह के कारण ''हनीमून ''वास्ते छुट्टियाँ ली हुई हैं। सब कुछ मुझे ही बताना पड़ता है।तुम्हारी अपनी ज़िंदगी है ,मैंने रास्ता दिखा दिया ,अब क्या ,उस राह पर चलना भी मैं सिखाऊँ ? बुआ तुनककर बोली। अब वो कहाँ है ?
ऊपर ही है ,अच्छा तू ये बातें पूछने ,नीचे आया है।
हां...
अब तू ऊपर जायेगा ,तो कुछ फ़ल और मिठाई और भी खाने का सामान ले जा !वरना फिर पूछेगी कहाँ गए थे ?
हां.... ये तो मैंने सोचा ही नहीं।
दिमाग होगा तभी सोचेगा न.... और अब उससे कहना ,मैं छुट्टी की अर्जी देने गया था। कुछ दिन तेरे साथ रहने के लिए।
ठीक है ?कहकर वो मन ही मन बुआ की बुद्धिमत्ता पर प्रसन्न हुआ उसने फोन काट दिया।
शाम को बलविंदर ने ,शब्बो से कहा -चलो आज बाहर किसी होटल में ,खाना खाने चलते हैं।
शब्बो बोली -मैं क्या खाना बना रही हूँ ?अभी भी ,तो बाहर से ही आ रहा है। बलविंदर उसके हाथ को पकड़ते हुए बोला -ये हाथ क्या खाना बनाने के लिए बने हैं ?तुम तो बस ऐश करो ऐश !
शब्बो ने ,उसके हाथ से धीरे से अपना हाथ छुड़ा लिया और बोली -ठीक है ,देख लेते हैं ,इस शहर में ऐसा क्या विशेष है ?