अभी तक आपने पढ़ा -शब्बो अपने पति करतार के संग अपने मायके जा रही है ,बस में बैठे -बैठे उसे ,उस समय का स्मरण होता है , जब वो तारा के गिरोह को पकड़वाकर ,अपने गांव आती है। गाँव के सभी लोग उसका अच्छे से स्वागत करते हैं किन्तु उनमें बलविंदर और टोनी कोई नहीं। शब्बो पहले तो ,अपनी सहेली से ही जानकारी लेती है कि बलविंदर का क्या हुआ ? वो बताती है - बलविंदर को तो ,गांववालों ने बचा लिया था। इसी ख़ुशी में शब्बो अपने घर जाने की तैयारी करती है। जब वो अपनी मम्मीजी से बलविंदर के विषय में पूछना चाहती है ,उससे पहले ही ,टोनी की मम्मीजी आ जाती हैं और कहतीं हैं -लोग चर्चा कर रहे हैं , कि इतने दिनों से बदमाशों में रही ,कैसे किसी ने छोड़ दिया ? ये बात सुनकर ,शब्बो की मम्मीजी को क्रोध आ जाता है और वो भी पलटकर जबाब देती हैं किन्तु टोनी की मम्मीजी कहती हैं -मेरा मुँह बंद करने से क्या होगा ?ये तो लोग कह रहे हैं ,उन बातों को सुनकर ,शब्बो दुःखी होकर अपने कमरे में जाती आ है और सोचती है -लोग कैसे अपनी सोच से अर्थ का अनर्थ कर देते हैं ?अब आगे -
नीचे उन दोनों की नोकझोंक चल रही थी ,किन्तु शब्बो की किसको परवाह थी ? एक इल्ज़ाम पे इल्ज़ाम लगा रही थीं ,तो दूसरी माँ होने के नाते ,अपनी बच्ची का बचाव कर रही थीं।शब्बो तो जैसे आकाश में उड़ रही थी ,उनकी बातें सुनकर ,वो फ़ड़फ़ड़ाते हुए ,नीचे की तरफ गिरने लगी। गिरते -गिरते जैसे जमीन में धसती जा रही थी ,जहाँ चारों ओर अंधकार फैला था। विस्तृत अंधकार......
शब्बो सोच रही थी - यदि मेरे साथ कुछ ऐसा होता तो क्या मैं वापस आती ?चाचीजी को इतना भी विश्वास नहीं। उसके मन का दर्द ,ख़ामोशी में बदलने लगा। मन का सम्पूर्ण उत्साह धीमा पड़ने लगा।'' ख़ामोशियों के साये ''बहुत ही गहन हैं ,ये ख़ामोशी पल -पल बढ़ती जा रही है ,ये साये ,उसके इर्द -गिर्द ,घेरा बना रहे हैं। दर्द की गहराई ,जुबां ख़ामोश कर देती है। ये दर्द रह रहकर ,किसी फोड़े की तरह रिसता रहता है ,जब शब्बो को पता चला -कि बलविंदर तो यहां है ही नहीं , न ही मेरे जाने का उसे कुछ अफ़सोस ही हुआ ,उसने तो मेरा इंतजार भी नहीं किया।
शायद पलटकर पूछा भी न हो, कि मैं जिन्दा हूँ भी या नहीं। ये सब उसी के लिए तो कर रही थी मेरा उसके प्रति प्रेम मेरे लिए, लांछन बन गया। प्रेम की पहली सीढ़ी भी न चढ़ पाई और शब्बो के जीवन पर कलंक लग गया। दर्द अपनों का ही दिया होता है। उसने यो मुझे अपना नहीं समझा किन्तु मेरे लिए तो वो सब कुछ बन गया था। प्रेम की गहराइयों से होता हुआ, ये दर्द अब अपना प्रभुत्व स्थापित करता जा रहा था।
वो चंचल नदी ,किसी तालाब की तरह शांत होती जा रही थी किन्तु उसके अंदर जैसे तूफ़ान चल रहा था। हर समय चहकने वाली पम्मीजी की ''सोन चिरैया ''शांत हो गयी थी।
न जाने कौन सा ग़म इसे खाये जा रहा है ?पम्मी अपने पति से कहती -जब आई थी तब भी ,ऐसी नहीं थी ,पता नहीं अचानक इसे क्या हुआ ?शायद ये टोनी की मम्मीजी की बात दिल से लगा बैठी। उन्होंने अपनी बेटी को बहुत समझाने का प्रयत्न किया ,तू चिंता न कर ,ये तो दुनिया वाले हैं ,कुछ न कुछ तो बोलेंगे ही। हम तेरे मम्मी -पापाजी है न ,हमें किसी के कहने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। पता नहीं ,अपने अंदर कौन सा दर्द पाले बैठी है।
उसके अंदर का अंधकार बढ़ता जा रहा था ,किसी ने भी वहां झाँकने का प्रयत्न भी नहीं किया ,किसी से भी साझा नहीं किया ,जिसने दर्द दिया ,उसे तो महसूस ही नहीं हुआ होगा ,जो उस दर्द को जीता है ,पल -पल मरता है। तिल -तिल की तड़पन क्या है ?कोई कैसे जान सकेगा ?जब उस दर्द को उसने इतने गहन रख छोड़ा है किसी को झाँकने तक का मौका नहीं दिया।
ये साये दिन ब दिन किसी अदृश्य शक्ति की तरह बढ़ते जा रहे हैं ,और वो है -कि उन्हें रोकना भी नहीं चाहती। उजाले की एक किरण भी नज़र नहीं आती ,उसने तो उन सायों संग अपने को बंद कर लिया है और उसके साथ ही बंद हैं ,उसके अरमान ,उसकी ख़ुशियाँ ,उसकी चाहतें ,अपनी ही दुनिया बना ली और उसी में जीने लगी ,नहीं !तड़पने लगी।
एक दिन शिल्पा उसके पास आई और बोली -तुझे कुछ स्मरण भी है ,इस वर्ष हमारे' बोर्ड के इम्तिहान 'हैं ,कुछ तैयारी भी की है या फिर अपनी ही दुनिया में घूम रही है ,उससे बाहर निकल ,''कुछ पढ़ भी लिया कर ''। उसके इतना कहते ही ,उसे बलविंदर की बातें स्मरण हो आईं ,कहता था -पढ़ाई पर ध्यान दो ,कुछ पढ़ भी लिया कर ''शब्बो के नेत्रों से ''गंगा -जमुना बहने ''लगीं।पहले तो शिल्पा डर गयी फिर उसने उसे रोने दिया ,न जाने कितने दिनों की कालिख़ आँसुओं के रूप में बहकर बाहर आ रही थी ?धीरे -धीरे अंधकार छटने लगा था और उजाले की किरण नजर आ रही थी।
खूब रो लेने के पश्चात ,शब्बो ने फैसला किया वो इस तरह नहीं बैठेगी ,वो अपने जीवन में आगे बढ़ेगी। उसके संग तो उसके मम्मी -पापा भी है ,अपनी बेटी को इस तरह गहन अंधकार में डूबता देख ,वो भी तो परेशान हो रहे हैं। मम्मीजी की बात सही है ,ये तो दुनिया है ,न जाने क्या कहती है ?क्या सोचती है ?किसी के कहने पर मैं ,अपनी जिंदगी का सर्वनाश तो नहीं कर सकती। जिसको जो लगता है लगे - मैं अपने मन से तो सही हूँ मैंने कोई गलत कार्य तो नहीं किया। अब मैं अपनी पढ़ाई पर पूर्ण ध्यान दूँगी।