अभी तक आपने पढ़ा -शब्बो समीर के पापा से छुप -छुपकर मिलने जाती है किन्तु उन्हें उसके विषय में कुछ नहीं मालूम। तब उनकी पत्नी साधना को समीर और शब्बो के रिश्ते में शक़ होता है ,तब समीर उन्हें बताता है कि उसे कुछ भी नहीं मालूम किन्तु उसे शब्बो पर शक़ अवश्य हो जाता है। और वो शब्बो के बदले शिल्पा को अपनी बातों के जाल में फंसाना चाहता है ताकि शब्बो स्वतः ही स्वीकार कर ले ,वो शिल्पा नहीं स्वयं शब्बो थी किन्तु शब्बो भी अनजान बनी रहती है। एक दिन समीर शब्बो को अपने घर में ही पकड़ लेता है ,तब दोनों अपने गिले -शिकवे दूर करते हैं। समीर अपने पिता के कहने पर ,उससे अच्छा व्यवहार करता है और उसे उसके घर छोड़ने जाने के लिए कहता है ,तब शब्बो उससे बताती है कि वो तो पास के गांव 'गुरदास नंगल ' से आती है ,तब समीर को आश्चर्य होता है कि वो इतनी दूर से कैसे आती है ?तब वो उसे अपनी स्कूटी दिखाती है ,अब आगे -
समीर उसकी स्कूटी देखकर ,आश्चर्य से भर जाता है कि ये लड़की गांव में रहकर भी सुविधाओं में रहती है ,अवश्य ही इसके पिता का कुछ अच्छा ही कार्य होगा। एक वो है ,उसके पास एक भी दुपहिया नहीं। इसका और मेरा साथ कहाँ निभेगा ?ये सुविधाओं की आदि और मैं परेशानियों से जूझता अपने अधिकार और सम्मान की लड़ाई लड़ रहा हूँ। ये सभी बातें सोचकर वो चुप हो गया।
अगले दिन ,कॉलिज में शब्बो पीली कुर्ती और लाल सलवार पहनी थी जो उस पर बहुत फ़ब रही थी। पता नहीं क्यों ? उसे देखकर समीर ,छुप गया ,उसके समीप नहीं गया। किन्तु दोपहर के खाने के समय शब्बो उसे ढूँढ ही लेती है। क्या कर रहे हो ?
कुछ नहीं ,समीर झिझकते हुए बोला।
तब मुझसे क्यों छिप रहे हो ?
क्या ? मैं छिप रहा हूँ ,तुमसे किसने कहा।
कहने की आवश्यकता ही नहीं ,दिख रहा है और मैं देख सकती हूँ उसने अपने हाथों की दो अँगुलियाँ अपनी आँखों की तरफ दिखाते हुए कहा।
नहीं ,ऐसा तो कुछ भी नहीं है।
शब्बो उसकी इन बातों से तंग आकर बोली -अच्छा अब ये सब छोडो !अब मुझे ये बताओ कि तुम्हारे घर में परेशानी क्या है ?मुझे तो सब ठीक लग रहा है ,मम्मी -पापा हैं और तुम हो ,छोटा सा परिवार है और क्या चाहिए ?कहते हुए उसके बराबर में जाकर बैठ गयी। अब उसके साथ शिल्पा नहीं दिख रही थी।
समीर हिचकिचाते हुए ,बोला -शिल्पा नहीं दिख रही।
तुम बात को बदलो मत !वो पुस्तकालय में गयी है कुछ पुस्तकें उसे लेनी है ,मैं भी उसी के साथ अपना काम कर लुंगी। अब ये मत कहना ,कि तुम्हें उन पुस्तकों की आवश्यकता नहीं ,अब मैंने सारे जबाब दे दिए ,अब तुम बताओ ! तुम्हें क्या परेशानी है ?
समीर समझ नहीं पा रहा था कि क्या किया जाये ?उसने एक गहरी साँस ली और बोला -ये जो तुम्हारी 'साधना 'मेम हैं ,वो मेरी माँ नहीं है।
माँ नहीं हैं ,मैं कुछ समझी नहीं !
मैं पहले ही कह रहा था -तुम नहीं समझ पाओगी।
तुम समझाओगे ,तभी तो समझूँगी ,तुम कह रहे हो ,तुम्हारी माँ ,तुम्हारी माँ नहीं है अब इसी बात को ठीक से समझाओ।
मैं कह रहा था- कि ये मेरी माँ तो हैं किन्तु सगी नहीं हैं ,जब मैं छोटा था ,तब पापा ने दूसरा विवाह किया था।
इसमें क्या बात हो गयी ?यूँ समझों उन्होंने ही पाल -पोषकर तुम्हें बड़ा किया ,माँ तो माँ होती है ,सगी क्या सौतेली क्या ?शब्बो बात को बीच में ही काटकर बोली। वो सोच रही थी कि ये मुझसे इसीलिए ये बात छिपाना चाह रहा है।
समीर चिढ़ गया ,वो तो मैं भी जानता हूँ किन्तु बात को पूरी तो कर लेने दो ,अपना दृष्टांत देने लग गयी। मैं ये कह रहा था ,कि उन्होंने बचपन में मुझे पाल -पोसकर बड़ा किया किन्तु अब वो पता नहीं क्यों ?मुझसे चिढ़ने लगी हैं ,अपने बेटे की तरह ,प्यार नहीं करतीं ,अब न ही पापा से उन्हें कोई लगाव रहा है और न ही मुझसे। वो एक साँस में ही सभी बातें कह गया।
पहले तो शब्बो चुपचाप सुनती रही , फिर कुछ सोचते हुए बोली -ऐसा वो कब से कर रही हैं ,मेरा मतलब उनका व्यवहार कब से बदलना आरम्भ हुआ ?
कुछ ज्यादा तो स्मरण नहीं ,किन्तु जब इनकी नौकरी लगी और उन्नति भी हुई ,तब पापा ने उन्हें फोन लेकर दिया था ,सोचा था ,कोई भी परेशानी होगी ,तो फोन पर बात हो जाया करेगी।
तब परेशानी कहाँ से आरम्भ हुई ?शब्बो बोली।
मेरा तो मानना है ,जब से वे अपने मायके फोन करने लगीं ,तबसे ही उनका व्यवहार धीरे -धीरे बदलने लगा और अब तो हालात ये हो गए हैं ,-पापा के बीमार होने पर भी, उनकी देखभाल के लिए ,उनके पास समय नहीं है ,अपनी मम्मी से फोन पर घंटों बातें करने का समय मिल जाता है और अब तो मेरी पढ़ाई छुड़वाकर ,मुझे पापा का व्यापार संभालने के लिए कह रही हैं , अपने घर पैसे भी पहुँचाती रहती हैं।
तभी शब्बो बोली -इसमें परेशानी क्या है ?तुम लोगो से ठीक से व्यवहार नहीं करतीं या अपने घर पैसे पहुँचाती हैं।
दोनों ही !समीर झट से बोला।
क्यों....... क्यों है परेशानी ?क्या वे उनके माता -पिता नहीं ?अपने माता -पिता की थोड़ी मदद भी कर दी तो क्या हुआ ?
तुम समझ नहीं रही हो ,इतना तो हम भी समझते हैं किन्तु वो हमारे विरुद्ध , साधना देवी को भड़काते रहते हैं। कभी कहते हैं -तेरे बच्चे नहीं ,बताओ क्या मैं ,उनका बेटा नहीं।
लगते तो नहीं !
क्या मतलब ?
यदि तुम उनके बेटे होते ,तो क्या अपनी माँ का नाम लेकर बोलते ?
जब क्रोध आता है ,तब माँ कहने का मन नहीं करता।
अच्छा !जरा ईमानदारी से अपने दिल पर हाथ रखकर बोलो ,यदि तुम्हारी सगी माँ होती तो ,क्या तुम उसे भी नाम से पुकारते ?
शायद....... नहीं ,हो भी सकता है ,किन्तु बात ये नहीं है।उनके व्यवहार के कारण ही तो मेरे विचारों में परिवर्तन आया ,यदि सगी माँ भी ,कुछ अनुचित करती है तो बच्चों का व्यवहार बदल ही जाता है। उनकी माँ ,हमारे परिवार में भेदभाव का बीज बो रही हैं और उनके वेतन पर भी उनकी नजर रहती है। जबकि पापा का व्यापार ,उनकी बिमारी के चलते लगभग ठप्प पड़ गया है ,ऐसे में क्या ये उचित है ?कि अपने घर पैसे पहुंचायें या यहां आवश्यकता है। तुम देख ही रही हो ,मेरे साथ के लड़कों पर दुपहिया है और मेरे पास नहीं ,यहां तक कि तुम्हारे पास भी स्कूटी है ,क्या मेरा दिल नहीं करता ?मैं अपने माता -पिता का इकलौता लड़का हूँ ,तब भी अभाव में जी रहा हूँ जबकि पैसे की कोई कमी नहीं थी। समीर के मन में ,दुपहिया का विचार पहले तो था ही नहीं किन्तु जबसे उसने शब्बो के पास स्कूटी देखी तभी से ये भाव भी उसके अंदर आ गए ,जो उसने शब्बो के सामने प्रकट कर दिए।
शब्बो चुपचाप उसकी बातें सुनती रही फिर बोली -अच्छा ,अब चलती हूँ , शिल्पा भी आने वाली होगी।कहकर वो चली गयी। समीर परेशान हो गया ,पहले तो इतना पूछ रही थी ,जब मैंने सब बता दिया, तो बिन कुछ भी कहे ,उठकर चली गयी। कुछ तो कहती !
वो ''ठगा सा खड़ा '' उसे जाते देख रहा था। उसे महसूस हो रहा था ,उसने सभी बातें उसे बताकर कहीं गलती तो नहीं कर दी।