आज तो बहुत बुरा दिन बीता ,पम्मी आज अपनी बेटी और अपने पति को ,दुखी ,परेशान रोते हुए ,छोड़कर चली गयी। जो आया है ,उसे एक न एक दिन जाना ही होता है , किन्तु कई बार लगता है -उसका समय नहीं आना चाहिए था। अभी तो उसकी बेटी ने नई ज़िंदगी में कदम ही रखा था और उसकी राह में ,अभी से ही कांटे बिछे देखकर ,पम्मी ने उन काँटों की चुभन महसूस की और उन काँटों की चुभन को स्वयं ही ,बर्दाश्त नहीं कर पाई। सोचा था -क्या, हो क्या गया ?बेटी के उज्ज्वल भविष्य की तमन्ना में ,स्वयं ही बेटी को अँधेरे कुएँ में ढ़केल दिया। बेटी के सम्पूर्ण जीवन का सोचकर ,ही आज वो अपनी ज़िदगी से हार गयी। चलते समय उसने अपने पति से उसकी सुरक्षा और ज़िम्मेदारी का वायदा लिया।
आज वो तो सुख की लम्बी नीद सो गयी ,किन्तु उसने मेरे विषय में नहीं सोचा -मैं अकेला कैसे इस घर को तेरी बेटी को संभाल पाऊंगा ?कैसे तू मुझे अकेला छोड़कर जा सकती है। तेरे बिना तो... लगता है- जैसे मेरी हिम्मत ही चली गयी। कौन मुझे सुबह उठाकर कहेगा -शब्बो के पापा जी !आज काम पर नहीं जाना ,कौन मुझे आगे बढ़ने की हिम्मत देगा। पम्मी उठ !उठ जा ,तू कहती है -मर्द कमजोर नहीं पड़ते किन्तु मैं तो तेरे बिन कमज़ोर हो गया हूँ। पम्मी! तू इस तरह मुझे छोड़कर नहीं जा सकती। शब्बो के पापा रोते हुए कह रहे थे। शब्बो तो.... आत्मग्लानि में ,दबी जा रही थी। मेरे घर में लगी आग से ,मैंने अपने मम्मी -पापा का घर भी जला दिया। न ही मैं उन्हें ये सब बताती और न ही ये हादसा होता। सोचते हुए -वो हिचकियाँ लेते हुए रोने लगी। आज उसके पास कोई नहीं ,गाँव वालों ने आकर मय्यत तैयार की और ले जाने के लिए तैयार थे। कुछ औरतों ने शब्बो को भी संभाला और बोलीं -इस चेतना ने तो ,न जाने ,क्या दुश्मनी निकाली है ?इनका घर बर्बाद ही कर दिया।
उनकी बातें सुनकर शब्बो को और भी अधिक क्रोध आया ,और बोली -इस बुआ ने मेरे घर और मेरे जीवन पर ग्रहण लगाया उसे छोडूंगी नहीं। उसने मेरा जीवन बर्बाद कर दिया, कहकर रोने लगी। पम्मी को श्मशान ले जाया गया। लोग भी धीरे -धीरे अपने घर के लिए प्रस्थान कर गए। रह गए तो ,दोनों बाप -बेटी !पम्मी की कमी उन्हें खल रही थी ,वो इस घर के कोने -कोने में बसी थी। जब देखो ,जहाँ देखो उनके सामने आ खड़ी होती ,न होने पर भी ,अपने होने का एहसास दिलाती। शब्बो के पापा तो लेट गए ,पता नहीं कब तक सोते रहे ?एक बार तो शब्बो का दिल घबरा गया ,वो बार -बार जाकर अपने पापा को देखती और उनकी चलती सांसे देखकर ,राहत की साँस लेकर आ जाती। मानसिक और शारीरिक दोनों ही तरह से थके हुए थे , उसने उन्हें सोने दिया।
शब्बो को लगता -पम्मी उसे पुकार रही है -कह रही है -ओय पुत्तर तू हिम्मत न हारियों ,तू मेरी शेर पुत्तर है। सोचकर पम्मी भी रो दी। पड़ोस के घर से खाना आ गया ,शब्बो ने ढककर रख दिया। उनका घर जो पम्मी की आवाज से गूंजता रहता था ,आज सुनसान पड़ा है। तीन -चार घंटे पश्चात ,शब्बो के पापा उठे और बोले -शब्बो !मैं नहाने जा रहा हूँ ,मेरे लिए खाना लगा दे। वे नहाने चले गए और शब्बो खाना गर्म करने लगी खाना देखकर बोले -बहुत जोरों की भूख लगी है ,तूने खाना खा लिया। जी...... अभी शब्बो इतना ही बोली और वे फ़टाफ़ट खाना खाने लगे। जैसे कई दिनों के भूखे हों। बोले -पम्मी से वायदा किया था ,अपना और तेरा ख़्याल रखूंगा। आ बैठ तू भी खाना खा ले ,वरना वो बहुत डाँटेगी , कहकर खाते -खाते उनकी आँखों से अश्रु बहने लगे।यही तो ज़िंदगी का फ़लसफा है ,''ज़िंदगी किसी के आने या किसी के जाने से रूकती नहीं ''धीरे -धीरे समय के साथ ,ज़िंदगी अपने ढ़र्रे पर चलने लगी।
एक दिन'' करतार सिंह ''आया। आया तो इससे पहले भी था किन्तु केस के सिलसिले में बात करने आज ही आया था। वो शब्बो से बोला -बलविंदर और उसकी बुआ ने ,और सभी बातें तो स्वीकार कर लीं किन्तु वो जो अपहरण आप बता रहीं थीं ,वो उन्होंने नहीं करवाया।
ऐसा कैसे हो सकता है ?उस समय उनका अपहरण करने से बलविंदर को ही लाभ होना था। मेरे विवाह से और किसी को क्या परेशानी हो सकती है ?
मैंने स्वयं दो आदमियों से बुआ को बात करते देखा था। वो उनसे कह रही थी -काम हो गया।
करतार ने सम्पूर्ण जानकारी विस्तार से ली और बोला ये भी तो हो सकता है ,दो बंदरों की लड़ाई में ,किसी तीसरे ने लाभ उठाया हो। अब आपको उस तीसरे व्यक्ति के विषय में सोचना है। वो लोग तो इस अपहरण से पूर्णतः अनजान हैं। करतार के जाने के पश्चात ,शब्बो सोच में पड़ गयी और कौन हो सकता है ?जिसको मेरा विवाह ,बलविंदर से करवाने में लाभ हो सकता है। कितना सोचा ?सोचते -सोचते उसका दिमाग फटने लगा। उसने अपने लिए चाय बनाई और फिर से सोचने लगी। तब उसके दिमाग में आया ,क्यों न इस बात को समीर के साथ ही बैठकर सोचा जाये। तभी उसने सोचा -मैं आई ,तब भी नहीं आया। मेरी मम्मी जी नहीं रहीं, तब भी नहीं आया। शिल्पा जब तो आई थी ,अब तो शिल्पा भी नहीं आई। वो अपने पति के संग तो आ ही सकती थी। फिर सोचा -शायद अपनी घर -गृहस्थी में फंसी हो ,आना चाहकर भी न आ पाई हो। एक दिन मैं ही उससे जाकर मिल लूँगी।