अभी तक आपने पढ़ा -शब्बो को पता चल जाता है ,कि समीर का अपहरण उसी की पक्की सहेली शिल्पा ने ,शब्बो के कारण ही ,करवाया था क्योकि शिल्पा भी समीर को पसंद करती थी किन्तु कह या बता नहीं पाई।इसी कारण उसने समीर का अपहरण करवाया ताकि शब्बो का विवाह बलविंदर से हो जाये और शिल्पा का रास्ता साफ हो जाये। इसके लिए वो ,अपने पापा के साथ काम कर रहे ''अहमद अंसारी ''से सहायता लेती है जिसकी जानकारी शिल्पा के पापा को भी नहीं है। जब सारी बातें साफ हो जाती हैं। तब समीर शिल्पा को उसके घर छोड़ आता है। शब्बो अब किसी से भी कोई सम्पर्क नहीं रखती ,ताकि उसके कारण, किसी की ज़िंदगी में को परेशानी न खड़ी हो। शब्बो अपने पापा की ली हुई जमीन पर अपनी मम्मी जी के नाम से विद्यालय खुलवाती है और अपनी शिक्षा भी जारी रखती है।
कभी -कभी करतार सिंह उसकी सहायता हेतु आ जाता है। वो भी अपने घर से दूर ,यहाँ थाने में रहता है इसीलिए कभी -कभी शब्बो भी उसे खाने पर बुला लेती है। करतार तो शब्बो को पहले से ही जानता था और उसके सौंदर्य से आकर्षित भी था। मन ही मन उसे चाहता भी था ,उसी के कारण तो उसने अपने को इस योग्य बनाया था ताकि वो उसके पिता से ,शब्बो का हाथ मांग सके किन्तु यहाँ तो परिस्थिति ही बदली हुई थी। अब वो उसी के केस की गुत्थी सुलझा रहा था। पसंद तो वो उसे अभी भी करता था किन्तु शब्बो के दिल में क्या है ? ये नहीं जानता था। वो ये भी जानता था कि शब्बो भले ही कितनी भी खूबसूरत हो? किन्तु इस रिश्ते के लिए बेबे नहीं मानेगी। एक तलाकशुदा लड़की से अपने बेटे का विवाह वो नहीं देखना चाहेगी। इन्हीं सब बातों को देखते हुए करतार भी ,अपने मन की बात मन में ही छुपाये बैठा था। अब तो उसे शब्बो से मिलते -मिलते एक वर्ष से ऊपर हो गया और वो शब्बो के और करीब आता जा रहा था।
वो जितना अपने को उसके करीब आने से रोकता ,उतना ही उसकीओर खिंचा चला जाता। कभी -कभी वो अपना मन कठोर भी कर लेता कि अब नहीं जायेगा किन्तु तभी शब्बो का फोन आ जाता। और वो उसके मोहपाश में बंधा खिंचा चला जाता। शब्बो भी, अपने जख्मो को धीरे -धीरे भुलाने लगी थी। बैसाखी आ रही थी एक दिन शब्बो बहुत प्रसन्न थी ,अपने लिए कपड़े भी लाई ,विद्यालय में भी बैसाखी का कार्यक्रम रखा गया। उसके उत्साह और उसकी मेहनत को देखते हुए ,उसके पापा प्रसन्न थे। उसके पिता उसे देख रहे थे और सोच भी रहे थे। मेरे जाने के पश्चात ,इसका क्या होगा ? यही सोचकर ,उनका मन अक्सर विचलित हो जाता। विद्यालय के कार्यक्रम में इंस्पेक्टर साहब को भी बुलाया गया था। आज तो शब्बो बहुत खूबसूरत लग रही है ,उसने भी लाल -पीले सूट में एक नृत्य प्रस्तुत किया।
सर ! लड़की तो बहुत अच्छी है ,किन्तु बेचारी के साथ ,अच्छा नहीं हुआ ,न जाने इस बलविंदर ने बेचारी के साथ कौन से जन्म का ,बदला लिया ? मदनलाल ,करतार के मन की बात लेने के उद्देश्य से बोला।
अरे यार !इसमें सर भी क्या कर सकते हैं ?अपनी तरफ से उन लोगों को सजा दिलवाने में उनके साथ हैं ,इससे ज्यादा क्या हो सकता हैं ?तिवारी ने करतार की तरफ देखते हुए कहा।
उनकी बातें सुनते हुए ,करतार सोच रहा था -इसमें इस बेचारी की क्या गलती है ?इसे तो धोखा मिला ,भली लड़की है ,अब धीरे -धीरे वो अपने ग़म भी भूलाकर ,आगे बढ़ने का प्रयत्न कर रही है। कभी इससे मैंने पूछा भी तो नहीं ,कहीं इसने इंकार कर दिया तो..... बेबे को क्या कहूंगा ?
तभी करतार का ध्यान भंग हुआ ,मंच पर विद्यालय के प्रधानाचार्य जी ,होनहार बच्चों को पुरुस्कार देने के लिए ,करतार सिंह जी को आमंत्रित कर रहे थे। करतार ने बच्चों को पुरुस्कार बाँटे ,वो जानता है -ये सम्मान उसे शब्बो द्वारा ही दिलवाया गया है। शब्बो के विद्यालय की ही एक अध्यापिका बोली -मेम ! ये इंस्पेक्टर साहब बहुत ही अच्छे हैं ,मिलनसार और नम्रता से बात करने वाले हैं ,क्या ही हो ?जो ये ही इस विद्यालय की मालकिन के मालिक बन जायें ,कहकर हंसने लगी किन्तु उस बात को सुनकर ,शब्बो ने सबसे पहले अपने चारों ओर देखा ,उसके पश्चात बोली -तुम इस विद्यालय की ,एक ज़िम्मेदार अध्यापिका हो ,तुम्हें कुछ भी बोलने से पहले ,एक पल सोचना तो चाहिए कि मुझे क्या कहना है ,क्या नहीं ?सॉरी दीदी ! शब्बो अपने को मेम कहलवाना पसंद नहीं करती थी क्योकि वो इसी गाँव की बेटी है ,इसीलिए अपने को दीदी कहलवाना पसंद करती है।
वो तो सॉरी कहकर चली गयी किन्तु शब्बो करतार को देख रही थी ,जो पुरुस्कार वितरित करने के उपरांत भाषण दे रहा था। आज उसने करतार को कुछ अलग ही दृष्टि से देखा ,बलविंदर से धोखा खाने के पश्चात और समीर का प्यार न मिलने पर वो अंदर से टूट गयी थी उसे जीवन व्यर्थ नजर आ रहा था अब वो ऐसी कोई भी बात सोचना तो दूर ,मन में ला भी नहीं सकती थी। आज वो करतार को देख रही थी ,और सोच रही थी -इस व्यक्ति ने ,सिर्फ बचपन में मुझे देखा और मिला और आज उसी मुलाक़ात को आज भी निभा रहा है। वरना कोई ऐसे कहीं भी मिल जाये तो, सब भूल जाते हैं। उस समय भी मैंने कोई बातचीत नहीं की थी किन्तु उस क्षणिक मुलाक़ात को ,इसने कितना निभाया ?कुछ लोग तो मिलते हैं ,बरसों साथ रहते हैं किन्तु रिश्तों को ऐसे भूल जाते हैं ,जैसे जानते ही न हों।बस इंसान की अपनी -अपनी फितरत है।तभी उसे शिल्पा का भी स्मरण हो आया - कुछ लोग ,हमारे साथ रहते हैं ,बरसों का साथ होता है ,तब भी हम उन्हें समझ नहीं पाते। उसने तो दोस्त होकर ,न ही दोस्ती निबाही ,न ही अपनी दोस्त पर विश्वास किया। कितनी सीधी लगती थी ? लगता नहीं ,वो ऐसे ,धोखा दे जाएगी या उसके मन में कुछ गलत चल रहा है ,पता भी नहीं चला।