लोगों को ज़िंदगी समझने में ,पूरी ज़िंदगी लग जाती है किन्तु समझ नहीं आती '' कभी वो क़िस्मत का सहारा लेता है ,अथवा उसे दोष देता है। कभी अपने कर्मो पर विश्वास करने लग जाता है। वो चाहता है ,सब कुछ उसके हिसाब से हो और परिस्थितियों को अपने अनुसार बदलने में समय व्यतीत करता रहता है यानि कि परिस्थितियों को अपने अनुसार ढालने में ,ज़िंदगी के न जाने कितने वर्ष गवाँ देता है ? किन्तु परिस्थिति को बदलते -बदलते स्वयं ही बदल जाता है। यही हालत शब्बो के पापा की भी हो रही थी। कुछ ज्यादा तो नहीं ,रब ने एक बच्ची दी ,उसी में सुकून ढूंढ लिया। छोटा सा परिवार ,काम भी अच्छा ख़ासा चल रहा है और इंसान को चाहिए ही क्या ?दो वक्त की रोटी सुकून से मिल जाएँ। किन्तु ये तो अपनी सोच और ख़ुशी है ,बच्चों की ज़िंदगी भी तो जुडी होती है। उनकी ज़िंदगी में क्या घटता है ? उनके सुख -दुःख परेशानियाँ भी माता -पिता से जुड़ जाती हैं या यूँ कहें माता -पिता अपने को जोड़ लेते हैं।
शब्बो के सुख -दुःख भी तो ,उन पर असर कर रहे थे। जब तक बच्चे खुश न हों ,कैसे चैन मिल सकता है ?जब तक उसकी ज़िंदगी में खुशियां न आ जाएँ वो कैसे चैन से रह सकते हैं ?करतार भी बुरा तो नहीं ,अच्छा इंसान है किन्तु बेटी चली गयी तो ,मैं अकेला रह जाऊँगा। अब तो साथ निभाने के लिए पम्मी भी नहीं ,ज़िंदगी के इस सफ़र में मुझे अकेला छोड़कर चली गई। अपने स्वार्थ के लिए ,बेटी को यहीं तो नहीं रख सकता। तभी उनके मन में एक उम्मीद की लौ जली ,उन्होंने सोचा ,यदि अपना करतार ही मान गया , कोई बुरा भी नहीं। अभी वो इसी सोच में थे ,तभी करतार आता दिखाई दिया। उन्हें तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ। आओ बेटे !कैसे आना हुआ ?
आज करतार ने महसूस किया ,उन्होंने उसे इंस्पेक्टर साहब नहीं बोला -बेटा कहा है ,शायद किसी परेशानी में हैं। ख़ैर जो भी हो ,उसे उनके मुँह से बेटा शब्द अच्छा लगा। फिर भी उसने उनसे पूछना ,सही समझा और बोला -आप ठीक तो हैं ,और उनके नजदीक आकर बैठ गया। उसने देखा ,आज उनके चेहरे पर उम्र कुछ ज्यादा ही उभर आई है। आँखों की कोरों में कुछ मोती छिपे हैं जो बाहर आने को आतुर हैं। शायद आज वो बहुत परेशान हैं ,उसने अंदाजा लगाया।
अपना दर्द छिपाते हुए बोले -हाँ ,हाँ सब ठीक है।
सब नहीं ,आप बताइये आप तो ठीक हैं।
हाँ ,मुझे क्या हुआ है ? ठीक ही तो हूँ ,तुम बताओ ! कैसे आना हुआ ?
वो.... मेरा..... तबादला हो गया है ,यही बताने के लिए ,आया था। आप पता नहीं ,क्या सोचेंगे ?एक बात और कहनी थी।
क्या????? तबादला हो गया। उन्हें लगा जैसे कोई अपनी ही चीज़ अपने से दूर जा रही हो। इतनी जल्दी कैसे ? आते -जाते रहते थे ,एक लगाव सा हो गया था और क्या कहना चाहते हो ?
कुछ नहीं ,कहते -कहते रुक गया ,बोला -मेरे ही गाँव के नज़दीक ,जिनके कारण मुझे चोट आई ,उनकी पहुंच काफी दूर तक है ,इसीलिए मेरी बदली करा दी क्योकि उनके लिए मैं ,उनके काम में रोड़ा बना हुआ था।
शब्बो बाहर देखने आई थी ,कि पापा किससे बातें कर रहे हैं ?करतार को देखकर चाय रख दी थी ,जब वो चाय लेकर आ रही थी ,तभी अंतिम शब्द उसे सुनाई पड़े। कुछ भी नहीं बोली और चाय रखकर चली गयी। अंदर जाते ही रोने लगी ,न जाने क्यों ?आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे।
उसके पापा ने महसूस किया ,ये तो इस तरह चुपचाप नहीं रहती ,आज इसे क्या हुआ? कहीं इंस्पेक्टर साहब को बुरा न लगे उन्होंने आवाज लगाई -शब्बो ,शब्बो.....
करतार ने पूछा ,इसे क्या हुआ ?
पता नहीं ,अभी तो भली -चंगी थी ,अपने विद्यालय के कुछ कागज़ात देख रही थी। करतार को न जाने क्या सूझा और बोला -मैं देखकर आता हूँ ,क्या मुझसे तो नाराज नहीं।
उन्होंने भी ,इशारे से इजाज़त दे दी। करतार शब्बो को खोजता हुआ अंदर उसके कमरे में पहुंचा वो खिड़की की तरफ मुँह किये थी ,उसकी सिसकियाँ सुनाई दे रहीं थीं। इंस्पेक्टर साहब ,ठीक उसके पीछे जाकर खड़े हो गए और बोले रो रही हो।
उनकी आवाज सुनकर शब्बो एकाएक पीछे मुड़ी , उसके मुड़ने से ,करतार को भी झटका लगा क्योकि वो उसके इतना क़रीब था कि वो उसके सीने से जा टकराई ,बचने का प्रयास करते उसका दुपटटा ,उसके पैर में उलझा और वो गिरते -गिरते बची क्योंकि उससे पहले ही करतार ने उसे संभाल लिया और बोला - मैं जा रहा हूँ और तुम ,चाय रखकर चली आईं ,बात भी नहीं की ,तब मैंने सोचा आज मैं ही मिल आता हूँ।
शब्बो ने अपने दुपट्टे से ही अपना चेहरा साफ किया और बोली -मैं आने ही वाली थी कहकर करतार से नजरें चुराने लगी।
एक बात पूछूं !
जी पूछिए !
मुझसे शादी करोगी ,मैं तुम्हे पसंद तो हूँ।
करतार के इस तरह अचानक प्रश्न पूछने पर ,वो घबरा सी गयी और बोली - शायद पापा बुला रहे हैं।
चली जाना ,पहले जबाब तो दे जाओ ! कहकर उसने शब्बो का हाथ पकड़ा किन्तु शब्बो भी इतना शरमा गयी थी बोली - जैसा पापा कहें ! और हाथ छुड़ाकर भाग गयी।
समझ नहीं आया ,उसकी हाँ है कि ना ,या उसने पापा से बात करने का इशारा किया।
ख़ैर जो भी हो ,मैंने तोअपने मन की बात कह डाली ,अब उसके मन की बात सुननी है ,सोचकर वो उसके पापा के पास आकर बैठ गया। शब्बो के मन में ख़ुशी के लड्डू तो फूट रहे थे ,तभी उसे अपने वे दिन स्मरण हो आये जो उसने बलविंदर के साथ बिताये थे। उसके मन में आशंका जन्म लेने लगी ,अभी ये मेरे विषय में पूरी बात कहाँ जानते हैं ?पहले उन्हें सम्पूर्ण बातें बताकर ही आगे बढ़ूंगी वरना मेरे मन पर एक बोझ रहेगा कि मैंने झूठ से अपनी ज़िंदगी की शुरुआत की।