आज बहुत दिनों पश्चात ,समीर शब्बो को अपने सामने देखकर हतप्रभ रह गया। उसे समझ नहीं आया कि वो क्या कहे और कैसे उसका स्वागत करे ?वो तो ये भी नहीं जानता था कि शब्बो अपने इंस्पेक्टर साहब की अर्धांग्नी बन चुकी है। शब्बो को देखकर बोला -तुम यहाँ !
क्यों मुझे नहीं आना चाहिए था ? शब्बो ने प्रतिउत्तर में प्रश्न किया।
नहीं मेरा मतलब वो नहीं था ,मैं तो ये कह रहा था -तुमने तो आना छोड़ ही दिया था ,तुमने तो अपनी दोस्ती भुला ही दी। अब तो जैसे हमसे कोई मतलब ही नहीं रहा। इसीलिए पूछा -आज अचानक कैसे स्मरण किया ?वो मन ही मन सोच रहा था ,शायद आज भी इसके मन में मेरे प्रति कोई न कोई भाव तो हैं ही।
अब घर चलना है या फिर यहाँ रास्ते में ही ,मुझसे लड़ने लग गए ,शब्बो ने कहा।
मैं लड़ नहीं रहा ,मैं तो शिकायत कर रहा हूँ घर जाकर क्या करना है ?अब तुम्हारी सखी वहां नहीं रहती।
जब वहां मेरी सखी नहीं थी ,तब किससे मिलने जाती थी ?वहां मेरी मेम और मेरे अंकल भी हैं ,उसने अपनापन दर्शाते हुए कहा।
कोई लाभ नहीं सभी नाराज होंगे ,तुमसे अनेक प्रश्न करेंगे।
करने दो ! मुझसे नाराज हैं ,जिन पर अधिकार होता है ,उसी उसे नाराज होते हैं।
ओहो !बड़ी समझदार हो गयी हो।
जिंदगी बहुत कुछ सिखा देती है ,किसी दार्शनिक की तरह बोली। ये जीवन ही ऐसा है ,अल्हड़पन न जाने कहाँ चला जाता है ,न चाहते हुए भी ज़िंदगी में संजीदगी ले ही आता है। कुछ चीज़ें जबरदस्ती ज़िंदगी में घुसी चली आती हैं ,जिन्हें हम लाना चाहते हैं ,वो मुँह चिढ़ाती नज़र आती हैं। किन्तु जो मिल गया ,उसी में ही ख़ुशी ढूंढ़नी है और खुश रहना है वरना खुशियों के लिए तरस जाओगे।
अब तुम तो बडी ज्ञानी हो गयी हो ,मेरी भी याद आती है या नहीं।
तुम कोई भूलने वाली चीज़ हो ,किन्तु अब तुम ज़िंदगी में नहीं आ सकते क्योंकि अब तुम्हारी ज़िंदगी में मेरी दोस्त है।
तुम उसे अभी भी अपना दोस्त मानती हो जिसने तुम्हारे सभी सपने चकनाचूर कर दिए ,समीर को अपनी कुछ बातें स्मरण होते ही, शब्बो पर भी क्रोध आया कि जिन कड़वी यादों को मैं भुला देना चाहता हूँ। ये जबरदस्ती उनमें मुझे लपेट रही है। लो घर आ गया ,अब तुम अपनी मेम और अंकल से मिल लो ! मैं अभी आता हूँ कहकर शब्बो को घर के सामने ही छोडकर चला गया।
शब्बो को देखकर वो लोग भी आश्चर्य चकित हुए ,हाल चाल पूछने के पश्चात ,शब्बो ने बिना किसी लाग -लपेट के उनसे पूछा -अब अपनी बहु को कब बुला रहे हैं ?
तुम क्या चाहती हो ?अपने घर में उस झूठी -धोखेबाज़ लड़की को बुलाकर ,हम अपने घर की शांति भंग कर लें ,समीर के पापा क्रोध में आकर बोले।
वो तो मैं भी नहीं चाहती ,किन्तु इस तरह ,कब तक वो अपने घर में पड़ी रहेगी ? आप ये भी तो सोचिये ! वो आपके बेटे से प्रेम करती है ,उसे पाने के लिए ही तो वो ऐसी बन गयी,उसका कभी बुरा नहीं चाहेगी।
प्रेम तो तुम भी करती थीं तभी समीर की मम्मी अंदर से आते हुए बोली।
उनकी बात सुनकर ,शब्बो कुछ पल के लिए ,शून्य हो गयी फिर बोली -क्या फ़र्क पड़ता है ?वो चाहे या मैं !वो भी तो मेरी ही दोस्त है। अब समीर को भी आगे बढ़ना ही होगा ,कब तक वो दोनों इस तरह ,अलग -अलग रहेंगे ?अब मैं भी अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ चुकी हूँ। मेरा विवाह इंस्पेक्टर साहब से हो गया है।
क्या????
जी...... सब कुछ इतनी शीघ्रता से हुआ ,मुझे भी समझ नहीं आया किन्तु जब समझ आया तब लगता है ,जो हुआ, ठीक ही हुआ। पापाजी की भी चिंता दूर हुई ,उसके ये शब्द आते हुए समीर ने सुन लिए ,किन्तु बोला कुछ नहीं।
वो अपने -आप पर नियंत्रण कर रहा था किन्तु कह भी नहीं पाया ,अधिक देर तक अपने को रोक न सका और बोला -क्या तुम्हें उस धोखेबाज़ ने भेजा है ?जो तुम उसकी हिमायत लेकर आई हो।
नहीं ,मैं तो उसे तबसे मिली ही नहीं ,किन्तु आज मैंने उसे रास्ते में देखा ,उसके अंदर मेरे प्रति आज भी नफ़रत भरी है किन्तु वो मुझसे ही नफ़रत नहीं कर रही वरन वो स्वयं भी उस नफ़रत की आग में जल रही है , मुझे बददुआएँ देती होगी।
तुम उसकी बद्दुआओं से डर गयीं ,ऐसे लोगों की बद्दुआएं नहीं लगती जिनके मन में पहले से ही खोट हो।
शायद ,तुम सही कह रहे हो ,फिर भी इसी तरह तो ,यूँ ही ज़िंदगी नहीं कटेगी ,शायद उसे अपने किये पर पछतावा हो। अब तो तुम्हें उसे क्षमा कर देना चाहिए।
तुम कैसे ,उसकी इतनी तरफदारी कर रही हो ? तुम्हें लगता है ,उसे अपने किये पर पछतावा होगा यदि होता तो जब तुमसे मिली थी ,तभी माफी मांग लेती।
वो मुझसे नहीं तुमसे प्यार करती है ,उसने मुझे अपनी दोस्त नहीं समझा ,ये उसकी बदकिस्मती है। यदि वो मुझसे एक बार भी कहती -कि तुम्हें चाहती है ,तो मैं तुम दोनों के बीच में आती ही नहीं।
इतनी महान बनने की आवश्यकता नहीं , मेरी मंजूरी या इच्छा भी तो जरूरी है, या तुम दोनों के बीच में मैं इसी तरह लुढ़कता रहूंगा। अरे मेरी इच्छा -अनिच्छा कुछ मायने रखती भी है या नहीं। ऐसे थोड़े ही होता है ,तुम सोचती हो , कि मेरी दोस्त है उससे प्यार करो या उसके साथ रहो। तुमने कभी ये भी पूछा -''समीर तुम क्या चाहते हो ?तुमने अपनी उस दोस्त के लिए अपने प्रेम को छोड़ दिया ,अपने माता -पिता के सम्मान के लिए भी मेरी परवाह नहीं की। कभी -कभी मुझे तो लगता है ,तुमने मुझसे कभी प्रेम किया भी था या नहीं। अपने प्यार के लिए लोग लड़ जाते हैं , किन्तु तुम्हें तो महान बनने का शौक चढ़ा है। तुमने त्याग किया ,तुम्हें क्या मिला ?उस सहेली की नफ़रत ! मुझसे दूरी और अब भी तुम मुझसे और दूर चली गयीं। एक उम्मीद तो थी ,तुमने वो भी तोड़ दी ,कहते हुए समीर दुःख की गहराई में डूब गया।