अभी तक आपने पढ़ा -चेतना अपनी चालें चल रही है ,उसने टोनी को समीर की तस्वीर लाने के लिए कहा और स्वयं पम्मी के घर चली जाती है। इधर मन ही मन शब्बो ,उनके विरुद्ध ,सबूत की तलाश में है ,उधर चेतना उसके घर आती है और उसके मम्मी -पापा के सामने उसकी और समीर के रिश्ते को लेकर उनके मन में संशय डाल देती है। इससे पहले कि शब्बो ,बलविंदर के ब्याह की पोल खोले ,उसे जगजाहिर करे ,उससे पहले ही ,चेतना ने समीर के रिश्ते को लेकर ,अपना संदेह जाहिर कर दिया। अब आगे -
चेतना तो चली गयी, किन्तु उनके मन में अनेक प्रश्न छोड़ गयी। सामाजिक दृष्टि से देखा जाये तो ,उसकी बात सही थी ,जिस लड़की का किसी के साथ विवाह तय हो गया है ,उसका इस तरह किसी भी लड़के से मिलना ,वो भी अकेले में ,सही नहीं है। किन्तु वास्तविकता कोई नहीं जानता ,जो भी उन्हें दिखलाया जायेगा सच तो वही लगेगा।आजकल ''सत्य को भी प्रमाण की आवश्यकता पड़ती है। ''उनके घर का वातावरण एकदम से बाहर से तो ,शांत दिख रहा था किन्तु अंदर सबके दिलों में अशांति फैली थी।
तुम क्या चाहती हो ?किसी का कहना मानना तो ,जैसे तुमने सीखा ही नहीं ,तुम हमारी इकलौती बेटी हो ,हम माता -पिता होने के नाते तुम्हारा साथ देते हैं। इसका अर्थ ये तो नहीं ,कि तुम अनुचित भी करोगी तब भी हम तुम्हारा समर्थन करेंगे।
पापा मैं मानती हूँ ,मैं समीर से मिली थी किन्तु उस समय मेरे संग शिल्पा भी थी। हम किसी विषय पर बातचीत कर रहे थे।
तुम जानती हो ,हमारे यहाँ का माहौल कैसा है ?वो तो शुक्र मनाओ !कि टोनी ने ही देखा ,कल को यदि तुमसे मिलने बलविंदर ही आ जाता ,तो वो क्या सोचता ?उस पर और तुम्हारे रिश्ते पर क्या असर होता ?
शब्बो अपने पापा से ,कहना तो बहुत कुछ चाहती थी किन्तु'' बिन सबूत के ,वो'' हवा में तीर तो नहीं छोड़ सकती थी।'' 'इससे पहले कि शब्बो अपने माता -पिता को अपने विश्वास में लेती ,उससे पहले ही चेतना अपनी चाल खेल गयी। अब कुछ भी बताएगी या समझाना चाहेगी ,ये लोग नहीं समझेंगे।
कॉलिज के लिए आते समय ,मम्मी जी ने अनेक हिदायतें दे डालीं ,तू अब उस लड़के से मत मिलना ,मिली तो तेरा कॉलिज जाना बंद।
मम्मीजी समीर एक अच्छा लड़का है ,वो मेरी सहायता ही कर रहा है ,उसने अपनी मम्मीजी को अपने विश्वास में लेना चाहा।
कैसी सहायता ?तुझे किसके सहारे की आवश्यकता पड़ गयी ?
किन्तु इन सवालों के वो जबाब अभी बिन सबूत के कैसे देती ?बोली -मुझे थोड़ा समय तो दो ,सब पता चल जायेगा।
कैसा और कितना समय ?इतने तो सारे गांव में ,हमारी बेइज़्जती हो जानी है , कहेंगे -एक लड़की भी नहीं संभाली जाती। ये रिश्ता टूट गया न ,फिर तो कोई रिश्तेवाला भी न फ़टकेगा और तू जानती ही है ,इस चेतना को ,सारे गाँव में गाती फिरेगी - कि लड़की के चरित्र में ही ख़ोट है इसीलिए रिश्ता तोड़ दिया।
आज कॉलिज में शब्बो ,समीर से अलग ही रही ,शिल्पा ने उसे बता भी दिया- कि उसके घर में ही कोई परेशानी है किन्तु समीर अब उसकी परेशानियाँ बाँटना चाहता था। उससे पूछना चाहता था- कि वो ऐसा क्या करे ? जो उस बलविंदर की पोल खुले और जो विश्वास ,शब्बो के मम्मी -पापा का टूटा है वो फिर से जुड़ जाये।
अब शब्बो सतर्क रहती ,पता नहीं कब, टोनी आ जाये ?और समीर से मिलते देख ले। शब्बो को समीर से कुछ भी बात कहनी या पूछनी होती तो शिल्पा से कहलवा देती।
उधर अब तो चेतना को ,ब्याह की जल्दी होने लगी और उसने अपने भाई और शब्बो के पिता से मिलकर ,शीघ्र ही ब्याह का मुहूर्त निकलवाने लगी और मुहूर्त निकल भी आया। अगले माह की पंद्रह तारीख़ को।
इन बातों से पहले तो, शब्बो के मम्मी -पापा भी चाहते थे -इसकी पढ़ाई पूर्ण हो जाये ,तभी विवाह होगा। किन्तु जबसे चेतना ने उन्हें ,शब्बो की समीर से मिलने वाली बात बताई ,वे भी जैसे बेबस से हो गए। उनकी अपनी इच्छा का तो जैसे कोई महत्व रह ही नहीं गया। उन्होंने तो ,चेतना के आगे ,सभी हथियार डाल दिए ,बल्कि वो तो जैसे उसके एहसानमंद हो गए -कि उसने ये बात पता होने पर भी ,रिश्ता नहीं तोडा।
शब्बो कहना तो बहुत कुछ चाहती थी ,किन्तु उसकी भी जैसे ज़बान पर ताले लग गए।घर के हालत ऐसे हो गए -न चाहते हुए भी ,सब किसी यंत्र की तरह कार्य कर रहे थे।
एक दिन ,शब्बो ने ,समीर से कहा -अगले माह मेरा ब्याह है ,जो भी करना है ,शीघ्र ही करो !उससे पहले ही ,सबूत ले आओ !
समीर बोला -मैं सबूत की तलाश में कई बार उधर गया किन्तु कुछ भी हाथ नहीं लगा ,अब तो वो लड़का भी नहीं दिख रहा, जिसने ये सूचना दी थी।
विवाह के दिन नजदीक आते जा रहे थे ,सभी परेशान थे ,क्या करें कुछ समझ नहीं आ रहा था। इधर टोनी ने जब समीर की फोटो ,बलविंदर के पास भेजी और बलविंदर ने ,अपने उस दोस्त को दिखाई तो वो तुरंत पहचान गया।
एक दिन किसी अज्ञात ने समीर से कहा -जिस सबूत की तलाश में तू घूम रहा है ,वो तुझे मिलेगा ,तू बताये स्थान पर आ जाना।
समीर ने प्रसन्न होते हुए ,शब्बो को बताया -अब परेशान होने की आवश्यकता नहीं ,शीघ्र ही ,हमें ,बलविंदर के विरुद्ध ,प्रमाण मिल जायेंगे और इसकी पोल ख़ुल जाएगी ,तब देखता हूँ , ये विवाह कैसे होता है ?
शब्बो ने पूछा भी ,जिसने तुझे बुलाया है ,क्या तू ,उसको जानता है ?
नहीं..... कोई भला मानस ही होगा ,जो हमारी सहायता करना चाहता है ,हो सकता है ,करन का जानने वाला ही हो। इसी सोच के साथ दोनों सकारात्मक ऊर्जा लिए ,अपने दिव्य सपनों में खो गए। समीर बोला -जैसे ही ,मुझे सबूत मिलेगा ,मैं सीधे तुम्हारे घर आऊँगा और उस तुम्हारी चाची के सामने ही उस सबूत को पेश करूंगा। तब देखना ,उसका चेहरा कैसे लटकता है ? और तभी मैं सबके सामने तुम्हारा हाथ मांग लूँगा।
अब घोड़े तो नहीं रहे ,तुम अपनी दुपहिया पर ही 'स्टाइल ''में आना किसी नायक की तरह..... शब्बो भी ख़्वाबों में ,समीर के संग फेरे लेने के स्वप्न देखने लगी।
कहते हैं न ,स्वप्न देखना जितना आसान होता है ,उतनी ही असल ज़िंदगी ,कठोर धरातल से रूबरू करा देती है। ज़िंदगी ,स्वप्न देखने जितना आसान नहीं होती । यदि ज़िंदगी इतनी ही आसान होती तो, हर कोई अपने सपने पूरे कर पाता। सुंदर और प्यारे सपने हर कोई देखता है ,हकीक़त से जुड़े ,जीवन की कठोर सच्चाई के सपने कोई नहीं देखना चाहता। किन्तु स्वप्न पूरे उसी के होते हैं ,जो ज़मीन पर रहकर सपने देखता है। अब हमारे नायक -नायिका ने भी सपने देखे ,क्या वो पूरे हुए या होते हैं ?जानने के लिए पढ़िए -बदली का चाँद