अभी तक आपने पढ़ा -शब्बो जो ,तेरह बरस की उम्र में ,अपने पड़ोस में आये ,बलविंदर से प्रेम करने लगती है ,बलविंदर ''उसको तो इस बात का एहसास ही नहीं। जब सभी लोग नदी में नहाने जाते हैं ,तब बलविंदर को शब्बो की दोस्त ,हँसी -हँसी में धक्का दे देती है किन्तु बलविंदर को तो तैरना ही नहीं आता था और वो पानी के भाव के साथ ,बहता चला जाता है। उसे बचाने के लिए शब्बो ,नदी में कूद जाती है किन्तु बलविंदर को नहीं बचा पाती उल्टे स्वयं ही बहाव के साथ बह जाती है और उसके सिर में चोट भी लग जाने के कारण वो बेहोश हो जाती है ,जब उसे होश आता है तो अपने को एक ऐसे स्थान में पाती है ,जहाँ पहले से ही एक दुर्घटना हो चुकी है। वहां पर बचाव कार्य चल रहा था। वहीं उसे एक महिला मिलती है जिसका नाम तारा है वो उसे बहलाकर अपने साथ ले जाती है। शब्बो को मालूम पड़ जाता है कि ये महिला ठीक नहीं किन्तु तब तक वो उसके चंगुल में फंस चुकी होती है। वो अपने बचाव के साधन करती है किन्तु वो लोग इतने शातिर हैं वो पुलिस को भी चकमा देकर निकल जाते हैं ,अब आगे -
करतार ने शब्बो की तरफ देखा ,उसकी आँखों में आज भी आँसू हैं ,जो उसकी आँखों के कोरों से बहकर कानों तक आ गए हैं। देखने से तो लग रहा है ,शब्बो आसमान में देख रही है किन्तु उसका मन तो कई वर्ष की स्मृतियों में खोया है। उन स्मृतियों में कितना दर्द है ?जो देर -सबेर उसे रुला ही देती हैं। वे तारे जैसे उसके एक -एक दर्द के गवाह हैं।
करतार बोला -शबनम.... शबनम.... किन्तु उसका ध्यान तो कहीं ओर था किन्तु उस गहन अंधकार से वो शीघ्र ही निकल आई और बोली -जी ,उसने अपने आँसू पोंछे ,क्या आपको कुछ चाहिए ?बड़े ही सहज होकर बोली।
हाँ...... मुझे मेरी हंसती -खेलती शब्बो चाहिए ,इस तरह परेशान और पुराणी बातें सोचती शब्बो नहीं। कुछ भी तो नहीं हुआ ,जो तुम इतनी परेशान हो। ये तो ज़िंदगी है -सुख -दुःख तो लगे ही रहते हैं। अब तो तुम प्रसन्न हो न ,अब तो कोई परेशानी नहीं है फिर ये मातम क्यों ?करतार परेशान होकर बोला।
तुम नहीं समझोगे करतारे ,उस दिन, यदि मैं न निकल पाती तो मेरा क्या होता ?पता नहीं ,वो तारा कहाँ बेच आती ?सोच कर ही सिहरन हो उठती है। तुमसे भी कुछ ''दिल का दर्द ''कह लेती तो तुम इतने अच्छे हो ,तुम तो कुछ सुनना ही नहीं चाहते ,शब्बो जैसे बेबसी से बोली।
इसमें सुनना क्या है ?सभी जानते हैं- कि तुम कितनी परेशानियों से निकलकर आई हो ?अब उन जख्मों को दुबारा कुरेदने से क्या फ़ायदा ?अब तो ये ही सच्चाई है ,तुम मेरी पत्नी हो और मैं तुम्हारा पति ,जो तुमसे बेहद प्यार करता है और तुम..... सोचकर कुछ चुप हो गया और बोला -तुम्हारे साथ कोई ,जबरदस्ती नहीं तुम प्रेम करो या ना ,मैं तुम पर कभी ये रिश्ता नहीं थोपूँगा। जब तक तुम्हारा दिल न चाहे ,हम दोस्त बनकर ही रहेंगे। दुनिया के सामने तो पति -पत्नी हैं ,ही। चलो ,अब बहुत रात हो गयी ,नीचे चलते हैं वरना सुबह बेबे चिल्लायेगी ,देर तक कौन सोता है ?
तभी शब्बो बोली -शैतान.... कहकर दोनों हँस दिए और नीचे आ गए।
शब्बो को देखकर तो ,करतारे की माँ की त्योरियाँ चढ़ जाती हैं ,और मन ही मन बुदबुदाती है -पता नहीं ,मेरे करतारे ने इसमें क्या देखा ?कहता है -ब्याह करूंगा तो इसी से, करें भी तो क्या ?बेटे के आगे उसकी एक न चली। ये बात शब्बो भी जानती है ,कि करतारे की माँ उसे पसंद नहीं करती ,किन्तु वो भी क्या करे ?पता नहीं ,उसकी ज़िन्दगी कहाँ से कहाँ जा रही है ?
अगले दिन ,करतारे का उदास चेहरा देख उसका दोस्त ,हरमिंदर ''पूछता है -क्या हुआ ?क्या भाभीजी से कुछ झगड़ा हो गया ?
यही तो दुःख है ,वो झगड़ती ही नहीं , न ही कुछ कहती है ,बस अपनी स्मृतियों में खोई रहती है ,मैंने कई बार कहा -जो हो गया ,उसे भूल जा किन्तु......
हरमिंदर बीच में ही बोला -यार.... तू बुरा मत मानियो ,लेकिन एक बात कहूँ ,तेरी बेबे उसे भूलने दे तब न ,मैं तो आंटीजी की हरकतों से वाकिफ़ हूँ। देर -सबेर उसे उलहाने देती ही होंगी। तू ऐसा कर ,कुछ दिनों की छुट्टी लेकर ,भाभी को कहीं पहाड़ी इलाक़े में घुमा ला , उनका भी मन बदल जायेगा। घर में पड़े -पड़े तो वही सब सोचेंगी।
करतारे को उसकी बात सही लगी ,बोला -कह तो तू ठीक रहा है ,मैं देखता हूँ ,'सरजी 'से कहकर ,कुछ दिनों की छुट्टी दे दें तो ,मैं अपनी शबनम को बाहर घुमा लाऊंगा ,क्या पता ,उसके मन की गाँठ भी खुल जाये ?यहां तो उसे तानों के सिवा कुछ नहीं मिलने वाला ,लोग उसे भूलने दें ,तब न।
करतारे के जाने के पश्चात ,बेबे बोली -ऐ..... नाजुक़ कली ,जा तेरे ससुर ने ,भैंसों का दूध दोह लिया है ,जाकर उन भेंसों को नहलाकर ,पानी पिलाकर सानी कर देना।
जी ,बेबे !मैं पहले दो रोटियां खा लूँ ,तब कर दूंगी। ओय मेमसाहब.... भेंसे तेरे इंतजार में नहीं खड़ी रहेंगी ,जाकर पहले उन्हें नहलाकर आ ,तब तसल्ली से खा लियो। एक तो मेरे बेटे की ज़िंदगी नरक बना दी ऊपर से कामचोर.......
शब्बो के मन में आया कि वो रोटी खाये ही न ,जाकर भैंसों को ही खिला दे किन्तु अब तो उसे लगता है जैसे -विरोध करने के भी ,वो सम्पूर्ण अधिकार खो चुकी है ,चुपचाप जाकर भैंसों को नहलाने लगी। वो सोच रही थी -मेरी क़िस्मत मुझे कहाँ से कहाँ ले आई ?न मेरी ज़िंदगी में ,वो बलविंदर आता ,न ही मेरी ये हालत होती ,कहकर उसकी आँखें भर आईं।
तभी उसे लगा ,जैसे उसकी मम्मीजी उसे पुकार रही हैं -शब्बो......... ओय शब्बो........ आजा चल नाश्ता कर ले ,तेरी मम्मीजी ने तेरी पसंद का बनाया है। उसे लगा जैसे -मम्मीजी उसके सामने खड़ी हैं ,किन्तु आँसुओं के कारण उसे दिख नहीं रही। तभी उसकी मम्मीजी बांहें फैलाती हैं और वो आंसू पोंछती है ,उसके सामने उसकी सास खड़ी थी ,जो उससे कह रही थी -हाथ जल्दी -जल्दी चला। उसे अपने सपने पर हँसी आई ,यहाँ मम्मीजी कैसे हो सकती हैं ?वो तो मेरे सदमे में ही चल बसीं ,मैं तो जीते जी ही उन्हें खुश न कर सकी ,उन्हें अनेक दुःख दिए ,अब तो वो फ़फ़क -फफककर रो पड़ी- मम्मीजी मुझे माफ कर दो मैंने आपका बहुत दिल दिखाया।
शब्बो तारा के चंगुल से कैसे निकली ?और निकलकर कहाँ गयी और करतारे से उसका विवाह कैसे हुआ ?क्या करतार सिंह उसे बाहर घुमाने ले जायेगा ?जानने के लिए पढ़िए - ''बदली का चाँद ''यदि आप लोगों को कहानी पसंद आये तो समीक्षा कीजिये और सुझाव भी दे सकते हैं ,स्टार के साथ