अभी तक आपने पढ़ा -शब्बो को देखने वाले आते हैं और साथ ही साथ अँगूठी पहनाने की रस्म भी कर जाते हैं। शब्बो अभी ,इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थी ,किन्तु बुआ जी के दबाब के कारण ,उस समय की परिस्थितियों को समझते हुए ,शब्बो शांत रहती है और ये रस्म निभाती है। अगले दिन वो समीर से भी मिलती है ,तब समीर उससे अपने मन की बात कहता है ,तब शब्बो उससे कहती है -उसने पहले क्यों नहीं कहा ? मैं कहने ही वाला था। उसकी इसी बात से शब्बो चिढ़ जाती है और कहती है -बस सोचते रहना। अब आगे -
शब्बो अज़ीब दुविधा में ,फंस जाती है ,एक तरफ समीर ,जिससे वो प्यार करने लगी है ,दूसरी तरफ वो बलविंदर ,जो उसके सपनों में, कहीं भी फिट नहीं बैठ रहा। अब तो ,उसके साथ अंगूठी की रस्म भी हो गयी ,इस तरह इस रिश्ते को ,इतनी जल्दी तोड़ भी नहीं सकती। तभी उसे उसका एक वाक्या स्मरण हो आया ,जब उसने कहा -''तुझे आना तो मेरे ही घर है '',जैसे उसने उसे इस बात की धमकी दी हो। इस बात को वो अपनी मम्मीजी को अवश्य बताएगी।
समीर अब भी परेशान है ,उसे लगता है ,उसने देर कर दी ,अब कुछ नहीं हो सकता। तभी शिल्पा वहां आ जाती है और कहती है -समीर क्या तुमने शब्बो का होने वाला दूल्हा देखा ?
समीर बोला -तुम भी कमाल करती हो !भला मैं ,कैसे इसका दूल्हा देखता ?इसने तो चुपचाप ही सभी रस्में कर लीं ,हमें तो इस लायक भी नहीं समझा कि हमें किसी भी रस्म में बुला सके ,समीर ने व्यंग्य किया।
उसके व्यंग्य पर शब्बो ने उसे घूरा और बोली -हाँ ,मैं नहीं चाहती ,कोई ऐरा -गेरा हमारे घर आये या हमारे किसी भी कार्यक्रम का हिस्सा बने। जब तक ,शब्बो उसे ऐसे ही ताने दे रही थी। तभी शिल्पा ने ,एक फोटो निकालकर ,समीर के आगे कर दी। शब्बो उससे छीनने का प्रयत्न करने लगी और बोली -तेरे पास ,ये फोटो कहाँ से आई ?तब तक समीर ,उस फोटो को देख चुका था। तभी उस फोटो में कुछ अजीब लगा और उसने फोटो शिल्पा के हाथ से ले ली और पूछा -क्या यही इसका होने वाला दूल्हा है ?
हाँ ,देख नहीं रहे ,मैडम जी के समीप, यही तो बैठा है शिल्पा ने जबाब दिया।
तभी समीर उठा और किसी से भी बिन कुछ कहे ,एकदम से वहां से चला गया। शिल्पा और शब्बो हतप्रभ सी उसे जाते देख रही थीं। जब वो उनकी आँखों से ओझल हो गया ,तब शब्बो बोली -तुझे क्या आवश्यकता थी ?उसे फोटो दिखाने की ,शायद उसे बुरा लगा।
उसे क्यों बुरा लगेगा ?क्या वो तुम्हें चाहने लगा है ?जो उसका दिल टूट गया। कहीं तुम लोग मुझसे कुछ छिपा तो नहीं रहे ,''इश्क़ और मुश्क़ छिपाये नहीं छिपते ''कहकर उसकी तरफ देखते हुए मुस्कुराने लगी।
उधर बलविंदर की बुआ ,चेतना अपने घर पर ,अपने भाई से बोली -अब देख लो ,भाई !मैंने कुछ भी करके ,इसकी यहाँ बात पक्की कर दी है। अब तुस्सी अपने पुत्तर नु कंट्रोल करो ,कहीं ये बना बनाया काम न बिगा ड़ दे।
अब मैंने क्या किया ?बलविंदर अनजान बनते हुए बोला।
ओय..... मुझे न समझा ,उसके कान पकडती हुई ,बोली -बुआ की दो आँखें आगे हैं, ते दो पीछे और चार कान हैं , जब तूने शब्बो का हाथ पकड़ा और उसने अपना हाथ छुड़ाया तो इन्हीं कानों ने सुना -तू कह रहा था -''आएगी तो हमारे घर ही '',पता नहीं ,उसने सुना कि नहीं, मैंने तो सुना है। तू उससे लड़न वास्ते आया या फेर रिश्ता करण वास्ते। मैं कह रही हूँ ,भाई !ये अपणी हरकतों से ,बनी -बनाई बात बिगाड़ सकता है।
वो भी तो नख़रे दिखा रही थी ,पहले तो मेरे पीछे -पीछे घूमती नजर आती थी और अब तो'' कन्नी काट रही है। ''
अब तू उसे ,प्यार से अपने क़रीब ला ,अचानक चेतना को जैसे कुछ स्मरण हुआ और बोली -कहीं ऐसा तो नहीं ,आजकल वो कॉलिज जाती है ,वहीं कोई पसंद न आ गया हो ,इसीलिए ब्याह में आना -कानी कर रही हो। अब तो जैसे बुआ के मानस पटल की बत्तियाँ जल उठी हों ,बोलीं -पहले तो ये लड़की ,हमारे बल्लू के लिए कितनी हैरान -परेशान थी ,उसको बचाने वास्ते नदी में कूद गयी किन्तु अब इसमें कोई ''इन्ट्रेस्ट ''नहीं दिखा रही। ओय..... टोनी कित मर गया। टोनी अपनी मम्मी जी की आवाज सुनकर ,दौड़ता हुआ आता है और पूछता है -क्या हुआ ?
हाय मैं मर जावाँ ........ ये बात मेरी इस खोपड़ी विच पहले क्यों नहीं आई ?हो न हो ,कहीं ये किसी से दिल तो नहीं लगा बैठी। तभी ये ब्याह वास्ते आनाकानी कर रही थी। सुन पुत्तर !तुझे पता है ,ये कोण से कॉलिज जाती है ?
आहो....
ते फेर ठीक है ,तू उसके कॉलिज जाकर पता लगाइयो ,ये किसी लड़के से तो नहीं मिलती। मैं तो सोच रही थी कि अपने बलविंदर का रिश्ता लेकर जाऊँगी तो पूरा परिवार ख़ुशी के मारे बावला हो जायेगा कि उनकी बेटी पर इतने लांछन लगे ,फिर भी हम ब्याह वास्ते रिश्ता लेकर आये। अब पुत्तर तू जा.... और अपने काम पर लग जाइयो। सारी ख़ोज -ख़बर लाकर मेन्नु दियो।
जी मम्मीजी कहकर टोनी बाहर आ गया।
अब तो भाई तुम लोग जाओ.... !अपणे इस पुत्तर नु समझा लियो ,जब तक ब्याह न हो जाये ,कोई ऐसी -वैसी हरकत न करे।
अपने घर आकर बलविंदर बोला -पापा जी मैं अभी आया।
ओय... तू किधर जा रहा है ?तूने सुना नहीं ,तेरी बुआ ने क्या कह्या सी ?कोई ऐसी -वैसी हरकत न करी।
जी.. पापा.. जी.. बलविंदर मन ही मन दाँत पिसते हुए बोला और बाहर निकल गया।
बलविंदर की मम्मी ज़रा अपने इस लाड़ले को समझाओ !कुड़ी भी सोहणी है ,उसके बाप पर पैसा भी बहुत है ,इकलौती कुड़ी है ,जो भी पैसा ज़मीन -जायदाद होगी ,सब उसी का होगा ,उसका होगा यानि हमारे पुत्तर का भी होगा। हमारे ''बिजनेस ''में इतना नुकसान हुआ है ,सब भरपाई हो जानी है। वो तो भला हो ,चेतना दीदी का ,जो उसने हमें ये तरीक़ा सुझाया। लड़के का ब्याह भी हो जाना है और हमारा कर्ज़ा भी उतर जाना है।
अपनी ननद की प्रशंसा सुनकर ,वो बोली -वो कोई इतनी ''दूध की धुली नहीं है। ''उसने भी तो अपना हिस्सा माँगा होगा।
हिस्सा क्या मांगना ?जब वो इतनी मेहनत कर रही है ,हमें लाखों -करोड़ों दिलवा रही है ,तब हजारों तो उसके भी बनते हैं।
फिर क्यों ?अपनी बहन के कारनामों का ड़ंका बजा रहे हो ,उसका भी स्वारथ है। और तुम दोनों भाई -बहनों के स्वारथ में'' बलि का बकरा ''तो मेरा पुत्तर ही बन रहा है। उसके मन में अपनी ननद के प्रति कोई सम्मान नहीं था उसके लिए तो वो जो भी कर रही थी ,अपने स्वारथ और लालच के लिए कर रही थी।