शब्बो विदा होकर ,अपनी ससुराल यानि करतार के घर आ गयी। करतार के इस तरह बिना बताये ,ब्याह कर लाना ,बेबे को ये बात पसंद नहीं आई। शब्बो आ तो गयी किन्तु बेबे का दिल न जीत सकी। वो भी करतार के जाने के पश्चात। घर के सम्पूर्ण कार्य करवाने ,के पश्चात जानवरों के कार्य भी करवाती। शब्बो ने अब इसी को अपनी ज़िंदगी मान लिया। करतार को बेबे का व्यवहार पता चला तो वो बहुत दुखी हुआ। उसे लगा ,उसने शब्बो को यहां लाकर गलती कर दी। शब्बो ने कभी भी ,करतार से बेबे की शिकायत नहीं की। तब करतार अपनी छुट्टी लेकर शब्बो को घूमाने के उद्देश्य से बाहर लाता है। शब्बो पहले उससे अपने घर जाने के लिए कहती है।
गुरदासपुर..... गुरदासपुर !चलिए गुरदासपुर के लोग उतर जाइये। कन्डक्टर की आवाज सुनकर ,शब्बो का ध्यान भंग हुआ और वो विचारों से बाहर आ गयी। पूरे दो माह पश्चात ,आज उसने अपने गाँव में कदम रखा। वो चल नहीं रही वरन उड़ रही थी , आज पापा से कई दिनों बाद मिलेगी। उसके पापा घर के आगे ही मूढ़े पर बैठे समाचार पत्र पढ़ रहे थे। अपने पापा को देखकर अपने सब ग़म भूल गयी। उनके नजदीक जाकर बोली -कैसे हैं ?माससाब !उन्होंने समाचार पत्र से नजरें उठाकर देखा ,उनकी परी उनके समीप खड़ी मुस्कुरा रही थी।
शब्बो..... तू कब आई ?उन्होंने प्रसन्न होते हुए ,पूछा ,उसके पीछे खड़े करतार को देखकर बोले -बेटे कैसे हो ?
ठीक हूँ ,पापा जी कहकर उसने उनके पैर छुए।
आओ !दोनों अंदर आओ ! शब्बो ने देखा घर तो साफ -सुथरा है। पापा जी ,घर तो आपने अच्छा रखा है।
अब मैं अकेला , ज्यादातर बाहर रहता हूँ। घर बंद रहता है सप्ताह में आकर स्कूल की चपरासन ही साफ -सफ़ाई कर जाती है। कहते हुए ,उन्होंने अपनी बेटी और दामाद के लिए चाय बनाई।
शब्बो बोली -पापा जी ,मैं बना देती हूँ।
नहीं ,मेरी बेटी विवाह के पश्चात ,पहली बार अपने घर आई है ,अपने पापा के हाथों की चाय तो पी सकती है ,माँ तो है नहीं ,कहकर मुस्कुरा दिए और बोले -तू बता ,खुश तो है न ,
जी.... पापाजी !
उन बाप -बेटी को अकेले में बात करने के लिए ,करतार बोला -अब आया हूँ ,तो थाने में भी मिल आता हूँ ,कहकर वो वहाँ से चला गया।
पापा जी !आपका मन तो लग जाता है ,न शब्बो बोली। हाँ -हाँ ,आँखों में आई ,नमी को छुपाते हुए बोले -तू मेरी चिंता न कर अपनी ससुराल में खुश रह। आज बहुत दिनों पश्चात उनका घर चहक रहा है। वो तो सारा दिन घर से बाहर ही समय व्यतीत करते रहते हैं। शाम को घर में प्रवेश करते हैं ,तो घर सूना लगता है ,खाना खाकर ,सो जाते हैं ,बस सोने के लिए ही तो आते हैं। आज शब्बो अपनी बातें करते -करते सारे घर में घूम रही है। खाना बनाया और तब तक करतार भी आ गया। आज बहुत दिनों पश्चात बेटी के हाथ का खाना खा रहे हैं। खाना खाते हुए ,एक बूंद आंसू की निकल ही आई।
पापा ! मैं समझती हूँ ,अब तो खुश हो जाइये ,मैं आपके पास हूँ। तीनों ने खाना खाया उसके पश्चात ,शब्बो बोली -पापा जी अब आप थोड़ा आराम कर लीजिये ,उसके पश्चात स्कूल भी देख आऊँगी। कहकर वो अपने कमरे में गयी। करतार तो सो गया किन्तु शब्बो को नींद नहीं आई और वो अपने स्कूल की तरफ निकली। तभी राह में दूर से आता कोई जाना पहचाना सा चेहरा दिखलाई दिया। शब्बो ने उसे देखा तो देखती रह गयी। वो और कोई नहीं शिल्पा ही थी। इसकी क्या हालत हो गयी है ?मन ही मन शब्बो बुदबुदाई। जो भी हो , इसने जो मेरे साथ किया वो माफ़ी के क़ाबिल तो नहीं था फिर भी उसके समीप आते ही बोली -शिल्पा.....
शिल्पा जो अपनी ही धुन में चले जा रही थी ,उसने मुड़कर देखा ,शब्बो को देखकर वो ख़ुश नहीं हुई और मुँह फेरकर चल दी।
शिल्पा.... सुन तो..... तू मुझसे मुँह फेरकर ऐसे जा रही है ,जैसे मुझे जानती ही नहीं।
जानकर भी क्या होगा ? तेरे ही कारण तो आज मेरी ऐसी हालत हो गयी है , उसने शब्बो पर आरोप लगाया।
ये सब तू मुझसे कह रही है ,इतने दिनों पश्चात भी मुझे ही दोष दे रही है। कभी अपने आप को टटोलकर देखा , कि ग़लती कहाँ और किसकी थी ? शिल्पा के तरीके को देखकर ,शब्बो को दुःख हुआ ,इसने मेरी ज़िंदगी में सेंध लगाई और अभी भी मुझे ही दोष दे रही है। ये नहीं सुधरेगी। शब्बो तो सोच रही थी ,बहुत दिनों बाद मिली है ,खुश होकर गले मिलेगी ,किन्तु इसके मन में तो आज भी मेरे प्रति ज़हर भरा है। इसने मुझे नुकसान पहुंचाना चाहा किन्तु खुश तो ये भी नहीं है ,सोचकर उसने रास्ता बदल लिया। वो स्कूल जाना चाहती थी किन्तु उसका मन कहीं और जाना चाहता था।
प्रिय पाठकों !''बदली का चाँद ''अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहा है। आप सभी ने यहाँ तक मेरा और इस कहानी का साथ दिया उसके लिए आप सभी का आभार किन्तु एक बात मैं कहना चाहूँगी। या यूँ समझिये शिकायत है ,कुछ पाठक आते हैं ,कहानी पढ़ते हैं या नहीं किन्तु बिना समीक्षा के ही स्टार कम देकर चलते बनते हैं। यदि आपको कोई चीज समझ नहीं आ रही ,इसके लिए आप अपनी समीक्षा दीजिये अथवा कोई सुझाव दीजिये। ये तो सही नहीं है ,आये और स्टार कम करके चले गए। लिखने में मेहनत लगती है ,कैसे -कैसे समय निकालकर ,हम अपनी रचना लिखते हैं। कम से कम कुछ शब्दों में ही अपनी समीक्षा तो प्रस्तुत कर सकते हैं। उत्साहवर्धन भी कर सकते है ,प्रोत्साहन भी दे सकते हैं। आप लोगों के पास साधन तो बहुत हैं ,किन्तु उनका उपयोग नहीं करना चाहते। हमें भी प्रसन्नता होगी कि हमारे पाठकों की सूची में इतने समझदार लोग है। आशा की एक उम्मीद लिए ,लक्ष्मी त्यागी ,उम्मीद है ,आप लोग मेरा भरोसा नहीं तोड़ेंगे। धन्यवाद !