अभी तक आपने पढ़ा ,शब्बो बलविंदर को बचाने के लिए पानी में कूद जाती है ,उसे बलविंदर तो नहीं मिलता ,वो स्वयं ही घायल होकर ,अनजान जगह पहुंच जाती है। जहाँ उसका अपना कोई नहीं। एक बच्ची को अकेली देखकर ,एक औरत उससे हमदर्दी जताती है ,देखने में लगता है उसके इरादे नेक नहीं हैं किन्तु वो शब्बो से कहती है -कि वो उसे ,उसके गांव में पहुंचा देगी। एक व्यक्ति जो वहीं दुर्घटनाग्रस्त है ,कह तो कुछ नहीं पाता, किन्तु वो समझ जाता है- कि ये महिला उस बालिका को फुसला रही है ,क्योंकि वो महिला देखने में ,किसी अन्य प्रान्त की लग रही थी। तब वो उन दोनों पर अपनी नज़र रखता है। उधर बलविंदर बच जाता है और उसकी बुआ चेतना ,भगवान का लख -लख बार शुक्रिया अदा करती है। किन्तु उसे पम्मी की बेटी के खो जाने का ,तनिक भी दुःख नहीं है। अब आगे -
आज सुबह ही मनसुख ,आ गया ,उसे देखते ही चेतना बोली -आज इतनी सुबह -सुबह। मनसुख -हाँ ,दीदी !अब तो इसे यहाँ रहते ,कई दिन हो गए। आज मेरी छुट्टी भी थी ,तेरी भावज कहने लगी -अब तो बलविंदर को गए, महीनेभर से ऊपर हो गया। कब तक बहनजी पर बोझ डालते रहेंगे ?
ओय ,ये मेरा भतीजा है, कोई बोझ नहीं ,इतने दिनों से रख रही हूँ ,बोझ समझकर नहीं ,मेरा पुत्तर है।जैसे मेरे लिए सुरेंद्र वैसे ही बलविंदर। हाँ ,बहन वो तो मैं समझता हूँ ,किन्तु तेरी परजाई की भी तो ,अपने पुत्तर से मिलने की इच्छा हो रही है, मनसुख ने समझाते हुए कहा।
हाँ ,अब आई न सही बात मुँह पर ,चेतना मुस्कुराकर बोली -अपने पुत्तर बिना मन नहीं लग रहा और मेरा नाम ले रहे हो, कि होर बोझ नहीं डालना चाहते। भाई को चाय नाश्ता देते हुए चेतना बोली -भाई ,त्वाडा पुत्तर अ ,जब जी करे ले जाओ। बलविंदर.... ओय बलविंदर ,अरे नीचे आजा ,देख तेरे पापाजी आये हैं ,तुझे ले जाने वास्ते। बलविंदर नीचे आता है ,मनसुख को वो थोड़ा थका और उदास सा लगता है ,उसे देखकर कहता है -कि हुआ पुत्तर ,तू ऐसे उदास सा क्यों है ?चेतना वो हादसा अपने भाई को नहीं बताना चाहती थी ,बलविंदर कुछ कहता ,वो पहले ही बोल उठी -ओय कुछ नहीं ,नींद पूरी नहीं हुई होगी, स्याना बालक है ,कभी -कभी घर की याद भी आ जाती होगी। अब तो तू आ ही गया है ,अब तेरी वोटी लाड़ लड़ाएगी तो फिर से भला -चंगा हो जाना है।
तभी सुरेंद्र के पापाजी आ जाते हैं और कहते हैं -जब से ये नहर की तरफ गया ,तभी से परेशान सा है। मनसुख परेशान होकर बोला -नहर पर क्यों गया ?वहां कोई भूतनी तो नहीं चिपट गयी इसे ,कहकर मुस्कुरा दिया। बात मुस्कुराने वाली नहीं ,थोड़ी गंभीर है ,बेचारी पम्मी की तो ,बच्ची भी नहीं मिल रही। चेतना बोली -छोड़ो जी ,तुस्सी भी न ,क्या बातें लेकर बैठ गए ?होर कोई नई गल करो जी।
अब मनसुख को लगा मामला कुछ और ही है और बोला -जीजाजी तुस्सी दसो ,कि हुआ। तब टोनी के पापा ने सारी बातें ,मनसुख को बता दीं। मनसुख सुनकर ,गंभीर होकर बोला -बड़ी हिम्मती बच्ची थी।
थी। नहीं जी ,हमें उम्मीद है ,वो जिन्दा है ,हमने थाने में ,उसकी रपट भी लिखा रखी है। बस यही उम्मीद है बेचारी बच्ची ,सही -सलामत हो ,किसी गलत हाथों में न पड़ जाये'' टोनी'' के पापा जी उम्मीद से बोले।
मनसुख बलविंदर को लेकर ,अपने घर आ जाता है और बलविंदर को समझाता है- कि इस हादसे का जिक्र ,अपनी माँ से न करें ,वर्ना तेरी बुआ का सब करा- धरा मेटकर ,उसे कोसेगी।
बलविंदर घर आकर ,सो जाता है। शाम को ,अपने गांव के दोस्तों से मिलने जाता है।लौटते समय रास्ते में ,उसे' निहारिका' दिखती है जो उसकी कक्षा में उसके साथ है और उसका' पहला प्यार 'भी।जी हाँ ,निहारिका उसका' पहला प्यार' है ,इसी कारण शब्बो के रूप का जादू उस पर नहीं चल रहा था। वो शब्बो जितनी सुंदर तो नहीं किन्तु पढ़ने में ,हमेशा अव्वल। बलविंदर और निहारिका में हमेशा होड़ लगी रहती- कि इस वर्ष किसके नंबर ज्यादा आएंगे ? दोनों दसवीं में भी ,दो -चार नंबरों से आगे -पीछे थे। होड़ के साथ ,वे एक -दूसरे के प्रेम में भी ,फंसते चले गए। ये सब कब और कैसे हुआ ?ये सब तो उन्हें भी नहीं पता।
जब दोनों दसवीं के बोर्ड के पेपरों की तैयारी कर रहे थे। तभी ,उन्हें एहसास हुआ- कि ये रिश्ता दोस्ती से भी कुछ अधिक है। इम्तिहान देकर ,अपने -अपने घर में रहने लगे ,अब मिलना नहीं हो पाता। तब उसकी बार -बार इच्छा होती कि निहारिका से मिले। अपने प्रेम को कब तक छिपाकर ,रखते ?अब वो कागज़ के पन्नो पर कभी नीली स्याही से ,कभी लाल स्याही से ,कभी सजे पेज़ पर ,कभी ,खुशबू वाले पेपर पर शब्दों के रूप में उतरकर , एक दूसरे के दिल तक पहुंचने लगा।
कभी कॉपी के पन्नों के बीच में ,कभी गोला बनकर छत पर उछलकर उनका प्रेम बरसने लगा। आज इतने दिनों बाद ,दोनों एक -दूसरे को देखकर भाव -विभोर हो रहे थे। समाज की बंदिशें न होतीं तो दोनों एक -दूसरे से गले मिलकर ,मन की प्यास बुझा लेते। जब तक इस प्रेम का एहसास नहीं था ,खुले आम सबके सामने मिलते और लड़ते भी किन्तु जबसे उन्हें पता चला- कि उन्हें 'इश्क ''हुआ है। उनके अंदर स्वतः ही झिझक आ गयी और एक -दूसरे से मिलने के लिए ,एकांत तलाशते।
आज भी ,बलविंदर ने इधर -उधर देखा और बोला -मेरी याद आयी। बौह्त ,तू तो भूल ही गया ,कहीं कोई और तो नहीं मिल गयी, निहारिका मन में शंका लिए बोली। उसके इतना कहते ही ,बलविंदर को शब्बो का स्मरण हो आया और वो दुर्घटना भी ,संभलकर बोला -तेरे लिए तो मैं ,मौत के मुँह से वापस आ गया वरना अपने बल्लू को देखने के लिए ,तरस जाती।
तू कबसे बलविंदर से' बल्लू 'हो गया ?ये नया नामकरण ,कब हुआ तेरा ?और तू क्या मौत की बात ले बैठा? ,तू इम्तिहान देने गया था या मौत का पर्चा। ठीक -ठीक बता ,वहां क्या हुआ ?निहारिका चिंतित होते हुए बोली। अब जो भी हुआ ,तेरे सामने सही -सलामत खड़ा हूँ कहकर बलविंदर मुस्कुराने लगा। वो मन ही मन सोच रहा था -ये शब्बो का दिया नाम कैसे अपने -आप ,उसकी जुबां पर आ गया ?बेचारी..... जिन्दा भी है कि नहीं ,फिर उसने अपने विचारों को एक झटका दिया ,वो इन पलों को शब्बो को याद कर ,व्यर्थ गँवाना नहीं चाहता था। किन्तु उसका अंतर्मन उससे लड़ रहा था -तू यहां आराम से बातें बना रहा है और वो बेचारी पता नहीं ,कहाँ होगी ?